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इक्विटी निवेश में हाई ROE के असल मायने

आइए देखें, हाई रिटर्न ऑन इक्विटी आपके निवेश का इकलौता पैमाना क्यों नहीं होना चाहिए

इक्विटी निवेश में हाई ROE के असल मायने

ऐसा कोई पैमाना नहीं है जो ये जांच कर सके कि कंपनी निवेश करने लायक़ है या नहीं. मिसाल के तौर पर, इक्विटी पर रिटर्न (ROE) को ही लें. ये टैक्स के बाद कंपनी के कुल मुनाफ़े और कुल शेयर-धारकों की इक्विटी (कंपनी द्वारा अपने शेयरधारकों को दी जाने वाली रक़म) का रेशियो है.

शेयरधारक इसका इस्तमाल ये जांचने में करते हैं कि मैनेजमेंट, बिज़नस को बढ़ाने के लिए कमाई का सही इस्तेमाल कर रहा है या नहीं. आसान शब्दों में, अगर ROE (return on equity) घट रहा है, तो मैनेजमेंट ख़राब निवेश कर रहा है. इसी तरह, अगर ROE बढ़ रहा है, तो मैनेजमेंट अपनी कमाई को सही तरह से इस्तेमाल कर रहा है. हालांकि, हर मैट्रिक्स की तरह ही, ROE में भी कुछ ख़ामियां हैं और हेरफ़ेर की गुंजाइश भी है. कैसे? आइए देखते हैं.

इसमें क़र्ज़ का हिसाब नहीं होता
सूत्रों से पता चलता है कि ROE केवल आय वृद्धि को प्रभावित करता है, न कि इसे कैसे हासिल किया जाता है. हो सकता है कि कोई कंपनी अपनी कमाई बढ़ाने और अपना ROE बढ़ाने के लिए ज़्यादा कर्ज़ ले रही हो. हालांकि, क़र्ज़ से डूबी कंपनी में निवेश करना आपके पोर्टफ़ोलियो के लिए बहुत ज़्यादा नुक़सानदेह होगा. मिसाल के तौर पर, टाटा कम्युनिकेशंस ने साल 2013 में 137 फ़ीसदी का प्रभावशाली ROE पोस्ट किया.

हालांकि, इसके बही-खातों पर क़रीब से नज़र डालने पर पता चलेगा कि ये प्रभावशाली उपलब्धि 7.1 गुना के हाई डेट-टू-इक्विटी (debt-to-equity) की क़ीमत पर आई. लगाए गए कैपिटल (Return on capital employed or ROCE) पर इसका रिटर्न, जो कर्ज़ के लिए ज़िम्मेदार है, केवल 28 फ़ीसदी था.

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निचला स्तर नज़र का धोख़ा
लगातार घाटे में रहने वाले कई लोगों के पास शेयरधारकों की इक्विटी कम होती है, क्योंकि घाटे से शेयरधारकों की संपत्ति ख़त्म हो जाती है. इस तरह, उनकी कमाई में एकदम उछाल, हाई ROE और ग़लत नज़रिए को पैदा कर सकता है कि मैनेजमेंट ने रातोंरात एक जादुई हल तलाश लिया है.

उदाहरण के लिए, CG पावर एंड इंडस्ट्रियल सॉल्यूशंस को फ़ाइनेंशियल ईयर 2011 में बड़े पैमाने पर घाटा हुआ, जिससे इसके इक्विटी बेस पर गंभीर असर पड़ा, जो नकारात्मक हो गया. परिणामस्वरूप, जब इसने फ़ाइनेंशियल ईयर 2013 में ₹962 करोड़ का प्रॉफ़िट दर्ज किया, तो इसका ROE काफ़ी अच्छी स्थिति में 71 फ़ीसदी था.

बड़े मुनाफ़े से बड़ा ROE मिलता है
एकमुश्त मुनाफ़ा, जैसे कि मशीनरी या दूसरे फ़िज़िकल एसेट बेचने से होने वाला मुनाफ़ा, किसी दिए गए साल में कमाई को काफ़ी बढ़ा सकता है.

नतीजा, ROE भी साल के दौरान हाई दिखाई दे सकता है, जिससे ये ग़लत धारणा बनती है कि ऑपरेशनल प्रॉफ़िटेबिलिटी सुधर गई है. इसकी एक मिसाल रामकी इन्फ्रास्ट्रक्चर है. जिसने वित्त वर्ष 2013 में 27 फ़ीसदी का मज़बूत ROE दिखाया, जिसकी वजह ₹1295 करोड़ का एकमुश्त असाधारण मुनाफ़ा रहा, जो उसके क़र्ज़ के सेटलमेंट के कारण हुआ.

ये साइक्लिकल कंपनियों के लिए सही नहीं
अंतर्निहित व्यवसाय के अपने मिज़ाज की वजह से चक्रीय या साइक्लिकल शेयरों में बहुत ज़्यादा उतार-चढ़ाव आता है. इसलिए, उनका ROE भी ज़्यादा उतार-चढ़ाव भरा होता है.

नीचे दी गई टेबल साइक्लिकल स्टॉक, JSW स्टील के ऐतिहासिक ROE को दिखाती है.

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JSW स्टील का फ़ाइनेंशियल परफ़ॉर्मेंस

विवरण FY23 FY22 FY21 FY20 FY19 FY18
कुल आय (करोड़ ₹) 4,139 20,838 7,873 3,919 7,524 6,113
औसत शेयरधारकों की इक्विटी (करोड़ ₹) 67,787 57,340 41,085 35,185 30,940 24,968
रिटर्न ऑन इक्विटी (%) 6.1 36.3 19.2 11.1 24.3 24.5

ROE को लेकर कुछ ज़रूरी बातें

निवेश के सभी फ़ैसले, निवेश की जाने वाली कंपनी के गहरे अनालेसिस के बाद ही लिए जाने चाहिए. केवल एक ही मीट्रिक पर निवेश का फ़ैसला करने से अक्सर ग़लती नतीजे ही मिलेंगे. हमने ROE को एक मिसाल के तौर पर लिया है, पर यही बात हर तरह की प्रॉफ़िटेबिलिटी और वैल्युएशन के पैमानों (metrics) पर लागू होती है.


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