हर्ष उपाध्याय (कोटक महिंद्रा एसेट मैनेजमेंट कंपनी में चीफ़ इन्वेस्टमेंट ऑफ़िसर - इक्विटी) वर्तमान में लगभग ₹78,704 करोड़ के कुल एसेट्स वाली सात स्कीमों को मैनेज करते हैं. उनके द्वारा मैनेज की जाने वाली अलग-अलग स्कीमों में कोटक फ़्लेक्सी-कैप फ़ंड भी शामिल है, जिसकी एसेट वैल्यू ₹44,500 करोड़ से ज़्यादा है और जो फ़्लेक्सी-कैप कैटेगरी में तीसरी सबसे बड़ी स्कीम है.
हाल ही में हुई इस बातचीत के दौरान उन्होंने अपने करियर के सफ़र, इन्वेस्टमेंट फ़िलॉसफी और फ़ंड हाउस में हुए हालिया बदलावों पर चर्चा की.
इस बातचीत के संपादित अंश यहां दे रहे हैं:
आपने UTI में अपनी शुरुआत कैसे की?
मैं इंजीनियरिंग फ़ील्ड से हूं. फिर मैंने IIM लखनऊ से MBA किया. तो, इंजीनियरिंग पूरी करने और MBA शुरू करने के दौरान ही मैंने सोचा कि मुझे कैपिटल मार्केट में अपना करियर बनाना चाहिए.
मेरी गर्मियों की इंटर्नशिप ने भी मुझे बढ़ावा दिया, जो कि इक्विटी रिसर्च को लेकर थी. इससे मुझे ये जानकारी मिली कि इक्विटी रिसर्च में क्या करना होता है और ये प्रोसेस स्टॉक चुनने और पोर्टफ़ोलियो बनाने में कैसे मदद करती है. ये जानकारी, उस वक़्त निवेश के बारे में मेरी नॉलेज बेसिक थी.
ज़ाहिर सी बात है कि उस वक़्त मैं और ज़्यादा जानकारी हासिल करने और इन्वेस्टमेंट फ़ील्ड में आने के लिए काफ़ी उत्साहित था. और इस तरह मैंने इक्विटी रिसर्च के लिए UTI में अपनी शुरुआत की. उस दौर में इक्विटी रिसर्च पर काम देने वाली कंपनियां बहुत कम थीं. मैं इस फ़ील्ड में उतरने में क़ामयाब रहा, और यहीं से मेरा सफ़र शुरू हुआ. एक फ़ंड मैनेजर के तौर पर शुरुआत करने से पहले मैंने अपने करियर का लगभग आधा हिस्सा इक्विटी रिसर्च में बिताया. यहां तक कि एक फ़ंड मैनेजर के रूप में मैंने अपना दूसरा टेन्योर भी UTI MF में ही शुरू किया. तो मेरा ये सफ़र कुछ इस तरह रहा.
वैल्यू रिसर्च को हाल ही में दिए एक इंटरव्यू के दौरान समीर अरोड़ा ने बताया कि मिड-90s में ब्रोकर से भाव (ट्रेडिंग समरी) की कॉपी लेने को ही रिसर्च कहते थे. क्या आप हमें उस दौर के बारे में बता सकते हैं? साल 1996 में UTI में एक इक्विटी एनालिस्ट के तौर पर क्या काम करना पड़ता था? और आज का दौर पुराने दौर से कितना अलग है?
आप मुझे मेरी उम्र याद दिलाने की कोशिश कर रहे हैं (हंसते हुए). वो दौर इंडस्ट्री का बहुत ही शुरूआती दौर था. मैं तो ये कहूंगा कि शायद हम उस दौर में फ़ॉर्मल तरीक़े से रिसर्च करने वाली कुछ टीमों में से एक थे. हम सभी को अलग-अलग सेक्टर एलोकेट किए गए थे, और हमने सेक्टर की जटिलता के आधार पर अलग-अलग सेक्टरों को कवर किया था. और ये वो दिन थे जब हमारे पास गूगल (Google) या कोई और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म नहीं था. हमारी सारी रिसर्च पढ़ाई, मीडिया इंटरव्यू और एनुअल रिपोर्ट्स पर आधारित होती थी. हम इंडस्ट्री और कंपनी के बारे में हर उपलब्ध जानकारी पढ़ते थे.
