इंटरव्यू

SBI म्यूचुअल फ़ंड के दिनेश बालाचंद्रन ₹81,800 करोड़ के एसेट कैसे मैनेज करते हैं?

आइए मिलते हैं SBI इक्विटी के प्रमुख से और जानते हैं उनकी इंवेस्टमेंट फ़िलॉसफ़ी. आख़िर कौन से निवेश के मौक़े हैं जो उन्हें उत्साह से भर देते हैं

SBI म्यूचुअल फ़ंड के दिनेश बालाचंद्रन ₹81,800 करोड़ के एसेट कैसे मैनेज करते हैं?

दिनेश बालाचंद्रन पिछले 12 साल से SBI फ़ंड मैनेजमेंट के टॉप पर हैं. एक अनुभवी फ़िक्स्ड इनकम एनेलिस्ट, बालाचंद्रन ने फ़िडेलिटी इन्वेस्टमेंट्स यूएसए में एक दशक लंबे अनुभव के बाद अपना फ़ोकस भारतीय इक्विटी बाज़ारों की ओर किया है.

अभी, बालाचंद्रन SBI म्यूचुअल फ़ंड में इक्विटी के प्रमुख हैं, जहां वो चार स्कीमों - SBI बैलेंस्ड एडवांटेज फ़ंड,SBI कॉन्ट्रा फ़ंड,SBI लॉन्ग टर्म इक्विटी फ़ंड और SBI मल्टी एसेट एलोकेशन फ़ंड देख रहे हैं - इन फ़ंड्स के एसेट्स की क़ीमत क़रीब ₹81,800 करोड़ है.

इस इंटरव्यू में, IIT से पढ़े बालाचंद्रन ने फ़िक्स्ड इनकम मैनेजमेंट से लेकर भारतीय इक्विटी बाज़ारों पर ध्यान केंद्रित करने तक के अपने करियर के सभी बदलाव के बारे में बात की है, साथ ही उन कारणों की बात भी बताया जो किसी स्टॉक को ख़रीदने के लिए आकर्षक बनाते हैं और सबसे बड़ी बात ये कि पहली बार निवेश करने वाले इस समय के बाज़ार को देखते हुए क्या करें इस पर भी बालाचंद्रन ने अपने विचार व्यक्ति किए.

यहां उनसे बातचीत का संपादित लेख पढ़िए:

आपने IIT बॉम्बे से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और फिर MIT से मास्टर्स की डिग्री हासिल की, फिर फ़इनांस में आपकी रुचि कैसे जागी?
जब मैं IIT बॉम्बे में शामिल हुआ, तो फ़इनांस में काम करने में मेरी दिलचस्पी नहीं थी. मेरा ध्यान इंजीनियरिंग पर ज़्यादा था. उस सोच के साथ, मैं PHD के लिए MIT (मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी) चला गया. उस इंस्टीट्यूट के बारे में सबसे अच्छी बात है कि कोई भी व्यक्ति किसी भी डिपार्टमेंट की क्लॉस में जा सकता है. ये समझने के लिए कि ये एरिया क्या है, मैंने MIT स्लोअन में कुछ निवेश से जुड़े कोर्स किए.

हालांकि ये बस कुछ क्लॉसें ही थीं, वहां कुछ चीज़ों ने मुझे प्रभावित किया. PHD जैसे अनुभव के साथ मूलभूत समस्या ये है कि आप सालों तक कुछ करने की कोशिश करते रहते हैं और ये नहीं जानते कि आप सही दिशा में जा रहे हैं या नहीं. इसलिए, वक़्त के मामले में फ़ीडबैक लूप बहुत लंबा है. हालांकि, निवेश में ऐसा महसूस होता है जैसे बाज़ार आपको हमेशा एक रिपोर्ट कार्ड देता रहता है. ये आपको बताता है कि आपका निवेश अच्छा प्रदर्शन कर रहा है या नहीं. फ़ाइनांशियल मार्केट से जुड़ी बौद्धिक चुनौती ने मुझे आकर्षित किया. तो, मैंने इसे एक मौक़ा देने का फ़ैसला किया.

