SEBI की एक हालिया स्टडी से पता चला है कि 10 में से 9 ट्रेडर्स को फ़्यूचर्स और ऑप्शंस (F&O) में नुक़सान उठाना पड़ा. औसतन, एक ट्रेडर को साल 2022 में ₹82,500 का नुक़सान हुआ.
जो नहीं जानते, उन्हें बताते चलें कि फ़्यूचर्स और ऑप्शंस (F&O) , स्टॉक एक्सचेंज पर कामकाज करने वाले वो डेरिवेटिव हैं जो शेयर्स और कमोडिटीज़ जैसे संबंधित एसेट्स से अपनी वैल्यू प्राप्त करते हैं.
आगाह करने वाले इन आंकड़ों के बावजूद, कई रिटेल निवेशक अभी भी फ़्यूचर्स और ऑप्शंस की तरफ खिंचे चले जाते हैं. इसमें सारी ग़लती सिर्फ उनकी नहीं है. फ़्यूचर्स और ऑप्शंस को ग्लैमरस तरीक़े से आकर्षक रिटर्न के साथ पेश किया जाता है, और इसमें कोई हैरत की बात नहीं है कि निवेशक F&O ट्रेडिंग के मोहजाल में फंस जाते हैं.
इससे पहले कि आप अपनी मेहनत की कमाई ग़वाने का फ़ैसला करें, आइए समझें कि F&O सेगमेंट जोख़िम भरा क्यों है और एक निवेशक को इससे दूर क्यों रहना चाहिए?
जटिल प्राइसिंग
स्टॉक के उलट, F&O में प्राइसिंग ख़ासी जटिल होती है. स्टॉक का प्राइस मूवमेंट साफ़-साफ़ समझ आता है, लेकिन F&O में प्राइसिंग कई बातों पर निर्भर करती है. इनमें स्टॉक की अस्थिरता, एक्सपायरी तक का समय, स्ट्राइक प्राइस, डिस्काउंट रेट और मौजूदा स्टॉक प्राइस शामिल हैं.
मिसाल के तौर पर, जब रिलायंस इंडस्ट्रीज के स्टॉक प्राइस में 7.34 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई, तो उसी अवधि में इसके डेरिवेटिव के प्राइस में 300 फ़ीसदी का भारी उछाल देखा गया (जैसा कि टेबिल में देखा जा सकता है).
तारीख़ | प्राइस | |
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रिलायंस इंडस्ट्रीज का ओपनिंग शेयर प्राइस | 20 नवंबर 2023 | ₹ 2,349 |
रिलायंस इंडस्ट्रीज का क्लोज़िंग शेयर प्राइस | 18 दिसंबर 2023 | ₹ 2,521 |
प्राइस में बढ़ोतरी | 7% | |
डेरीवेटिव* ओपनिंग प्राइस | 20 नवंबर 2023 | ₹ 11 |
डेरीवेटिव* क्लोज़िंग प्राइस | 18 दिसंबर 2023 | ₹ 44 |
प्राइस में बढ़ोतरी | 300% | |
*₹2,500 के स्ट्राइक प्राइस का कॉल ऑप्शन (दिसंबर अंत की एक्सपायरी) |
इसके अलावा, F&O प्राइसिंग पर फ़ंडामेंटल्स के साथ-साथ अक्सर मार्केट के उतावलेपन और तुरंत दी गई प्रतिक्रियाओं का भी काफ़ी ज़्यादा असर पड़ता है. मार्केट सेंटीमेंट, अटकलबाजी और मार्केट की जल्दबाजी से भरी प्रतिक्रिया जैसे बाहरी कारण डेरिवेटिव प्राइसिंग में कभी-कभी बेतरतीब उतार-चढ़ाव ला सकते हैं, जो शेयर मार्केट के प्राइस में उतार-चढ़ाव की तुलना में काफ़ी ज़्यादा होता है.
तारीख़ | प्राइस (₹) | |
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निफ़्टी 50 ओपनिंग प्राइस | 20 दिसंबर 2023 | 21544 |
निफ़्टी 50 लोवेस्ट प्राइस | 21 दिसंबर 2023 | 20977 |
निफ़्टी 50 क्लोज़िंग प्राइस | 22 दिसंबर 2023 | 21349 |
डेरीवेटिव* ओपनिंग प्राइस | 20 दिसंबर 2023 | 31 |
डेरीवेटिव* हाईएस्ट प्राइस | 21 दिसंबर 2023 | 217 |
डेरीवेटिव* क्लोज़िंग प्राइस | 22 दिसंबर 2023 | 49 |
*₹21,200 के स्ट्राइक प्राइस का पुट ऑप्शन (दिसंबर अंत की एक्सपायरी) |
जैसा कि टेबिल में देखा जा सकता है, 21 दिसंबर 2023 को जब FII की तरफ से हुई बिकवाली के कारण निफ़्टी 50 गिरकर 20,977 पर आ गया था, तो इसके डेरिवेटिव (पुट ऑप्शन) का प्राइस एक ही दिन में सात गुना बढ़ गया.
