इंटरव्यू

DSP Mutual Fund: क्यों सफल नहीं हुई मिड-कैप की बाय-एंड-होल्ड स्ट्रेटजी?

DSP म्यूचुअल फ़ंड के इक्विटी हेड विनीत साम्ब्रे ने अपने मिड और स्मॉल-कैप फ़ंड के ख़राब परफ़ार्मेंस बारे में विस्तार से बताया है

DSP Mutual Fund: क्यों सफल नहीं हुई मिड-कैप की बाय-एंड-होल्ड स्ट्रेटजी?

विनीत साम्ब्रे एक अनुभवी फ़ंड मैनेजर हैं. जिन्हें बाज़ार में 20 साल से ज़्यादा का तज़ुर्बा है. विनीत साम्ब्रे 2007 में DSP म्यूचुअल फ़ंड से जुड़े थे. फ़िलहाल वो इक्विटी हेड हैं. जो DSP फोकस फ़ंड, DSP मिडकैप फ़ंड और DSP स्मॉल कैप फ़ंड की देखरेख करते हैं. जिनका संयुक्त AUM (एसेट अंडर मैनेजमेंट) क़रीब ₹38,700 करोड़ है.

विनीत साम्ब्रे को मिड और स्मॉल-कैप सेगमेंट में मौक़े की पहचान करने की ख़ासियत के लिए जाना जाता है. हालांकि, हाल में DSP मिडकैप और DSP स्मॉल कैप फ़ंड का परफ़ार्मेंस ख़ास नहीं रहा है. हमारे इस इंटरव्यू में साम्ब्रे ने इस ख़राब परफ़ार्मेंस के बारे में बात करते हुए कहा, "कोविड के बाद, सेक्टोरल रोटेशन काफ़ी तेज़ रहा है. इसलिए हम अपने बाय-एंड-होल्ड स्ट्रेटजी की वजह से ठीक तरह से कैप्चर नहीं कर सके."

क़रीब एक घंटे की बातचीत के दौरान उन्होंनेअपनी निवेश फ़िलॉसफ़ी और मौजूदा बाज़ार के बारे में विस्तार से बताया है.

एक चार्टर्ड अकाउंटेंट (CA) के तौर पर आपके पास ऑडिटिंग या टैक्सेशन में उतरने का विकल्प था. इक्विटी बाज़ार की ओर रुख़ करने की वजह? क्या कोई ऐसा ख़ास पल या तुज़ुर्बा था जिसने आपको अपने लक्ष्य का एहसास कराया?
आप एक तरह से सही कह रहे हैं, और इक्विटी मार्केट में आने का फ़ैसला सही साबित हुआ है. मैंने 1997 में चार्टर्ड अकाउंटेंसी की पढ़ाई पूरी की. मेरे पिता भी CA थे. मैंने उनके साथ आर्टिकलशिप की और ऑडिटिंग और टैक्सेशन का काम किया. आर्टिकलशिप के बाद मैं दूसरे सेक्टर में जाना चाहता था, क्योंकि पारंपरिक काम कुछ हद तक नीरस हो गया था.

इसलिए, मैंने कुछ नया खोजना शुरु किया. शुरुआती दौर में मुझे CRISIL के रिसर्च डिपार्टमेंट में रिटेनरशिप के तौर पर काम करने का मौक़ा मिला. वहां काम करने के दौरान मुझे इक्विटी के सेक्टर रुझान आया क्योंकि मैं हर दिन कुछ नया सीखता था. मैं नई कंपनियों और अलग-अलग सेक्टर के बारे में जान रहा था. जो मुझे ये काफ़ी दिलचस्प लगा. इस ही दौरान मेरे पिता भी इक्विटी मार्केट में निवेश कर रहे थे लेकिन निवेश के फ़ैसले के लिए 'टिप्स' पर निर्भर रहना उनकी क़ामयाबी के आडे आ रहा था. इसलिए मेरे लिए ये तय करना मुश्किल था कि इस सेक्टर में कामयाबी किस चीज़ से मिलती है - टिप्स या किसी और चीज़ से. कुल मिला कर इन सभी बातों ने मुझे इक्विटी रिसर्च में जाने के लिए प्रेरित किया जो मेरे लिए काफ़ी अच्छा साबित हुआ.

