"असाधारण" और "आश्चर्यजनक". अजय अर्गल इक्विटी बाज़ार में भारतीय निवेशकों के बेमिसाल अनुशासन के बारे में इन दो शब्दों का इस्तेमाल करते हैं. फ़्रैंकलिन टेम्पलटन AMC के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट को हाल के वर्षों में जिस बात ने सबसे ज़्यादा आश्चर्यचकित किया है, वो बाज़ार में लगातार जारी ग्रोथ में ख़ुदरा निवेशकों की ख़ास भूमिका है. उन्होंने हमारे एक घंटे के इंटरव्यू के दौरान कहा, "ऐसा (इस तरह का अनुशासित निवेश) भारतीय बाज़ारों में पहली बार हुआ है." इस दौरान उन्होंने फ़ंड हाउस की निवेश फ़िलॉसफ़ी से लेकर न्यू-एज कंपनियों के बारे में अपने विचार भी साझा किए.
अर्गल फिलहाल ₹27,500 करोड़ के एसेट्स वाले पांच फंड्स संभाल रहे हैं, जिनमें चार स्टार रेटिंग वाले फ़्रैंकलिन इंडिया फ़ोकस्ड इक्विटी और टेम्पलटन इंडिया वैल्यू फ़ंड शामिल हैं. वो ये भी कहते हैं कि वैल्यू और ग्रोथ स्टॉक के बीच "वैल्यूएशन में थोड़ा ही अंतर" है.
यहां उनके साथ हमारी बातचीत का संपादित अंश पेश हैं.
आपने IIT से इंजीनियरिंग पूरी की और फिर IIM गए. फ़ाइनेंशियल मार्केट्स में आपकी दिलचस्पी कैसे जगी?
मुझे हमेशा से आंकड़ों में गहरी दिलचस्पी रही है और हमारी पीढ़ी में गणित और आंकड़ों के प्रति जुनून रखने वाले लोग अक्सर इंजीनियरिंग में करियर बनाते थे. मैं हमेशा से IIT में जाने की ख़्वाहिश रखता था और ख़ुशकिस्मती से, मैं एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट में एडमिशन पाने में कामयाब रहा. हालांकि, मुझे एहसास हुआ कि भारत में मौके बहुत सीमित (उस दौर में) हैं और मैं भारत में ही रहना चाहता था.
धीरे-धीरे, IIT में रहते हुए, मैंने इकोनॉमिक्स के कोर्स में दाख़िला लिया और उसमें गहरी दिलचस्पी विकसित की. बाद में, मैंने मैनेजमेंट कोर्स करने का फैसला किया. मेरा मकसद IIM में एडमिशन पाना था और वहां पहुंचने के बाद, मैंने कई तरह के विषयों को पढ़ा. मैंने अपने दूसरे साल में, ख़ास तौर से फ़ाइनांस कोर्स पढ़ा, जो आख़िरकार मुझे फ़ाइनांस इंडस्ट्री में ले गया. इस तरह मैंने इंजीनियरिंग से फ़ाइनांस में एंट्री की.
क्या आप अपनी निवेश फ़िलॉसफ़ी के बारे में बता सकते हैं? किस तरह के शेयर या बाज़ार की स्थितियां आपको सबसे ज़्यादा उत्साहित करती हैं?
फ़्रैंकलिन टेम्पलटन में, हमारी निवेश फ़िलॉसफ़ी सही क़ीमत पर ग्रोथ को तरजीह देती है, जिसे GARP के तौर पर भी जाना जाता है. हमारे लिए शुरुआती प्वॉइंट हमेशा ग्रोथ का नज़रिया होता है, लेकिन हम इसके साथ ही वैल्यूएशन को लेकर भी अलर्ट रहते हैं और ‘किसी भी क़ीमत पर’ स्टॉक में निवेश करने को तैयार नहीं होते हैं. GARP के भीतर, हमारे पास QGSV नामक एक निवेश ढांचा है, जिसका मतलब है गुणवत्ता, ग्रोथ, स्थिरता और वैल्यूएशन.
