इंटरव्यू

निवेश की दुनिया के दिग्गज ने बताया बेहतर प्रदर्शन का राज़

PPFAS के राजीव ठक्कर के साथ फ़ंड की विफलता और पिछड़ने को लेकर ख़ास बातचीत

निवेश की दुनिया के दिग्गज ने बताया बेहतर प्रदर्शन का राज़

अगर फ़ंड मैनेजमेंट क्रिकेट जितना लोकप्रिय होता, तो राजीव ठक्कर का नाम हर घर में जाना जाता. बहरहाल, राजीव निवेश की दुनिया में काफ़ी मशहूर हैं.

एक ऐसे जाने-माने फ़ंड मैनेजर, जिन्हें मार्केट में अपने स्पष्ट और व्यावहारिक विचारों के लिए जाना जाता है. उनकी इस क्वालिटी को हमारे इंटरव्यू में साफ़ तौर से देख सकते हैं, क्योंकि वे मौजूदा बाज़ार, नए ज़माने की कंपनियों, PSU और बेहद लोकप्रिय लेकिन वर्तमान में पिछड़ रहे पराग पारिख फ़्लेक्सी कैप फ़ंड पर अपनी राय दे रहे हैं.

यहां उनसे बातचीत के दौरान के कुछ बड़ी बातें आपके साथ शेयर की जा रही हैं...

क्या आप हमें अपने इन्वेस्टमेंट फ़्रेमवर्क के बारे में बता सकते हैं? आप कैसे तय करते हैं कि कब और किस तरह के स्टॉक को अपने पोर्टफ़ोलियो में शामिल चाहिए?

भारत दूसरे वेस्टर्न मार्केट, ख़ासकर अमेरिका से थोड़ा अलग है. अमेरिकी बाज़ार में अलग-अलग स्टेकहोल्डर्स के पास ज़्यादातर कंपनियों में बड़ी हिस्सेदारी है. अगर CEO अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रहा है, तो एक्टविस्ट आगे आकर मौजूदा मैनेजमेंट को बदलने की कोशिश कर सकता है. भले ही, फ़ैसला लेने वाले छोटे शेयरहोल्डरों को अहमियत न दें, इसके बावजूद वो कुछ एक्शन ज़रूर लेंगे.

हालांकि, भारत में ज़्यादातर कंपनियों की शेयर होल्डिंग 'प्रमोटर्स' के तौर पर माने जाने वाले लोगों के हाथों में होती है.

अब, प्रमोटर भारतीय परिवार हो सकते हैं, पब्लिक सेक्टर की कंपनियों के मामले में सरकार या MNC (मल्टी नेशनल कंपनियां) के मामले में विदेशी संस्थाएं हो सकती हैं. ये प्रमोटर आमतौर पर कंपनी के 50 से 70 फ़ीसदी के बीच के मालिक होते हैं, जिससे माइनॉरिटी शेयरहोल्डरों के पास कुछ ही विकल्प रह जाते हैं. इस मुद्दे के कारण, उन कंपनियों में निवेश करना बहुत ज़रूरी है, जहां आपको मैनेजमेंट पर भरोसा है, क्योंकि आप भारत में कोई एक्टिविज़्म नहीं कर सकते हैं, और आपको प्रमोटर और मैनेजरों के साथ रहना होगा. इसलिए, हाई क्वालिटी वाले प्रमोटर और मैनेजमेंट वाली कंपनियों में निवेश को तवज्जो देना ज़रूरी है.

दूसरा प्वाइंट है कि अलग-अलग समय में अलग-अलग इंडस्ट्री के लिए पॉज़िटिव नज़रिया होने के बावजूद, भारत में कई सेक्टर वेल्थ के लिए घातक साबित हुए हैं. इसलिए, इस तरह के सेक्टर में लगभग सभी कंपनियां बीते दौर में दिवालिया हो गई हैं. ऐसे सेक्टर से बचना भी ज़रूरी है, जिनमें वॉल्यूम में ख़ासा ग्रोथ हो, लेकिन मूल्य निर्धारण की शक्ति कम हो या कंपटीशन बहुत ज़्यादा हो, क्योंकि ऐसी स्थिति में फ़िइनेंशियल लॉस हो सकता है.

