Anand Kumar
बीस साल से भी पहले मैंने पहली बार डैनियल काह्नमैन के बारे में सुना था, हाल ही में 90 साल की उम्र में उनकी मृत्यु हुई. मुझे उनके बारे में पता चलने के कुछ ही समय बाद उन्हें अर्थशास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया (हां, मैं जानता हूं कि अर्थशास्त्र का नोबेल असली नोबेल पुरस्कार नहीं है, लेकिन, चलिए इस पर ज्ञान क्या बघारना). यही वो वक़्त था जब काह्नमैन के विचार, और असल में, व्यवहारिक अर्थशास्त्र (behavioural Economics) की पूरी फ़ील्ड के बारे में बहुत से लोगों ने जाना. तब से, काह्नमैन का काम, जो ज़्यादातर अमोस टावर्सकी की मदद से हुआ, न केवल अर्थशास्त्र और फ़ाइनांस में बल्कि मनोविज्ञान, राजनीति विज्ञान और यहां तक कि चिकित्सा सहित कई क्षेत्रों में बहुत प्रभावशाली रहा है. उनकी अभूतपूर्व रिसर्च ने लंबे समय से चली आ रही इस धारणा को चुनौती दी कि इंसान बुनियादी तौर पर तर्कशील है. इसके बजाय, इसने कई तरीक़ों से दिखाया कि हमारे जजमेंट और फ़ैसले पूर्वाग्रह से ग्रस्त और अनुमान के आधार पर होते हैं.
उस समय, मैंने वैल्यू रिसर्च की पहली प्रिंट मैगज़ीन, म्यूचुअल फ़ंड इनसाइट लॉन्च की थी. हमने जल्द ही काह्नमैन और टावर्सकी के काम पर 'आउट ऑफ़ योर माइंड?' शीर्षक से एक कवर स्टोरी बनाई. आर्टिकल का उपशीर्षक था 'व्यवहारिक अर्थशास्त्र सुझाव देता है कि निवेशकों के लिए, अपने स्वयं के मनोविज्ञान को समझना, बाज़ार को समझने से भी ज़्यादा महत्वपूर्ण है.' औपचारिक तरीक़े से कहने पर, इसके पीछे नोबेल की ताक़त को शामिल करके, ये एक नई अवधारणा जैसा लगता है और अर्थशास्त्र का एक हिस्सा मालूम पड़ता है, जो ये है भी. मगर फिर भी, हरेक निवेशक ये बात सहज रूप में पहले से जानता है. जब आप इसे पहली बार सुनते हैं, तो ये बात तुरंत प्रभावित करती है और स्पष्ट समझ में आ जाती है.
असल में, व्यवहारिक अर्थशास्त्र की सोच इतनी सहज है कि अगर हज़ारों साल से नहीं, तो कई सदियों से लोगों की आम समझ का हिस्सा रही है. अलग-अलग संस्कृतियों की कहावतें और सूक्तियां ऐसे पूर्वाग्रहों के ख़िलाफ़ चेतावनियों से भरी हुई हैं जिन्हें काह्नमैन और टावर्सकी ने पहचाना और जिनका अध्ययन किया. डाइवर्सिफ़िकेशन की कमी को लेकर चेतावनी कि "अपने सभी अंडे एक ही टोकरी में न रखो." "अपने घाटे में कटौती करो और अपने मुनाफ़े की सवारी करो," डूबी हुई लागत से जुड़ी भ्रांति को लेकर आगाह करती हैं. एक कहावत "a bird in hand is worth two in the bush" यानी हाथ में आया एक पक्षी, झाड़ियों में बैठे दो पक्षियों के बराबर है, ये कहावत नुक़सान से बचने की समझ दिखाती है.
काह्नमैन और टावर्सकी ने इस लोक ज्ञान को जाना और इसकी कड़ी वैज्ञानिक जांच की. सधे हुए प्रयोगों और डेटा अनालेसिस के ज़रिए, वे इन पूर्वाग्रहों की व्यापकता को ज़ाहिर कर पाए. साथ ही वो ये भी दिखा सके कि कैसे ये पूर्वाग्रह हमारे फ़ैसलों पर गहरा असर करते हैं, जिनसे अक्सर हमारे अपने हितों को नुक़सान पहुंचता है.
निवेश करने वाले हम सभी लोगों के लिए ये काम ख़ास तौर से प्रासंगिक है. फ़ाइनेंशियल मार्केट की अनिश्चितताएं, जोख़िम और तनाव वाली स्थितियों से भरी हुई हैं जो हमारे पूर्वाग्रहों को मज़बूत बनाते हैं. इन पूर्वाग्रहों को समझना, इनके बुरे असर से बचने की दिशा में पहला क़दम है. मिसाल के तौर पर, नुक़सान पर बहुत ज़्यादा प्रतिक्रिया देने, झुंड के पीछे चलने, या अपने ख़ुद के फ़ैसलों में अति-आत्मविश्वास की हमारी प्रवृत्ति को लेकर जागरूक होने से हम इन पूर्वाग्रहों का मुक़ाबला करने और निवेश के फ़ैसले लेते समय इनके प्रति जागरूक रहने की कोशिश कर सकते हैं.
बेशक़, व्यवहारिक अर्थशास्त्र का दायरा व्यक्तिगत निवेशकों तक ही सीमित नहीं. इस क्षेत्र की समझ को रिटायरमेंट सेविंग स्कीमों से लेकर हेल्थ इंश्योरेंस तक, और पर्सनल फ़ाइनांस के दूसरे पहलुओं पर तेज़ी से लागू किया जा रहा है. असल में, लोग फ़ैसले कैसे लेते हैं इस अहम बात को समझने से लोगों के फ़ैसलों को बेहतर तरीक़े से गाइड किया जा सकता है. बजाए ये समझने के कि पूरी तरह से तर्क के आधार पर बातें करने वाले एजेंट कैसे फ़ैसले लेते हैं. ईमानदारी से कहूं तो, एजेंटों वाली बात कोई ऐसी चीज़ नहीं जिसे लेकर मैं उत्साहित हो सकूं. ये मूलतः एक चालबाज़ी ही होती है. या फिर हो सकता है कि इन दबाव डालने वाले एजेंटों के दिल में आपके हितों की बात ज़्यादा अहमियत ही न रखती हो या उनमें क़ाबिलियत की कमी हो.
मेरे लिए, इस पूरी स्टडी का इस्तेमाल हमारे फ़ैसले लेने की क्षमता को समझने और सुधारने के पर्सनल टूल के तौर पर है. अपने ख़ुद के पूर्वाग्रहों और मानसिक शॉर्टकट्स के बारे में जागरूक होकर, हम उन्हें नकारने के लिए क़दम उठा सकते हैं. ये पर्सनल फ़ाइनांस और निवेश में ख़ासतौर से अहम है, जहां तर्कहीन फ़ैसलों के नतीजे गंभीर और लंबे समय तक असर करने वाले हो सकते हैं. आत्म-जागरूकता पैदा करके और इसकी पहचान करने के तरीक़े को सीखकर कि कब हमारी भावनाएं और पूर्वाग्रह हमारे फ़ैसलों को प्रभावित कर रहे हैं, हम बेहतर निवेशक और पैसों से जुड़ी अपनी ख़ुद की बेहतरी के अच्छे प्रबंधक बन सकते हैं. मेरा मानना है कि यही डैनियल काह्नमैन और अमोस टावर्सकी के अभूतपूर्व काम के लिए सबसे बड़ी श्रद्धांजलि होगी.
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