शुरू में, मैंने सोचा था कि अगर ये काम नहीं करेगा, तो शायद मैं अपनी जड़ों की ओर लौट जाऊंगा. लेकिन शुक्र है कि अब तक ये कारगर रहा है.

मैं बॉस्टन में फ़िडेलिटी में फ़िक्स्ड इनकम मैनेजमेंट में एक दशक तक काम करने से लेकर भारतीय इक्विटी बाज़ारों पर ध्यान केंद्रित करने तक आपके करियर के बदलावों के बारे में जानने को उत्सुक हूं. इस बदलाव को किसने प्रेरित किया?
फ़िडेलिटी में अपने कामकाज के दौरान, मैंने मनी मार्केट, म्यूनिसिपल बॉन्ड, टैक्सेबल बॉन्ड, स्ट्रक्चर्ड फ़ाइनांस और क्लेक्ट्राइज़्ड डेट ऑब्लिगेशंस (CDO) जैसे विषयों पर सब कुछ कवर किया. ऐसा महसूस हुआ जैसे मैंने अमेरिका में काम करते हुए फ़िक्स्ड इनकम मार्केट के क़रीब-क़रीब सभी पहलुओं को अच्छी तरह से कवर कर लिया है.

बाद में, मैं निजी वजहों से वापस भारत आ गया और एक चुनौतीपूर्ण भूमिका में काम करना चाहता था. मेरा मानना है कि इक्विटी और फ़िक्स्ड इनकम के बीच सबसे पहला फ़र्क ये है कि इक्विटी में रिस्क-रिवॉर्ड रेशियो बहुत ज़्यादा बढ़ जाता है. इसके साथ एक बहुत ही ख़ास चुनौती जुड़ी हुई है. अगर आप सही तरीक़े से आगे बढ़ते हैं, तो आप बहुत सारा पैसा कमा सकते हैं. हालांकि इक्विटी में गिरावट का जोख़िम भी ज़्यादा है, लेकिन मुझे ये चुनौतीपूर्ण लगा. इससे फ़िक्स्ड इनकम से इक्विटी में ट्रांसफ़र होने की मेरी इच्छा हुई.

सीनियर क्रेडिट एनेलिस्ट से इक्विटी प्रमुख बनने तक, SBI फ़ंड्स मैनेजमेंट में आपकी 12 साल की मौजूदा भूमिका में कौन सी बड़ी सीख हैं जिन्होंने आपकी सोच को आकार दिया?
मार्केट में लॉन्ग-टर्म के दौरान मेरे पास कई सबक़ हैं. हालांकि, एक बात साफ़ तौर से सामने आती है - टीम वर्क की अहमियत, क्योंकि हर किसी की विशेषज्ञता का दायरा सीमित होता है. मिसाल के तौर पर, एक डाइवर्स पोर्टफ़ोलियो मैनेजमेंट करते समय, आपको ख़ुद ही सब कुछ करने के बजाय दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है. आपके आस-पास एक अच्छी टीम होना ज़रूरी है जो एक साउंडिंग बोर्ड की तरह काम करे. हो सकता है कि इसकी तारीफ़ कम हुई हो, लेकिन मैंने SBI म्यूचुअल फ़ंड में अच्छी टीम के साथ रहना पसंद किया है.

सही मानसिकता का होना भी ज़रूरी है, क्योंकि किसी भी समय में बाज़ार की भावनाएं आसानी से किसी पर असर कर सकती हैं. कभी-कभी, जहां कार्रवाई हो रही हो वहां से दूर रहना चुनौती भरा होता है. मेरी राय में, ज़्यादा रिटर्न एक अलग नज़रिए की वजह आते हैं. इसके लिए व्यक्ति में भीड़ के ख़िलाफ़ खड़े होने की आदत होनी चाहिए.

