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आत्मविश्वास की अति निवेश के लिए ख़तरा

डॉ. रेयान मर्फ़ी ने इसके नतीजों और इससे बचने के तरीक़े के बारे में बताया है. आइए जानें कैसे एक निवेशक इस जानकारी का फ़ायदा उठा सकता है.

आत्मविश्वास की अति निवेश के लिए ख़तरा

इस समय पूरे मार्केट में अतिआत्मविश्वास छाया हुआ है और इसके असर में निवेश के फ़ैसले लिए जा रहे हैं. ऐसा अक्सर होता है जब एक बड़ा बुल रन या तेज़ी का दौर होता है. ठीक वैसी ही तेज़ी जैसी इस समय शेयर मार्केट देखी जा रही है. लेकिन इस अतिआत्मविश्वास के पूर्वाग्रह (overconfidence bias) का मतलब क्या है, और कैसे ये निवेशक के लिए बुरा है और सबसे बड़ी बात कि निवेशक इससे कैसे उबर सकते हैं? मॉर्निंगस्टार में बिहेवियरल इनसाइट्स ग्रुप के प्रमुख डॉ. रेयान मर्फ़ी ने बिहेवियरल फ़ाइनेंस एक्सचेंज के साथ किए अपने पॉडकास्ट में इसी विषय पर चर्चा की.

यहां उनके पॉडकास्ट का कुछ हिस्सा हम आपके लिए लाए हैं.

अति आत्मविश्वास पूर्वाग्रह क्या है?

अतिआत्मविश्वास पूर्वाग्रह या ओवरकॉन्फ़िडेंस बायस, सीधे शब्दों में कहें तो किसी इंसान का किसी चीज़ के बारे में अपनी समझ और क्षमता को हक़ीक़त से ज़्यादा आंक लेना है. मर्फी इसे समझाते हुए कहते हैं, "एक ऐसी स्थिति जहां लोगों के आत्मविश्वास का स्तर उनके सटीक होने के स्तर से ज़्यादा हो जाता है".

उनका ये भी मानना है कि अतिआत्मविश्वास पूर्वाग्रह अपने आप नहीं होता है. हक़ीक़त तो ये है कि ये कई दूसरे पूर्वाग्रहों से आता है, जैसे जागरुकता की कमी (inattentional blindness), पुष्टि पूर्वाग्रह (confirmation biases), उपलब्धता पूर्वाग्रह (availability bias) और बाद में देखने का पूर्वाग्रह (hindsight bias). उन्होंने पॉडकास्ट में हर पूर्वाग्रह और उसे दूर करने के तरीक़ों पर बातचीत की. यहां संक्षेप में जानते हैं उन्होंने क्या कहा है.

जानबूझकर अनदेखा करना

मर्फी बताते है, "इसका एक हिस्सा (अति आत्मविश्वास) इस जागरूकता की कमी से प्रेरित होता है, ये न जानना कि हम क्या नहीं जानते हैं. और मुझे लगता है कि इसे आज़माना बहुत मुश्किल है, और ऐसी कोई जादू की छड़ी नहीं है जहां आप लोगों को हर चीज़ के बारे में सिर्फ़ जागरुक रहना सिखा सकें."

इस पर कैसे क़ाबू पाया जाए?
मर्फ़ी निवेशकों को सलाह देते हैं कि वे रुककर ये सोचने की आदत डालें कि वो क्या नज़रअंदाज़ कर रहे हैं. वो निवेशकों से उन पुरानी मिसालों को फिर से देखने की भी सलाह देते हैं जहां उनकी अनजाने में नुक़सान हुआ था. वो कहते हैं, "मुझे लगता है कि लोगों को इस बात की थोड़ी आदत डालने में मदद करनी चाहिए कि वे इस वक़्त जो देख रहे हैं उससे आगे देखना शुरू करें... मुझे लगता है कि इससे छोटे-छोटे आत्मनिरीक्षण में चूक से होने वाली ग़लती को कम करने में मदद मिल सकती है".

पुष्टि का पूर्वाग्रह

मर्फ़ी पुष्टि के पूर्वाग्रह या कन्फ़र्मेंशन बायस को समझाते हुए कहते हैं "ये लोगों की ऐसीा आदत है जिसमें वो पहले से मौजूद सबूतों से अपनी सोच का समर्थन करने वाले नतीजे तलाशते हैं".

