फंड वायर

बाज़ार में रैली के दौरान आप 3 तरह के फ़ंड में निवेश कर सकते हैं

ये गाइड नए निवेशक के लिए बड़े काम की है

Three types of Mutual Funds you can look at in this red-hot market

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जब बाज़ार अच्छा प्रदर्शन कर रहे हों, जैसा अभी कर रहा हैं तो निवेशक चॉकलेट के स्टोर में खड़े बच्चों की तरह ललचा जाते हैं.

आज आप म्यूचुअल फ़ंड की स्थिति को देखेंगे, तो पाएंगे कि 40 कैटेगरी में फैले 1,400 से ज़्यादा फ़ंड्स उत्साहित भी कर रहे हैं और भ्रमित भी.

उत्साहित इसलिए, क्योंकि बाज़ार में ज़्यादातर इक्विटी फ़ंड शानदार रिटर्न दे रहे हैं; और भ्रमित करने की वजह ये है कि हम उत्साह में अपनी जोख़िम उठाने की क्षमता और लक्ष्य को भूल जाते हैं और सिर्फ़ रिटर्न के पीछे भाग सकते हैं.

हालांकि, हमें इससे आगे देखना है. ये बात ख़ासतौर से ऐसे निवेशकों के लिए अहम है जो बाज़ार में बिल्कुल नए हैं और इस बात से अनजान हैं कि चीज़ें कितनी तेज़ी से बदल सकती हैं. केवल प्रदर्शन के आंकड़े देखने से हम अनचाही ग़लतियां कर सकते हैं, जिसके लिए बाद में हमें पछताना भी पड़ सकता है. लेकिन फ़िक्र न करें, यहां तीन फ़ंड्स कैटेगरी हैं, जो आसानी से बाज़ार के हर हालात का सामना करने में आपकी मदद कर सकती हैं.

इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम (ELSS)

इसे टैक्स-सेविंग म्यूचुअल फ़ंड के तौर पर भी जानते है

ELSS क्यों अच्छे हैं?

ये आपकी संपत्ति बढ़ाने के साथ-साथ टैक्स बचाने में भी मदद करते हैं.

ELSS फ़ंड किसे निवेश करना चाहिए?

जिन निवेशकों ने ओल्ड टैक्स रिज़ीम (old tax regime) का विकल्प चुना है. वो इनकम टैक्स एक्ट की धारा 80C के तहत ₹1.5 लाख तक का टैक्स डिडक्शन क्लेम कर सकते हैं.

न्यू टैक्स रिज़ीम (New tax regime) को अपनाने वाले इन्वेस्टर्स अगर अपने निवेश को लेकर अनुशासित रहना चाहते हैं, तो इनमें निवेश पर विचार कर सोच सकते हैं, हालांकि, उन्हें किसी भी तरह के टैक्स डिडक्शन का बेनेफ़िट नहीं मिलेगा.

ये भी पढ़िए- Mutual Fund निवेश क्या है और किसके लिए है?

ELSS की ये बातें जानना ज़रूरी हैं?

इन फ़ंड्स में तीन साल का लॉक-इन होता है. हालांकि, ये अभी भी पब्लिक प्रॉविडेंट फ़ंड (PPF) जैसे और दूसरे टैक्स सेविंग के विकल्पों से काफ़ी बेहतर है, जिसमें 15 साल का लॉक-इन है.

दूसरी बात ये कि तीन साल का लॉक-इन नए निवेशकों के लिए बुरा नहीं है. इस सुविधा के चलते लंबे समय तक का अनुशासन बना रहता है, जो पैसे इकट्ठा करने का क़ारगर हथियार है.

इसके अलावा, तीन साल का लॉक-इन, इन्वेस्टर्स को शॉर्ट-टर्म मार्केट के उतार-चढ़ाव से बचने और लंबे समय में अच्छा रिटर्न हासिल करने देता है.

