इंटरव्यू

'भारत में फै़क्टर-बेस्ड इन्वेस्टमेंट का बढ़ेगा जोर, 5-10 साल में कई फ़ंड करेंगे फ़ॉलो'

एडलवाइस म्यूचुअल फ़ंड में फ़ैक्टर इन्वेस्टिंग के को-हेड भावेश जैन के साथ खास बातचीत

'भारत में फै़क्टर-बेस्ड इन्वेस्टमेंट का बढ़ेगा जोर, 5-10 साल में कई फ़ंड करेंगे फ़ॉलो'

ग्लोबल मार्केट में बड़े स्तर पर चर्चित स्ट्रैटजी फै़क्टर इन्वेस्टिंग (factor investing ) अब भारत में भी तेज़ी से लोकप्रिय हो रही है. एडलवाइस म्यूचुअल फ़ंड में फ़ैक्टर इन्वेस्टिंग के को-हेड भावेश जैन को अगले पांच से 10 वर्षों में निवेश परिदृश्य में बड़े बदलाव की उम्मीद है. उन्होंने कहा कि कई पारम्परिक फ़ंड नियम-आधारित और फ़ैक्टर आधारित दृष्टिकोण की ओर बढ़ेंगे.

इस इंटरव्यू में जैन फ़ैक्टर इन्वेस्टिंग के कॉन्सेप्ट के बारे में विस्तार बता रहे हैं, साथ ही चर्चा कर रहे हैं कि वे अपनी निवेश रणनीति में विभिन्न फ़ैक्टर्स का लाभ कैसे उठाते हैं. साथ ही, उन्होंने संभावित चुनौतियों पर प्रकाश डाला.

इसके अलावा उन्होंने एडलवाइस IPO फ़ंड के पीछे रणनीतिक दृष्टिकोण और एग्ज़िट की रणनीति पर भी बात की. इंटरव्यू के मुख्य अंश...

आप एडलवाइस म्यूचुअल फ़ंड में फ़ैक्टर इन्वेस्टमेंट के को-हेड हैं. फ़ैक्टर इन्वेस्टमेंट वास्तव में क्या है, और ये निवेश की पारम्परिक स्ट्रैटजी से कैसे अलग है?

इक्विटी मार्केट में ज़्यादातर लोग ग्रोथ और वैल्यू जैसी कई तरह की निवेश शैलियों से वाकिफ़ होते हैं. हालांकि, फ़ैक्टर इन्वेस्टिंग एक इन्वेस्टमेंट की बेहतरीन स्टाइल के रूप में सामने आ सकती है, जो मुख्य रूप से आंकड़ों पर केंद्रित होती है.

निवेशकों के लिए रिटर्न पाने के लिहाज से क्वालिटी, ग्रोथ, वैल्यू, मोमेंटम या वोलैटिलिटी अहम हैं. एडलवाइस म्यूचुअल फ़ंड में हम इन स्टाइल्स को फ़ैक्टर इन्वेस्टिंग कहते हैं.

सीधे शब्दों में कहें तो, अगर आपको दो ऐसे स्टॉक में से कोई एक चुनना है जो हर पहलू में एक जैसे हैं, तो आपको तेज़ी से बढ़ने वाले स्टॉक को चुनना चाहिए. ऐसा इसलिए है क्योंकि तेज़ी से बढ़ने वाले स्टॉक से भविष्य में ज़्यादा रिटर्न मिलने की संभावना होती है. इसलिए, यहां ग्रोथ एक फै़क्टर है. इसी तरह, अगर दो कंपनियां समान रिटर्न दे रही हैं, तो आप कम वॉलेटिलिटी वाली कंपनी को पसंद करेंगे. इस मामले में हम वॉलेटिलिटी को ध्यान में रखते हैं.

फिर से अगर आप ₹20 लाख करोड़ या ₹2,000 करोड़ के मार्केट कैपिटलाइज़ेशन वाली कंपनी के बीच मल्टी-बैगर खोजने की कोशिश कर रहे हैं, तो आप कम मार्केट कैप वाली कंपनी को चुनेंगे. इसलिए, स्टॉक के चयन में उसका साइज़ एक अहम भूमिका निभाता है.

ग्लोबल मार्केट में फ़ैक्टर इन्वेस्टमेंट एक जाना-माना स्टाइल है, और हमारे मार्केट में पिछले तीन से चार वर्षों में इसकी स्वीकार्यता बढ़ी है, लेकिन मुझे लगता है कि अगले पांच से दस वर्षों में, आप कई फ़ंडों को पारंपरिक निवेश शैली को बदलते हुए और अधिक नियम-आधारित और फ़ैक्टर-आधारित निवेश फ़िलॉसफ़ी की ओर बढ़ते हुए देखेंगे.

