Anand Kumar
शेयर बाज़ार पर क़रीब से नज़र रखने वाले जानते हैं कि पिछले कुछ समय से छोटी कंपनियों (या SME, जैसा कि उन्हें कहा जाता है) के IPO को लेकर ज़बर्दस्त जोश दिख रहा है. इस साल, इस साइज़ बैंड की कंपनियों के नए इश्यू पर ₹5,900 करोड़ की छप्पर फाड़ बारिश हुई है.
हालांकि, आम निवेशकों ने इस ट्रेंड को पिछले एक-दो हफ़्तों के दौरान ही नोटिस किया. और हमारे इस दौर के स्वभाव के मुताबिक़, इसे इतनी तवज्जो इसलिए मिली क्योंकि एक IPO की स्टोरी वायरल हो गई जो एक IPO की पैरोडी का मीम लगती है. किराए पर चलने वाले दो मोटरसाइकिल शोरूम और आठ कर्मचारियों वाली एक छोटी सी कंपनी ₹11 करोड़ का IPO लाती है और निवेशक उसे ₹4,000 करोड़ से लबालब भर देते हैं.
जैसा कि हर SME IPO के अतिरेक में होता है, इस बार महान सामाजिक व्यंग्यकार और हास्य अभिनेता, स्वर्गीय जसपाल भट्टी का एक क्लासिक वीडियो खोज निकाला गया. अगर आपने ये पुराना वीडियो नहीं देखा है, तो YouTube पर; 'PP Waterballs' सर्च करें. दिलचस्प ये है कि IPO का ऐसा अतिरेक और उन्माद कोई नई बात नहीं है. मैंने क़रीब तीन दशक तक बाज़ार को हर रोज़ देखा है, और इस अर्से में ये पांचवां या छठा SME IPO उन्माद है जो मेरे सामने घटित हो रहा है. हर बार, इस तरह की अजीब-ओ-ग़रीब मिसालें देखी गई हैं. 90 के दशक में, एक दोस्त के घर के पास की एक फ़र्नीचर की दुकान का IPO आया था. IPO के तुरंत बाद, इस व्यवसायी (अगर यही शब्द इस्तेमाल कर सकते हैं) ने एक मर्सिडीज़ और कुछ ज़मीन के टुकड़े ख़रीदे, और अपने घर को दोबारा इटैलियन संगमरमर से मढ़वाया, और बस बात ख़त्म हो गई. जहां तक स्टॉक का सवाल है, तो ये बिना कोई निशान छोड़े डूब गया.
मुझे ख़ुद इसका अनुभव तब हुआ जब एक ऐसी फ़ाइनेंस कंपनी का पता चला (कॉलेज के एक सहपाठी से) जिसका मुख्य काम इस तरह के IPO को फ़ेल होने से बचाना था. पहले, एक रूल हुआ करता था कि अगर किसी IPO को कम-से-कम 90 प्रतिशत सब्सक्रिप्शन नहीं मिलता, तो वो इश्यू फ़ेल हो जाएगा और निवेशकों का पैसा वापस करना होगा. ये फ़ाइनेंस कंपनी - जिसका नाम विश्वप्रिया था और जिसका मालिक बाद में किसी दूसरे मामले में जेल गया - ऐसे IPO को अस्थायी तौर पर फ़ाइनेंस करती थी. चंद दिनों के इस फ़ाइनेंस की फ़ीस क़रीब 20 प्रतिशत थी.
मैं ये नहीं कह रहा कि SME IPO का हाल अब भी वैसा ही है - दरअसल मुझे इसकी कोई जानकारी नहीं है. हालांकि, पहले जब IPO का बुखार चढ़ा करता था, तब एक छोटी कंपनी का IPO होना ही कंपनी के लिए ख़राब समझा जाता था. आप किसी भी स्थापित पैमाने से देखें, तो SME IPO को लेकर मौजूदा मार्केट सेंटीमेंट की तार्किकता और रिटेल निवेशकों के लिए संभावित रिस्क को लेकर गंभीर सवाल खड़े होते हैं. क्या हम सोशल मीडिया हाइप और FOMO (पीछे छूट जाने का डर) से प्रेरित एक बुलबुले को बनते देख रहे हैं? कुछ समय पहले, रेग्युलेटर ने हस्तक्षेप करते हुए, कम अनुभवी निवेशकों के बिना समझे-बूझे ज़्यादा रिस्क वाली कंपनियों के IPO में निवेश पर सार्वजनिक चेतावनी जारी की थी. जब तक उन्माद जारी है, निवेशकों को सावधानी बरतनी चाहिए और SME IPO के रथ पर सवार होने से पहले पूरी तरह से जांच-पड़ताल करनी चाहिए.
तो, क्या मैं सभी SMEs को छोड़ने लायक़ कह रहा हूं? ये सवाल ज़रा पेचीदा है. मैंने जो पहले कहा, उससे तो यही लगता है. हालांकि, जब मैं स्मॉल-कैप इंडेक्स और स्मॉल-कैप फ़ंड्स का ट्रैक रिकॉर्ड देखता हूं, तो मुझे इस नज़रिए में एक समस्या दिखाई देती है जो मेरे कुछ पाठकों को हो सकती है. आख़िर, हर स्मॉल कैप की शुरुआत एक SME के तौर पर ही हुई थी. ऐसे में अगर निवेशक हर SME से नज़रें चुराएंगे तो चैंपियन स्मॉल-कैप स्टॉक कहां से आएंगे?
नहीं, यहां कोई विरोधाभास नहीं है. समस्या इसकी शब्दावली में है. जहां सुर्ख़ियां SME IPO की बात करती हैं, वहीं जिन कंपनियों से त्योरियां चढ़नी चाहिए, वे SME नहीं हैं. SME का मतलब है लघु एवं मध्यम उद्यम. मगर ये IPO TUTI हैं - Tiny and Ultra Tiny Enterprises (सूक्ष्म एवं अति सूक्ष्म उद्यमों के नाम का मेरा ताज़ा-ताज़ा आविष्कार). इनमें से कई, जिनमें ये मोटरसाइकिल शोरूम भी शामिल है, सिर्फ़ दुकानें हैं. जब स्थापित स्मॉल-कैप स्टॉक की चर्चा होती है, तब बात हज़ारों करोड़ की बिक्री वाले बिज़नस की हो सकती है.
इसलिए, इन तथाकथित SME IPO में सिर्फ़ इस वजह से निवेश नहीं करना चाहिए, क्योंकि स्मॉल-कैप स्टॉक का प्रदर्शन अच्छा है. ये बात पूरी तरह से अलग स्केल वाली कंपनियों की है.