आख़िर में, हाई-लेवल के लोन ने कई कंपनियों को नुक़सान पहुंचाया है, इसलिए इससे बचना चाहिए. हम कोई भी फ़ैसला लेने से पहले वैल्यूएशन पर भी ग़ौर करते हैं.

हमने हाल ही में (2021-22 से) आपके पोर्टफ़ोलियो में कोल इंडिया, पावर ग्रिड और NMDC जैसी पब्लिक सेक्टर की ज़्यादा कंपनियां देखी हैं. सरकार ने साबित कर दिया है कि लंबे समय में वो ख़राब मालिक रही है. इसमें आपको क्या आकर्षित करता है?

इस हिसाब से सरकार एक बहुत ही अजीब प्रमोटर है. एक स्तर पर गवर्नमेंट ने कई ऐसी प्रक्रियाएं लागू की हैं जो प्राइवेट सेक्टर में मौजूद नहीं हैं. प्राइवेट सेक्टर में, एक डायरेक्टर EOI (Expression of Interest) का अनुरोध कर सकता है, प्रस्ताव के लिए अनुरोध जारी कर सकता है और अगर ज़रूरी समझा जाए, तो एक ही बोली लगाने वाले (सिंगल बिडर) का चुनाव कर सकता है. पब्लिक सेक्टर में टेंडर का प्रोसेस और CAG (Comptroller and Auditor General of India) की मौजूदगी सभी ज़रूरी सुरक्षा देती हैं.

साथ ही, सरकार शेयरहोल्डर के हित के बजाए अपने वोटर के हितों पर ज़्यादा ध्यान दे सकती है, और इसी के चलते ये अपने वोटरों की मांग के मुताबिक़ फ़ैसले लागू कर सकती है. उदाहरण के लिए, 2007-08 में, जब तेल की क़ीमतें 140-145 डॉलर प्रति बैरल पर थीं, तब ऑयल मार्केटिंग कंपनियों ने पेट्रोल या डीज़ल की क़ीमतों को नहीं बढ़ाया.राजीव ठक्कर का मानना है कि शेयरहोल्डर के नज़रिए से ये ऐसा करना ग़लत हैं. जबकि वोटर और आम जनता इस तरह की कार्रवाई स्वीकार कर सकते हैं, ऐसी कार्रवाई से लंबे समय तक PSUs (Public Sector Undertakings) को बड़ा नुक़सान होता है.

लेकिन, हाल में हमने तेल की क़ीमतों को ऊपर से नीचे जाते देखा है, और सरकार ने पहले ही पेट्रोल और डीजल की क़ीमतें बढ़ा दी हैं. मेरी राय में, सरकार का मानना ​​​​था कि इन कंपनियों को अपने पिछले घाटे की भरपाई के लिए कुछ लाभ कमाने का मौक़ा मिलना चाहिए. इसलिए, कम से कम इन दिनों, आपने न्यूनतम डिविडेंड भुगतान, कुछ कैपिटल एलोकेशन पॉलिसी जैसी चीज़ों का ऐलान किया है. मेरा मानना ​​​​है कि कुछ बदलाव हुए हैं, लेकिन सतर्क रहना ज़रूरी है. (इसके अलावा), PSUs कंपनियों का वैल्यूएशन इतना कम हो गया था कि शायद ही उसमें कोई गिरावट आई हो.

आपकी इंटरनेशनल पोज़ीशन - अल्फाबेट, माइक्रोसॉफ्ट, मेटा, अमेज़ॅन, और दूसरे के बीच- अच्छी रही हैं. अगर RBI उनमें फिर से निवेश की अनुमति देता है, तो क्या वो अभी भी आपके पोर्टफ़ोलियो में ज़्यादा से ज़्यादा संभव स्थिति पाएंगे? क्या ये वैल्यू काफ़ी है?
ये पूरी तरह से इस पर निर्भर करता है कि लिमिट में ग्रोथ कब होती है और उस समय क़ीमत या मौक़े क्या हैं. अगर हम लिमिट खोलते हैं, तो हम मुमक़िन तौर से अपने फ़ॉरेन एलोकेशन को बढ़ा सकते हैं. हम भारतीय इक्विटी में 70 फ़ीसदी और विदेशी बाज़ार में 30 फ़ीसदी एलोकेशन चाहते हैं.

