PMS यानी पोर्टफ़ोलियो मैनेजमेंट सर्विसेज़ इंडस्ट्री पर काले बादल मंडरा रहे हैं. जब से कैपिटल मार्केट रेगुलेटर SEBI ने मंगलवार (16 जुलाई, 2024) को म्यूचुअल फ़ंड का कुछ बेहतर वर्जन तैयार करने का प्रस्ताव रखा है, तब से PMS डोल रहे हैं.
इसकी वजह क्या है:
- शुरुआत कम पैसे से हो सकेगी: (Lower entry barrier) जहां PMS में निवेश करने के लिए कम से कम ₹50 लाख की ज़रूरत होती है, इस नई एसेट क्लास के लिए काफ़ी कम रक़म की ज़रूरत होगी अभी तक, SEBI ने ₹10 लाख के न्यूनतम निवेश का प्रस्ताव रखा है.
- फ़ंड को निवेश की आज़ादी ज़्यादा: (Broad-ish investment mandate) हालांकि PMS में निवेश की ढेरों रणनीतियां हैं, लेकिन 'नई एसेट क्लास' भी पीछे नहीं रहेगी. अभी तक, सेबी ने नए निवेश विकल्प के लिए दो निवेश रणनीतियों का सुझाव दिया है:
- लॉन्ग-शॉर्ट इक्विटी फ़ंड: (Long-short equity fund) बाज़ारों और सेक्टरों पर नज़रिए के आधार पर, ये एक सेक्टर में लॉन्ग और दूसरे में शॉर्ट हो सकता है. मिसाल के लिए, ये एक सेक्टर में लॉन्ग (ख़रीद) और दूसरे में शॉर्ट (बेच) जाकर फ़ाइनेंशिल और फ़ार्मा दोनों सेक्टरों में निवेश कर सकता है.
- उलटा ETF/फ़ंड: (Inverse ETF/Fund) इस मामले में, अगर निफ़्टी 50 में 1 फ़ीसदी की गिरावट आती है, तो फ़ंड को 1 फ़ीसदी का मुनाफ़ा होता है.
- इसके अलावा, डेरिवेटिव का इस्तेमाल हेजिंग, पोर्टफ़ोलियो रीबैलेंसिंग और लॉन्ग और शॉर्ट पोज़ीशन लेने के लिए किया जाएगा. हालांकि, लीवरेज की इजाज़त नहीं होगी.
- अगर सेबी की बात मानी गई तो निवेश की सीमा में भी ढील दी जाएगी. मिसाल के लिए, नए प्रोडक्ट्स में किसी कंपनी में 15 फ़ीसदी तक की हिस्सेदारी और कंपनी में 15 फ़ीसदी तक का नेट एसेट हो सकेगा. दोनों मामलों में म्यूचुअल फ़ंड के लिए संबंधित लिमिट 10 फ़ीसदी है. डेट के मामले में, म्यूचुअल फ़ंड की 20 फ़ीसदी के मुक़ाबले में 25 फ़ीसदी की सेक्टरोल लिमिट होगी.
- बेहतर टैक्स स्ट्रक्चर: (Better tax structure) चूंकि निवेश का ये नया विकल्प मोटे तौर पर म्यूचुअल फ़ंड के तहत होगा, इसलिए इसे PMS के मुक़ाबले टैक्स में फ़ायदा मिलेगा. जहां PMS में निवेशक फ़ंड मैनेजर द्वारा की गई हर सेल के लिए टैक्स देना होता है, ये नई एसेट क्लास सिर्फ़ तभी निवेशक पर टैक्स लगाएगी जब वो निवेश से बाहर निकलनेगा. दूसरे शब्दों में, इस पर सिर्फ़ एक ही बार टैक्स लगेगा.
- ज़्यादा लिक्विडिटी: (Greater liquidity) म्यूचुअल फ़ंड की तरह, निवेशक अपनी ज़रूरत के हिसाब से अपना निवेश भुना सकेंगे. सेबी ने SWP (सिस्टमेटिक विड्रॉल प्लान) और STP (सिस्टमेटिक ट्रांसफ़र प्लान) देने का प्रस्ताव रखा है, जो निवेशकों के लिए बहुत अच्छी बात है. वहीं दूसरी तरफ़, PMS आमतौर पर निवेश से निकलने के मामले में ज़्यादा सख़्त होते हैं.
- विश्वसनीय फ़ंड मैनेजर: (Trusted fund managers) नए प्रोडक्ट को सिर्फ़ मौजूदा म्यूचुअल फ़ंड हाउस ही चला सकते हैं. उनके पास एक मज़बूत ट्रैक रिकॉर्ड होना चाहिए, जिसमें पिछले तीन साल में कम-से-कम ₹10,000 करोड़ के औसत एसेट्स के साथ कम-से-कम तीन साल तक चलाने का अनुभव होना चाहिए.
दूसरा विकल्प है, चीफ़ इन्वेस्टमेंट ऑफ़िसर (CIO) के पास ₹5,000 करोड़ से ज़्यादा नेट एसेट वाले फ़ंड्स के मैनेजमेंट का 10 साल से ज़्यादा का तजुर्बा हो. सेबी ने फ़ंड मैनेजरों के लिए भी अतिरिक्त दिशा-निर्देश दिए हैं. उन्हें कम-से-कम ₹3,000 करोड़ के नेट एसेट वाले फ़ंड्स के मैनेजमेंट का 7 साल से ज़्यादा का तजुर्बा होना चाहिए. - ज़्यादा पारदर्शिता: (transparency) पोर्टफ़ोलियो का हर महीने सार्वजनिक करना होगा, वहीं दूसरी ओर, PMS पर अपने पोर्टफ़ोलियो को सार्वजनिक करने की कोई मजबूरी नहीं है.
हमारी सलाह
अगर नया प्रोडक्ट अपने मौजूदा स्वरूप में साकार होता है, तो ये PMS को कड़ी टक्कर देगा, क्योंकि वे दोनों दुनिया की ख़ूबियां अपने में समेटे हैं: PMS की जोख़िम लेने की क्षमता और म्यूचुअल फ़ंड के रेगुलेशन, ट्रांसपेरेंसी और टैक्स ट्रीटमेंट के फ़ायदे.
ऐसे में, 396 मौजूदा PMS के साथ दो में से एक चीज़ होने की उम्मीद है: अच्छे ट्रैक रिकॉर्ड वाले PMS म्यूचुअल फ़ंड लाइसेंस हासिल करने की कोशिश और नए एसेट क्लास की पेशकश करने की जुगत में लग सकते हैं. या, ख़राब परफ़ॉर्म करने वाले PMS से निकाले जाएंगे क्योंकि जानकार निवेशक, ज़्यादा पारदर्शी और टैक्स के लिहाज़ से फ़ायदेमंद प्रोडक्ट की ओर रुख़ कर लेंगे.
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