शॉर्ट-टर्म फ़िक्स्ड मैच्योरिटी प्लान (FMP) वापस निवेशकों के रडार पर हैं. पिछले दो महीनों में आदित्य बिड़ला सन लाइफ़ म्यूचुअल फ़ंड, एक्सिस म्यूचुअल फ़ंड, कोटक म्यूचुअल फ़ंड, निप्पॉन इंडिया म्यूचुअल फ़ंड और SBI म्यूचुअल फ़ंड जैसे बड़े फ़ंड हाउस ने एक दर्जन से ज़्यादा ऐसे FMPs लॉन्च किए हैं.
लेकिन इससे पहले कि हम उनके दोबारा पॉपुलर होने के कारणों पर ग़ौर करें, ये जानना ज़रूरी है कि FMPs क्या होते हैं. ये क्लोज़-एंड (closed ended) वाले म्यूचुअल फ़ंड हैं, जो मुख्य रूप से डेब्ट इंस्ट्रूमेंट्स (debt instruments) में इन्वेस्ट करते हैं. सरल शब्दों में कहें, तो FMP में निवेश किया गया पैसा, फ़ंड के मैच्योर होने तक निकाला नहीं जा सकता या लॉक रहता है. इसका फ़ायदा ये होता है कि आपके निवेश की ब्याज दरों में उतार-चढ़ाव नहीं आता और आपको काफ़ी हद तक इस बात से निश्चिंत हो सकते हैं कि अंत में आपको कितना रिटर्न मिलने वाला है. इसलिए, जब ब्याज दरें ऊंची होती हैं, तो निवेशक अपने पैसे को ऊंची ब्याद दरों पर लॉक कर सकते हैं.
इससे पहले भी, FMP एक प्रमुख डेट फ़ंड कैटेगरी (debt fund category) हुआ करती थी, ख़ासकर लार्ज कॉर्पोरेशन और हाई नेट वर्थ इंडिविजुअल (HNI) के बीच. हालांकि, DHFL और एस्सेल ग्रुप के लोन डिफ़ॉल्ट करने की वजह से इस पर निवेशकों का भरोसा कम हो गया था.
FMPs में अचानक दिलचस्पी क्यों बढ़ी?
इसके दो कारण हैं कि एक साल से कम की मैच्योरिटी पीरियड वाले FMPs तेज़ी से लोकप्रिय हो रहे हैं.
सबसे पहले, बैंकिंग सेक्टर में मज़बूत क्रेडिट ग्रोथ के कारण, डेट इंस्ट्रूमेंट्स (debt instruments) की शॉर्ट टर्म यील्ड (short term yield) में शानदार बढ़ोतरी हुई है. उदाहरण के लिए, तीन महीने के डिपॉज़िट में यील्ड का सर्टिफ़िकेट ऑफ़ डिपॉज़िट (CD) हाल के महीनों में 7 प्रतिशत से बढ़कर 7.5 प्रतिशत हो गया है. इसी तरह, तीन महीने के डिपॉज़िट सर्टिफ़िकेट पर रिटर्न 7.5 प्रतिशत से बढ़कर 8 प्रतिशत हो गया है.
देवांग शाह, सह-प्रमुख, फ़िक्स्ड इनकम, एक्सिस म्यूचुअल फ़ंड, भी इससे सहमत हैं, "हमने पिछली दो तिमाहियों में मज़बूत क्रेडिट ग्रोथ देखी है, जो डिपॉज़िट ग्रोथ को पीछे छोड़ रहा है, ये शॉर्ट टर्म यील्ड में बढ़ोतरी का मुख्य कारण रहा है."
डेट सिक्योरिटीज़ (debt securities) पर बढ़ती ब्याज दरों को देखते हुए, FMPs निवेश का एक आकर्षक विकल्प बन गए हैं.
दूसरा, भले ही भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने अगस्त-सितंबर 2023 से लिक्विडिटी को टाइट कर रखा है, लेकिन ऑपरेटिव या ओवरनाइट रेट 6.50 प्रतिशत से बढ़कर 6.75 प्रतिशत हो गए हैं.
क्योंकि अभी ब्याद दरें हाई हैं, तो क्या फ़ंड हाउसों के लिए शॉर्ट टर्म FMPs के बजाय लॉन्ग ड्यूरेशन के FMPs को लॉन्च करना बेहतर नहीं होगा? हम पता लगा रहे हैं कि ऐसा क्यों है.
शॉर्ट-टर्म FMPs की लोकप्रियता
हाल ही में लॉन्च किए गए ज़्यादातर FMPs 100 दिनों से कम की मैच्योरिटी वाले शॉर्ट टर्म फ़ंड हैं. दीपक अग्रवाल, CEO-Debt, कोटक महिंद्रा AMC, के मुताबिक़, "लिक्विडिटी की कमी और रेट हाई होने के कारण, लिक्विड फ़ंड्स की तुलना में हाई रिटर्न पाने की निश्चितता कम है. इसलिए, इन्वेस्टर्स के लिए, एक सीमित अवधि के लिए FMPs में इन्वेस्ट करना समझदारी है. तीन से चार महीने के लिए, इसमें काफ़ी हद तक 'होल्ड-टू-मैच्योरिटी' सिद्धांत का पालन होता है, और इन्वेस्टर्स को मोटे तौर पर यील्ड-टू-मैच्योरिटी (YTM ) ख़र्चों का एहसास होता है."
अग्रवाल आगे कहते हैं कि शॉर्ट ड्यूरेशन के FMPs को लॉन्ग टर्म के FMP पर बढ़त हासिल है, क्योंकि ये कई फ़ायदे देते हैं. चूंकि इंडेक्सेशन का लाभ हटा दिया गया है, इसलिए कॉरपोरेट्स के लिए लॉन्ग ड्यूरेशन के FMP में इन्वेस्ट करने के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं है. इसके अलावा, अगर वो दो या तीन साल के लिए इन्वेस्टमेंट करना चाहते हैं, तो ओपन-एंडेड शॉर्ट-टू-मीडियम-टर्म फ़ंड या फिर टारगेट मैच्योरिटी फ़ंड (TMF) ज़्यादा बेहतर होते हैं, क्योंकि ये किसी भी समय पैसा निकालने की सुविधा देते हैं.
हमारी राय
जब डेट (debt) में इन्वेस्टमेंट की बात आती है, तो चीज़ों को सरल रखना सबसे अच्छा होता है.
FMP की एक बड़ी कमी है कि ये क्लोज़-एंड फ़ंड हैं, जिसका अर्थ है कि अगर इन्वेस्टर्स को तत्काल पैसे की ज़रूरत होगी तो अपना पैसा नहीं निकाल सकते हैं. हालांकि, अगर आप अपना पैसा डेट फ़ंड में लगाना चाहते हैं और इन्वेस्टमेंट के लिए एक ख़ास समय सीमा रखते हैं, तो टारगेट-मैच्योरिटी फ़ंड (TMF) एक अच्छा विकल्प है, क्योंकि ये ओपन-एंडेड हैं, जिससे आप जब चाहे अपने फ़ंड का इस्तेमाल कर सकते हैं.
अगर आप एक साल के कम समय के लिए निवेश कर रहे हैं, तो लिक्विड फ़ंड सही हैं, और अगर आप एक से तीन साल के लिए निवेश करना चाहते हैं, तो शॉर्ट ड्यूरेशन डेट फ़ंड का विकल्प चुनना बेहतर होगा.
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