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'रोम एक दिन में नहीं बना' - एक ऐसी कहावत, जिसे आपने अनगिनत बार सुना होगा. कहावत का मतलब है कि रोम को प्राचीन दुनिया के सबसे महान शहरों में से एक बनाने में सदियां लग गईं (क़रीब 870 साल).
यही उसूल, आपके स्टॉक निवेश पर भी लागू होता है. एक ही रात में एक क़ामयाब स्टॉक निवेशक नहीं बना जा सकता. अपनी स्वाभाविक समझ (इंट्यूशन) को जानकारियों के साथ जोड़ना, अपने स्वभाव को समझना और उस पर भरोसा करना, और निवेश के ऐसे अच्छे मौक़े पता करने की कला सीखना जिनके बारे में दूसरों को पता न हो, इस सब में बरसों का अभ्यास लगता है. फिर भी, निवेश की शुरुआत के लिए भी एक मज़बूत ढांचा होना ज़रूरी है.
शुक्र है 'वैल्यू इन्वेस्टिंग के जनक' बेंजामिन ग्राहम ने इस मुश्किल सफ़र को आगे बढ़ाने के लिए एक रोडमैप दिया है. उनकी किताब 'द इंटेलिजेंट इन्वेस्टर' ने ऐसा ख़ाका पेश किया, जिसे जेसन ज़्विग ने अपने संस्करण में और ज़्यादा विस्तार से लिखा, जिससे इसे समझना सभी के लिए आसान हो गया.
आइए इन पांच उसूलों (सिद्धांतों) पर विस्तार से बात करें.
1) स्टॉक सिर्फ़ एक टिकर सिंबल या इलेक्ट्रॉनिक ब्लिप नहीं है; ये एक असल बिज़नस के स्वामित्व का सिग्नल (हित) है जिसकी वैल्यू उसके शेयर के दामों पर निर्भर नहीं होती.
स्टॉक में निवेश करके, आप किसी कंपनी की ग्रोथ की कहानी का हिस्सा बन जाते हैं. आप एक बिज़नस के सफ़र का हिस्सा बन जाते हैं, जिसमें, स्टॉक के दामों के उतार-चढ़ाव का रोमांच, महज़ एक छोटा सा हिस्सा भर होता है. याद रखें, स्टॉक का असली गिफ़्ट उसके बिज़नस के परफ़ॉर्मेंस में है न कि सिर्फ़ उसके शेयर के दामों में.
टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज़ का मामला लेते हैं. पिछले सात क़ारोबारी दिनों में (2 जुलाई, 2024 तक), इसके शेयर की क़ीमत में 0.22, 0.57, 0.44, 2.01, -0.73, 1.75 और 1.07 फ़ीसदी का उतार-चढ़ाव आया है. लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि बिज़नस की असल वैल्यू भी इसी तरह उतार-चढ़ाव वाली रही है.
2) बाज़ार एक पेंडुलम है जो हमेशा अस्थिर आशावाद (जो शेयरों को बहुत महंगा बनाता है) और अनुचित निराशावाद (जो उन्हें बहुत सस्ता बनाता है) के बीच झूलता रहता है. अक्लमंद निवेशक, एक यथार्थवादी होता है जो आशावादी लोगों को बेचता है और निराशावादियों से ख़रीदता है.
अगर आप किसी तजुर्बेकार निवेशक से शेयर बाज़ार के स्वभाव के बारे में पूछें, तो वे इसे 'साइक्लिकल'(चक्रीय) कहेंगे. शेयर बाज़ार नियमित रूप से आशावाद और निराशावाद के बीच झूलते रहते हैं.
मिसाल के लिए, सेंसेक्स, जो भारत के प्रमुख सूचकांकों में से है, 1999 के निचले स्तर से दोगुना से ज़्यादा बढ़कर 2000 में डॉट-कॉम बुलबुले के दौरान अपने टॉप पर पहुंच गया. वहां से, अगले दो सालों में ये क़रीब 60 फ़ीसदी तक गिर गया.
इसी तरह का पैटर्न तब देखा गया जब सेंसेक्स FY03 में अपने सबसे निचले स्तर से FY08 तक सात गुना से ज़्यादा बढ़ गया. हालांकि, अगले एक साल में, इसमें 60 फ़ीसदी से ज़्यादा की गिरावट आई. इन उतार-चढ़ावों का मुख्य कारण ब्याज दर में बदलाव, राजनीति, तकनीकी सफलताएं, प्राकृतिक आपदाएं, आदि रहीं.
ऐसी हालात में, एक आम निवेशक घबरा सकता है और जल्दबाज़ी में अपने निवेश को वापस ले सकता है. हालांकि, एक होशियार निवेशक बाज़ार के मूड स्विंग से परे देखेगा और लॉन्ग टर्म वैल्यू के आधार पर फ़ैसला लेगा.
3) हर निवेश की भविष्य की वैल्यू उसकी मौजूदा क़ीमत का एक फ़ंक्शन होता है. आप जितनी ज़्यादा क़ीमत चुकाएंगे, आपका रिटर्न उतना ही कम होगा.
