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बॉटम-अप और टॉप-डाउन इन्‍वेस्टिंग में फ़र्क़?

Bottom-up and top-down approach in stock market: इसे समझने से कमाना आसान हो जाएगा

बॉटम-अप और टॉप-डाउन इन्‍वेस्टिंग में फ़र्क़?

Top Down vs Bottom Up Approach: मार्केट एक्सपर्ट्स के विचारों को सुनते या पढ़ते समय अक्सर दो स्ट्रैटेजी - टॉप-डाउन और बॉटम-अप के बारे में सुनने को मिलता है. दरअसल, ये स्टॉक मार्केट में निवेश की ख़ास लेकिन एक दूसरे से बिल्कुल अलग स्ट्रैटेजी हैं. अगर आप इनके बारे में जान लेंगे तो आपके लिए शेयर बाजार में निवेश करना आसान हो जाएगा.

टॉप-डाउन (Top Down) और बॉटम-अप (Bottom Up) इन्‍वेस्टिंग निवेश को चुनने के दो अलग-अलग तरीके़ हैं. बॉटम-अप में जहां सीधे इंडिविजुअल कंपनियों पर ग़ौर करता है, वहीं टॉप-डाउन में पहले तमाम इकोनॉमिक इंडीकेटर और इंडस्‍ट्री में मौके़ देखे जाते हैं, इसके बाद कंपनियां चुनी जाती हैं. हम यहां पर इन दोनों स्ट्रैटेजी के बारे में विस्तार से बता रहे हैं.

टॉप-डाउन इन्‍वेस्टिंग
Top-Down Investing: इसमें आपको कुछ साइकल या ट्रेंड को समझने के लिए कई मैक्रोइकोनॉमिक और सेक्‍टोरल फ़ैक्‍टर देखने होते हैं, जो बाद में किसी सेक्‍टर और कुछ कंपनियों को फ़ायदा पहुंचाएंगे. इन फ़ैक्‍टर्स में ब्‍याज दरें, महंगाई, कमोडिटी की क़ीमतें, सकल घरेलू उत्‍पाद, सप्‍लाई की अधिकता या कमी आदि शामिल हैं. जिम रोजर्स (Jim Rogers), रे डालियो (Ray Dalio) और जॉर्ज सोरोस (George Soros) जैसे सफ़ल निवेशकों ने इस तरीके़ को फ़ॉलो किया है.

यहां पर सोच पॉज़िटिव ट्रेंड और साइक्लिकल मूवमेंट से फ़ायदा उठाना और समय पर बाहर निकल जाने की है. मान लेते हैं, आपने जान लिया है कि स्‍टील की क़ीमतें बढ़ने जा रही है, तो आप स्‍टील बनाने वाली कंपनियों के स्‍टॉक्‍स में निवेश करेंगे, क्‍योंकि आगे इन्‍हीं कंपनियों को सबसे ज़्यादा फ़ायदा होने वाला है. अब, आपको ये भी पता करना है कि क़ीमतों में तेज़ी का साइकल कितना लंबा चलेगा और आपको इन कंपनियों से कब बाहर निकलना है.

और, अहम समस्‍या यहीं पर है. निवेश करने और बाहर निकलने की टाइमिंग टॉप-डाउन इन्‍वेस्टिंग का अहम हिस्‍सा है. कुछ ट्रेंड कुछ साल तक जारी रह सकते हैं लेकिन अधिकतम फ़ायदा उठाने के लिए आपको सही मौके़ पर निवेश करना और बाहर निकलना होगा.

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ये पता लगाने के बाद कि किस सेक्‍टर को आगे फ़ायदा होगा, आपको कंपनियां चुननी होंगी. आप एक सेक्‍टर पर दांव लगा रहे हैं, ऐसे में आप उस सेक्‍टर की कुछ मज़बूत कंपनियां चुनेंगे. याद रखें कि मैक्रोइकोनॉमिक ट्रेंड का विश्‍लेषण करने और ये जानने के लिए कि आगे हालात कैसे रहेंगे, बहुत गहरा अनालिसिस करने की ज़रूरत होती है. इसके लिए आपको विशेषज्ञ बनना होता है.

बॉटम-अप इन्‍वेस्टिंग
Bottom-Up Approach: टॉप-डाउन इन्‍वेस्टिंग के विपरीत, यहां पर आपको इंडस्‍ट्री या पूरे सेक्‍टर को देखने के बजाए सिर्फ कंपनियों पर ग़ौर करना है. आपकी दिलचस्‍पी सिर्फ़ किसी ख़ास कंपनी और उसके बिज़नस इकोनॉमिक्‍स में होती है.

कंपनी को समझने के लिए, आपको कुछ बेसिक रिसर्च करनी होती है. इसमें उसकी एनुअल रिपोर्ट पढ़ना, कंपनी की तुलना उसकी प्रतिस्‍पर्धी कंपनियों से करना और उसकी ग्रोथ की संभावनाओं और वैल्‍युएशन का सही आकलन करना आदि शामिल है. ऐसा हो सकता है कि कोई सेक्‍टर अच्‍छा प्रदर्शन न कर रहा हो लेकिन उसी सेक्‍टर की एक कंपनी अच्‍छा प्रदर्शन कर रही हो. बॉटम-अप इन्‍वेस्टिंग (Bottom-Up Investing) में आपको सिर्फ़ कंपनी की चिंता करनी होती है, सेक्‍टर पर माथा-पच्‍ची नहीं करनी पड़ती.

इस तरीके को अपना कर ज़्यादातर निवेशक अच्‍छा प्रदर्शन कर सकते हैं. कंपनी और उसकी इकोनॉमिक्‍स को समझना मैक्रोइकोनॉमिक फ़ैक्‍टर्स को समझने और सटीक लगने की तुलना में ज़्यादा सरल हैं.

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आपके लिए क्या है बेहतर
बॉटम-अप इन्‍वेस्टिंग आप के लिए सबसे अच्‍छी रहेगी, लेकिन टॉप-डाउन के कुछ पहलू को शामिल करने से आप को नुक़सान नहीं होगा. आप उस दौर के बारे में सोचें जब रूस और यूक्रेन के बीच लड़ाई शुरू हुई थी. इसकी वज़ह से हर तरह की कमोडिटी की क़ीमतों में उछाल आ गया था. कंपनियों की लागत तेज़ी से बढ़ गई. अगर आपको उस रीजन में बड़े पैमाने पर पाई जाने वाली कमोडिटी की जानकारी रही होती तो आपने या तो इसका फ़ायदा उठाया होता या पोर्टफ़ोलियो को मज़बूत बना लिया होता. और आपको शायद अंदाजा होगा कि साइकल्स से जुड़े स्टॉक्स में निवेश करते हुए टॉप-डाउन एनालिसिस बहुत काम आता है.


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