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अपने पिछले दो लेखों में हमने बैंकों और नॉन-बैंकिंग फ़ाइनेंशियल कंपनियों (NBFC) की प्रॉफ़िट एन्ड लॉस स्टेटमेंट और बैलेंस शीट को समझने में आपकी मदद की. लेकिन अगर आप अपने पोर्टफ़ोलियो में बैंकिंग स्टॉक रखते हैं या किसी ऐसे स्टॉक में निवेश करने की योजना बना रहे हैं, तो आपको ये भी जानना चाहिए कि उनकी फ़ाइनेंशियल हेल्थ और क्वालिटी का पता कैसे किया जाए. ये काम सिर्फ़ उनके प्रदर्शन को मापने वाले मुख्य फ़ाइनेंशियल मेट्रिक को समझकर ही किया जा सकता है. इस आर्टिकल में हमने बताया है कि ये मेट्रिक बैंक या NBFC के ऑपरेशन के बारे में क्या संकेत देते हैं. तो चलिए, शुरू करते हैं.
1) नेट इंटरेस्ट मार्जिन
हम जानते हैं कि नेट इंटरेस्ट इनकम (NII) एक एब्सॉल्यूट आंकड़ा है जो किसी बैंक की कुल आमदनी (कुल अर्जित ब्याज़ में से दिए गए ब्याज़ का घटाव) दिखाता है. वहीं, नेट इंटरेस्ट मार्जिन (NIM) वो NII है जिसे बैंक के ब्याज़ कमाने वाले एसेट (लोन और इंवेस्टमेंट) के प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है. ये मार्जिन, बैंक द्वारा उधार दिए गए हरेक ₹100 से होने वाली आमदनी दिखाता है - इसलिए, स्वाभाविक रूप से, ज़्यादा मार्जिन होना एक बेहतर चीज़ है!
NII के बजाय NIM को क्यों देखें? एक बड़ा बैंक, ज़्यादा NII सिर्फ़ इसलिए भी दर्ज़ कर सकता है क्योंकि वो ज़्यादा पैसा संभालता है. लेकिन ज़रूरी नहीं कि ये इनकी निपुणता या एफ़िशिएंसी का भी संकेत हो. दूसरी ओर, NIM दिखाता है कि बैंक प्रॉफ़िट कमाने के लिए अपने लोन का कितनी कुशलता से इस्तेमाल कर रहा है. ज़्यादा NIM ये दिखाता है कि बैंक अपने एसेट (जैसे लोन) की हरेक यूनिट से ज़्यादा प्रॉफ़िट कमा रहा है, चाहे उसका साइज़ कुछ भी हो.
दो बड़े बैंकों की मिसाल देखें. FY24 में, भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने ₹1.6 लाख करोड़ का NII दर्ज़ किया, जबकि कोटक महिंद्रा बैंक के लिए ये आंकड़ा ₹26,000 करोड़ था. वैसे तो SBI की आमदनी कोटक की तुलना में काफ़ी ज़्यादा थी, पर उसका NIM सिर्फ़ 3.3 फ़ीसदी था, जबकि कोटक का NIM 5.3 फ़ीसदी था; जिससे पता चलता है कि कोटक ने एफ़िशिएंसी के मामले में SBI से बेहतर प्रदर्शन किया.
2) CASA रेशियो
ग्राहक बैंकों में अपना पैसा सेविंग और करंट अकाउंट, फ़िक्स्ड और रेकरिंग डिपाज़िट के ज़रिए जमा करते हैं. इनमें से, करंट और सेविंग अकाउंट (CASA) बैंकों के लिए फ़ंड का सबसे सस्ता स्रोत होते हैं क्योंकि वे कम ब्याज़ दरें देते हैं.