आप किन प्रमुख फ़ैक्टर्स पर ध्यान केंद्रित करते हैं, और आप अल्फ़ा जनरेट करने के लिए उनके औचित्य और क्षमताओं का निर्धारण कैसे करते हैं?

फ़ैक्टर-बेस्ड इन्वेस्टमेंट स्टॉक चयन से आगे की बात है, जो कि कई उद्देश्यों की पूर्ति करता है. आप इसका उपयोग स्टॉक सलेक्शन और एसेट एलोकेशन दोनों के लिए कर सकते हैं.

उदाहरण के लिए हम एसेट एलोकेशन के लिए अपने बैलेंस्ड एडवांटेज फ़ंड में और सेक्टर रोटेशन के लिए अपने बिजनेस साइकल फ़ंड में फ़ैक्टर इन्वेस्टमेंट का उपयोग करते हैं. इसलिए, फै़क्टर-बेस्ड निवेश का उपयोग कई तरीकों से किया जा सकता है.

जब हम किसी ख़ास फै़क्टर पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो हम ग्रोथ को प्राथमिकता देते हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत एक विकासशील बाज़ार है, और हम उम्मीद करते हैं कि अगले 15-20 वर्षों तक, ये दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक बना रह सकता है. इस संदर्भ में देखें तो हम अपने स्टॉक चयन में ग्रोथ-बेस्ड रणनीति को बहुत ज़्यादा प्राथमिकता देते हैं. हम सभी कंपनियों को ग्रोथ के आधार पर रैंक करते हैं, जिसमें सेल ग्रोथ, EBITDA ग्रोथ, PAT ग्रोथ और EPS ग्रोथ शामिल हो सकती है.

अगला फ़िल्टर ग्रोथ की निरंतरता को देखना है. एडलवाइस बिजनेस साइकिल फ़ंड में हम ग्रोथ, क्वालिटी, वैल्यू और मोमेंटम को प्राथमिकता देते हैं. मोमेंटम ये भरोसा पैदा करता है कि पिछले कुछ महीनों में अच्छा प्रदर्शन करने वाले स्टॉक भविष्य में भी ऐसा ही करते रहेंगे. इसलिए हम अपने कुछ चुनिंदा फ़ंड में रणनीति के तौर पर मोमेंटम को प्राथमिकता देते हैं. तो, आप कह सकते हैं कि एडलवाइस और अन्य फ़ंड हाउस को अलग करने वाला मुख्य कारक ग्रोथ और मोमेंटम की निरंतरता है.

अलग-अलग फ़ंडों का निवेश का अलग-अलग दायरा होता है, तो ऐसे परिदृश्यों में फ़ैक्टर इन्वेस्टिंग का कैसे ध्यान रखा जाता है?

हां, आपने सही कहा, अलग-अलग फ़ंड के अलग-अलग मैंडेट होते हैं. इसलिए, बिजनेस साइकिल फ़ंड में इसका सेक्टर रोटेशन से ज़्यादा लेना-देना है.

बैलेंस्ड एडवांटेज फ़ंड या यहां तक ​​कि लार्ज-कैप फ़ंड जैसे प्रोडक्ट के लिए, मुख्य फ़ैक्टर्स के रूप में मुख्य रूप से क्वालिटी और ग्रोथ पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा. एग्रेसिव फ़ंड के मामले में वैल्यू और मोमेंटम फै़क्टर होंगे. फ़ैक्टर-आधारित निवेश की खूबसूरती ये है कि आपके पास हर फै़क्टर और मार्केट कैप की एक बकेट या बास्केट हो सकती है. इसलिए, आप अपने इनपुट को इस आधार पर कंट्रोल कर सकते हैं कि आपको किस तरह का आउटपुट चाहिए.

इस तरह की रणनीतियां हमें कम लोगों के साथ ज़्यादा एसेट को मैनेज करने में भी मदद करती हैं. आज, पांच सदस्यों की एक टीम ₹35,000 करोड़ की एसेट का मैनेज कर सकती है, क्योंकि सब कुछ नियम-आधारित है, और हम निवेश को आसानी से ट्रैक कर सकते हैं.

दूसरी ओर, एक फंडामेंटल फ़ंड मैनेजर या एनालिस्ट, पोर्टफ़ोलियो में अधिकतम 50-60 स्टॉक ही ट्रैक कर सकता है. तो, मान लीजिए कि हमारे पास NSE 500 या कोई अन्य बेंचमार्क है. इसे मैनेज करना आसान हो जाता है, क्योंकि सब कुछ नियमों पर आधारित होता है, और फिर उस नियम को सभी प्रकार के उत्पादों और निवेशों को मैनेज करने के लिए बदला जा सकता है. हम स्टॉक चयन, एसेट एलोकेशन और सेक्टर रोटेशन जैसी फ़िलॉसफ़ी के आधार पर सब कुछ मैनेज कर सकते हैं.