अख़िर में, ठोस रिसर्च से व्यक्ति को अलग होने का मज़बूत यक़ीन मिलना चाहिए. उस नज़रिए से, राय बनाने और उनके आधार पर काम करने का हिम्मत रखने के लिए पूरी बुनियादी रिसर्च करना ज़रूरी है. अगर ज़रूरी हो, तो दूसरे जो कर रहे हैं उससे ख़ुद को पूरी तरह अलग कर लें. ये कुछ बड़े सबक़ हैं जिन्हें मैंने सीखा है.

फ़िक्स्ड इनकम के विस्तृत अनुभव ने इक्विटी पोर्टफ़ोलियो, ख़ास तौर से रिस्क मैनेजमेंट और एसेट एलोकेशन मैनेजमेंट की आपकी रणनीतियों को कैसे आकार दिया?
जब मैं इक्विटी निवेश के बारे में सोचता हूं, तो कंपनी-दर-कंपनी विश्लेषण और उनके बिज़नस मॉडल की अच्छी समझ के आधार पर बॉटम-अप निवेश के बारे में बहुत कुछ होता है. हालाँकि, एक ख़ास टॉप-डाउन घटक भी आता है, खासकर चक्रीय क्षेत्रों पर चर्चा करते वक़्त. ऐसे क्षेत्रों में व्यक्ति को व्यापक अर्थशास्त्र और व्यापार चक्र की अच्छी समझ होनी चाहिए. उस नज़रिए से, निश्चित आय की पृष्ठभूमि होने से मुझे मदद मिली है. मिसाल के लिए, यह तय करना कि मुद्रास्फीति की अवधि के दौरान कौन से क्षेत्र समृद्ध होंगे या पीड़ित होंगे, फ़ैसला लेने पर ख़ास असर डाल सकते हैं. अगर आपके पास मैक्रोइकॉनॉमिक्स की अच्छी समझ है, तो यह आपको आगे बढ़ने में मदद करता है.

क्या आप अपने निवेश दर्शन की जानकारी दे सकते हैं? किस तरह के स्टॉक या बाज़ार स्थितियाँ आपको सबसे ज़्यादा उत्साहित करती हैं?
मेरा मानना है कि 'वैल्यू' और 'ग्रोथ' के बीच बहस, काफ़ी हद तक सतही है. ऐसा इसलिए क्योंकि हर कोई (फ़ंड मैनेजर) हाई ग्रोथ की संभावनाओं, क्वालिटी मैनेजमेंट और अट्रैक्टिव वैल्युएशन वाली सबसे अच्छी कंपनी में निवेश करने की कोशिश करता है. लेकिन हक़ीक़त में, आपको ये तीनों एक साथ नहीं मिलते, जब तक कि कोई कोविड-19 जैसी स्थिति न हो. इस नज़रिए से कहीं-न-कहीं समझौता करना ही पड़ेगा.

कई फ़ंड मैनेजर ग्रोथ से समझौता नहीं करना चाहते और इसलिए, किसी शेयर के लिए ज़्यादा भुगतान करने से भी परहेज़ नहीं करते. मेरे लिए वैल्युएशन, सुरक्षा के मार्जिन का एक बेहद ज़रूरी फ़ैक्टर है, और मैं इस पर समझौता नहीं करने की कोशिश करता हूं. इसलिए, बहुत से लोग मुझे 'वैल्यू इन्वेस्टमेंट' की फ़िलॉसफ़ी वाले शख़्स के तौर पर देखते हैं. लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि मैं क्वालिटी प्रोफ़ाइल पर ध्यान दिए बिना किसी भी ऐसी कंपनी को ख़रीद लूंगा जो सस्ते में उपलब्ध हो.

दूसरे सवाल के बारे में, मुझे लगता है कि मैं बहुत ज़्यादा डर और नाउम्मीदी वाले बाज़ार में स्वाभाविक रूप से बहुत सहज हूं. ऐसे नज़रिए मुझे उत्साहित करते हैं, क्योंकि ऐसे बाज़ारों में निवेश के ज़्यादा मौक़े होतेे हैं. दूसरी ओर, एक ऐसा बाज़ार जहां हर कोई हर चीज़ को लेकर उत्साहित रहता है और वैल्यूएशन ऊंचा होता है, जैसा कि हम आज-कल देख रहे हैं, तो ये मेरे लिए शायद सबसे चुनौती भरा बाज़ार है, क्योंकि सुरक्षा के हाई मार्जिन के साथ कुछ हासिल करना बेहद मुश्किल हो जाता है.