CASA रेशियो एक महत्वपूर्ण पैमाना है जो मापता है कि बैंक के कुल डिपाज़िट में से कितना डिपाज़िट करंट और सेविंग अकाउंट में मौजूद है. ज़्यादा CASA रेशियो का मतलब है कि बैंक के डिपाज़िट का एक बड़ा हिस्सा करंट और सेविंग अकाउंट से आता है, जिसका मतलब है कि उसके पास कम ख़र्च वाले फ़ंड तक एक अच्छी पहुंच है, जो इसकी प्रॉफ़िटेबिलिटी को बढ़ाने में मदद करता है.
इस मीट्रिक का ज़्यादा प्रभावी ढंग से मूल्यांकन करने के लिए बैंक के CASA रेशियो की तुलना उसके साथियों के साथ करें और समय के साथ इस पर नज़र रखें. बढ़ता CASA रेशियो एक मज़बूत डिपाज़िट बेस दिखाता है, जबकि इसमें आने वाली कोई भी गिरावट कम ख़र्च वाले डिपाज़िट को बरक़रार रखने में प्रतिस्पर्धा या चुनौतियों का संकेत दे सकती है. ये भी आकलन करें कि बैंक अपना CASA डिपाज़िट कैसे बढ़ा रहा है - एक्सपैंशन, डिजिटल बैंकिंग और बेहतर कस्टमर सर्विस आमतौर पर सकारात्मक संकेत होते हैं. हालांकि, अगर इस ग्रोथ का कारण 'सेविंग अकाउंट पर ज़्यादा ब्याज़ दर' है, तो ये मुनाफ़ा कमाने की क्षमता को नुक़सान पहुंचा सकता है.
(नोट: CASA रेशियो NBFC पर लागू नहीं होता क्योंकि वे सेविंग और करंट डिपाज़िट के माध्यम से पैसा नहीं जुटा सकते.)
3) नॉन-परफ़ॉर्मिंग एसेट या NPA रेशियो
ये परेशानी के संकेतों की पहचान का एक प्रमुख तरीक़ा है. कुछ क़र्ज़ ख़राब स्थिति में चले जाते हैं और नॉन-परफ़ॉर्मिंग एसेट (NPA) बन जाते हैं. ये 90 दिनों से ज़्यादा समय से बक़ाया लोन होते हैं और कुल लोन बुक में इनका रेशियो बैंक की 'लोन बुक क्वालिटी' को महत्वपूर्ण रूप से दर्शाता है.
ज़्यादा NPA रेशियो होना दर्शाता है कि बैंक के लोन पोर्टफ़ोलियो का एक बड़ा हिस्सा ख़राब क्वालिटी वाला है; और ये दर्शाता है कि लोन लेने वाले कई लोग अपना लोन चुकाने के लिए जूझ रहे हैं, जो संबंधित आर्थिक कठिनाइयों या बैंक द्वारा अपनाए गए ख़राब क्रेडिट असेसमेंट और मॉनिटरिंग तरीक़ों का संकेत हो सकता है.
यहां हेल्दी NPA रेशियो का एक उदाहरण दिया गया है. HDFC बैंक, जो अपने कंज़र्वेटिव लोन और सख़्त ज़ोखिम नीतियों के लिए जाना जाता है, ने पिछले 10 साल में 1.2 फ़ीसदी का औसत ग्रॉस NPA रेशियो और 0.3 फ़ीसदी का नेट NPA रेशियो बरक़रार रखा है.
NPA पर नज़र रखना भी ज़रूरी है क्योंकि वे किसी बैंक की ब्याज़ से होने वाली कमाई को कम करते हैं, भले ही ख़र्च स्थिर रहे. ये NII और NIM दोनों पर नकारात्मक असर डालता है. इसके अलावा, अगर लोन डिफ़ॉल्ट की संभावना बढ़ जाती है तो बैंकों को ज़्यादा प्रावधान रखने पड़ते हैं. आपको स्लिपेज रेशियो पर भी नज़र रखनी होगी, जो ये बताता है कि किसी निश्चित अवधि के दौरान नए लोन किस दर से ख़राब हो रहे हैं.