हममें से ज़्यादातर लोग गुणवत्ता, ग्रोथ और वैल्यूएशन के कॉन्सेप्ट को समझते हैं. मैं स्थिरता के महत्व पर ज़ोर देना चाहता हूं. ख़ास तौर से, हम ग्रोथ को बढ़ावा देने वाले फ़ैक्टर्स की पहचान करने पर ध्यान लगाते हैं, और वे हमारे पोर्टफ़ोलियो का एक ख़ास हिस्सा हैं. हम उन शेयरों में निवेश करना पसंद करते हैं जहां हम पांच से सात साल के समय के लिए ग्रोथ का अंदाज़ा लगा सकते हैं. अगर आप हमारे फ़ंड को भी देखें, तो वे पोर्टफ़ोलियो टर्नओवर रेशियो करीब 25-35 फ़ीसदी होंगे, जिसका आम तौर पर मतलब है कि हमारी होल्डिंग अवधि करीब साढ़े चार साल होगी.
इसलिए, हम सिर्फ़ खरीद कर होल्ड (buy and hold) नहीं करते, बल्कि ग्रोथ आउटलुक, कैश फ़्लो और रिटर्न रेशियो जैसे अलग अलग फ़ैक्टर्स पर भी लगातार नज़र रखते हैं. हमारी स्टॉक निवेश की स्टाइल बॉटम-अप है, लेकिन हम टॉप-डाउन नज़रिए से सेक्टर या थीम की तलाश करते हैं.
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किसी स्टॉक में निवेश करने से पहले आप किस क्राइटीरिया को फ़ॉलो करते हैं?
जैसा कि मैंने पहले बताया, हमारे पोर्टफ़ोलियो में शामिल किए जाने वाले स्टॉक में ग्रोथ और वैल्यूएशन का अच्छा संयोजन होना चाहिए. आपको पोर्टफ़ोलियो में कुछ ग्रोथ कंपाउंडर्स नज़र आएंगे, जो मुख्य रूप से बड़े नाम होंगे. इसलिए, अगर आप हमारे पोर्टफ़ोलियो को देखते हैं, तो आप पाएंगे कि कुछ बड़े नाम बाज़ार, प्रतिस्पर्धियों या बेंचमार्क से काफ़ी अलग हैं. हम अलग नज़रिए और तीन से चार साल के नज़रिये के साथ स्टॉक ख़रीदते हैं. हम 7 से 10 साल जैसे लंबे सम के लिए निवेश नहीं करते, क्योंकि हमारा मानना है कि किसी भी साइकल में बहुत जल्दी निवेश करने से पॉजिटिव और निगेटिव दोनों तरह के रिटर्न मिल सकते हैं. इन सभी फ़ैक्टर्स का हमारी प्लानिंग में योगदान होता है, जिसमें निश्चित तौर पर ख़ुद को बाज़ार से अलग करने की कोशिश करना शामिल है.
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न्यू-एज टेक कंपनियों पर आपकी क्या राय है, ख़ासकर तब जब आप फ़्रैंकलिन इंडिया फ़ोकस्ड इक्विटी फ़ंड में ऐसे कुछ शेयर रखते हैं?
ये एक बहुत ही दिलचस्प सेक्टर है क्योंकि हमने उन्हें अलग-अलग सेक्टर्स में उथल-पुथल मचाने वाली ताकतों के रूप में देखा है. इसका मतलब है कि वे नए तरीक़ों से बिज़नस करते हैं और पुराने तरीक़ों को बदल देते हैं. कई सेक्टर्स ने 2021 में अपने शेयरों को लिस्टिड किया, लेकिन हमने ज़्यादा प्रचार और महंगे वैल्यूएशन की वजह से इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग्स (IPO) में हिस्सा लेने से परहेज़ किया. साथ ही, बिज़नस ने एक भरोसेमंद ग्रोथ के मौक़े पेश किए, लेकिन संस्थापकों ने कैश फ़्लो और मुनाफ़े की तुलना में मार्केट शेयर हासिल करने को तरजीह दी, जिसके चलते उनका मुनाफ़ा कम रहा. हालांकि, 2022 के आसपास हालात बदलने लगे जब नैस्डैक में कमज़ोरी देखने को मिली. इसकी वजह वैश्विक स्तर पर और भारत में इस तरह की कंपनियों को वित्तपोषित करने वाली सभी प्राइवेट इक्विटी कंपनियों की रणनीति रही.