कौन से पैमाने किसी स्टॉक को आपके लिए ख़रीदारी के लिए आकर्षक बनाते हैं?
ऐसे कई आयाम हैं जिनमें सुरक्षा का मार्जिन मायने रखता है. ऐसा ही एक आयाम है वैल्युएशन; दूसरा बिज़नस मॉडल की क्वालिटी है. मेरे पास अलग-अलग कंपनियों के लिए अलग-अलग वैल्युएशन के पैमाने हैं. मैं हर कंपनी को एक ही स्तर पर रखकर ये नहीं कहने जा रहा हूं कि उन सभी को समान वैल्युएशन पर बिज़नस करना चाहिए. ये पहली कसौटी है.

दूसरा पैमाना बिज़नस मॉडल की क्वालिटी है. मैं उन कंपनियों को लिस्ट से हटाने की कोशिश करता हूं जिनकी टर्मिनल वैल्यू शक के दायरे में हो सकती है. ये पिघलते हुए बर्फ़ के टुकड़े की तरह है, और वो कंपनी अब से पांच साल बाद अस्तित्व में नहीं रहेगी.

फिर, आप संदिग्ध कॉर्पोरेट प्रशासन वाली कंपनियों को हटाने की कोशिश करते हैं और देखते हैं कि क्या म़ज़बूत बिज़नस मॉडल वाले ऐसे व्यवसाय हैं जो छोटी-मोटी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. ऐसी कंपनियों में, कई निवेशक साफ़ तौर से छोटी अवधि पर ध्यान केंद्रित करते हैं, और यहीं से अच्छे मौक़े निकल कर सामने आते हैं.

ऑटो सेक्टर में कई अच्छी मिसालें हैं. मिसाल के तौर पर, इस सेक्टर की दो अगुवा कंपनियों के पास मज़बूत बुनियादी क़ाबिलियत और अच्छी गवर्नेंस की प्रैक्टिस थी. हालांकि, पिछले दशक में उन्हें एक चुनौतीपूर्ण दौर से गुज़रना पड़ा. एक अलग क़िस्म के डाइवर्सिफ़िकेशन और कमज़ोर कैपिटल एलोकेशन ने इन कंपनियों को नीचे खींच लिया. लेकिन फिर, एक नई शुरुआत के साथ एक नया मैनेजमेंट आया. उन्होंने कैपिटल एलोकेशन के मुद्दे को ठीक करके नई शुरुआत की और केवल उन सेक्टरों पर ध्यान दिया जहां कंपनी मज़बूत थी.

जब आपके पास बेहतर कैपिटल एलोकेशन, ज़्यादा फ़ोकस्ड मैनेजमेंट और सही आर्थिक पृष्ठभूमि का मेल होता है, तो एक स्टॉक कमाई साइकल के नज़रिए से बेहद लुभावने हो जाते हैं. चूंकि पिछले दशक में स्टॉक काफ़ी पिछड़ गए थे, इसलिए उनका वैल्युएशन काफ़ी लुभावना हो गया था. मैं इसी तरह के अवसरों की तलाश में रहता हूं.

कॉन्ट्रा फ़ंड्स के मैनेजर के तौर पर, आप वर्तमान में बाज़ार में कॉन्ट्रेरियन मौक़े कहां देखते हैं?
मौजूदा बाज़ार में बढ़िया वैल्यू पाना मुश्किल है, इसलिए हमने अपना कैश एक्सपोज़र बढ़ा दिया है. कुछ महीने पहले, हमारा मानना था कि बाज़ारों ने एनर्जी सेक्टर को नज़रअंदाज़ कर दिया है, जिससे कुछ अच्छी वैल्यू के मौक़े बचे हैं. लेकिन यहां भी, इनमें से बहुत से शेयरों की अब दोबारा रेटिंग हो गई है. उस नज़रिए से, मुझे बाज़ार में कम चुनाव से निपटना ही होगा. मेरी राय में, अभी कोई अच्छे मौक़े नहीं हैं.

