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Debt Mutual Funds कैसे काम करते हैं?

डेट म्यूचुअल फ़ंड बॉन्ड ख़रीद सकता है और इनसे कमाए गए इंटरेस्ट का फ़ायदा अपने निवेशकों को पहुंचाता है

Debt Fund क्या होते हैं और कैसे काम करते हैं? डेट म्यूचुअल फंड्स की परिभाषा

How Debt Mutual Funds Work: डेट म्यूचुअल फ़ंड एक तरह का म्यूचुअल फ़ंड है जो अपने निवेशकों के पैसे से बॉन्ड या कई अलग तरह के डिपॉज़िट में निवेश करके रिटर्न जेनरेट करता है. संक्षेप में कहें, तो वे पैसे उधार देते हैं और उधार दिए गए पैसे पर ब्याज कमाते हैं. उनके द्वारा कमाया गया ब्याज उस रिटर्न का आधार बनता है जो डेट फ़ंड निवेशकों के लिए जेनरेट करते हैं.

बॉन्ड क्या है?

What is bond in simple words: हालांकि, किसी के मन में सवाल उठ सकता है कि बॉन्ड क्या है? बॉन्ड एक डिपॉज़िट के एक सर्टिफ़िकेट की तरह है जो बॉरोअर (पैसे लेने वाले) द्वारा लेंडर (पैसे देने वाले) को जारी किया जाता है. यहां तक ​​​​कि व्यक्तिगत निवेशक जब बैंक में पैसा डिपॉज़िट करते हैं, तो वो भी भी कुछ ऐसा ही करते हैं. जब आप किसी बैंक में FD करते हैं, तो आप मूल रूप से बैंक को पैसा उधार दे रहे होते हैं और आप उस पर ब्याज कमाते हैं. आप कुछ बॉन्ड सीधे भी ख़रीद सकते हैं. REC और HUDCO जैसी विभिन्न कंपनियों द्वारा जारी किए गए टैक्स-रिबेट बॉन्ड कुछ ऐसे ही उदाहरण हैं. वास्तव में, नवंबर 2021 में लॉन्च किए गए RBI के रिटेल डायरेक्ट पोर्टल के साथ, आप सीधे सरकारी सिक्योरिटीज़ में भी निवेश कर सकते हैं.

असल में, डेट फ़ंड भी यही काम करते हैं, लेकिन कुछ अंतर के साथ. उदाहरण के लिए, वे कई प्रकार के बॉन्ड में निवेश करने में सक्षम होते हैं जो आम निवेशकों के लिए उपलब्ध नहीं होते हैं. देश में कई बड़े और मध्यम आकार की कंपनियों के द्वारा जारी किए गए बॉन्ड इसी में आते हैं. इस प्रकार, डेट म्यूचुअल फ़ंड के ज़रिये फ़िक्स इनकम वाले इन्वेस्टमेंट्स को आसानी से डाइवर्सिफ़ाइड बनाना संभव है.

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कैसे बॉन्ड में निवेश करते हैं म्यूचुअल फ़ंड?

How do mutual funds invest in bonds: इसके अलावा, आम निवेशकों द्वारा कराई जाने वाली FD के विपरीत, म्यूचुअल फ़ंड ऐसे बॉन्ड में निवेश करते हैं जो शेयरों की तरह ही ट्रेडेबल होते हैं. जिस तरह से स्टॉक मार्केट में शेयरों की ट्रेडिंग होती है, उसी तरह एक डेट मार्केट भी है जहां विभिन्न प्रकार के बॉन्ड ट्रेड होते हैं. आगे बताए गए विभिन्न फ़ैक्टर्स के कारण विभिन्न बॉन्ड्स की क़ीमतें बढ़ या घट सकती हैं. लेकिन इस उतार-चढ़ाव के कारण, एक म्यूचुअल फ़ंड अतिरिक्त पैसा कमा सकता है जो केवल इंटरेस्ट इनकम से ही बनता, अगर वो बॉन्ड ख़रीदता और उसके बाद उसकी क़ीमत बढ़ जाती. इससे निवेशकों को ज़्यादा रिटर्न मिलता. जाहिर है, इसका उल्टा भी सच है यानी नुक़सान भी हो सकता है.

बॉन्ड की क़ीमतें में बढ़ोतरी और गिरावट की वजह?

How do bond yields affect investors? लेकिन बॉन्ड की क़ीमतें क्यों बढ़ती हैं या गिरती हैं? इसके कई कारण हो सकते हैं. सबसे बड़ा कारण ब्याज दरों में बदलाव या ऐसे बदलाव की उम्मीद है. मान लीजिए कि कोई बॉन्ड है जो सालाना 9 फ़ीसदी की दर से ब्याज देता है. फिर, अर्थव्यवस्था में ब्याज दरें गिरती हैं और नए बॉन्ड 8 फ़ीसदी पर जारी होने लगते हैं. जाहिर है, पुराने बॉन्ड की क़ीमत अब पहले से ज़्यादा होनी चाहिए. आखिरकार, इसमें निवेश की गई एक निश्चित रक़म से ज़्यादा पैसे कमाए जा सकते हैं. अब इसकी क़ीमत बढ़ जाएगी. इसे रखने वाले म्यूचुअल फ़ंड को अपनी होल्डिंग्स का ज़्यादा क़ीमत मिलेगी और वे इस बॉन्ड को बेचकर अतिरिक्त मुनाफ़ा कमा सकते हैं. फिर से, ब्याज दरों में बढ़ोतरी होने पर इसका उल्टा भी हो सकता है. सुरक्षा की उम्मीद के बावजूद, ऐसी स्थिति में बॉन्ड फ़ंड को कुछ नुक़सान हो सकता है.

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