लिक्विडिटी कम होने के साथ, कई शेयरों में अनुशासन पैदा हुआ, जिससे उन्हें मुनाफ़ा कमाने के लिए मजबूर होना पड़ा. नतीजतन, उन्होंने लागत कम करना शुरू कर दिया और मुनाफ़ा बढ़ाने के लिए बिल्कुल नई रणनीति तैयार की. आख़िरकार उन्होंने कॉस्ट करने पर जोर दिया और बिज़नस की मुनाफ़ा कमाने की क्षमता पर ध्यान दिया गया. इसलिए, हम ऐसे शेयरों की पहचान कर रहे हैं जो लीडर हैं या जो इंडस्ट्री में दबदबे के साथ एक ख़ास मुकाम रखते हैं. इसलिए, हम ऐसी कंपनियों की तलाश कर रहे हैं जिनके प्रमोटर या प्रबंधन ने सिर्फ़ ग्रोथ के बजाय मुनाफ़ा देने वाली ग्रोथ हासिल करने की दिशा में कोशिशें की हैं. हमारे बिल्ड इंडिया फ़ंड (Build India Fund) और फ़ोकस्ड फ़ंड (Focused Fund) के कुछ शेयरों ने पिछले साल हमारे प्रदर्शन में ख़ासा योगदान दिया, और हम हमेशा ऐसे अवसरों की तलाश में रहते हैं. हम इस सेक्टर के बारे में बहुत पॉजिटिव हैं क्योंकि इस तरह की कंपनियों ने अमेरिका जैसे दूसरे बाज़ारों में अच्छी ग्रोथ हासिल की है, और हमें लगता है कि भारत में भी ऐसा हो सकता है.
पिछले चार सालों में थीम के तौर पर वैल्यू ने अच्छा प्रदर्शन किया है. मौजूदा वैल्यूएशन को देखें तो क्या आपको लगता है कि इसका बेहतर प्रदर्शन जारी रह सकता है?
ख़ास तौर पर थीम के तौर पर वैल्यू की हाल की कामयाबी को देखते हुए, पक्के तौर पर कुछ कहना मुश्किल है. इसलिए, इस लिहाज से, हाल में वैल्यू स्टॉक और ग्रोथ स्टॉक के बीच वैल्यूएशन में बहुत कम अंतर है. हमने आम तौर पर देखा है कि वैल्यू स्टॉक में ग्रोथ कम होती है, और ऐसा अभी भी देखने को मिल रहा है. हालांकि, कम ग्रोथ और हाई वैल्यूएशन वाले शेयरों में निवेश करना बेहद मुश्किल है. आम तौर पर, हमने ग्रोथ स्टॉक के मुकाबले में वैल्यू स्टॉक को कम वक़्त के लिए अच्छा प्रदर्शन करते देखा है. इसकी वजह भारत एक ग्रोथ मार्केट होना है, और हमारे पास ज़्यादातर दूसरे देशों के मुकाबले में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में तेज़ ग्रोथ है. इसलिए, लंबे समय के नज़रिए से, ग्रोथ का अच्छा प्रदर्शन जारी रहेगा.
कहा जाता है कि बैंकिंग और फ़ाइनांस सर्विस सेक्टर जैसे कुछ सेक्टर्स में अभी भी मौक़े हैं. बैंकिंग सेक्टर में वैल्यूएशन निवेश के लिए अच्छी है, और संभवतः ये इकलौता ऐसा सेक्टर है जहां हालिया वैल्यूएशन पिछले पांच साल के औसत से कम है. इसी तरह, IT सेक्टर में, वैल्यूएशन पांच साल के औसत के क़रीब है, लेकिन ग्रोथ पहले के मुकाबले में कम है.
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हाल ही में मिड और स्मॉल-कैप सेगमेंट का शानदार प्रदर्शन देखने को मिला है. क्या आपको लगता है कि यह तेज़ी टिकाऊ है?
लंबे समय के नज़रिए से, लार्ज-कैप की तुलना में मिड और स्मॉल कैप बेहतर प्रदर्शन करते हैं. कम्पाउंड एनुअल ग्रोथ रिपोर्ट (CAGR) के आधार पर, पिछले 20 साल में मिड और स्मॉल कैप ने लार्ज कैप के मुकाबले 2-3 फ़ीसदी ज़्यादा रिटर्न दिया है. चूंकि वे ज़्यादा रिटर्न देते हैं, इसलिए अस्थिरता भी ज़्यादा होती है, और लार्ज कैप के मुकाबले में गिरावट ज़्यादा हो सकती है. पिछले दो या तीन साल में उनका प्रदर्शन अच्छा रहा है और वैल्यूएशन ऊंचे स्तर पर है. निफ़्टी का मौजूदा वैल्यूएशन पिछले 10 सालों के औसत के बहुत क़रीब है, लेकिन मिड-कैप इंडेक्स निफ़्टी के मुकाबले क़रीब 50 फ़ीसदी प्रीमियम पर कारोबार कर रहा है. ऐसी स्थिति पहले कभी नहीं आई.