क्या आप पहली बार निवेश करने वालों को मौजूदा बाज़ार में हाइब्रिड फ़ंड या डायवर्सिफ़ाइड इक्विटी फ़ंड से शुरुआत करने की सलाह देंगे?
मैं पहली बार निवेशकों को हाइब्रिड फ़ंड से शुरुआत करने के लिए प्रोत्साहित करूंगा. इसमें कोई संदेह नहीं है कि लॉन्ग टर्म नज़रिए से इक्विटी पूंजी बढ़ाने के सबसे अच्छे तरीक़ों में से एक है. हालांकि, मुद्दा ये है कि अगर निवेशक 10 साल के लिए इक्विटी में निवेश करना चाहते हैं, तो भी अगर उन्हें 15-20 फ़ीसदी का छोटी अवधि में गिरावट देखता है तो वो घबरा जाता है. इसलिए, कोई भी इक्विटी बाज़ारों की स्वाभाविक अस्थिरता को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता, जो कि अक्सर 10-20 फ़ीसदी तक होती है. इसलिए, पहली बार निवेश करने वालों के लिए, ऐसी गिरावट काफ़ी चौंकाने वाली हो सकते हैं, क्योंकि कुछ ही महीनों में उनका पोर्टफ़ोलियो 15 फ़ीसदी तक नीचे गिर सकता है. इस तरह, उनके लिए धीरे-धीरे ये जानना बेहतर होगा कि कैपिटल मार्केट कैसे काम करता है.

हाइब्रिड फ़ंड्स में गिरावट का रिस्क प्रोफ़ाइल, बेहतर होता है, क्योंकि उनके पास फ़िक्स्ड इनकम के लिए भी एलोकेशन होता है. इससे निवेशक सुरक्षित महसूस कर सकता है. जब वे अस्थिरता और बाज़ार में गिरावट के साथ ज़्यादा सहज हो जाते हैं, तो वे प्योर इक्विटी में निवेश की ओर बढ़ सकते हैं.

अपने करियर पर नज़र डालें तो सबसे आश्चर्यजनक बाज़ार प्रवृत्ति या घटना क्या रही है जिसका आपने सामना किया है? इसने निवेश के प्रति आपके नज़रिए को कैसे प्रभावित किया है?
फ़िक्स्ड इनकम सेक्टर में कुछ मॉडल भविष्य की ब्याज दरों का पूर्वानुमान लगाते हैं और ज़्यादातर निचले आधार के रूप में शून्य का इस्तेमाल करते हैं. इसकी बुनियादी सोच ये है कि ब्याज दरें शून्य से नीचे कैसे जा सकती हैं. हालांकि, पिछले दशक के दौरान, हमने कुछ उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में पांच से 10 साल तक नकारात्मक ब्याज दरें देखीं.

ये कुछ ऐसा है जिसके बारे में मैंने कभी नहीं सोचा था कि ऐसा होगा, लेकिन ऐसा हुआ. तो, उस नज़रिए से, कोई ऐसी घटनाओं के लिए तैयार नहीं है, लेकिन हम जितना हम सोचते हैं उससे कहीं ज़्यादा घटित होता है.

इस नज़रिए से, आपको विनम्र और ज़मीन से जुड़े रहना होगा. आपको हमेशा ये मानना होगा कि आप सब कुछ नहीं जानते. किसी को भविष्य के बारे में पूर्ण परिप्रेक्ष्य के बजाय उम्मीद वाले नज़रिए से सोचने की ज़रूरत है. दूसरी मिसाल 2020 में कोविड-19 अवधि के दौरान आई जब कच्चे तेल की क़ीमतें नेगेटिव रहीं. किसने सोचा था कि वे नेगेटिव हो जाएंगी? लेकिन ऐसा हुआ.

ये भी पढ़े - कैसे दिनेश बालाचंद्रन ने SBI कॉन्ट्रा को बेहतर बनाया


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