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इन संभावित नुक़सानों को कम करने के लिए आपके पास कौन से रिस्क मैनेजमेंट प्रैक्टिस हैं?

फै़क्टर-बेस्ड इन्वेस्टमेंट का सबसे बड़ा रिस्क ये है कि आप किसी एक कंपनी के फंडामेंटल में गहराई से नहीं उतरते हैं.

अगर कोई फ़ंड मैनेजर किसी FMCG कंपनी की फंडामेंटल नजरिए से जांच करता है, तो वह कंपनी की सेल और ग्रोथ का आकलन करेगा, सबसे तेजी से बढ़ने वाले सेगमेंट की पहचान करेगा और अगले तीन से चार वर्षों में भविष्य के इवेंट और वैल्यूएशन ट्रेंड का पूर्वानुमान लगाएगा.

हालांकि, जब फै़क्टर-बेस्ड इन्वेस्टमेंट की बात आती है, तो हम रैंकिंग मेथेडोलॉजी का उपयोग करके 500 कंपनियों को ट्रैक कर सकते हैं. 500 कंपनियों को ट्रैक करने से जोखिम पैदा होता है, क्योंकि हम उनमें गहराई से नहीं उतर रहे होते हैं. कॉर्पोरेट गवर्नेंस, लिक्विडिटी, बैलेंस शीट से जुड़े मुद्दे या कुछ सेक्टर-स्पेसिफिक ख़बरें आपके फ़ैक्टर-बेस्ड पोर्टफ़ोलियो पर बड़ा असर डाल सकती हैं.

यही कारण है कि एक रिस्क मैनेजमेंट टूल के रूप में, हमारे पास ख़ासा डायवर्सिफ़ाइड पोर्टफ़ोलियो हैं.

जैसा कि पहले ही बताया गया है हम ख़ुद को किसी एक फै़क्टर तक सीमित नहीं रखते हैं, और हमारे पास एक फ़ोकस्ड पोर्टफ़ोलियो के बजाय 50-60 स्टॉक के पोर्टफ़ोलियो हैं. इसके अलावा हमारी रिस्क मैनेजमेंट टीम अपने एनालिसिस के आधार पर कुछ स्टॉक को एक्टिवली बाहर करती है. वो प्रमोटरों के ट्रैक रिकॉर्ड, कॉर्पोरेट गवर्नेंस, लीवरेज और स्टॉक लिक्विडिटी की जांच करती है.

हमारी रिस्क टीम हमारे दायरे वाली 500 कंपनियों में से किसी भी समय 40-50 शेयरों को ब्लैकलिस्ट कर सकती है, जिन्हें हम अपने किसी भी फ़ंड में नहीं खरीद सकते हैं. इसलिए, एक तरह से हम अपने पोर्टफ़ोलियो में स्टॉक- स्पेसिफिक रिस्क को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं.

इसके अलावा नकारात्मक पहलुओं को कम करने के लिए कई अन्य रिस्क मैनेजमेंट प्रैक्टिसेज लागू की गई हैं.

चूंकि आप किसी ख़ास स्टॉक पर गहराई से ग़ौर नहीं करते हैं, तो आप अलग-अलग इक्विटी फ़ंड के लिए स्टॉक का चयन कैसे करते हैं?

एक उदाहरण से समझिए. मान लीजिए कि मैं ग्रोथ या ग्रोथ प्लस मोमेंटम फ़ैक्टर के आधार पर निफ्टी 50 कंपनियों में से 10 स्टॉक चुनना चाहता हूं. सबसे पहले, हर तिमाही के नतीजों के बाद हमें सभी 50 कंपनियों के लिए ग्रोथ नंबर मिलेंगे.

इसलिए, हम सबसे ज़्यादा सेल्स ग्रोथ वाले स्टॉक को पहले स्थान पर रखेंगे, जबकि सबसे कम ग्रोथ वाला स्टॉक 50वें स्थान पर रहेगा. ग्रोथ रैंकिंग की मेथोडोलॉजी का पालन करते हुए हम EBITDA और टैक्स के बाद प्रॉफ़िट (PAT) के आधार पर भी स्टॉक को रैंक करते हैं. उसके बाद, हम मोमेंटम स्कोर की गणना करते हैं और इस रैंक का औसत निकालते हैं. पिछले तीन महीनों में सबसे ज़्यादा रिटर्न वाला स्टॉक मोमेंटम स्कोर में पहले स्थान पर रहेगा.