ये कैसे परफ़ॉर्म करता है?

हमने पिछले सात साल के दौरान हर महीने पैसे जमा करने पर, एवरेज ELSS फ़ंड के तीन-साल के रोलिंग रिटर्न का विश्लेषण किया. अच्छी बात ये है कि भले ही आपने एवरेज ELSS फ़ंड में पैसा इन्वेस्ट किया हो, फिर भी आपको 58 प्रतिशत समय के दौरान 12 प्रतिशत से ज़्यादा का रिटर्न मिला होता.

हाइब्रिड फ़ंड्स

हाइब्रिड फ़ंड क्या होते है?

कई एसेट कैटेगरी में इन्वेस्ट करने वाले हाइब्रिड फ़ंड्स का आमतौर पर इक्विटी और डेट में मिलाजुला निवेश होता है. जिससे निवेश पर बाज़ार के उतार-चढ़ाव के असर को कम करने में मदद मिलती है.

भले ही, हाइब्रिड फ़ंड कई तरह के होते हैं लेकिन हम अभी दो कटेगरी का सुझाव देते हैं:

एग्रेसिव हाइब्रिड फ़ंड

ये फ़ंड नए निवेशकों के लिए सबसे अच्छे हैं.

दरअसल, ये 65-80 प्रतिशत तक पैसा इक्विटी (equity) में और बाक़ी डेट (debt) में निवेश करते हैं, जिससे इसमें दोनों का फ़ायदा मिलता है: i) इक्विटी का ज़्यादा रिटर्न और ii) डेट की सुरक्षा. मार्केट के उतार-चढ़ाव के समय डेट का हिस्सा गिरावट से सुरक्षा देता है.

बैलेंस्ड एडवांटेज फ़ंड

बैंलेंस्ड एडवांटेज फ़ंड (BAFs) भी डेट और इक्विटी में निवेश करते हैं.

लेकिन, एग्रेसिव हाइब्रिड फ़ंड्स के विपरीत, इन फ़ंड्स की एसेट एलोकेशन स्ट्रैटजी लचीली होती है. बुनियादी तौर पर, एक फ़ंड मैनेजर देखता है कि फ़ाइनेंशियल मार्केट कैसा प्रदर्शन कर रहे हैं. जब मार्केट अच्छा प्रदर्शन कर रहा हो, तब BAF संभावित रूप से अच्छा रिटर्न पाने के लिए इक्विटी में इन्वेस्ट कर सकते हैं. जब मार्केट का प्रदर्शन इतना ख़ास नहीं हो, तब वो आपके निवेश में स्थायित्व लाने के लिए बॉन्ड जैसे सुरक्षित विकल्पों की ओर रुख़ करते है.

ऊपर दिए दो हाइब्रिड फ़ंड निवेश का पूरा समाधान देने के लिहाज से तैयार किए गए हैं, जो ख़ासतौर से उन निवेशकों के लिए सही हैं, जो पैसा बचाने और अपने पैसे की सुरक्षा के लिए बीच का रास्ता तलाशना चाहते हैं.

असल में, नीचे दिए गए ग्राफ़ से मंदी के दौरान इनकी मजबूती का पता चलता है. जब कोविड के कारण ग्लोबल फ़ाइनेंशियल क्राइसिस के चलते मार्केट में गिरावट आई और भारतीय बैंक घटिया कर्ज़ से प्रभावित हुए, तब इन दोनों हाइब्रिड फ़ंड्स में प्योर इक्विटी इंडेक्स की तुलना में कम गिरावट देखने को मिली थी.

ये भी पढ़िए- रेकरिंग डिपॉज़िट या म्यूचुअल फंड SIP: क्या बेहतर है?

इंडेक्स फ़ंड्स

ये क्या करता है?

