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बुरी ख़बरें और मार्केट की असलियत

स्टॉक मार्केट के हाल पर रोज़मर्रा की फ़ेक न्यूज़ गंभीर नुक़सान करती है

Volatile Headlines vs The Steady Reality

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6:06

"आप तो कहते हैं कि अर्थव्यवस्था अच्छी है फिर स्टॉक मार्केट हमेशा गिरता क्यों रहता है?" मुझ पर ये सवाल, कुछ आक्रामक तरीक़े से एक उम्रदराज़ रिश्तेदार ने दागा, जिन्हें मैं उसी अंदाज़ में जवाब नहीं दे सकता था.

जब मैंने स्टॉक मार्केट के हमेशा गिरने के उनके कारणों के बारे में समझा, तो पता चला कि उनके स्रोतों से मिलने वाली जानकारी का यही नतीजा निकाला जा सकता था. दरअसल, निवेश में न तो उनकी कोई दिलचस्पी थी और न ही ऐसी किसी दिलचस्पी की उन्हें ज़रूरत थी, क्योंकि परिवार के दूसरे लोग उनके फ़ाइनेंशियल मसलों का ख़याल रखते थे. वो एक ही फ़ाइनेंशियल न्यूज़ देखती थीं. वही जो गूगल न्यूज़ का हेडलाइन नोटिफ़िकेशन उनके फ़ोन में उन्हें दिखाता. हालांकि ये हेडलाइन तभी दिखाई देतीं, जब मार्केट में तेज़ गिरावट होती. हालांकि, मुझे नहीं पता कि ख़बरों का ये चुनाव किसी एल्गोरिदम पर आधारित होता होगा या किसी एडिटोरियल सलेक्शन के आधार पर.

जो बात बिना शक़ सही है, वो ये कि फ़ाइनेंशियल न्यूज़पेपर और वेबसाइट्स के अलावा, स्टॉक मार्केट की ख़बर तभी हेडलाइन बनती है जब किसी बड़े इंडेक्स में कोई तेज़ गिरावट आती है, तेज़ गिरावट यानी आमतौर पर कम-से-कम दो प्रतिशत की गिरावट. जब बात स्टॉक मार्केट की ख़बरों की हो, तो लगता है जैसे उसमें बड़ी और बुरी-ख़बरों का कोई फ़िल्टर लगा होता है. कोई लॉजिक (या उसका न होना) होता होगा जो ऐसी हेडलाइनें बहुत से लोगों के फ़ोन की स्क्रीन पर आ जाती हैं. हममें से जो सीरीयस इन्वेस्टर हैं, वो स्टॉक और इंडेक्स के एक दिन में होने वाले उतार-चढ़ाव पर शायद ही कभी ध्यान देते होंगे. हालांकि, जिन लोगों की निवेश में कोई हिस्सेदारी नहीं और जो नए-नए निवेशक हैं, वो ज़रूर इस डरावने ख़बरिया सिस्टम से प्रभावित हो जाते हैं.

सोशल मीडिया पर भी, एक दिन के रिटर्न के 'रिसर्च' अनालेसिस का एक पूरा सब-कल्चर है, जिसमें एक ही दिन में तेज़ गिरावट के नंबरों को बड़ा करके दिखाया जाता है. सच कहें, तो क्योंकि सोशल मीडिया का सबसे अहम लक्ष्य ही लोगों का ध्यान खींचना है, इसलिए ये स्ट्रैटजी काम करती है. मुझे लगता है कि रोज़ ट्रेड करने वाले और शॉर्ट-टर्म के पंटरों को ये खोखली टिप्पणियां बड़े काम की लगती होंगी. हालांकि, मुझे इस बात का कोई अंदाज़ा नहीं है.

ख़ैर, इस पूरे मसले को लेकर मैं काफ़ी उत्सुक था. इसलिए मैंने BSE सेंसेक्स को लेकर वैल्यू रिसर्च पर एक छोटी सी खोजी एक्सरसाइज़ शुरू की. मैंने 1993 से 2023 तक, हर रोज़ की क्लोज़िंग वैल्यू को लिया और रोज़ के रिटर्न को पांच कैटेगरी के तहत ट्रेडिंग वाले दिनों का नंबर निकाला: -2 प्रतिशत से ख़राब, -1 से -2 प्रतिशत, -1 से +1 प्रतिशत, +1 से +2 प्रतिशत और +2 प्रतिशत से ज़्यादा.

जब मैंने इस डेटा को देखा, तो साफ़ था कि डराने वाले (2 प्रतिशत से बड़ी गिरावट) नंबरों के दिन पिछले कुछ सालों में काफ़ी कम हुए थे. तेज़ गिरावट वाले नंबरों की सीरीज़ ये है, जो 1993 से शुरू होती है और 2023 में ख़त्म होती है: 25, 11, 14, 20, 18, 31, 20, 49, 25, 7, 8, 18, 8, 25, 17, 63, 28, 9, 15, 4, 6, 1, 10, 6, 0, 5, 2, 23, 5, 9, और 0. इन वर्षों की तुलना में, अंत में होने वाला उनका असर सबसे ज़्यादा मायना रखता है और ये काफ़ी पॉज़िटिव है. मिसाल के तौर पर, 1999 को लीजिए, तब बाज़ार 75 प्रतिशत की भारी बढ़त पर था, जो इस पूरे सैंपल में सबसे ज़्यादा है. इस साल सेंसेक्स की शुरुआत 3060 से की और अंत 5375 पर हुआ था. और फिर भी, इस साल के दौरान, 20 ऐसे क़ारोबारी दिन थे, जब इसमें 2 प्रतिशत से ज़्यादा की गिरावट आई. इसी साल एक ऐसा दिन भी था जब 6.9 प्रतिशत की गिरावट हुई!

इसकी तुलना 2021-23 के तीन वर्षों से करें, जब सेंसेक्स 50 प्रतिशत बढ़ा और इस अर्से में केवल 14 दिन ही ऐसे थे. या 2016-2019 के चार साल में, जब बाज़ार कुल 57 प्रतिशत ऊपर थे और सिर्फ़ 13 दिन ही थे जब इनमें 2 फ़ीसदी से ज़्यादा की गिरावट आई. मेरे अनालेसिस का बड़ा नतीजा ये है कि बाज़ार अब पहले की तुलना में काफ़ी शांत हैं. इसे मिडिल 'मॉडरेट' बैंड में सबसे अच्छी तरह से दिखाई देता है, जो -1 से +1 प्रतिशत का है. 1993 से 2009 तक इस सीमा में दिनों की औसत संख्या 126 है, जबकि 2010 से 2023 तक 186 है!

मैं कहूंगा कि हमने शेयर बाज़ारों के उतार-चढ़ाव में बड़े पैमाने पर कमी देखी है. हालांकि, आम सोच है कि बाज़ार ज़्यादा उतार-चढ़ाव वाले, जोख़िम वाले और भारी गिरावट वाले हो गए हैं. और तो और, इसका नकारात्मक प्रभाव सिर्फ़ मेरी चाची जैसे लोगों तक ही सीमित नहीं है. केवल एक मिसाल लें, तो इसकी जड़ में NPS और EPF में इक्विटी निवेश बढ़ाने से लगातार इंकार करना भी शामिल है.

व्यक्तिगत तौर पर, मैं इसका पूरा दोष न्यूज़ मीडिया और सोशल मीडिया पर मढ़ता हूं. ये फ़र्ज़ी ख़बर है कि कैसे बाज़ार के उतार-चढ़ाव और जोख़िम बहुत गंभीर नुक़सान कर रहे हैं.


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