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मोतीलाल ओसवाल फ़ाइनेंशियल सर्विसेज़ के को-फ़ाउंडर की तरह निवेश कैसे करें

Motilal Oswal Financial Services के रामदेव अग्रवाल से उनकी इन्वेस्टमेंट फ़िलॉसफ़ी पर बातचीत

मोतीलाल ओसवाल फ़ाइनेंशियल सर्विसेज़ के को-फ़ाउंडर की तरह निवेश कैसे करें

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क्या आपने कभी सोचा है कि दिग्गज निवेशक वॉरेन बफ़े की समझ बड़ी फ़ाइनेंशियल कंपनियों की रणनीतियों को कैसे आकार दे सकती है? मोतीलाल ओसवाल फ़ाइनेंशियल सर्विसेज़ के को-फ़ाउंडर रामदेव अग्रवाल से मिलते हैं, जो अपनी क़ामयाबी का श्रेय बफे़ के सिद्धांतों को देते हैं.

2007 में बर्कशायर हैथवे के शेयरधारकों को लिखे अपने सालाना पत्र में वॉरेन बफ़े ने शानदार, बढ़िया और बेहद ख़राब' बिज़नसों पर चर्चा की. ये पत्र अग्रवाल को पसंद आया और उन्होंने इसके आधार पर अपनी निवेश शैली विकसित की, जिसे QGLP कहा जाता है.

QGLP का मतलब क्वालिटी (बिज़नस और मैनेजमेंट), ग्रोथ (कमाई में), लंबे समय (क्वॉलिटी और ग्रोथ), और प्राइस (सही वैल्युएशन) है. इस निवेश शैली से मिली क़ामयाबी ने अग्रवाल को 'The QGLP Checklist 25 Questions Frameworks' नाम की क़िताब लिखने के लिए प्रेरित किया.

हम रेकमेंड करते हैं कि निवेश में दिलचस्पी रखने वाले सभी निवेशक इस क़िताब को पढ़ें. मगर आपकी सहूलियत के लिए यहां हम बता रहे हैं कि QGLP से आपको अपने निवेश के बारे में क्या पता चलेगा. रामदेव अग्रवाल से बातचीत का सारांश यहां दिया जा रहा है.

Q-क्वालिटी

क्वालिटी वाली कंपनियों में निवेश करना सीधी-सादी बात लगती है. लेकिन क्वॉलिटी का पता करना जितना आसान लगता है उतना है नहीं. अग्रवाल क्वॉलिटी को दो फ़ैक्टर के जोड़ के तौर पर देखते हैं: बिज़नस की क्वॉलिटी और मैनेजमेंट की क्वॉलिटी.

पहले वाले फ़ैक्टर का मूल्यांकन आसान है. अग्रवाल के मुताबिक़, एक क्वालिटी बिज़नस को अपनी इंडस्ट्री में अव्वल होना चाहिए, ख़ासतौर परः कंज़्यूमर वाली इंडस्ट्री में. इसके अलावा इसका नेतृत्व एकाधिकार (monopoly), द्वयधिकार (duopoly) या अल्पाधिकार (oligopoly) के तौर पर होना चाहिए. आख़िर में, एक क्वालिटी बिज़नस पर ज़्यादा में क़र्ज़ (debt) नहीं होना चाहिए.

ये समझना कि मैनेजमेंट क्वालिटी सही है या नहीं, काफ़ी पेचीदा काम है. हालांकि, अग्रवाल ने पिछले कुछ सालों में कुछ तरीक़ों की खोज निकाले हैं. उनकी क़िताब में ज़िक्र किया गया है कि क्वॉलिटी का मैनेजमेंट भरोसेमंद होना चाहिए, कुशलता से पूंजी का आवंटन (एलोकेशन) होना चाहिए, ये पारदर्शी होना चाहिए और शेयरधारकों को ठीक से जानकारियां दी जानी चाहिए.