हमारा वो तरीक़ा आज के दौर के हिसाब से भले ही कुछ अजीब लगे, पर उस वक़्त कोई और उपाय नहीं था. हमारी टीम में एक अटेंडेंट होता था, और सभी एनेलिस्ट काम की ख़बरों को अलग-अलग रंग के मार्कर से हाईलाइट करते थे. हम हर दिन अख़बार पढ़ते थे और ख़बरों पर अलग-अलग रंग से निशान लगाते थे. और फिर अटेंडेंट रंग देखकर उन क्लिपों को कैंची से काटता था और फिर उन्हें संबंधित कंपनी या इंडस्ट्री की फ़ाइलों में लगाता था. इसलिए, ये फ़ाइलें एक रेफ़रेंस प्वाइंट हुआ करती थीं ताकि हम देख सकें कि इंडस्ट्री में क्या चल रहा रहा है या किसी कंपनी के मैनेजमेंट ने हाल ही में क्या फ़ैसले लिए हैं.
वो शुरुआती दिन थे. धीरे-धीरे वक़्त के साथ, स्टॉक अनालेसिस करना फ़ॉर्मल और ज़्यादा आसान होता गया.
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आप UTI में एक बहुत ही सफल आर्बिट्राज़ फ़ंड मैनेजर थे. अब जब ऑटोमेशन बढ़ गया है, तो ये कैटेगरी अब किस तरह काम करती है?
ये कैटेगरी आज भी निवेशकों को काफ़ी अच्छा रिटर्न दे रही है. मैं उस वक़्त लगभग ₹600 करोड़ के फ़ंड मैनेज कर रहा था, जो कि उस वक़्त इंडस्ट्री में सबसे बड़ा फ़ंड था. और हमें इतने बड़े फ़ंड को मैनेज करने में कई मुश्किलें आती थीं. पर आज के ऑटोमेशन के दौर में, इंडस्ट्री का साइज़ भी बढ़ गया हैं और मैनेजर कई गुना बड़े फ़ंड्स को मैनेज कर रहे हैं.
मिसाल के तौर पर, आज हमारी टीम सिंगल आर्बिट्राज़ फ़ंड में ही ₹35,000 करोड़ से ज़्यादा का फ़ंड मैनेज करती है. और फिर भी, हमारा रिटर्न काफ़ी अच्छा है, क्योंकि ये सारा खेल सही एक्यूज़ेशन का है. अगर आप सही तरीक़े से और सही वक़्त पर एक्यूज़ेशन करते हैं, तो आप आसानी से अच्छे रिटर्न पा सकते हैं.
जाहिर सी बात है कि आपका रिटर्न शॉर्ट-टर्म ब्याज़ दरों, मार्केट में ब्याज़ दरों को लेकर अनुमान, आपकी पोज़िशन की संख्या, इंडस्ट्री में मौजूदा एसेट के मैनेजमेंट और बाक़ी चीज़ों पर निर्भर करता है. पर ये बात तो साफ़ है कि इस एसेट कैटेगरी (आर्बिट्राज़) ने हमारे शॉर्ट-टर्म निवेशकों को बेहतरीन रिटर्न दिया है, वो भी मार्केट में ज़्यादा जोख़िम उठाए बिना - लगभग न के बराबर जोख़िम.
पिछले ढाई दशकों में आर्बिट्राज़ फ़ंड में क्या बदलाव आया है?
