हम आमतौर पर म्यूचुअल फ़ंड ख़रीदते या बेचते समय 'नेट एसेट वैल्यू' (NAV) शब्द सुनते हैं. NAV का अर्थ अक्सर फ़ंड की क़ीमत के तौर पर लिया जाता है और ज़्यादातर लोग 'क़ीमत' शब्द सुनकर मानते हैं कि NAV जितना कम होगा, फ़ंड दूसरों के मुक़ाबले में उतना सस्ता होगा. तो क्या इसका मतलब ये है कि सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले म्यूचुअल फ़ंड का NAV कम है? बिलकुल नहीं! असल में, म्यूचुअल फ़ंड चुनते वक़्त NAV को निवेश के आधार के तौर पर बिल्कुल नहीं देखना चाहिए. आगे हम बताएंगे, क्यों.
NAV क्या है?
आइए सबसे पहले समझते हैं कि किसी फ़ंड का NAV क्या है? ये फ़ंड के पोर्टफ़ोलियो का बाज़ार मूल्य (market value) है, जिसे निवेशकों के पास जो यूनिट्स हैं, उससे फ़ंड की कुल यूनिट्स से विभाजित किया जाता है (जब आप म्यूचुअल फ़ंड स्कीम में निवेश करते हैं, तो आपको यूनिट्स एलोकेट की जाती हैं जो फ़ंड के एसेट्स में आपका हिस्सा दिखाती हैं). इस प्रकार, NAV फ़ंड की एक यूनिट की वैल्यू दिखाता है.
एक और तरीक़े से समझते हैं,, किसी फ़ंड की एक यूनिट ख़रीदने के लिए आपको जो पैसा चुकाना पड़ता है या किसी फ़ंड को भुनाते समय प्रति यूनिट जो रक़म आपको मिलेगी, उसे उसका NAV कहा जाता है. यही वजह है कि इसे अक्सर फ़ंड की क़ीमत मान लिया जाता है. लेकिन ये अर्थ ग़लत है, ख़ासकर जब इसका इस्तेमाल म्यूचुअल फ़ंड्स की आपस में तुलना करने के लिए किया जाए.
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NAV ≠ मूल्य
आइए ये समझने के लिए एक मिसाल लेते हैं कि NAV क़ीमत क्यों नहीं है? मान लीजिए आप 10 ग्राम सोना ख़रीदना चाहते हैं. लेकिन जब आप बाज़ार में निकलते हैं तो पाते हैं कि 10 ग्राम चांदी, सोने से काफ़ी सस्ती है. अब, क्या आप सिर्फ़ इसलिए चांदी ख़रीद लेंगे, क्योंकि ये सोने से सस्ती है? अगर आप ऐसा करते हैं तो भी आपको सोना ख़रीदने जितनी उपयोगिता नहीं मिलेगी. इस तरह से सोने और चांदी के हरेक ग्राम की क़ीमत की आपस में तुलना नहीं हो सकती, क्योंकि उनके अलग-अलग अंतर्निहित मूल्य (intrinsic values) हैं. तो, हाई NAV का मतलब ये नहीं है कि फ़ंड ज़्यादा क़ीमती है.
किसी फ़ंड का NAV उसके एसेट अंडर मैनेजमेंट (AUM) और यूनिट्स की संख्या पर आधारित एक गणना (mathematical calculation) है. पोर्टफ़ोलियो की मार्केट वैल्यू में बदलाव और समय के साथ निवेशकों द्वारा नए निवेश करने या पैसा निकालने से पोर्टफ़ोलियो के मूल्य और NAV की गणना के लिए इस्तेमाल की जाने वाली यूनिट्स की संख्या दोनों में परिवर्तन होता है. NAV का इकलौता मक़सद किसी फ़ंड के प्रदर्शन का मूल्यांकन करना है. यानी, किसी फ़ंड के मौजूदा NAV की तुलना उसके पिछले NAV से करना. अपने आप में NAV के कम या ज़्यादा होने का फ़ंड के प्रदर्शन से कोई लेना-देना नहीं है.
आगे दी जाने वाली मिसाल से साफ़ हो जाएगा कि किसी फ़ंड के प्रदर्शन का पता लगाने के लिए NAV का इस्तेमाल कैसे किया जाता है.
मान लीजिए, आपके पास निवेश के लिए ₹10,000 हैं और आपके पास दो विकल्प हैं - फ़ंड X और फ़ंड Y. उनके पोर्टफ़ोलियो एक जैसे हैं लेकिन NAV अलग-अलग हैं. फ़ंड X की NAV ₹10 है और फ़ंड Y का NAV, ₹50 है. तो आपके पास मौजूद ₹10,000 के साथ, आपको फ़ंड X की 1,000 यूनिट्स या फ़ंड Y की 200 यूनिट्स मिलेंगी.
एक साल के बाद, दोनों फ़ंड समान रूप से बढ़ेंगे क्योंकि उनके पोर्टफ़ोलियो एक जैसे हैं. चलिए मान लेते हैं कि फ़ंड 25 फ़ीसदी बढ़ गया है. तो, एक साल के बाद फ़ंड X के लिए NAV ₹12.50 और फ़ंड Y के लिए NAV ₹62.50 होगा. इसलिए, आपके निवेश का मूल्य फ़ंड X के लिए ₹12,500 (1,000 x 12.50) और फ़ंड Y के लिए ₹12,500 (200 x 62.5) होगा.
क्या आपने देखा कि आपके निवेश के समय NAV कुछ भी था, पर आपका रिटर्न वही रहा.
ये धारणा ग़लत है कि कम NAV बेहतर होता है. जैसा कि हमने ऊपर दी गई मिसाल में देखा, प्रति यूनिट आपका लाभ यूनिट बेचने और ख़रीदने के समय, NAV के बीच का अंतर है. तो एक निवेशक के रूप में आपके नज़रिए से, NAV में प्रतिशत परिवर्तन महत्वपूर्ण है, वास्तविक संख्या नहीं.
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