Anand Kumar
पिछले साल, जब मैं बजट वाली शाम इस पेज के लिए लिख रहा था, तो मुझे कुछ चिंता हुई कि कहने के लिए कुछ ख़ास नहीं है. फिर, सोचा तो एहसास हुआ कि अगर मेरे पास कहने के लिए कुछ ख़ास नहीं है, तो कमोबेश ये अच्छी बात है. चूंकि मेरे काम का दायरा ज़्यादातर निवेश और टैक्स से जुड़ा है, इसलिए कुछ न कहने का मतलब है कि कोई बदलाव नहीं है, और ये ठीक ही है.
हालांकि, इस साल कहने के लिए बहुत कुछ है. सबसे बड़ा (नकारात्मक) आश्चर्य ये है कि कैपिटल गेन टैक्स में कॉस्ट इंडेक्सेशन ख़त्म कर दिया गया है. कुछ साल पहले, तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इक्विटी इन्वेस्टमेंट पर लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन टैक्स को फिर से लागू किया था, और वो भी बिना इंडेक्सेशन के. उस समय, मैंने लिखा था कि मंत्री ने "इस टैक्स में महंगाई का इंडेक्सेशन न देकर ग़लत किया है. भारत में लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन वाली हर दूसरी चीज़ के लिए इंडेक्सेशन है, जैसे कि बॉन्ड, रियल एस्टेट, अनलिस्टिड इक्विटी, वगैरह. निष्पक्ष टैक्स का आधार यही होगा कि सरकार आपसे महंगाई के कारण बढ़ी वैल्यू पर टैक्स देने के लिए नहीं कहे. तो अब ये टैक्स लगा कर इस सिद्धांत की अनदेखी क्यों की जा रही है? इसका कोई कारण समझ में नहीं आता."
मुझे नहीं पता था कि इक्विटी टैक्स में इंडेक्सेशन लाना तो दूर, कुछ ही सालों में सभी तरह के कैपिटल गेन टैक्स पर इंडेक्सेशन को ही ख़त्म कर दिया जाएगा, यहां तक कि रियल एस्टेट पर भी. ये एक बहुत बड़ा बदलाव है और सिद्धांत के आधार पर इसे तर्कसंगत ठहराना मुश्किल. इसके अलावा, कई तरह के निवेशों में तो ये असली रिटर्न को ही निगल जाएगा. इक्विटी निवेश की एक मिसाल लीजिए और इस बारे में सोचिए. इसमें रिटर्न शायद ही कभी महंगाई दर से तीन-चार प्रतिशत ज़्यादा होता है. पूरे रिटर्न पर 10 प्रतिशत टैक्स असल में आपके वास्तविक, महंगाई दर से एडजस्ट किए गए लाभ का 20-30 प्रतिशत या इससे भी ज़्यादा हो सकता है. यानी, हरेक लेनदेन के लिए आप टैक्स के तौर पर अपने असली मुनाफ़े का पांचवें से लेकर क़रीब-क़रीब एक तिहाई हिस्सा गंवा सकते हैं. असल में तो ये और भी ज़्यादा हो सकता है. इस बात की पूरी-पूरी संभावना है कि जब महंगाई दर से एडजस्ट किया आपका रिटर्न नेगेटिव होगा, तब भी आपको ये टैक्स देना पड़ेगा. कल्पना करें कि आपका निवेश 8 प्रतिशत रिटर्न दे, लेकिन महंगाई दर 10 प्रतिशत हो. तब तो आप अपनी परचेज़िंग पावर या क्रय शक्ति ही गंवा देंगे. पहले जब इन्वेस्टमेंट में इंडेक्सेशन होता था, तब आपको कोई टैक्स नहीं देना पड़ता था. हालांकि, इस नई नीति में, इसके बावजूद कि वास्तविक वैल्यू खो गई है, आप पर टैक्स लगाया जाएगा.
बजट में मेरी एक और शिकायत है कि धीरे-धीरे नई टैक्स रिज़ीम की ओर क़दम बढ़ाए जा रहे हैं. मुझे पूरी उम्मीद है कि जल्दी ही नई टैक्स रिज़ीम अनिवार्य हो जाएगी, ख़ासकर जब वित्त मंत्री इनकम टैक्स एक्ट पूरी तरह से बदलने का वादा कर रही हैं. सैद्धांतिक तौर पर, नई रिज़ीम सरल है, इसमें कोई छूट नहीं है और टैक्स कम है. हालांकि, इसमें टैक्स बचाने के विकल्पों का न होना, इसका एक भयानक नतीजा है. टैक्स में छूट मिलना फ़ायदेमंद भी हो सकता है और नुक़सान देने वाला भी. पर जो बचत की आदत को बढ़ावा दे, वो बिना शक़ एक अच्छा पहलू कहलाएगा. मेरा नज़रिया साफ़ है: बचत के लिए नई टैक्स रिज़ीम के कम प्रोत्साहन के कारण ऐसा हो सकता है कि बचत ही कम की जाएगी और इसका नतीजा होगा कि जीवन के उत्तरार्ध में बहुत से लोग पैसों की तंगी झेलेंगे.
टैक्स में निवेश के लिए प्रोत्साहन न होने पर बहुत से लोग - ख़ासतौर पर युवा और कम आमदनी वाले - शायद बिल्कुल ही बचत न करें. हमारा उपभोक्तावादी समाज बचत के बजाय ख़र्च को प्रोत्साहित करता है. बचत पर टैक्स में छूट इस मानसिकता के ख़िलाफ़ इकलौती संतुलन बनाने वाली ताक़त रही है. इसके अलावा, इसका असर टैक्स बचाने वाले निवेश के तुरंत मिलने वाले फ़ायदे-नुक़सान तक ही सीमित नहीं है. दरअसल, टैक्स के लिए की जाने वाली बचत अक्सर एक प्रवेश द्वार का काम करती है, और समय के साथ लोगों को बड़े पैमाने पर बचत के लिए प्रोत्साहित करती है. मैंने अपने परिचितों में, यहां तक कि अक्सर अपने परिवार के युवाओं में इस पैटर्न को देखा है. वे टैक्स की बचत से अपने निवेश से की शुरुआत करते हैं और लॉक-इन पीरियड के कारण, बढ़िया रिटर्न पा जाते हैं. बहुत से लोगों का यही शुरुआती अनुभव, जीवन भर के लिए बचत की आदत और आर्थिक सुरक्षा की बुनियाद बन जाता है.
उम्मीद है कि टैक्स में सरलता की कोशिशों के साथ, नया टैक्स क़ानून किसी न किसी तरह टैक्स के ज़रिए बचत को प्रोत्साहित करता रहेगा.