स्टॉक वायर

भारत के स्मॉल फाइनेंस बैंकों के ‘बड़े’ होने का सपना कैसे होगा पूरा?

AU स्मॉल फ़ाइनेंस बैंक, कैपिटल स्मॉल फ़ाइनेंस बैंक और उज्जीवन स्मॉल फ़ाइनेंस बैंक क्यों बड़े क़दम उठाना चाहते हैं

भारत के स्मॉल फाइनेंस बैंकों के ‘बड़े’ होने का सपना कैसे होगा पूरा?

SFB के तौर पर पर चर्चित स्मॉल फ़ाइनेंस बैंक बड़े होने का सपना देख रहे हैं. चाहे वो AU SFB हो, कैपिटल SFB हो या उज्जीवन SFB, ये सभी तेज़ी से बढ़ते बैंकिंग सिस्टम के साथ कदमताल करने में लगे हैं. ये बड़े यूनिवर्सल बैंक बनना चाहते हैं. SFB के पास प्रतिष्ठित यूनिवर्सल बैंक का ख़िताब पाने का अच्छा मौक़ा है, जो अपने साथ कई रणनीतिक फ़ायदे लाता है. आगे हम इसके बारे में विस्तार से जानेंगे.

लेकिन उससे पहले, यहां उन प्रमुख मानदंडों की पूरी जानकारी दी गई है जिन्हें यूनिवर्सल बैंक का दर्जा पाने के लिए SFB को पूरा करना ज़रूरी है:

  • एसेट क्वालिटी: यूनिवर्सल बैंक लाइसेंस का आवेदन करने से पहले दो साल तक SFB का ग्रॉस NPA (नॉन-परफ़ॉर्मिंग एसेट) 3 प्रतिशत से कम और नेट NPA 1 प्रतिशत से कम होना चाहिए.
  • परफ़ॉर्मेंस रिकॉर्ड: भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा तय की गई शर्तों के अनुसार स्मॉल फ़ाइनेंस बैंक को कम-से-कम पांच साल तक संतोषजनक प्रदर्शन करना होगा. ये एक ख़ास बेंचमार्क है जो रेगुलेटरी कंप्लायंस, फ़ाइनेंशियल परफ़ॉर्मेंस, गवर्मेंट स्टैंडर्ड, कस्टमर सर्विस, टेक्नोलॉजी और ऑपरेशन जैसे फ़ैक्टर्स के आधार पर हरेक बैंक के लिए अलग-अलग होता है.
  • फ़ाइनेंशियल स्टेबिलिटी: यूनिवर्सल बैंक लाइसेंस के लिए आवेदन करने से पहले स्मॉल फाइनेंस बैंक के पास कम से कम ₹1,000 करोड़ की नेटवर्थ तथा दो साल तक लगातार प्रॉफ़िट में होना चाहिए.
  • पब्लिक लिस्टिंग: एक यूनिवर्सल बैंक बनने के लिए किसी स्मॉल फ़ाइनेंस बैंक को एक्सचेंजों में लिस्टिड होना ज़रूरी है.

यूनिवर्सल बैंक होना क्यों बेहतर है

अब बात, स्मॉल फ़ाइनेंस बैंक (SFB) के मुक़ाबले यूनिवर्सल बैंकों के ज़्यादा फ़ायदों की:

कई तरह की सर्विस: एक यूनिवर्सल बैंक सभी फ़ाइनेंशियल ज़रूरतों के लिए वन-स्टॉप शॉप है. वे बड़े और व्यापक कस्टमर बेस के लिए रेगुलर बैंकिंग सॉल्यूशन, इन्वेस्टमेंट, बीमा और एसेट मैनेजमेंट प्रॉडक्ट सहित अलग-अलग सर्विस देते हैं. इससे उन्हें SFB की तुलना में बेहतर रेवेन्यू स्ट्रीम तैयार होती है, जिनकी सर्विस और कस्टमर की बास्केट बहुत छोटी है. SFB को मुख्य रूप से कम सर्विस वाले और ग़ैर सर्विस वाले मार्केट को पारंपरिक बैंकिंग और लोन सर्विस देने का काम सौंपा जाता है.

कम कैपिटल रखने की ज़रूरत: SFB को 15 प्रतिशत का पूंजी पर्याप्तता अनुपात (capital adequacy ratio) बनाए रखना ज़रूरी है, जबकि यूनिवर्सल बैंक के लिए ये केवल 11.5 प्रतिशत है. कम कैपिटल पर्याप्तता अनुपात का मतलब हुआ ज़्यादा लोन देने की क्षमता.

