अगर आप किसी बच्चे से तुरंत एक आइसक्रीम खाने या एक दिन बाद दो आइसक्रीम खाने के बीच चुनाव करने को कहें, तो वो हमेशा एक ही आइसक्रीम खाना चुनेगा. लेकिन अगर आप बच्चे को अगले दिन एक आइसक्रीम या उसके अगले दिन दो आइसक्रीम के बीच चुनाव करने को कहें, तो लगभग सभी बच्चे एक दिन और इंतज़ार करना और एक के बजाय दो आइसक्रीम लेना पसंद करेंगे. मुझे लगता है कि सभी मां-बाप इसे समझते हैं. मैंने भी ये बात तब ही समझ ली थी, जब मेरी बेटी इतनी बड़ी हुई कि वो कोई फ़रमाइश करे. बेशक़, बच्चे बहुत चालाक होते हैं और अक्सर मां-बाप को चकमा देने में क़ामयाब हो जाते हैं. लेकिन कारगर हो या न हो, मां-बाप ऐसी परिस्थितियों से बचने की चालाकियां करना जानते हैं, जहां तुरंत संतुष्टि पाने और भविष्य के किसी आनंद के बीच चुनाव करना पड़े.
माता-पिता के विपरीत, अर्थशास्त्रियों को यही बात पता लगाने में बहुत वक़्त लगा और आख़िरकार जब उन्होंने ये पता लगाया, तो इसे एक महान खोज माना गया. लेकिन फिर, आर्थिक व्यवहार के मामले में ये शायद सच भी है. जिस तरह से हमारे बच्चे आइसक्रीम के बारे में फ़ैसला लेते हैं, उसी तरह से हम बचत, निवेश, ख़र्च और, शायद स्वास्थ्य और काम जैसे कई ग़ैर-वित्तीय मामलों के बारे में भी निर्णय लेते हैं. हममें से ज़्यादातर, बच्चे या वयस्क, ऐसे निर्णय लेने में अच्छे नहीं होते हैं जिनमें लुभावने वर्तमान की तुलना दूर के भविष्य से की जाती है.
बेशक़, ये सभी के लिए सच हो ऐसा नहीं है. कुछ लोगों को, ख़ासतौर से कम उम्र में, तत्काल संतुष्टि से परे नहीं सोच पाने की समस्या गंभीर होती है. ये वे लोग हैं जो क्रेडिट कार्ड जारी करने वालों के मुनाफ़े का बड़ा हिस्सा बनते हैं. दूसरी तरफ़ वे लोग हैं जो अपना जीवन कंजूस होने के आरोप में बिताते हैं - वे जो भविष्य के लिए अजीबोगरीब जुनूनी प्लान बनाए बिना वर्तमान को जीने में असमर्थ हैं. लंबे समय तक, दोनों तरह के लोगों के बीच का अंतर एक तरह का नैतिक अंतर माना जाता था, जिसमें पहली तरह के लापरवाह और बेकार लोग होते थे, जबकि दूसरी तरह के लोग समझदार और विवेकशील होते थे.
लेकिन शायद ये चीज़ों को देखने का सही तरीक़ा नहीं. पिछले तीन दशकों में, बहुत सारी रिसर्च हुई हैं जो बताती हैं कि इनमें से कुछ व्यवहारों के पैटर्न इंसान के दिमाग के विकास के साथ जुड़ा है. जिस समय इंसान विकसित हो रहा था, उस समय मौजूदा वक़्त या वर्तमान बेहद अहम होता था - दूर के भविष्य के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा. मुश्कलि ये है कि ये स्वाभाव फ़ाइनांस को लेकर इंसानों के व्यवहार को प्रभावित करता है जो हमारी आर्थिक बेहतरी के लिए नुक़सान का कारण बनता है. परंपरागत तौर पर इसका हल शिक्षा और ख़ुद के प्रति जागरूकता होगी. अगर ज़्यादा लोग जोख़िम भरे पैसों से जुड़े कामों का पैटर्न समझेंगे तो ऐसे काम नहीं करेंगे, है न? ख़ैर, असलियत ये नहीं लगती. केवल थोड़े से लोगों में पैसों के लेकर अपना रवैया ठीक करने और शॉर्ट-टर्म के मुक़ाबले लॉन्ग- टर्म पर ध्यान देने के लिए आत्म-जागरूकता होगी. लोगों के व्यवहार को बदलने का एकमात्र तरीक़ा एक अच्छा विकल्प चुनना है.
मिसाल के लिए, एक निवेश विश्लेषक के तौर पर, मैंने हमेशा कहा है कि निवेश का लिक्विड होना बेहद अहम है ताकि ज़रूरत पड़ने पर उससे पैसा आसानी से निकाला जा सके. हालांकि, ये सच है कि बहुत से लोगों का मुख्य निवेश प्रॉविडेंट फ़ंड जैसे निवेश होते हैं, जहां उन्हें लंबे समय तक निवेश करने और उस पर टिके रहने की ज़रूरत होती है. शायद उनके इस व्यवहार में एक सबक़ है.
ये भी पढ़िए - निवेश की ज़रूरतों का एक पिरामिड