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इसलिए, अगर आपको लगता है कि आप मार्केट और स्टॉक की क़ीमतों का अनुमान लगा सकते हैं, तो याद रखें कि डेरिवेटिव की क़ीमतों का अनुमान लगाना और भी मुश्किल काम है.
ग़लत बिज़नस मॉडल
डेरिवेटिव ब्रोकर्स के लिए रोजी-रोटी का काम करते हैं, जो उनके बिज़नस मॉडल का एक मुख्य हिस्सा है. इस इंडस्ट्री का मुख्य लक्ष्य डेरिवेटिव ट्रेडिंग वॉल्यूम को बढ़ावा देना है, जिसमें ब्रोकर्स सक्रिय रूप से ट्रेडर्स को F&O की तरफ ले जाते हैं.
जाने-माने ऑनलाइन ब्रोकरेज़ प्लेटफॉर्म्स पर, हरेक डेरिवेटिव ट्रेड के लिए आम तौर पर ₹20 की तय फ़ीस ली जाती है. और इक्विटी ट्रेड के लिए ज़ीरो ब्रोकरेज़ फ़ीस ली जाती है. ये इस बात का सबूत है कि ब्रोकर्स का मोटा फ़ायदा सीधे तौर पर डेरिवेटिव ट्रेड के भारी भरकम वॉल्यूम से जुड़ा हुआ है.
SEBI ने अपनी एक रिपोर्ट में ये बात कही है कि FY22 में ट्रांजेक्शन कॉस्ट टोटल नेट ट्रेडिंग प्रॉफ़िट का 15 फ़ीसदी थी; और यही ट्रांजेक्शन कॉस्ट टोटल नेट ट्रेडिंग लॉस का 23 फ़ीसदी थी. इससे पता चलता है कि इतनी ज़्यादा ट्रांजेक्शन कॉस्ट की वज़ह ज़्यादा ट्रेडिंग ही है.
मार्जिन कॉल की संभावना
डेरिवेटिव ट्रेडिंग में, अगर किसी स्टॉक का प्राइस आपके मुताबिक नहीं बदलता और आपकी पोज़िशन की वैल्यू गिर जाती है, तो ब्रोकर 'मार्जिन कॉल' इशू कर सकता है. इसमें आपको संभावित नुक़सान की भरपाई के लिए अपने ट्रेडिंग एकाउंट में अतिरिक्त फ़ंड जमा करने की ज़रूरत होती है.
मिसाल के तौर पर, अगर रिलायंस इंडस्ट्रीज फ़्यूचर्स का प्राइस 250 के लॉट साइज़ के हिसाब से ₹2,555 है, तो कुल प्राइस ₹6,38,750 (₹2,555 x 250) बनता है. अगर मेंटेनेंस मार्जिन 10 फ़ीसदी पर सेट किया गया है, जो कि ₹63,875 बनता है, और फिर नुक़सान के कारण आपके ट्रेडिंग एकाउंट का बैलेंस तय समय सीमा के अंदर इस लिमिट से नीचे चला जाता है तो ब्रोकर एक मार्जिन कॉल जारी करेगा.
ट्रेडिंग एकाउंट में अतिरिक्त फ़ंड जमा न करने पर, ब्रोकर संभावित नुक़सान को कम करने के लिए आपके ट्रेड स्क्वायर ऑफ यानी ख़त्म कर सकता है. एक तय समय सीमा के दौरान घाटे वाले प्राइस मूवमेंट की वज़ह से जबरन लिक्विडेशन होने का ये ज़ोखिम एक महत्वपूर्ण पहलू है जिसे अक्सर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है.
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हमारी राय
F&O सेगमेंट तगड़े रिटर्न की वज़ह से आकर्षक लगता है, लेकिन इसमें आपके फ़ंड को ज़ीरो करने (
आपके पैसों का ब्लैक होल
) की भी पूरी क्षमता है. इक्विटी सेगमेंट में, किसी कंपनी की ग्रोथ होने पर निवेशक को भी फ़ायदा होता है, वहीं, F&O सेगमेंट में फ़ायदा तभी होता है जब दूसरों को नुक़सान हो. आसान भाषा में, आपका फ़ायदा किसी और के नुक़सान पर निर्भर करता है.
इसे देखते हुए, हम F&O से बचने की सलाह देते हैं. और SEBI की हालिया स्टडी भी इस बात को साबित करती है कि इस सेक्टर में निवेशकों को सबसे ज़्यादा नुक़सान होता है.