शेयर निवेश के लिए मुश्किल गणित के कैलकुलेशन की ज़रूरत नहीं होती. आपको बस 'चक्रवृद्धि ब्याज' यानी कंपाउंड इन्टर्स्ट का कॉन्सेप्ट जानने की ज़रूरत है, जिसका कैलकुलेशन इस तरह किया जाता है:
FV = PV x (1 + r)^n
जहां
FV भविष्य की वैल्यू है
PV मौजूदा वैल्यू है
r ब्याज दर है, और
n सालों की संख्या है
फ़ॉर्मूला साफ़ तौर से बताता है कि कम मौजूदा वैल्यू के नतीजे में समान भविष्य की वैल्यू और साल की संख्या के लिए चक्रवृद्धि की दर ऊंची होगी. हालांकि, इसमें भी एक पेंच है.
जब बात निवेश की हो, तो कई लोग समय अवधि (n) के बजाय ब्याज दर (r) पर ध्यान लगाते हैं. हालांकि, ये 'n' ही है जो हक़ीक़त में चक्रवृद्धि को संभव बनाती है. जबकि एक ऊंचा 'r' निश्चित रूप से पसंद किया जाता है, लेकिन 'n' की भूमिका को नज़रअंदाज़ नहीं करना ज़रूरी होता है, क्योंकि लंबे समय तक एक अच्छा रिटर्न बनाए रखना आपके पैसे के लिए चमत्कार कर सकता है.
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4) चाहे आप कितने ही सावधान क्यों न हों, एक जोख़िम जिसे कोई भी निवेशक कभी ख़त्म नहीं कर सकता, वो है ग़लत होने का जोख़िम. ग्राहम ने जिसे "सुरक्षा का मार्जिन" कहा है, उस पर ज़ोर देते हुए कहा है - चाहे निवेश कितना भी रोमांचक क्यों न लगे, कभी ज़्यादा पेमेंट न करें - इसी तरह आप अपनी ग़लती की संभावनाओं को कम कर सकते हैं.
सभी निवेशक ग़लतियां करते हैं. फिर भी, कुछ निवेशक क़ामयाब होते हैं जबकि कुछ नहीं.
क़ामयाब और नाकाम निवेशकों के बीच बड़ा अंतर ये है कि क़ामयाब निवेशकों की ग़लतियों का उनके पोर्टफ़ोलियो के परफ़ॉर्मेंस पर बहुत कम असर पड़ता है. ऐसा इसलिए, क्योंकि ऐसे निवेशक 'सेफ़्टी के मार्जिन' के अहमियत समझते हैं.
'सेफ़्टी मार्जिन' से हमारा क्या मतलब है? मान लीजिए, इंजीनियरों और ठेकेदारों की एक टीम पुल बना रही है, जिसे कुल 20,000 किलोग्राम वज़न सहने की ज़रूरत है. वे इसे बिल्कुल उसी वज़न को संभालने के लिए डिज़ाइन नहीं करने जा रहे हैं. इसके बजाय, वे पुल को इस तरह से बनाएंगे कि ये 25,000 किलोग्राम या 30,000 किलोग्राम तक का भार सह सके. इस मामले में, ये और ज़्यादा वज़न या क्षमता ही सेफ़्टी मार्जिन है. ये तय करता है कि अगर अचानक भार बढ़ जाए तब भी पुल सुरक्षित बना रहे.
इसी तरह, आपको शेयरों में निवेश करते वक़्त सुरक्षा के मार्जिन पर ध्यान देना चाहिए. किसी कंपनी की क़ीमत उसके मूल सिद्धांतों के आधार पर ₹100 प्रति शेयर लग सकती है. अलग-अलग कारणों के आधार पर, आप इसे ₹60 या ₹80 पर ख़रीदना चाह सकते हैं. छूट वाली क़ीमत आपके विश्लेषण में कमियों या बाज़ार या बिज़नस में अचानक बदलावों के खिलाफ़ एक कुशन या बफ़र देती हैं.
5) पैसों के लेकर आपकी क़ामयाबी का रहस्य आपके भीतर है... अपने अनुशासन और साहस को विकसित कर, आप दूसरों के मूड स्विंग को अपनी फ़ाइनेंशियल क़िस्मत पर हावी होने से रोक सकते हैं.
निवेश की दुनिया में, आपका सबसे बड़ा विरोधी अक्सर आप ख़ुद ही होते हैं. ऐसा इसलिए, क्योंकि शेयर बाज़ार बाज़ार के सभी हिस्सेदारों की राय और भावनाओं का एक मिक्सचर है. दूसरों के मूड स्विंग से प्रभावित न होने और संयमित रहने के लिए काफ़ी आत्म-अनुशासन और साहस की ज़रूरत होती है. स्वाभाविक तौर पर, इस तरह के कौशल में महारत हासिल करने के लिए सालों के धैर्य और दृढ़ता की ज़रूरत होती है.
अगर आपको याद हो, तो कोविड-19 महामारी की शुरुआत में जब दुनिया भर की सरकारों ने देशव्यापी लॉकडाउन का ऐलान किया था, तब शेयर बाज़ारों में भारी गिरावट आई थी. कई लोग अपने निवेश को बेचकर किनारे बैठ गए और इंतज़ार करने में ही खुश थे. हालांकि, महामारी के शुरुआती महीनों (मार्च-मई 2020) में शेयर ख़रीदने वाले निवेशकों ने अगले कुछ सालों में असाधारण रिटर्न का मज़ा लिया (या अभी भी ले रहे हैं).
एक निवेशक के तौर पर आपके लिए क्या ज़रूरी है?
ऊपर दिए गए सभी उसूल या सिद्धांत या नियम आपस में गुंथे हुए हैं. एक साथ मिलकर, ये शेयर बाज़ार में स्थायी क़ामयाबी तय करने की एक तार्किक और मज़बूत रूपरेखा देते हैं.
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