इसमें कोई दोराय नहीं कि वॉरेन बफ़े पूरे निवेश जगत के दिग्गज एक्सपर्ट हैं. बफ़े, निवेश की दुनिया के सबसे महान शिक्षकों में से एक का दर्ज़ा पाने के भी हक़दार हैं. पिछले कुछ साल में, उनके पत्रों ने कई निवेशकों के लिए मार्गदर्शन का काम किया है, जिससे उन्हें महत्वपूर्ण सीख और दिशा मिली है.
इस आर्टिकल में, हमने बफ़े की लिखी कुछ चिट्ठियों के अंश दिए हैं, जो उन्होंने अपने पहले इंवेस्टिंग वेंचर "बफ़े पार्टनरशिप लिमिटेड" (BPL) को चलाने के दौरान लिखे थे. 1957 और 1968 के बीच, BPL ने अपने पार्टनरों को लगभग 25 फ़ीसदी (फ़ीस के बाद) का सालाना रिटर्न दिया, जबकि इस दौरान डाओ जोन्स (Dow Jones) का सालाना रिटर्न 9 फ़ीसदी ही था. है न कमाल की बात!
तो, आइए बफ़े द्वारा अपने पार्टनरशिप लेटर में साझा किए गए निवेश के कुछ ज़रूरी सबक़ पर नज़र डालें:
ओवर-कॉन्फ़िडेंस का रिस्क
"शेयरों में निवेश से पक्के फ़ायदे की आम राय या भरोसा आख़िर में परेशानी का कारण बनेगा."
'शेयरों में निवेश के जरिए पैसा कमाना आसान है' -- बफ़े ने इस बात पर भरोसा करने को लेकर आगाह किया है. उनकी ये बात हमें याद दिलाती है कि मार्केट इन्ट्रिंसिक वैल्यू के साथ-साथ सेंटीमेंट से भी प्रभावित होते हैं.
कंज़र्वेटिव नज़रिए की अहमियत
"मैं बहुत ज़्यादा कंज़र्वेटिव होने के कारण नुक़सान झेलना पसंद करूंगा चाहे वो पूरे कैपिटल का नुक़सान ही क्यों न हो, बजाय इसके कि मैं वो ग़लती करके नुक़सान झेलूं जिसमें "नए युग" की इस सोच पर भरोसा किया जाता है कि पेड़ सच में आसमान तक बढ़ते हैं."
बफ़े निवेश में कंज़र्वेटिव रुख़ अपनाने के पक्ष में थे, भले ही इसमें आप फ़ायदे के कुछ संभावित मौक़े गवा दें.
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बफ़े के मुताबिक़, एक अच्छी निवेश रणनीति की असली परीक्षा तब होती है जब आप…
...बुरे दौर में बेहतर करते हैं.
"मैं उस साल को ज़्यादा बेहतर मानूंगा जिसमें हम 15 फ़ीसदी गिरें और एवरेज़ (डाओ जोन्स इंडस्ट्रियल एवरेज़ इंडेक्स) 30 फ़ीसदी गिरे, बजाय उस साल के जब हम और एवरेज़ दोनों 20 फ़ीसदी बढ़ें. समय के साथ, अच्छे और बुरे साल आते रहेंगे; इसे लेकर उत्साहित या मायूस होने से कुछ हासिल नहीं होता. महत्वपूर्ण ये है कि एवरेज से आगे रहना है."
अलग सोच और कंज़र्वेटिव रुख़
"अगर ज़्यादातर लोग आपसे सहमत हैं तो इसका मतलब ये नहीं कि आप सही ही होंगे. अगर कुछ बड़े या महत्वपूर्ण लोग आपसे सहमत हैं तो भी इसका मतलब ये नहीं है कि आप सही होंगे. कई मायनों में, ऊपर बताए गए दो फ़ैक्टर का एक साथ होना कंज़र्वेटिव नज़रिए की कसौटी पर खरा उतरने के लिए काफ़ी है.
...मुझे लगता है कि निवेश करने का हमारा तरीक़ा कितना कंज़र्वेटिव है, इसकी सबसे बड़ी परीक्षा गिरावट वाले मार्केट में हमारे प्रदर्शन से होती है."
बफ़े ने इस बात पर ज़ोर दिया कि आम राय या प्रभावशाली लोगों की बातों को कंज़र्वेटिव या सुरक्षित निवेश के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए. उन्होंने तर्क दिया कि कंज़र्वेटिव सोच की सही माप ये है कि गिरावट वाले मार्केट में हमारा निवेश कितना अच्छा प्रदर्शन करता है.
फ़ंडामेंटल पर ज़ोर
बफ़े ने कहा है कि निवेशकों को मार्केट की हरकतों से प्रभावित नहीं होना चाहिए और अपना ध्यान सिर्फ़ उन चीज़ों पर लगाना चाहिए जो असल में मायने रखती हैं, यानी फ़ंडामेंटल या बुनियादी फ़ैक्टर.
"किसी बिज़नस के क्वांटिटी और क्वालिटी संबंधी पहलुओं का अनालेसिस किया जाना चाहिए, और इसे क़ीमत और निवेश के दूसरे मौक़ों के मुक़ाबले और निरपेक्ष आधार पर तौला जाना चाहिए.
...शेयर बाजार की चाल काफ़ी हद तक ये तय करेगी कि हम कब सही होंगे, लेकिन कंपनी के बारे में हमारे अनालेसिस की सटीकता काफ़ी हद तक ये तय करेगी कि हम सही होंगे या नहीं. दूसरे शब्दों में, हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि 'क्या होना चाहिए', न कि 'कब होना चाहिए'."
निवेशकों के लिए सीख
संक्षेप में, वॉरेन बफ़े के लेटर निवेशकों को निवेश संबंधी सदाबहार सीख देते हैं. ओवर-कॉन्फ़िडेंस के ख़िलाफ़ उनकी चेतावनी इस बात पर ज़ोर देती है कि मार्केट में सफलता की गारंटी नहीं होती है और अक्सर हमारा सेंटीमेंट इसमें हावी रहता है. कंज़र्वेटिव रुख़ पर उनकी बातें शॉर्ट-टर्म मुनाफ़े के बजाय लॉन्ग-टर्म पूंजी संरक्षण के महत्व को दर्शाती हैं. उन्होंने आम राय न अपनाते हुए अपनी एक अलग सोच रखने और बिज़नस के फ़ंडामेंटल की अहमियत पर भी ज़ोर दिया है. ये सीख अपनाने से निवेशकों को ज़्यादा कॉन्फ़िडेंस और सफलता के साथ मार्केट की जटिलताओं से निपटने में मदद मिलेगी.
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