आपके फ़्लेक्सी-कैप फ़ंड ने हाल के साल में ख़ासा तौर से शानदार प्रदर्शन किया है, लेकिन पिछले साल ये अपने साथियों से थोड़ा पीछे रहा था.

ऐसे दौर भी आएंगे जब हम कम प्रदर्शन करेंगे, और हमने अपने यूनिट होल्डर को इस बारे में बताया है. वर्तमान में, मैं वास्तव में कम प्रदर्शन करके खुश हूं. इस चीज़ की खेल से तुलना करें तो हाल ही में हमने टी-20 वर्ल्ड कप खेला था. तो, मान लीजिए कि आप मैच जीतने के लिए बल्लेबाज़ी कर रहे हैं, और आपको एक विकेट के साथ छह ओवर में पांच रन बनाने की ज़रूरत है. अब, क्या आप सिक्स लगाएंगे या सिंगल रन बनाकर संतुष्ट रहेंगे? बढ़े हुए वैल्युएशन और बाज़ार में उतार-चढ़ाव के दौर में सावधानी से आगे बढ़ने की सलाह दी जाती है. ये जोख़िम लेने का समय नहीं है; ये कोविड के बाद की स्थिति नहीं है जहां आपको अपने बैंक अकाउंट में एक-एक रुपया निवेश करना चाहिए. इस बाज़ार में, मौक़े के लिए कुछ कैश रखना, स्टॉक सिलेक्शन के बारे में थोड़ा कंज़रवेटिव होना और आपके द्वारा भुगतान किए जाने वाले वैल्यूएशन को लेकर जागरुक रहना फ़ायदेमंद है.

आपने बताया कि लॉन्ग टर्म के रिटर्न अच्छे हैं. ख़राब प्रदर्शन के बावजूद, हम लगभग 39 फ़ीसदी (एक साल का रिटर्न) पर हैं, जबकि इंडेक्स (BSE 500) से थोड़ा ज़्यादा है. अब, सही तौर पर , 39 फ़ीसदी रिटर्न भी अच्छा लग रहा है. इसलिए, अगर पोर्टफ़ोलियो इंडेक्स या दूसरे साथियों के ग्रुप के साथ तालमेल नहीं रखता है, तो हो सकता है की हम पूरे साइकल में अच्छा प्रदर्शन करने और ग्राहकों के पैसे गंवा न दिए जाएं इसकी कोशिश कर रहे हैं.

उन शेयरों के बारे में क्या जो सफ़ल नहीं हुए (जैसे नोएडा टोल ब्रिज)? क्या आप कुछ बड़ी ग़लतियों और सीखे गए सबक़ के बारे में बता सकते हैं?

सबसे पहले ये जान लेते हैं कि ग़लती क्या है. इस विषय में रुचि रखने वालों को एनी ड्यूक की 'थिंकिंग इन बेट्स' पढ़नी चाहिए. रिज़ल्ट ये तय नहीं करता है कि ये ग़लती थी या नहीं, लेकिन प्रॉसेस ये तय करता है कि आप अपने नज़रिए में सही थे या नहीं. इसलिए, इक्विटी निवेश शतरंज से अलग है; ये ताश खेलने जैसा है, जहां आप केवल अपने कार्ड देख सकते हैं, इस बात से अनजान कि दूसरे क्या रख रहे हैं.

जब आप इक्विटी निवेश करते हैं, तो आप बीते व्यवहार पर मैनजमेंट क्वालिटी चेक कर सकते हैं, सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध डेटा के आधार पर इंडस्ट्री के रुझान की जांच कर सकते हैं और वैल्यूएशन फ़िल्टर लागू कर सकते हैं, लेकिन क्या आप भविष्यवाणी कर सकते हैं कि कोविड होगा या नहीं? क्या आप भविष्यवाणी कर सकते हैं कि अदालतें क्या करेंगी या प्रतिद्वंद्वी आगे क्या कर सकता है? आपके कंट्रोल से बाहर बहुत सारी चीज़ें हैं, और कई बार, वे आपके कुछ निवेश को काम नहीं करने देंगे.