ऐसा लगता है कि भारतीय बाज़ार लगातार तेज़ी पर हैं, भले ही वैश्विक संकेत बिल्कुल अनुकूल न हों. आपके नज़रिए से इसके पीछे की हक़ीकत क्या है - निवेशक की भावना, मज़बूत बुनियादी बातें, या दोनों?
मुझे लगता है कि इस समय बाज़ार में कुछ अलगाव है. बीते आठ साल में इस तरह की सीधी बढ़त बिना किसी एक साल में गिरावट के. जहां तक निफ़्टी का सवाल है, तो अगर आप भारत और विदेश दोनों में इक्विटी बाज़ारों के लंबे इतिहास पर विचार करें तो ये काफ़ी असामान्य लगता है.

इक्विटी बाज़ार में उतार-चढ़ाव बना रहता है, जिसमें हाई परफ़ॉमेंस की अवधि के बाद गिरावट और कंसॉलिडेशन की अवधि होती है. लॉन्ग-टर्म में, बाज़ारों की दिशा बुनियादी बातों से तय होती है. इसलिए, हाल में, अगर आप सोच रहे हैं कि बाज़ार बुनियादी बातों या भावनाओं से प्रेरित है, तो मैं कहूंगा कि ये दोनों का एक संयोजन है. कोविड संकट के बाद, बुनियादी बातों में काफ़ी सुधार हुआ है, जिसने भावनाओं को ऊपर उठाया है और निवेशकों की दिलचस्पी को आकर्षित किया है.

हाल के सालों में, हमने रिटेल निवेशक भी इक्विटी बाज़ारों में काफ़ी तेज़ी से बढ़े हैं. पिछले दो से तीन साल में तेज़ उछाल ने निवेशकों के इक्विटी बाज़ारों में निवेश करने के फ़ैसले को प्रभावित किया है. फ़्लो में तेज़ बढ़ोतरी का मतलब है कि बाज़ारों के कुछ हिस्से वैल्यूएशन के अस्थिर स्तरों में चले गए हैं. इसलिए, हम निवेशकों को सलाह देते हैं कि वे अपने निवेश के प्रति सतर्क रहें और लॉन्ग टर्म नज़रिया अपनाएं और ये मानने से बचें कि सिर्फ़ इसलिए कि बाज़ार ने पिछले तीन साल में ये रिटर्न दिए हैं, वे भविष्य में भी इसी तरह के रिटर्न देते रहेंगे.

इक्विटी पोर्टफ़ोलियो, ख़ास तौर पर मिड- और स्मॉल-कैप स्पेस में, का मैनेजमेंट करते वक़्त आपकी निवेश फ़िलॉसफ़ी और मुख्य नज़रिया क्या है?
जब से मैंने पैसे का मैनेजमेंट करना शुरू किया है, तब से मैं एक आसान फ़िलॉसफ़ी का पालन करता रहा हूं. मैं तीन महत्वपूर्ण मापदंडों पर ध्यान देता हूं: बिज़नस की क्वॉलिटी, मैनेजमेंट की क्वॉलिटी और सही वैल्यूएशन.

हमारा गोल, लॉन्ग टर्म के लिए अच्छे बिज़नस अपने पास रखना है. हम ऐसे बिज़नसों को देख रहे हैं जिनके पास ग्रोथ के लिए लंबा रनवे और टिकाऊ रक्षा घेरा (moat) है. हम समय-समय पर रक्षा घेरे की ज़रूरत का आकलन करते हैं, जो निवेशित कंपनियों के लिए प्रीमियम वैल्यएशन की स्थिरता पक्की करता है. इसके अलावा हम पॉज़िटिव फ़्री कैश-फ़्लो वाली पूंजी कुशल कंपनियों को देखते हैं. रिटर्न ऑन कैपिटल इंप्लॉयड (ROCE) यानी लगाई गई पूंजी पर मिलने वाले रिटर्न के लिए हमारी सीमा 15-16 फ़ीसदी की है.

मैनेजमेंट की क्वालिटी के मामले में, हम कैपिटल एलोकेश के फ़ैसले की विस्तार से जांच करते हैं. हम मैनेजमेंट के कैपिटल एलोकेशन के फ़ैसलों की जांच करने के लिए क़रीब पांच से 10 साल की अवधि की स्टडी करते हैं. ये एक ज़रूरी फ़ैक्टर है क्योंकि ये किसी भी कंपनी की भविष्य की कामयाबी या नाकामी को तय करता है.