साफ़ तौर पर, आर्बिट्राज़ के मौक़ों के साइज़ में काफ़ी बड़ा बदलाव आया है. डेरिवेटिव मार्केट के साथ-साथ कैटेगरी का साइज़ भी बढ़ा है. हम आर्बिट्राज़ ट्रेड में बहुत सारे एल्गोरिदम का इस्तेमाल कर रहे हैं. तो, इस हिसाब से ये काफ़ी आसान हो गया है क्योंकि हमें एक अच्छा ऑटोमेशन सपोर्ट मिल रहा है.
पर साथ ही, कई चुनौतियां भी सामने आई हैं. मेरा मतलब है कि इंडस्ट्री का साइज़ काफ़ी बढ़ गया है, और आप अनुमान लगा सकते हैं कि पोज़िशन्स पर नज़र बनाए रखना और भारी लेनदेन करना कितना चुनौती भरा काम हो गया है. तो साफ़ तौर पर, साइज़ बढ़ने से चुनौतियां भी बढ़ी हैं और आपके पास बड़े साइज़ में भी सही एक्सक्यूशन करने की क़ाबिलियत होना ज़रूरी है.
आप ख़ुद को एक निवेशक के रूप में कैसे देखते हैं? किस तरह का स्टॉक या मार्केट आपको पोज़िशन लेने के लिए उत्साहित करता है?
हमारा फ़ंड हाउस फंडामेंटल्स के आधार पर काम करता है और हम तीन बातों को ध्यान में रखते हैं, जो कि किसी भी बिज़नस या स्टॉक को देखने और परखने के लिए ज़रूरी हैं.
सबसे पहला और सबसे ज़रूरी-- हम बिज़नस को देखते हैं और इसके कॉम्पिटिटिव एडवांटेज़ को समझने की कोशिश करते हैं, यानि कि क्या ये एक स्केलेबल बिज़नस है और क्या ये मजबूत ग्रोथ रेट के साथ आगे बढ़ेगा. हम ये भी जांचते हैं कि क्या बिज़नस के पास अपने सेक्टर में प्राइसिंग पॉवर है, क्योंकि आख़िरकार यही चीज़ बिज़नस की प्रॉफ़िटेबिलिटी तय करती है. इसलिए, बिज़नस के बारे में सब कुछ पहले ही समझ लेना ज़रूरी है.
दूसरा -- मैनेजमेंट इवैल्यूएशन. इसमें हम ये देखने की कोशिश करते हैं कि बिज़नस का मैनेजमेंट माइनॉरिटी शेयरहोल्डर्स के हितों के साथ कितना और किस तरह से जुड़ा हुआ है. ये बात कहना आसान है पर करना मुश्किल, क्योंकि इसके लिए कोई हार्ड-कोड वाले नंबर या फ़ैक्ट्स उपलब्ध नहीं हैं. हमारी रिसर्च टीम के अनुभव और हमारे ख़ुद के अनुभव के ज़रिये ही हम ये जांचते हैं कि मैनेजमेंट माइनॉरिटी शेयरहोल्डर्स के हिसाब से काम कर रहा है या नहीं. हम मैनेजमेंट द्वारा लिए गए कैपिटल एलोकेशन संबंधी पुराने फ़ैसलों को भी देखते हैं, क्योंकि इससे ये पता लगता है कि कंपनी की ग्रोथ के साथ-साथ मैनेजमेंट ने कितनी कुशलता से कैपिटल का इस्तेमाल किया है. कैपिटल एलोकेशन की जांच करना हमारे लिए बहुत ज़्यादा ज़रूरी विषय है.
उसके बाद, हम वैल्यूएशन को लेकर अपना काम शुरू करते हैं, जिसमें इंडस्ट्री सेगमेंट के आधार पर अलग-अलग वैल्यूएशन मैट्रिक्स को देखा जाता है. जब वैल्यूएशन की बात आती है, तो हम फ़ाइनेंशियल परफॉरमेंस के अलग-अलग पहलुओं को देखते हैं और फिर ये तय करते हैं कि उस स्टॉक में निवेश करना सही फ़ैसला होगा या नहीं. हमारे फ़ैसले पूरी तरह से बेसिक फ़ंडामेंटल्स के आधार पर लिए जाते हैं बजाय इसके कि किसी ख़बर के आधार पर दांव लगा दिया जाए.