किसी भी दौरान, आपके द्वारा निवेश किए गए 20 शेयर में से पांच अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकते हैं, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि आपका तरीक़ा ग़लत था.

इसलिए, सबसे बड़ी ग़लती ऐसा निवेश करना है जहां कॉर्पोरेट एडमिनिस्ट्रेशन बहुत अच्छा नहीं है. ग़लतियां तब होती हैं जब आप अपनी इन्वेस्टमेंट प्रोसेस में सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध जानकारी को शामिल करने में विफल रहते हैं, जिससे फ़ाइनेंशियल लॉस होता है. ये ऐसी ग़लतियां हैं जिन्हें हम लगातार सुधारने की कोशिश करते हैं. आज का तरीक़ा, मुझे लगता है, 10 साल पहले की तुलना में काफ़ी बेहतर है, लेकिन ज़रूरी नहीं कि हम किसी एक ख़ास स्टॉक पर ध्यान दें जो काम करता है या नहीं करता है.

आपके पास काफ़ी कैश है (क़रीब 16 फ़ीसदी कर्ज में). आप इस पैसे को कब लगाना शुरू करेंगे?

हम अपने पास मौजूद पैसे को निवेश करने की कोशिश करते हैं और जब हमें अच्छे मौक़े नहीं मिलते है, तो कुछ पैसे बैंक अकाउंट में पड़े रहते हैं.

एक बात जो समझनी चाहिए वह ये है कि हम मौजूदा माहौल में बैंक CD (Certificate of Deposit) पर 7.5 फ़ीसदी कमा रहे हैं. अब, लॉग-टर्म में इक्विटी ने 12 से 15 फ़ीसदी के बीच रिटर्न दिया है. इसलिए, सालाना आधार पर, हम लगभग 7.5 फ़ीसदी खो रहे हैं. 12 महीने के दौरान, अगर उतार-चढ़ाव होता है, पूरे बाज़ार में नहीं बल्कि व्यक्तिगत शेयरों में, जैसे कि एडवर्स न्यूज के चलते कोई शेयर 10 फ़ीसदी गिर जाता है, तो ये हमारे लिए निवेश करने का मौक़ा देते हैं.

उदाहरण के लिए, जून के पहले सप्ताह में, एग्ज़िट पोल के ऐलान के बाद, कुछ व्यक्तिगत शेयरों में ग्रोथ देखी गई, लेकिन अगले ही दिन 13 फ़ीसदी की गिरावट देखी गई. अगर आपके बैंक खाते में कुछ पैसे हैं, तो आप कार्रवाई कर सकते हैं. हालांकि, अगर आप लगातार अपना सारा पैसा निवेश करते हैं, तो आप किसी भी असरदार मौक़े का फ़ायदा नहीं उठा पाएंगे. इसलिए, हम अपनी यात्रा के दौरान ऐसे कई मौक़ों का सामना करते हैं.

आपकी राय में, अभी कौन सा मार्केट सेगमेंट ओवरवैल्यूड है, और आपको कहां बहुत ज़्यादा अटकलें लगी हैं?

औसतन, कुछ साल में लिस्टिंग स्टार्ट-अप कंपनियां महंगी लगती हैं. वो एक ग्रुप के रूप में ख़राब प्रदर्शन करेंगी, लेकिन एक या दो कंपनियां बेहतर प्रदर्शन कर सकती हैं. वैल्यूएशन के नज़रिए से, कंज़प्शन ओरिएंट नाम, रिटेलर और FMCG (फ़ास्ट-मूविंग कंज़्यूमर कंपनियां) पिछले कुछ महीनों में कुछ मूल्य सुधारों के बावजूद महंगी लगती हैं. मोटे तौर पर, छोटी कंपनियों की क़ीमत में बड़ी ग्रोथ हुई है, और उनमें से कुछ बहुत महंगी लग रही हैं.

नए ज़माने की टेक कंपनियों के बारे में आपका क्या कहना है?

हम उन पर नज़र रखते हैं, लेकिन हमने उन्हें अभी तक नहीं ख़राीदा है. फिर भी, उनमें से कुछ दिलचस्प बिज़नेस मॉडल बनाते हैं, और हम उनको फ़ॉलो करते हैं.

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