बात जब वैल्यूएशन की आती है, तो हम सही वैल्यूएशन पर बिज़नस ख़रीदना पसंद करते हैं, लेकिन कभी-कभी, अगर वैल्यूएशन बढ़ा हुआ लगता है, तो हम रिकवरी के साफ़ संकेतों के साथ छोटे से लेकर मध्यम साइकिल वाले बिज़नस की तलाश करते हैं. ये कुछ महत्वपूर्ण मीट्रिक हैं जिनका हम अपने निवेश फ़िलॉसफ़ी के हिस्से के तौर पर मानते रहे हैं.

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DSP मिडकैप फ़ंड 2020 से अपने साथियों से बेहतर परफ़ॉर्म नहीं कर पाया है. इसे क्या रोक रहा है, और आप इसे कैसे बदलने की योजना बना रहे हैं?

मैं फ़ंड के परफ़ॉर्मेंस पर कुछ पृष्ठभूमि बताता हूं. ज़्यादातर एक्टिव फ़ंड मैनेजर जो एक मज़बूत फ़िलॉसफ़ी का पालन करते हैं, उन्होंने बाज़ार के चरण के आधार पर हाई और लो साइकिल का अनुभव किया है. हमारे लिए, ख़राब परफ़ॉर्मेंस 2020 के आखिर में शुरू हुआ, जिसने हमारे लॉन्ग टर्म परफ़ॉरमेंस को नीचे खींच लिया. हाई क्वॉलिटी वाले बिज़नसों पर ध्यान केंद्रित करने, बाय-एंड-होल्ड की रणनीति और कम ख़रीद-फ़रोख़्त की हमारी फ़िलॉसफ़ी ने पिछले तीन साल में इतना अच्छा काम नहीं किया है. कोविड के बाद, क्षेत्रीय फ़ैक्टरों के असर काफ़ी तेज़ रहे हैं, इसलिए हम अपने बाय-एंड-होल्ड के नज़रिए की वजह से अच्छा परफ़ॉर्म नहीं कर सके.

इसके अलावा, हेल्थकेयर या स्पेशियलिटी केमिकल्स जैसे रक्षात्मक बिज़नसों में हमारे निवेश ने भी हमारे परफ़ॉरमेंस को नुकसान पहुंचाया. हमारी अपनी कुछ चूकें, जैसे कि निवेश के माहौल से फ़ायदा उठाने वाले सेगमेंट में पर्याप्त निवेश न करना, हमारे खराब परफ़ॉर्मेंस में योगदान दिया. ये वे वजह थी थी जिनके कारण DSP मिडकैप फ़ंड का परफ़ॉरमेंस खराब रहा.

एक और खास बात ये है कि जब हमने DSP मिडकैप फ़ंड की तुलना निफ़्टी मिड-कैप क्वालिटी इंडेक्स (निफ्टी मिडकैप 150 क्वालिटी 50) से की, तो पिछले तीन सालों में परफ़ॉर्मेंस के मामले में हम काफ़ी ठीक थे. इसलिए, हम इस तथ्य से सांत्वना ले सकते हैं कि, क्वॉलिटी के फैक्टर पर, हमने संतोषजनक रिज़ल्ट दिखाए हैं. हमारा अंतिम उद्देश्य हमारे बेंचमार्क, निफ्टी मिडकैप 150 से बेहतर परफ़ॉर्म करना है, और पिछले एक साल में हमारे लिए सुधार की अवधि रही है. हम धीरे-धीरे अपने निचले स्तरों से उबर रहे हैं. हम देख रहे हैं कि कुछ बिज़नस जो हमारे पोर्टफ़ोलियो के परफ़ॉरमेंस को कमज़ोर कर रहे थे या कमज़ोर कर रहे थे, वे अब ठीक हो रहे हैं, जैसे कि हेल्थकेयर या मैटेरियल कैटेगरी की कंपनियां, मिसाल के लिए, पाइप, एग्री-इनपुट इत्यादि, जो अब धीरे-धीरे हमारे पोर्टफ़ोलियो परफ़ॉमेंस में मदद कर रहे हैं.

लॉन्ग टर्म में, बाजार बुनियादी बातों का अनुसरण करेंगे, जिससे हमें अपने निवेशकों के लिए संतोषजनक परिणाम देने की हमारी क्षमता पर भरोसा होता है. इंडेक्स के भीतर कुछ कम क्वॉलिटी वाली या कथा-आधारित कंपनियों में सुधार देखा जाना चाहिए; अच्छी क्वॉलिटी वाली कंपनियां वापस उछाल लेंगी, और हमें लगता है कि परफ़ॉरमेंस का अंतर कम हो जाएगा.