पिछले तीन महीनों में जिस शेयर ने आपको सबसे कम रिटर्न दिया है, उसे 50वें स्थान पर रखा जाएगा. हम इसी तरह उन्हें उनके 12 महीने के रिटर्न के आधार पर भी रैंक करते हैं. फिर हम तीन महीने और 12 महीने की रैंक का एवरेज निकालते हैं, जिससे हमें मोमेंटम रैंकिंग मिलती है.

जैसा कि आप देख सकते हैं, हम भविष्य के बारे में कोई भविष्यवाणी नहीं कर रहे हैं. हम केवल ऐतिहासिक ग्रोथ और रिटर्न के आधार पर रैंकिंग कर रहे हैं. यह ग्रोथ और मोमेंट का हमारा 10-स्टॉक का पोर्टफ़ोलियो है.

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क्या आप हमें एडलवाइस रीसेंटली लिस्टेड IPO फ़ंड की रणनीति के बारे में बता सकते हैं? IPO का मूल्यांकन करने और इस फ़ंड के लिए स्टॉक चुनने के लिए आपके क्राइटीरिया क्या हैं?

हमने इस फ़ंड को फरवरी 2018 में एक क्लोज-एंडेड फ़ंड के रूप में लॉन्च किया था, क्योंकि ये IPO थीम वाला MF इंडस्ट्री का पहला प्रोडक्ट था.

हम इस फ़ंड के माध्यम से मुख्य बोर्ड (BSE या NSE) पर लिस्टेड सभी आगामी और पिछले 100 IPO में निवेश करते हैं. हम हमेशा अपने मैंडेट के अनुसार पिछले 100 IPO में 80 फ़ीसदी एसेट का निवेश करते हैं. इसलिए, चयन के सवाल पर, एक फ़ंड हाउस के रूप में, हमें लीड मैनेजर, IPO लाने वाले निवेश बैंकर और यहां तक ​​कि कंपनी के मैनेजमेंट से मिलने का अवसर मिलता है. हमें कंपनी के प्लांट, फैक्ट्री और ऑफिस का दौरा करने का अवसर भी मिलता है, जो हमें एक सामान्य रिटेल इन्वेस्टर की तुलना में अधिक जानकारी तक पहुंच प्रदान करता है. इसलिए, हमारी चयन प्रक्रिया एक सामान्य व्यक्तिगत निवेशक की तुलना में काफ़ी बेहतर है.

किसी भी कंपनी का वैल्यूएशन करते समय, हम विभिन्न फ़ैक्टर्स पर विचार करते हैं, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण ये है कि क्या कंपनी सेकुलर ग्रोथ या साइकल ग्रोथ का अनुभव करेगी. इस फ़ैक्टर के आधार पर हम तय करते हैं कि IPO में भाग लेना है, दूर रहना है या एक रणनीतिक पोजीशन लेना है.

इस फ़ंड में स्टॉक के लिए सामान्य होल्डिंग पीरियड क्या है, और किन परिस्थितियों में आप स्टॉक से बाहर निकलने का फैसला करते हैं?

इस फ़ंड के शेयरों से पैसा निकालने का मुख्य कारण मैनेजमेंट के रुख में बदलाव है.

इसलिए, अगर IPO के दौरान वे कहते हैं कि वे किसी चीज़ के लिए पैसे जुटा रहे हैं और छह महीने के भीतर वे पैसे का इस्तेमाल किसी और चीज़ के लिए करते हैं जिससे उनके प्रॉफ़िट पर असर पड़ने की संभावना है, तो हम कंपनी से बाहर निकल जाते हैं. हमारा होल्डिंग पीरियड आम तौर पर दो से तीन साल होता है क्योंकि हर साल 35-40 नए IPO बाज़ार में आते हैं.

दूसरा, अगर पोर्टफ़ोलियो कंपनी में कोई नेगेटिव ख़बर या कॉर्पोरेट गवर्नेंस का मुद्दा है तो हम स्टॉक से बाहर निकल जाते हैं. हालांकि, ये बात सिर्फ़ IPO फ़ंड के लिए ही लागू नहीं होती.

यहां तक ​​कि जब हम अपने मूल्य लक्ष्य तक पहुंच जाते हैं, तब भी हम उस स्टॉक से बाहर निकल जाते हैं और कुछ मामलों में, क़ीमतें फंडामेंटल्स की तुलना में कहीं ज़्यादा बढ़ जाती हैं.

हम कई तरीक़ों से स्टॉक से बाहर निकल सकते हैं, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण तरीका ये है कि क्या मुझे इसके वैल्यूएशन या ग्रोथ की क्षमताओं के कारण कोई बेहतर अवसर मिलता है.

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