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PE रेशियो क्या होता है?

प्राइस-टू-अर्निंग्स रेशियो किसी कंपनी/ स्टॉक की वैल्यू पता करने का एक अहम तरीक़ा है. एक निवेशक को इसे समझना चाहिए.

शेयर और म्यूचुअल फ़ंड का PE रेशियो कैसे निकालते हैं?

Price-to-earnings यानी P/E रेशियो किसी कंपनी की वैल्यू का पता करने का तरीक़ा है. ये कंपनी के शेयर प्राइस और उसकी हरेक शेयर की कमाई यानी (earnings per share or EPS) की तुलना करके निकाला जाता है.

दूसरे शब्दों में कहें, तो ये किसी कंपनी के शेयर प्राइस और उसके EPS के बीच का रेशियो है. EPS वो प्रॉफ़िट है, जो कोई कंपनी अपने हर शेयर पर कमाती है. कंपनी के प्रॉफ़िट के साथ जुड़े होने के चलते, इस रेशियो को अर्निंग मल्टीपल (earning multiple) भी कहा जाता है. एक कंपनी के मामले में, PE रेशियो बताता है कि उसकी एक रुपये की अर्निंग (प्रॉफ़िट) के लिए निवेशक कितना पैसा चुकाने के इच्छुक हैं.

ज़्यादा PE रेशियो का मतलब

कुछ स्टॉक/ शेयरों का PE रेशियो ज़्यादा होता है और कुछ का कम. ज़्यादा PE रेशियो से पता चलता है कि इन शेयरों से निवेशकों को काफ़ी ज़्यादा उम्मीदें हैं. ऐसा इसलिए, क्योंकि इनकम में ग्रोथ के बाद शेयर प्राइस में ग्रोथ की उम्मीद होती है. इसलिए, अगर निवेशक किसी शेयर के लिए ज़्यादा भुगतान करने के लिए तैयार हैं, तो इसका कारण ये है कि वे मुनाफ़े में तेज़ ग्रोथ की उम्मीद कर रहे हैं. इसलिए अक्सर ऐसे शेयरों को ग्रोथ स्टॉक कहा जाता है.

कम PE रेशियो का मतलब

दूसरी तरफ़, ऐसी कंपनियां होती हैं जिनका अर्निंग मल्टीपल कम होता है. यहां, निवेशक ज़्यादा ग्रोथ की उम्मीद नहीं करते और इन स्टॉक को वैल्यू स्टॉक कहा जाता है. स्थिति बदल सकती है, क्योंकि एक कंपनी जो धीरे-धीरे बढ़ रही है, वो गति पकड़ सकती है और एक तेज़ी से ग्रोथ करने वाली कंपनी धीमी पड़ सकती है. इस तरह से किसी कंपनी के संदर्भ में ग्रोथ और वैल्यू सदा स्थिर रहने वाली स्थितियां नहीं है.

म्यूचुअल फ़ंड का PE रेशियो

म्यूचुअल फ़ंड के मामले में, सबसे पहले, इक्विटी फ़ंड शेयरों का एक समूह या कलेक्शन है. इसलिए, किसी फ़ंड का PE उसके पोर्टफ़ोलियो में मौजूद सभी स्टॉक के PE का औसत होता है. चूंकि फ़ंड पोर्टफ़ोलियो बदलते रहते हैं, इसलिए PE भी बदलेगा और ये संबंधित एसेट की ग्रोथ की संभावनाओं को प्रतिबिंबित नहीं करेगा. किसी फ़ंड का PE उसके स्टॉक का वेटेड एवरेज (weighted average) PE होता है. इसमें नक़दी की कोई भूमिका नहीं होती.

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म्यूचुअल फ़ंड का PE रेशियो देखने के मायने

आपको सावधानी बरतनी चाहिए और PE पर ग़ौर करते समय कैश कम्पोनेंट भी ध्यान में रखना होगा. इसी तरह, घाटे में चल रही कंपनियों को ज़ीरो वैल्यू दी जाती है. इन कारणों से शेयर की तुलना में एक फ़ंड के PE पर ध्यान देने का ज़्यादा मतलब नहीं है. बहरहाल, एक फ़ंड के PE का इस्तेमाल अपनी कैटेगरी में फ़ंड की तुलना करने या कैटेगरी के बीच तुलना करने के लिए किया जा सकता है. अगर आप वैल्यू फ़ंड में निवेश कर रहे हैं, तो उम्मीद करें कि फ़ंड का PE ग्रोथ फ़ंड की तुलना में कम होगा.

इसी तरह, मिड-कैप फ़ंड में आम तौर पर लार्ज-कैप फ़ंड की तुलना में कम PE होगा. इसलिए, एक फ़ंड का PE रेशियो हमें बता सकता है कि फ़ंड में दूसरे फ़ंड की तुलना में ज़्यादा ग्रोथ स्टॉक या वैल्यू स्टॉक हैं. लेकिन याद रखें, जैसे ग्रोथ और वैल्यू स्थिर कॉन्सेप्ट नहीं हैं, वैसे ही एक फ़ंड का PE भी बदलता रहेगा.

स्टॉक का PE देखते समय किन बातों का रखें ध्यान?

PE रेशियो अपने आप में अच्छा या बुरा नहीं होता. इसका आकलन अलग-अलग फ़ैक्टर को ध्यान में रखते हुए करना चाहिए. मिसाल के तौर पर, जैसा कि हम पहले ही बता चुके हैं कि ऊंचा PE मुनाफ़े में तेज़ी से बढ़ोतरी की उम्मीदों की ओर संकेत करता है. इसलिए, ऐसा लगता है कि ऐसा स्टॉक एक अच्छा दांव है. लेकिन, सच्चाई ये भी हो सकती है कि उससे उम्मीदें कुछ ज़्यादा ही लगा ली गई हों और स्टॉक उस क़ीमत के लायक़ नहीं हो जिस स्तर पर वो इस समय बना हुआ हो. ऐसा स्टॉक बड़ी मुश्किल बन सकता है.

दूसरी तरफ़, कम PE वाला स्टॉक चुनते समय, ये पक्का करना होगा कि ये बुनियादी पैमानों पर अच्छी कंपनी हो और इसका PE इसलिए कम हो क्योंकि स्टॉक ने अभी तक बड़े पैमाने पर बाज़ार का ध्यान नहीं खींचा हो या वर्तमान में इसे तवज्जो नहीं दी जा रही हो, या फिर ये कम ग्रोथ वाली लेकिन बहुत टिकाऊ कंपनी हो और आप स्टॉक से ऊंची और लगातार डिविडेंड इनकम की अपेक्षा कर रहे हों.

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