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4) प्रोविज़न कवरेज रेशियो
प्रोविज़न कवरेज रेशियो (PCR) मापता है कि कोई बैंक NPA से संभावित नुक़सान की भरपाई करने के लिए कितनी अच्छी तरह तैयार है. इसका कैलकुलेशन ख़राब लोन के लिए अलग रखे गए प्रावधान या प्रोविज़न को कुल NPA से विभाजित करके की जाती है.
ज़्यादा PCR होना ये दर्शाता है कि बैंक ने संभावित नुक़सान की भरपाई करने के लिए ज़्यादा फ़ंड रिज़र्व में रखा है, जिससे जोख़िम कम हो जाता है. उदाहरण के लिए, FY18-19 में, यस बैंक का औसत PCR सिर्फ़ 47 फ़ीसदी था (कम से कम 70 फ़ीसदी अच्छा माना जाता है), जो इसके स्टॉक में बड़ी गिरावट आने से पहले एक चेतावनी का संकेत था. जब यस बैंक के डिफ़ॉल्ट बढ़ गए, तो ये ख़राब लोन की पर्याप्त भरपाई नहीं कर सका. नतीजा, बैंक 'FY18 में ₹4,233 करोड़ के प्रॉफ़िट' से 'FY20 में ₹16,433 करोड़ के घाटे' में चला गया.
सही नज़रिया ये है कि बैंकों को मज़बूत इनकम के दौरान अपने PCR को बढ़ाना चाहिए. हालांकि, PCR का ज़्यादा बढ़ना, लोन क्वालिटी के बारे में चिंताओं का संकेत भी हो सकती है. आप पिछले NPA ट्रेंड का आकलन करके इसका अंदाज़ा लगा सकते हैं.
5) कैपिटल एडीक्वेसी रेशियो
कैपिटल एडीक्वेसी रेशियो (CAR) बैंक की फ़ाइनेंशियल मज़बूती और संकट के दौरान अपने ख़ुद के कैपिटल का इस्तेमाल करके अपने दायित्वों को पूरा करने की क्षमता को मापता है. इसका कैलकुलेशन उपलब्ध कैपिटल (टियर 1 और टियर 2) के साथ रिस्क-वेटेड एसेट के रेशियो के रूप में की जाती है (RBI, बैंकों के क्रेडिट रिस्क लेवल के आधार पर उनके एसेट को रिस्क-वेट देता है).
एक अच्छा CAR ये दर्शाता है कि बैंक के पास संभावित घाटे को झेलने के लिए काफ़ी कैपिटल है और उसके दिवालिया होने की संभावना कम है. एक अच्छा CAR जमाकर्ताओं की सुरक्षा और फ़ाइनेंशियल सिस्टम में स्थिरता भी सुनिश्चित करता है. RBI ने ये अनिवार्य किया हुआ है कि भारत में सभी बैंक कम से कम 9 फ़ीसदी CAR बनाए रखें.
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6) रिटर्न ऑन एसेट
रिटर्न ऑन एसेट (ROA) बैंक के कुल एसेट के संदर्भ में प्रॉफ़िटेबिलिटी को मापता है. इसका कैलकुलेशन नेट प्रॉफ़िट को औसत कुल एसेट से विभाजित करके की जाती है, जो एसेट की प्रति यूनिट कमाई (प्रॉफ़िट) को दर्शाता है. उदाहरण के लिए, 1 फ़ीसदी के ROA का मतलब है कि हरेक ₹100 के एसेट पर बैंक ₹1 की नेट इनकम जनरेट कर रहा है. ज़्यादा ROA एक अच्छे मैनेजमेंट और ऑपरेशनल एफिशिएंसी को दर्शाता है.
7) रिटर्न ऑन इक्विटी
रिटर्न ऑन इक्विटी (ROE) ये मापता है कि बैंक शेयरहोल्डर द्वारा निवेश की गई इक्विटी से कितनी अच्छी तरह प्रॉफ़िट कमा रहा है. इसकी गणना नेट प्रॉफ़िट को औसत शेयरहोल्डर इक्विटी से विभाजित करके की जाती है. ज़्यादा ROE को मज़बूत प्रॉफ़िटेबिलिटी के संकेत के रूप में देखा जाता है. ये रेशियो ये भी दर्शाता है कि बैंक अपने निवेशकों के लिए वैल्यू बना रहा है या नहीं.