ये म्यूचुअल फ़ंड एक मार्केट इंडेक्स की नक़ल करते हैं. ये उन्हीं कंपनियों को ख़रीदते हैं जो उनके द्वारा ट्रैक किए जाने वाले इंडेक्स पर लिस्टेड हैं और इंडेक्स मिले वेटेज के रेशियो में ही ख़रीदते हैं.

मान लीजिए कि रिलायंस, ITC और HDFC बैंक सेंसेक्स पर लिस्ट हैं. हर एक की 4 प्रतिशत शेयर है, तो सेंसेक्स पर नज़र रखने वाला एक इंडेक्स फ़ंड भी समान कंपनियों में और 4 प्रतिशत के रेशियो में ही निवेश करेगा.

आपको किस तरह के इंडेक्स फ़ंड में निवेश करना चाहिए?

नए निवेशकों को केवल इंडेक्स फ़ंड में ही निवेश करना चाहिए जो, या तो निफ़्टी 50 या सेंसेक्स को ट्रैक करते हैं. ये भारत के दो सबसे पॉपुलर इंडेक्स हैं.

इन फ़ंड्स में किसे निवेश करना चाहिए?

अगर आपको लगता है कि हाइब्रिड फ़ंड आपकी पसंद के हिसाब से बहुत एवरेज हैं और ELSS स्कीम आपके लिए फ़ायदेमंद नहीं हैं क्योंकि आप न्यू टैक्स रिज़ीम में हैं, तो फ़ंड की ये केटेगरी आपके लिए ही है.

साथ ही, ये फ़ंड काफ़ी प्रभावी हैं, मैनेज करने में आसान हैं और कम चार्ज लेते हैं, जो उन्हें निवेश का कम लागत वाला ऑप्शन बनाते हैं.

ये कैसे परफ़ॉर्म करता है?

पिछले 10 साल के दौरान निफ़्टी 50 पर नज़र रखने वाले इंडेक्स फ़ंड्स ने 13.36 प्रतिशत का सालाना रिटर्न दिया है.

याद रखने लायक़ कुछ बातें...

  • ये सोचकर निवेश करने से न हिचकिचाएं कि बाज़ार पहले से ही काफ़ी ऊंचाई पर पहुंच चुका है. बाज़ार नई ऊंचाइयां बनाने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं.
  • अगर आप ओल्ड टैक्स रिज़ीम में हैं तो ELSS स्कीम को चुनें.
  • अगर आप निवेश के क्षेत्र में नए हैं और इक्विटी बाज़ार में शॉर्ट-टर्म उतार-चढ़ाव का अनुभव करने से डरते हैं, तो हाइब्रिड फ़ंड से शुरुआत करें. (वैसे हम एग्रेसिव हाइब्रिड फ़ंड पसंद करते हैं.)
  • आप अभी भी तय नहीं कर पाए हैं, तो एक इंडेक्स फ़ंड में निवेश करें.
  • रिटर्न के पीछे मत भागिए. मिड-कैप और स्मॉल-कैप फ़ंड्स पर सिर्फ़ इसलिए ध्यान न दें कि वो ज़बरदस्त रिटर्न दे रहे हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि इनमें बहुत ज़्यादा उतार-चढ़ाव होता है और अगर आप अस्थिरता और निगेटिव रिटर्न के लंबे दौर के आदी नहीं हैं... तो इनसे दूर रहें!
  • आख़िर में एक और ज़रूरी बात को समझ लें ,सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) शुरू करें. एक बार में ही अपना पूरा पैसा निवेश न करें. SIPआपको बाज़ार के उतार-चढ़ाव से निपटने में मदद कर सकती है.
  • छोटी शुरुआत करें और निवेश को समझें: एक नए निवेशक के तौर में सबसे बड़ी चुनौती डरना और भागना नहीं है. इसलिए भले ही बाज़ार गिरे, मगर लंबे समय तक निवेश बनाए रखने की कोशिश करें. लंबे समय में इक्विटी ने ऐतिहासिक रूप से अच्छा प्रदर्शन किया है.

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