इसलिए, जब तक हमारे निवेशक हमारे फ़ंड में पैसा लगा रहे हैं, तब तक हम सिर्फ़ उन्हीं बिज़नस और सेक्टरों में निवेश करेंगे जो हमें सबसे सुरक्षित, बेहतर और मज़बूत लगेंगे. अगर हम वैल्यूएशन और कुछ मैक्रो-फ़ैक्टर्स को लेकर संतुष्ट नहीं हैं, तो हम कोई भी नई पोज़िशन नहीं लेंगे.
इस संदर्भ में, मैं कहना चाहूंगा कि हमारे फ़ंड का फ़्लो हमारे सभी फ़ैसलों पर असर डालता है.
असल चुनौती ये है कि सही वैल्यूएशन वाले स्केलेबल बिज़नस की पहचान की जाए. अगर ये कर लिया जाए, तो उन बिज़नस की कंपाउंडिंग क्षमता अपने आप ही अच्छा रिटर्न दे देगी.
फिर भी, कुछ ग़लतियां होने की संभावना हमेशा बनी रहती है. और यही वजह है कि हमारे पास एक डाइवर्सिफ़ाइड पोर्टफ़ोलियो है.
कब और किस तरह का स्टॉक आपको ख़रीदारी के लिए मजबूर कर देता है?
मैं किसी ख़ास स्टॉक के बारे में बात नहीं करूंगा. जैसा कि मैंने पहले बताया, अच्छे शेयरों की पहचान के लिए हम साफ़ तौर से कंपाउंडिंग क्षमता को ध्यान में रखते हैं.
आम तौर पर, हम ग्रोथ एट ए रीज़नेबल प्राइस या उचित दामों पर ग्रोथ की (GARP) स्ट्रैटेज़ी अपनाते हैं. मैं कहना चाहूंगा कि ये भारत जैसे उभरते मार्केट में एक 'बीच के रास्ते' की तरह है, जहां हमेशा ग्रोथ को ध्यान में रखा जाता है. इस स्ट्रैटेज़ी के तहत, अगर आप साइकिल या भविष्य में संभावित ग्रोथ का आकलन करने में ग़लत भी हों, तो आपको आपकी उम्मीदों के हिसाब से शायद कुछ कम रिटर्न मिले. हालांकि, अगर आप ग्रोथ-ओरिएंटेड प्रोसेस अपनाते हैं तो आपके द्वारा पैसा कमाने की संभावना बनी रहती है.
हमारा मानना है कि ग्रोथ की ओर थोड़ा झुकाव रखना भारतीय संदर्भ में एक अच्छी स्ट्रैटेज़ी है. और साथ ही वैल्यूएशन को भी ध्यान में रखना होगा. ऐसा नहीं होना चाहिए कि अच्छी ग्रोथ की उम्मीद में किसी भी भाव में स्टॉक ले लिया जाए. कोई भी वैल्यूएशन, चाहे कम हो या ज़्यादा, वैल्यूएशन की पेमेंट, रेंज के हिसाब से होना चाहिए. इसलिए, अगर आप उचित वैल्यूएशन वाले ग्रोथ शेयरों में निवेश करते हैं, तो काफ़ी उम्मीद है कि वक़्त के साथ आप मार्केट से बेहतर प्रदर्शन करेंगे.
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हमें पता लगा है कि कुछ फ़ंड मैनेजरों ने हाल ही में इस्तीफ़ा दिया है, और अब आपके पास और भी ज़्यादा ज़िम्मेदारी है. अक्टूबर 2023 से आपने 6 स्कीमों को को-मैनेज करना शुरू किया है. आप 11 फ़ंड्स को कैसे को-मैनेज करते हैं?
