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₹37,000 करोड़ संभालने वाली चीनू गुप्ता कैसे चुनती हैं स्टॉक्स? 6 प्वाइंट्स में समझें

HSBC म्यूचुअल फ़ंड की फ़ंड मैनेजर कहती हैं कि कंपनी के ऑपरेशन की शुरुआती जांच के बाद, अगला पड़ाव वैल्यूएशन का होता है

₹37,000 करोड़ संभालने वाली चीनू गुप्ता कैसे चुनती हैं स्टॉक्स? 6 प्वाइंट्स में समझें

Cheenu Gupta Fund Manager: चीनू गुप्ता HSBC म्यूचुअल फ़ंड में इक्विटी फ़ंड मैनेजमेंट की वाइस-प्रेसिडेंट हैं और ₹37,000 करोड़ से ज़्यादा की एसेट को मैनेज करती हैं. हम यहां उनकी स्टॉक्स के सलेक्शन और निवेश की स्ट्रैटजी के बारे में बता रहे हैं.

1. स्टॉक चुनने में वैल्यूएशन का महत्व

चीनू गुप्ता कहती हैं कि कंपनी के ऑपरेशन के बारे में शुरुआती जांच के बाद, अगला पड़ाव आमतौर पर वैल्यूएशन का होता है. एक एनेलिस्ट के रूप में, मैंने सीखा कि किसी अच्छी कंपनी को लेकर मौक़ा गंवाने की तुलना में वैल्यूएशन को लेकर ग़लती करना ज़्यादा बड़ी बात है. हम P/E रेशियो भी देखते हैं और बाक़ी कंपनियों से भी तुलना करते हैं. वैल्यूएशन सिर्फ़ एक पैरामीटर है. एक बेहतरीन कंपनी बनाने या एक बेहतरीन स्टॉक चुनने में कई दूसरी चीजें भी शामिल होती हैं. ये कुछ बड़े सबक हैं जो मैंने समय के साथ सीखे.

2. इन्वेस्टमेंट स्टाइल

मेरा इन्वेस्टमेंट स्टाइल थोड़ी ज़्यादा ग्रोथ-ओरिएंटेड रही है. भारत जैसी बढ़ती अर्थव्यवस्था में 'ग्रोथ' के मायने कहीं ज़्यादा हैं.

मुझे ये जानने में भी दिलचस्पी रहती है कि कोई कंपनी या इंडस्ट्री अचानक कैसे अपना रास्ता बदल रही है. ये बदलाव इंडस्ट्री के डायनामिक्स से लेकर रेगुलेटरी बदलावों तक कुछ भी हो सकते हैं. उदाहरण के लिए, भारत में 15 साल पहले गुड्स की विशेष कैटेगरी की डिमांड थी, लेकिन ये डिमांड आजकल प्रीमियमाइज़ेशन में तब्दील हो चुकी है. इसलिए, इंडस्ट्री के अंदर या किसी कंपनी में इन बदलते पैटर्न को देखकर मैं उत्साहित होती हूं. हममें से ज़्यादातर लोग उन कंपनियों में निवेश करने के बारे में सोचते हैं जिनका रिटर्न रेशियो अच्छा होता है और कैश फ़्लो भी अच्छा होता है. हालांकि, कई ऐसे विशेष सेक्टर या इंडस्ट्री भी मौज़ूद होते है जहां रिटर्न रेशियो तो कम होता हैं पर अब इसमें सुधार हो रहा होता है. मुझे ऐसी स्थितियां पसंद हैं.

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3. कोई स्टॉक कैसे 'मस्ट-बाय'' बनता है

हम अक्सर ये मानते हैं कि किसी विशेष कंपनी को ब्रॉड इंडस्ट्री डायनामिक्स के अनुरूप प्रदर्शन करना चाहिए. हालांकि, कुछ कंपनियां संबंधित इंडस्ट्री या अपने साथियों से बेहतर प्रदर्शन करती हैं. ऐसा नहीं है कि वे सिर्फ़ एक या दो तिमाहियों में बेहतर प्रदर्शन करती हैं, बल्कि उनके संबंधित बिज़नस में कुछ अलग होता है जो उन्हें रिटर्न और स्थिरता के मामले में बढ़त देता है. इसकी वजह उन कंपनियों की बेहतरीन डिस्ट्रीब्यूशन क्षमता, संजीदा हालातों में चुस्त और दुरुस्त मैनेजमेंट, या उनके प्रोडक्ट की ज़्यादा डिमांड हो सकती हैं. ये फ़ैक्टर इन कंपनियों को अपने साथियों से बेहतर प्रदर्शन करने में मदद करते हैं, और मेरी राय में ये हमें भी आकर्षित करते हैं.