प्राथमिकता वाले सेक्टर को लोन देने की कोई अनिवार्यता नहीं: SFB को अपनी लोन बुक का 75 प्रतिशत कृषि और किफ़ायती आवास जैसे हाई रिस्क वाले प्राथमिकता के सेक्टर में रखना चाहिए. यूनिवर्सल बैंक के लिए ये ज़रूरत घटकर केवल 40 प्रतिशत रह जाती है, जिससे उनका रिस्क कम हो जाता है.

लोन की रक़म पर कोई प्रतिबंध नहीं: ये अनिवार्य है कि SFB को अपने पोर्टफ़ोलियो के कम-से-कम 50 प्रतिशत लोन अमाउंट को ₹25 लाख से ज़्यादा नहीं रखे. यूनिवर्सल बैंकों के लिए इस तरह का कोई प्रतिबंध नहीं हैं, जिससे वे बड़े बिज़नस और ग्राहकों को ज़्यादा आज़ादी से लोन दे सकते हैं.

ब्रांच की कोई सीमा नहीं: SFB को अपनी 25 प्रतिशत ब्रांच बैंकिंग रहित क्षेत्रों में रखने की ज़रूरत होती है, जबकि यूनिवर्सल बैंकों के लिए ऐसी कोई बंदिश नहीं है

फ़ंड की कम लागत: चूंकि SFB हाई रिस्क वाले सेक्टर में काम करते हैं, इसलिए वे ज़्यादा ब्याज दर दे करते हैं और यूनिवर्सल बैंकों की तुलना में उनके फ़ंड की लागत ज़्यादा होती है, जिससे अपने बड़े स्केल की वजह से वो कम दरें ऑफ़र कर सकते हैं.

बड़ा बनने की लागत
अब हम एक बड़ा बैंक बनने के फ़ायदों को जानते हैं, लेकिन कम से कम शुरुआथ में इसमें कुछ लागत शामिल हैं.

  • एक यूनिवर्सल बैंक में बदलने से मार्केटिंग और विज्ञापन, ब्रांच खोलने और ज़्यादा कर्मचारियों को जोड़ने से जुड़ी बड़ी लागत आती हैं, जो उनके मार्जिन पर दबाव डालती हैं.
  • नए-नए यूनिवर्सल बैंकों को HDFC बैंक, SBI और ICICI बैंक जैसे मौजूदा दिग्गजों से इस सेक्टर में ज़्यादा प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है.
  • मौजूदा बाज़ार में यूनीवर्सल बैंकों द्वारा मिले कम लागत के पारंपरिक फ़ायदे कम हो रहे हैं, जैसे कि हरेक बैंक को डिपॉज़िट आकर्षित करने की भयंकर प्रतिस्पर्धा का सामना करने के लिए ऊंची ब्याज दरें देनी पड़ रही हैं.
  • ये ट्रेंड सभी सेक्टर में फ़ंड्स की लागत में बढ़ोतरी की ओर ले जा रहा है, जिससे SFB और यूनिवर्सल दोनों के लिए शुद्ध ब्याज (net interest) मार्जिन क़रीब-क़रीब एक जैसा हो गया है.

ये भी पढ़िए - ये स्मॉल फ़ाइनेंस बैंक अगला विजेता हो सकता है


टॉप पिक

Mutual funds vs PMS: क्या अच्छा है आपके पैसे के लिए?

पढ़ने का समय 2 मिनटवैल्यू रिसर्च

मल्टी-एसेट फ़ंड आज दूसरी सबसे बडी पसंद हैं. क्या इनमें निवेश करना चाहिए?

पढ़ने का समय 3 मिनटपंकज नकड़े

Flexi-cap vs Aggressive Hybrid Fund: ₹1 लाख कहां निवेश करें?

पढ़ने का समय 3 मिनटवैल्यू रिसर्च

क्या रिलायंस इंडस्ट्रीज़ का बोनस शेयर इश्यू वाक़ई दिवाली का तोहफ़ा है?

पढ़ने का समय 3 मिनटAbhinav Goel

माइक्रो-कैप इंडेक्स क्या स्मॉल-कैप्स से बेहतर है?

पढ़ने का समय 4 मिनटPranit Mathur

स्टॉक पॉडकास्ट

updateनए एपिसोड हर शुक्रवार

Invest in NPS

समय, व्यावहारिकता और निराशावाद

पूंजी बनाने के लिए ज़्यादा बचत करना और ज़्यादा लंबे समय तक बचत करना, क्यों बहुत ज़्यादा रिटर्न पाने की उम्मीद से बेहतर है.

दूसरी कैटेगरी