मेरी ये नई पोज़िशन एक अंतरिम मैनेजर के तौर पर है. नए फ़ंड मैनेजरों ने जॉइन कर लिया है, और जल्द ही आपको उनके नामों की लिस्ट और फ़ंड मैनेजमेंट के बारे में जानकारी मिल जाएगी.
आपको ये भी पता लगेगा कि दो सबसे अनुभवी फ़ंड मैनेजर भी हमारे साथ जुड़े हैं, और उन्हें फ़ंड मैनेजमेंट की ज़िम्मेदारियां भी दी गई हैं. आने वाले कुछ ही वक़्त में, आप फ़ंड्स का ट्रांज़िशन देखेंगे. ये सब होने के बाद, मैं वही सब मैनेज करूंगा जो पहले किया करता था. तो, इस हिसाब से, मेरी क्षमता अभी भी वही है जो पहले थी. और मैं अपनी पहले की मैनेजमेंट संबंधी ज़िम्मेदारियां निभाना जारी रखूंगा.
कोटक फ़्लेक्सी-कैप फ़ंड के रिटर्न में कोई कंसिस्टेंसी नहीं है. इसका कारण क्या हैं? और आप इसके प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिए क्या योजना बना रहे हैं?
जैसा कि आपने कहा कि कंसिस्टेंसी नहीं है, तो आप शायद बेंचमार्क की तुलना में ये बात कह रहे हैं. और दुर्भाग्य से, इस वक़्त, बेंचमार्क पर हमारा कोई कंट्रोल नहीं है; बेंचमार्क को रेगुलेटर तय करता है.
ये फ़ंड पिछले 14 साल से मार्केट में है, और इस बीच बेंचमार्क तीन बार बदल चुके हैं. शुरुआत में ये निफ़्टी 50 था, फिर ये NSE 200 बन गया, और 1 दिसंबर 2021 के बाद ये NSE 500 बन गया है. इसलिए, अगर आप आज के बेंचमार्क के साथ पिछले प्रदर्शन की तुलना करेंगे, तो ज़ाहिर सी बात है कि आपको इन-कंसिस्टेंसी नज़र आएगी.
अब शायद ये अलग-अलग बाक़ी कैटेगरी में भी हो रहा है. कुछ नए फ़ंड्स को भले ही इस तरह की समस्या का सामना न करना पड़े, पर पुराने सभी फ़ंड्स इसका सामना कर रहे हैं. अगर आप इस मुद्दे को दरकिनार कर दें और 5-10 साल की निवेश अवधि में रोलिंग रिटर्न पर नज़र डालें, तो आप पाएंगे कि हमारे फ़ंड्स - न सिर्फ कोटक फ्लेक्सी-कैप बल्कि हमारे लगभग सभी फ़ंड्स - ने कंसिस्टेंसी के साथ रिवाइज़ बेंचमार्क्स से भी बेहतर प्रदर्शन किया है.
फिर भी, मैं कहना चाहूंगा कि हरेक फ़ंड अलग-अलग फेज़ में अलग-अलग कारणों से ख़राब प्रदर्शन भी कर सकता है. ये कारण बाहरी भी हो सकते हैं और पोर्टफ़ोलियो संबंधी भी. पर यही तो असल चुनौतियां हैं. मेरा कहने का मतलब है कि अगर आप लगभग पिछले 15 साल से मार्केट में हैं और फ़ंड मैनेज कर रहे हैं, तो ज़ाहिर है कि आपको ऐसे वक़्त का भी सामना करना पड़ेगा जो चुनौती पेश करेगा. और हमारे मामले में भी यही हुआ है. लेकिन हमें पूरा भरोसा है कि अगर आप हमारी इन्वेस्टमेंट फ़िलॉसफी पर भरोसा बरक़रार रखेंगे और हमारी डिसिप्लिन वाली स्ट्रैटेजी के साथ बने रहेंगे, तो हम निवेशकों को अच्छा रिटर्न देना जारी रखेंगे.
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