4. इंडस्ट्रियल सेक्टर में बड़े निवेश की रणनीतिक वजह

पिछले 7-8 साल से इंडस्ट्रियल सेक्टर की ग्रोथ कम है. हमने इस इंडस्ट्री में निवेश में बड़ी गिरावट देखी है. अब भी, capex सिर्फ़ केंद्र या राज्य सरकारों की ओर से आता है. हालांकि, मेरा मानना ​​है कि ये सेक्टर एक बड़े बदलाव से गुज़र रहा है, और ये बदलाव धीरे-धीरे आ रहा है. हमारा मानना ​​है कि सरकारी ख़र्च के अलावा, अब कंपनियां और इंडस्ट्री भी इंफ़्रास्ट्रक्चर, रेलवे, या पॉवर सेक्टर में निवेश और अपनी कैपिटल बढ़ाना शुरू कर देंगी. इसलिए, ये सभी फ़ैक्टर इस विशेष समय में इंडस्ट्रियल सेक्टर को एक आकर्षक विकल्प बनाते हैं.

5. मिड और स्मॉल-कैप शेयरों में तेज़ी!

हमने मिड और स्मॉल-कैप शेयरों में ज़ोरदार तेज़ी देखी है, और समय के साथ जो बदला है वो है कंफ़र्ट और वैल्यूएशन. डेढ़ साल पहले, हम ख़ास तौर पर स्मॉल कैप में लगभग 14-15 गुना अर्निंग वाले अच्छे आइडिया खोज सकते थे. आज, हम लगभग 20-22 गुना देख रहे हैं. ग्रोथ ड्राइवर वाली अपनी भूमिका के कारण मिडकैप महंगे बने हुए हैं. भारत की टॉप 100 कंपनियों के बाद, बाक़ी 150 कंपनियां मिड-कैप हैं, इसलिए उनका प्रदर्शन बेहतर हो सकता है. इसलिए हमें डिस्क्रिशनरी कंज़म्प्शन जैसी कैटेगरी में अभी भी बहुत सारे अच्छे आइडिया मिल रहे हैं. हम सभी जानते हैं कि भारत में प्रति व्यक्ति कंज़म्प्शन में बढ़ोतरी हो रही है, जो डिस्क्रिशनरी कंज़म्प्शन को विशेष रूप से आकर्षक कैटेगरी बनाती है..

दूसरी कैटेगरी मैन्युफ़ैक्चरिंग है, और मुझे उम्मीद है कि इस सेक्टर में बड़ी संख्या में मिड और स्मॉल-कैप कंपनियां उभरेंगी.

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6. ऐसे सेक्टर जिनमें इस समय वैल्यू की संभावना दिखती है

आज के मार्केट में वैल्यू ढूंढ़ना मुश्किल है. अगर आप सिर्फ़ P/E रेशियो देखते हैं तो ये और भी चुनौती भरा हो जाता है. शायद यही वजह है कि हम एक दूसरे मीट्रिक की जांच कर रहे हैं, जैसे कि PEG रेशियो, जो P/E रेशियो की तुलना ग्रोथ से करता है. जैसा कि मैंने पहले बताया, हम इस समय इंडस्ट्रियल्स, इंफ़्रास्ट्रक्चर, मैन्युफ़ैक्चरिंग, और डिस्क्रिशनरी कंज़म्प्शन जैसे सेक्टरों में दिलचस्पी ले रहे हैं. अपने अलग-अलग सब-सेक्टर जैसे ऑटो एंसिलरी, रेलवे कंपोनेंट सप्लायर, और पॉवर सेक्टर के साथ, इंडस्ट्रियल सेक्टर हमें कई आइडिया देता है. सरकार इंफ़्रास्ट्रक्चर के विकास पर काफ़ी ज़ोर दे रही है, जो कि दिलचस्प बात है क्योंकि इससे पूरे देश में कई एयरपोर्ट, पोर्ट और दूसरे इंफ़्रास्ट्रक्चर का विकास होगा.

चीनू गुप्ता का पूरा इंटरव्यू पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.


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