हालांकि, ये ध्यान रखना ज़रूरी है कि ज़्यादा 'अदर इनकम (other income)' जैसे कुछ फ़ैक्टर भी ROA और ROE दोनों पर असर डाल सकते हैं. 'ख़राब लोन के लिए कम प्रोविज़न के नतीजतन शार्ट-टर्म इनकम में आई तेज़ी' के कारण भी ROA और ROE बढ़ सकता है. इसलिए, किसी बैंक के रिटर्न रेशियो का आंकलन करने के लिए गहरी जांच-पड़ताल ज़रूरी है.
यहां सही कारणों से जनरेट हुए एक हेल्दी ROE का उदाहरण दिया गया है -- HDFC बैंक ने स्थिर प्रॉफ़िट, कंज़र्वेटिव लोन, कम ख़र्च वाले डिपाज़िट, ब्रांच एक्सपेंशन और तकनीकी अपग्रेड के कारण साल 2000 से 2024 तक लगातार 15 फ़ीसदी से ज़्यादा का ROE दर्ज़ किया है.
आख़िर में, नीचे दी गई टेबिल पर एक नज़र डालें, जो दिखाती है कि इस आर्टिकल में बताए गए प्रमुख फ़ाइनेंशियल मीट्रिक के आधार पर टॉप पांच भारतीय बैंकों का प्रदर्शन कैसा है.
टॉप पांच भारतीय बैंकों का प्रदर्शन
HDFC बैंक का NPA प्रतिशत सबसे कम है
HDFC बैंक* | ICICI बैंक | भारतीय स्टेट बैंक | एक्सिस बैंक | कोटक महिंद्रा बैंक | |
---|---|---|---|---|---|
नेट इंटरेस्ट मार्जिन | 4.1 | 4 | 3.2 | 3.5 | 4.6 |
CASA | 44.4 | 45.5 | 44.2 | 45 | 56.4 |
ग्रॉस-NPAs | 1.2 | 3.8 | 4 | 2.6 | 2.3 |
नेट-NPAs | 0.3 | 0.8 | 1 | 0.7 | 0.6 |
प्रोविज़न कवरेज़ रेशियो | 72.7 | 79.2 | 74.8 | 73.9 | 73.2 |
कैपिटल एडीक्वेसी रेशियो | 18.8 | 18.3 | 13.8 | 17.5 | 20.8 |
रिटर्न ऑन एसेट | 2 | 1.8 | 0.7 | 1.2 | 2.1 |
रिटर्न ऑन इक्विटी | 16.7 | 15.5 | 13.6 | 8.8 | 13.8 |
FY20-24 के लिए 5 साल का औसत डेटा सभी आंकड़े प्रतिशत (%) में हैं NPA -- नॉन-परफॉर्मिंग एसेट *जुलाई 2023 में HDFC का HDFC बैंक में मर्जर हुआ |
निष्कर्ष
बैंकों और NBFC में निवेश करने का फ़ैसला लेने से पहले ये जानना ज़रूरी है कि उनकी फ़ाइनेंशियल हेल्थ और क्वालिटी का आकलन कैसे किया जाए. ऐसा इसलिए क्योंकि इनका ऑपरेशन नॉन-फ़ाइनेंशियल कंपनियों की तुलना में अलग और थोड़ा जटिल होता है. याद रहे कि इस आर्टिकल में हमने जिन मीट्रिक के बारे में बताया है, उनका अलग-अलग एनालिसिस नहीं किया जाना चाहिए. बल्कि, किसी बैंक की ताक़त और कमज़ोरियों की सटीक तस्वीर देखने के लिए इन मीट्रिक का एक साथ मूल्यांकन किया जाना चाहिए.
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