इसी तरह, स्मॉल-कैप इंडेक्स निफ़्टी के मुकाबले 10 फ़ीसदी प्रीमियम पर कारोबार कर रहा है. इसलिए, हम निकट अवधि में मिड और स्मॉल-कैप शेयरों में निवेश करते वक़्त सावधानी बरतने की योजना बना रहे हैं. यही वजह है कि चाहे फ़ोकस्ड फ़ंड हो या फ़्लेक्सी-कैप फ़ंड, हम अपनी अलग-अलग रणनीतियों में लार्ज कैप को ज़्यादा तरजीह देते हैं. इसलिए, हम शॉर्ट टर्म में ज़्यादा सतर्क नज़रिया अपनाते हैं. लेकिन जैसा कि मैंने कहा, अगर आप लंबे समय की ग्रोथ के लिए बाज़ार में आ रहे हैं, तो मिड और स्मॉल-कैप सेगमेंट में ज़्यादा फ़ायदा मिलेगा और वहां भी निवेश करना समझदारी है.
ज़्यादातर इंफ्रास्ट्रक्चर फ़ंड ने एक कैटेगरी के तौर पर ख़राब प्रदर्शन किया है. बेंचमार्क के एक साल में 130 फ़ीसदी ऊपर जाने के बावजूद इस ख़राब प्रदर्शन का क्या कारण है? क्या निवेशकों के लिए अभी भी साइक्लिकल थीमैटिक फ़ंड में निवेश करना समझदारी है?
मुझे लगता है कि निवेशक अभी भी इन सेगमेंट में एक्टिव फ़ंड्स पर विचार कर सकते हैं. हमें इंडेक्स के मुकाबले कमज़ोर प्रदर्शन के कारणों को समझने की ज़रूरत है. पहला कारण यह है कि लिक्विडिटी की कमी या कम फ्लोटिंग स्टॉक्स के साथ BSE इन्फ्रास्ट्रक्चर इंडेक्स बहुत ही अव्यवस्थित है. इस सेगमेंट का इंडेक्स में करीब 30-40 फ़ीसदी हिस्सा है, और न तो हमने और न ही दूसरे इंफ्रास्ट्रक्चर फंड्स ने इस सेगमेंट के कई स्टॉक्स में निवेश किया है.
हमने अतीत में देखा है कि जब भी बाज़ार अच्छा प्रदर्शन करते हैं, तो बाज़ार के कुछ सेगमेंट ही बेहतर प्रदर्शन करते हैं और हमने पिछले एक साल में ऐसा होते देखा है. एक निवेशक के नज़रिए से, हम सतर्क रहे हैं और इनमें से कुछ नामों में निवेश नहीं किया है, जिसके चलते प्रदर्शन कुछ कमज़ोर रहा है. हालांकि, अतीत में, हमने 20 फ़ीसदी तक का बेहतर प्रदर्शन देखा है. इसलिए, मैं यही कहूंगा कि इन बाधाओं के कारण बेंचमार्क सही मायने में इसका प्रतिनिधित्व नहीं करता है.
क्या कोई ऐसा मार्केट ट्रेंड या घटना है जिसने आपको चौंकाया हो?
पिछले कुछ साल में बाज़ार में जिस तरह की हलचल देखी है, उसका नेतृत्व ख़ुदरा निवेशकों ने ही किया है. मेरा मानना है कि ये एक ऐसी घटना है जो भारतीय बाज़ारों में पहली बार हुई है. मुझे लगता है कि ख़ुदरा निवेशकों की भागीदारी 2014-15 से बढ़ रही थी, और सिस्टमैटिक इनवेस्टमेंट प्लान (SIP) के ज़रिए इक्विटी फ़्लो और निवेश में काफ़ी बढ़ोतरी हुई थी. पिछले कुछ सालों में ये ट्रेंड और भी तेज़ हो गया है, निवेशक लगातार गिरावट पर ख़रीदारी कर रहे हैं. इसलिए, जिस तरह का अनुशासन वे ला रहे हैं और उनके निवेश में निरंतरता बनी हुई है. ये कुछ ऐसा है जो मैं पहली बार देख रहा हूं, और ये मुझे चौंकाता है.
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