G-ग्रोथ

क्वॉलिटी ज़रूरी है, लेकिन ग्रोथ के बिना पैसा नहीं बनाया जा सकता. अग्रवाल ने निवेशकों को क्वॉलिटी ट्रैप, यानी धीमी ग्रोथ वाली हाई क्वालिटी वाली कंपनियों को लेकर चेतावनी दी है. इसके अलावा, वो निवेशकों से बढ़ती कंपनियों के साफ़ संकेत देखने के लिए कहते हैं, जैसे क्षमता विस्तार, नए प्रोडक्ट का लॉन्च, नए इलाक़ों में प्रवेश, अधिग्रहण करना आदि.

L-लॉन्जीविटी

लॉन्जीविटी यानी लंबी उम्र. जैसा कि अग्रवाल कहते हैं, फॉर्म टेंपरेरी होता है, और क्लास परमानेंट. इस बात पर उनका आगे कहना है कि मज़बूत क्वॉलिटी और मज़बूत ग्रोथ ही पूंजी सृजन कर सकती है अगर ये लंबे समय तक क़ायम रहें. इसलिए, निवेशकों के लिए ये पक्का करना ज़रूरी है कि कंपनी की क़िस्मत को आगे बढ़ाने वाले फ़ैक्टर टिकाऊ हों.

P-प्राइस

जिन निवेशों से सबसे ज़्यादा उम्मीद होती है उनके लिए भी वैल्युएशन अक्सर सबसे बड़ी मुश्किल साबित होती है. अग्रवाल सदियों पुरानी कहावत दोहराते हैं कि प्राइस या क़ीमत वो है जिसे आप चुकाते हैं और वैल्यू वो है जो आपको मिलती है. इसलिए, स्टॉक तभी आकर्षक होते हैं जब उनकी क़ीमत या प्राइस उनकी वैल्यू से कम होता है. निवेशकों को ये पता करना चाहिए कि स्टॉक से मिलने वाले फ़ायदे के लिए उसकी क़ीमत सही है या नहीं.

ऊपर कही गई बात अग्रवाल के फ़्रेमवर्क की हमारी व्याख्या है. QGLP पर ज़्यादा गहराई से जानने के लिए, आप क़िताब पढ़ सकते हैं.

लेकिन, अगर आपके मन में कोई सवाल है कि इस समय में कौन से स्टॉक QGLP के दायरे में फ़िट होंगे, तो इसकी चिंता मत करें. आप हमारे स्टॉक स्क्रीनर पर आपको QGLP के मुताबिक़ स्टॉक मिल जाएंगे.

आपकी जानकारी के लिए यहां वो फ़िल्टर दे रहे हैं जिनका हमने इस्तेमाल किया है:

  • पिछले पांच साल में, हर साल का ROCE >15 फ़ीसदी रहा.
  • पिछले तीन साल में, हर साल डेट-टू-इक्विटी एक से कम रहा.
  • पांच साल के संचयी (cumulative) CFO से पांच साल के संचयी EBITDA 70 फ़ीसदी से ज़्यादा (बिज़नस क्वॉलिटी दिखाता है)
  • पिछले तीन साल में, हर साल में डेविडेंड पे-आउट रेशियो 0-30 फ़ीसदी के बीच रहा हो. ये पक्का करता है कि मैनेजमेंट नियमित रूप से शेयरधारकों तक फ़ायदा पहुंचाता है.
  • पिछले एक साल में प्रमोटर की हिस्सेदारी 50 फ़ीसदी से ज़्यादा रही हो (मैनेजमेंट बिज़नस में शामिल दिखे).
  • पिछले पांच साल में सालाना रेवेन्यू, ऑपरेटिंग प्रॉफ़िट और प्रोफ़िट आफ़्टर टैक्स में कम से कम 15 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा हुआ हो.

कृपया ध्यान दें, उपर दिए प्वाइंट स्टॉक चुनने के प्रोसेस के लिए सिर्फ़ एक ठोस शुरुआती आधार देते हैं. ये स्टॉक की सिफ़ारिश नहीं है. सभी निवेशकों को निवेश से पहले हर शेयर पर गहरी रिसर्च करनी चाहिए.

ये भी पढ़िए- अपने Mutual Fund को अलविदा कहने का सही समय कब होता है?


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