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असली बजट का इंतज़ार

सुधारों में उतार-चढ़ाव कम होने के साथ, बजट शॉक की बात नहीं रह गया बल्कि छोटे-मोटे बदलावों का शांत मामला बन गया है

Looking ahead to the real budget

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4:46

एक वक़्त था, तब एक अच्छा बजट काफ़ी घोषणाएं करता था. आज, एक अच्छा बजट वो है जो जितना हो सके कम करे. और मेरा मतलब अच्छे बदलावों से है न कि ख़राब बदलावों से. पहले केंद्रीय बजट में काफ़ी कमेंट्री और विश्लेषण करने होते थे. कई प्रोडक्ट्स के प्राइस और ड्यूटी बदलते थे. इस सबका असर घरों के बजट और कॉर्पोरेट के फ़ाइनेंशियल पर हुआ करता था. विश्लेषक, कई इंडस्ट्रियों पर ड्यूटी में होने वाले बदलावों का असर कैलकुलेट करते—जो टेल्कम पाउडर और कपड़ों से लेकर कारों और खाद तक होता था.

हालांकि, आज बजट के दिन इस समय शाम के 4 बज रहे हैं. इस बात को कुछ घंटे बीत चुके हैं जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा, "मैं अंतरिम बजट सदन के पटल पर रखती हूं," और बस, आज का पूरा एक्शन यहीं ख़त्म हो गया था. GST लागू होने और पेट्रोलियम की क़ीमतों, और आयात शुल्क के सुधारों ने उस सालाना अस्थिरता को दूर कर दिया है जो बजट की वजह से लोगों के और व्यवसायों के आर्थिक जीवन में हुआ करती थी. बजट जारी होने के कुछ घंटों के भीतर रस्मी राजनीतिक प्रतिक्रियाओं के बाद, आज का दिन काफ़ी हद तक एक आम सा दिन है. पहले के भावुक भाषणों और सिर चकराने वाले आंकड़ों के जोड़-तोड़ की जगह अब एक तरह की शांति ने ले ली है. ज़्यादातर लोगों के लिए, केंद्रीय बजट बिना किसी दिलचस्पी के गुज़र गया है.

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इस साल, क्योंकि ये अंतरिम बजट और लेखानुदान है, तो ये और भी छोटा रहा है. इसमें कोई शक़ नहीं कि इसे लेखानुदान बनाना एक विकल्प था - मगर सरकार इसे चुनाव से पहले का मुफ़्त बजट बना सकती थी. ये सुखद आश्चर्य है कि ऐसा नहीं किया गया. इसका मतलब ये नहीं है कि करने के लिए कुछ था ही नहीं - या जून में आने वाले पूरे बजट में कोई बदलाव नहीं होना चाहिए. पर्सनल फ़ाइनांस और निवेश के मेरे अपने क्षेत्र में, पहले से अंदाज़ा लगाने वाली चीज़ का हमेशा स्वागत होता है, लेकिन इस साल का वास्तविक बजट सामने आने पर कुछ बदलाव होंगे तो उनका स्वागत किया जाएगा. उन्हीं में से ये बदलाव बदलाव भी हैं: इक्विटी निवेश पर अनइंडेक्स्ड लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन टैक्स, जिसका कोई मतलब नहीं है. इन पर टैक्स लगाना सरकार का अधिकार तो है, लेकिन इन फ़ायदों के इंडेक्सेशन की इजाज़त न देना एक ऐसा मज़ाक है, जो बहुत लंबा खिंच गया है.

इसके अलावा, नेशनल पेंशन सिस्टम में एक और बदलाव की सख़्त ज़रूरत है. पहली बात तो ये कि ज़्यादातर NPS सदस्यों को इक्विटी निवेश का कम फ़ायदा ही मिल रहा है. उनकी रिटायरमेंट इनकम मार्केट से लिंक तो हो गई है, मगर मार्केट का पूरा फ़ायदा उन्हें नहीं मिल रहा है. इसके अलावा, एक बड़ी मुश्किल है रिटायरमेंट के बाद पैसे निकालने की. भारत में सही एन्युटी प्रोडक्ट्स की कमी के कारण, NPS को फ़ुल ग्रैजुएटेड विड्रॉल स्ट्रक्चर की ज़रूरत है यानी पूरा पैसा निकालने की सहूलियत. इस दिशा में कुछ प्रगति ज़रूर हुई है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाक़ी है.

फिर, कुछ प्रक्रिया या प्रोसीजरों से जुड़े सुधार हैं जो निवेशकों का जीवन आसान बना सकते हैं, इनमें लंबे समय से चली आ रही KYC की समस्या सबसे बड़ी है. हमें अपने देश में एक केंद्रीकृत, और आधार पर आधारित KYC की ज़रूरत है. और तार्किक तौर पर, ये वैसा ही KYC होना चाहिए जैसा एक एक्टिव बैंक अकाउंट के लिए किया जाता है. ऐसा न करने का कारण की जड़ा उसमें लगती ही जिसके तहत KYC की कमियों की ज़िम्मेदारी एंटी-मनी-लॉन्ड्रिंग क़ानूनों तय की जाती है. निवेशकों की मुश्किलें दूर करने के लिए इसमें बदलाव की ज़रूरत है.

हालांकि ये अच्छा है कि हमारे पास व्यक्तिगत वित्त क़ानूनों और नियमों में काफ़ी स्थिरता है, आने वाले समय में इस साल के पूरे बजट को इन समस्याओं और दूसरी समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए.

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