इस पर कैसे क़ाबू पाया जाए?
वो इसके समाधान का के लिए हर फ़ैसले के यिन और यांग दोनों की खोज के तौर पर करते हैं. मर्फ़ी कहते हैं, "बुनियादी बातें, जैसे ख़ुद को याद दिलाना कि बाज़ार में हर बिज़नस के दो पहलू होते हैं... ख़ुद को किसी और के स्थान पर रख कर कल्पना करने की कोशिश करने से पुष्टिकरण पूर्वाग्रह के असर को कम करने में मदद मिल सकती है".

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उपलब्धता संबंधी अनुमान और घटना होने के बाद में नतीजे निकालने वाला पूर्वाग्रह

मर्फ़ी का कहना है कि उपलब्धता अनुमान "एक मनोवैज्ञानिक घटना है और याददाश्त से जुड़ी है." उनका कहना है कि "जो चीज़ें याद रखना आसान है, उनका हमारे फ़ैसले पर बड़ा असर पड़ता है" और इसलिए अति आत्मविश्वास बढ़ता है. वो आगे कहते हैं, "तो जिस तरह से हमारी यादें काम करती हैं, जिन चीज़ों को याद रखना सबसे आसान है, उनका बड़ा असर हो सकता है, और जो याद रखना आसान है वो ज़रूरी नहीं कि हमेशा ये दिखाता हो कि दुनिया हक़ीक़त में कैसे कैसे चलती है".

मर्फ़ी पिछली घटनाओं को लेकर विचार करने वाले व्यक्ति जो घटना के बाद मुड़ कर दखने वाले पूर्वाग्रह (hindsight) से ग्रस्त होते हैं उनके लिए परिभाषित करते हुए कहते हैं कि बीती हुई घटना को लेकर लोगों को लगता है कि सही फ़ैसला बिल्कुल साफ़ नज़र आ रहा था, अगर वो उस हालात में होते तो उन्होंने सही फ़ैसला लिया होता.

इसके लिए वो टीवी एक्सपर्ट की मिसाल देते हैं, "घटना के हो जाने के बाद ये लोग इस बात को समझाने के क़ाबिल होते हैं, मगर घटना के होने से पहले किसी तरह की भविष्यवाणी करने की इनकी कोई क्षमता नहीं होती." इस तरह की सोच से उनकी क्षमता पर ग़लत भरोसा पैदा होता है.

इस पर कैसे क़ाबू पाया जाए?
मर्फ़ी के मुताबिक़, "उपलब्धता और पीछे मुड़ कर देखना, मुझे लगता है कि इन दोनों कम किया जा सकता है अगर आप रिकॉर्ड को अच्छी तरह से सहेज कर रखें, क्वांटिफ़ाई करके (मात्रा तय कर) और पूर्वानुमानों और भविष्यवाणियों को लेकर बहुत सटीक होने से, उन्हें लिखने और उन्हें इस तरह से रिकॉर्ड करने से कम किया जा सकता है कि हम बाद में वापस जा कर स्कोरिंग करें और सटीक तरीक़े से परख सकें."

एक कड़वा सच

अति आत्मविश्वास पर क़ाबू पाने के बारे में एक मुश्किल बात ये है कि एक प्रक्रिया के तौर पर ये किसी व्यक्ति के लिए बेहद असुविधाजनक हो सकता है. मर्फ़ी कहते हैं, "संदेह दुनिया की एक असुविधाजनक स्थिति है. हमारा दिमाग़ अक्सर इसे पसंद नहीं करता है और वो चीज़ों को काले या सफेद समाधान के तौर पर देखना चाहता है. और कभी-कभी, चीज़ें इतनी आसान नहीं होतीं. इसलिए मुझे लगता है कि एक चीज़ जो हम एक दूसरे के लिए कर सकते हैं वो ये कि जब हम टीमों में काम करें तो एक-दूसरे की सीमाओं को पहचान कर इन्हें दुरुस्त करने के तरीक़े तलाशें कि असहमत होना ठीक है, और अनिश्चित होना ठीक है, और ग़लत होना ठीक है."

ये पॉडकास्ट का सबसे काम के हिस्से हैं. हालांकि, हम अपने पाठकों को पूरी बातचीत सुनने की सलाह देते हैं. पूरे पॉडकास्ट के लिए यहां क्लिक करें.

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