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रिटायर्ड लोगों के लिए रेग्युलर आमदनी पाने का सबसे अच्छा तरीक़ा क्या है जो उनकी बचत को भी सुरक्षित रखे और महंगाई दर से ज़्यादा हो?
हर किसी की ज़रूरतें अलग होती हैं, इसलिए सबसे पहले कुछ सवालों के जवाब तलाशने पड़ेंगे. आपको हर महीने कितने पैसों की ज़रूरत होगी, अपनी जमा-पूंजी के साथ आप कितना रिस्क उठा सकते हैं और आपने रिटायरमेंट के लिए कितना पैसा जोड़ा है?
मोटे तौर पर, आपके जमा किए धन जिसे हम कॉर्पस भी कहते हैं, उसे इस तरह निवेश करना चाहिए कि ये महंगाई दर से ज़्यादा रिटर्न दे और साथ ही आप अपनी ज़रूरत के हिसाब से पैसे निकाल सकें. आप अपने कॉर्पस का कम से कम 30-35 फ़ीसदी इक्विटी में एलोकेट (equity allocation) कर सकते हैं. इसके साथ आप ये पक्का करें कि आप हर साल, अपने निवेश से 6 प्रतिशत से ज़्यादा पैसा नहीं निकालें. डेट एलोकेशन (debt allocation) के लिए, आप लिक्विड फ़ंड , शॉर्ट-ड्यूरेशन फ़ंड और सीनियर सिटीज़न सेविंग स्कीम (SCSS) जैसे गारंटी का रिटर्न देने वाले विकल्प अपना सकते हैं.
मिसाल के तौर पर: अगर आपके पास ₹3 करोड़ हैं और ₹50,000 महीने की आमदनी की ज़रूरत है तो हर साल आपको ₹6 लाख निकालने होंगे. इसके लिए, आपके कॉर्पस का ₹1 करोड़ आपकी आमदनी के लिए काफ़ी होना चाहिए. इससे इक्विटी के लिए ज़्यादा अग्रेसिव नज़रिया अपनाने की गुंजाइश रहती है, क्योंकि आमदनी की ज़रूरत आपके कॉर्पस के एक छोटे हिस्से के बराबर है.
दूसरी ओर, मान लें कि आपके पास कुल ₹1 करोड़ हैं, जिसमें से ₹4 लाख सालाना ख़र्च करने हैं, तो आपको इस पर थोड़ा कंज़रवेटिव रुख़ अपनाना होगा.
रिटायरमेंटः 2 स्थितियां
कॉर्पस (₹) | सालाना इनकम की ज़रूरत (%) | मंथली इनकम (₹) | इक्विटी/डेट |
---|---|---|---|
1 करोड़ | 4% | 33,333 | 33:67 |
3 करोड़ | 2% | 50,000 | 50:50 |
आखिरी बात
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