DSP स्मॉल कैप फ़ंड का परफ़ॉमेंस भी 2022 के बाद से बहुत अच्छा नहीं रहा है. आपको क्या लगता है कि क्या ग़लत हुआ और क्या इसके परफ़ॉमेंस को बेहतर बनाने के लिए कोई नई रणनीति है?
DSP स्मॉल कैप फ़ंड का खराब प्रदर्शन मोटे तौर पर इसी तरह के कारणों से है. हालांकि, यहां का खराब प्रदर्शन DSP मिडकैप फ़ंड जितना गहरा नहीं रहा है. DSP स्मॉल कैप फ़ंड ज़्यादा विविधतापूर्ण या व्यापक-आधारित है, जो बाज़ार में व्यापक-आधारित रैली से लाभान्वित होता है. हमारे DSP मिडकैप फ़ंड की तरह, स्मॉल-कैप पोर्टफोलियो में हमारे कुछ उच्च विश्वास वाले दांवों में सुधार के संकेत दिखाई देते हैं, जिससे हमें आगे चलकर इसके प्रदर्शन के बारे में और ज़्यादा यक़ीन होता है.

आप अपने मिड- और स्मॉल-कैप पोर्टफ़ोलियो में कंज़्यूमर डिस्क्रेशनरी, केमिकल्स और मैटेरियल्स जैसे सेक्टरों पर आशावादी रहे हैं, भले ही पिछले कुछ सालों में इनमें संघर्ष हुआ हो. इस भरोसे के पीछे क्या कारण है?
हमारे डेमोग्राफ़ को देखते हुए, हम भारत में कंज़्यूमर सेक्टर के लिए लॉन्ग टर्म ग्रोथ की कहानी में यक़ीन करते हैं. हालांकि, इस सेक्टर में रिटेल, QSR (क्विक सर्विस रेस्टोरेंट), निर्माण सामग्री, ऑटो आदि जैसी अलग-अलग कैटेगरी हैं, जिनके ग्रोथ साइकिल को प्रभावित करने वाले अलग-अलग फ़ैक्टर हैं. हम इन फ़ैक्टरों की निगरानी करते हैं और उनके ग्रोथ साइकिल के मुताबिक अपने रिस्क को एडजस्ट करते हैं.

पिछले दो सालों में, हमने कंज़्य़ूमर डिस्क्रेशनरी सेक्टर में ऑटो सेक्टर में अपने रिस्क को बढ़ाया है, जो कोविड के दौरान अपने निचले स्तर से उबरने में कारगर साबित हुआ है. इसी तरह, हमने QSR सेगमेंट में जोख़िम कम कर दिया है क्योंकि कोविड के दौरान देखी गई तेज़ ग्रोथ के बाद उनमें बढ़ोतरी में नरमी देखी गई. हमारी कोशिश इन साइकिल की पहचान करना है ताकि हम अपने रिस्क को उसके मुताबिक एडजस्ट कर सकें.

इसके अलावा, जब कंज़्यूमर नॉन-डिस्क्रेशनरी (गैर-विवेकाधीन) या FMCG सेक्टर की बात आती है, तो निम्न आय वर्ग और ग्रामीण आबादी के बीच तनाव के कारण कोविड के बाद इसमें मंदी देखी गई है. इनमें से कुछ कंपनियों के मैनेजमेंट की टिप्पणी बेहतर मानसून और नियंत्रित मुद्रास्फीति को देखते हुए सुधार के शुरुआती संकेत देती है. इसलिए, हम अब आदत में उलटफेर देख रहे हैं.

मैटिरियल के मामले में, हमारा जोखिम निर्माण सामग्री और कृषि सेक्टर की कंपनियों से जुड़ा है. पिछले तीन सालों में रियल एस्टेट की बिक्री में देखने लायक़ सुधार हुआ है, जो परियोजनाओं के डिलीवरी चरण में पहुंचने पर निर्माण सामग्री कंपनियों तक पहुंचने की उम्मीद है. इसी तरह, जैसा कि पहले बताया किया गया है, पिछले दो साल कृषि सेक्टर के लिए इतने अच्छे नहीं रहे; वैश्विक स्तर पर भी हालात खराब रहे हैं. बेहतर मानसून और कम मुद्रास्फीति के कारण अब हम सुधार के संकेत देख रहे हैं. इसलिए, हमने इस सेक्टर पर अपना पॉज़िटिव रुख जारी रखा है.

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