पिछले साल, एक प्रसिद्ध रिसर्च रिपोर्ट (उम्मीद है) में, मार्केट रेग्युलेटर सेबी ने दिखाया था कि फ़्यूचर्स और ऑप्शन्स (वायदा और विकल्प) का क़ारोबार निवेशकों के लिए काफ़ी घाटे का सौदा रहा है. रिपोर्ट से पता चला कि 89 प्रतिशत निवेशकों ने इनमें पैसा गंवा दिया, और केवल 11 प्रतिशत ने ही मुनाफ़ा कमाया. कुछ समय पहले ज़ेरोधा के सीईओ नितिन कामथ ने एक इंटरव्यू में बताया कि पूरे भारत में, डेरिवेटिव ट्रेडर क़रीब 5,00,000 से ज़्यादा नहीं हैं. ज़ेरोधा सबसे बड़ा ब्रोकर है और दूसरों के मुक़ाबले बड़े फ़ासले से है, इसलिए कामथ की बात पर भरोसा किया जाना चाहिए.
ऊपर जिन दो तथ्यों की बात हुई है उन्हें एक साथ रखने पर, एक दुखद निष्कर्ष निकलता है कि केवल 55,000 (500,000 का 11 प्रतिशत) ट्रेडर्स ने ही डेरिवेटिव से पैसा कमाया होगा! ये कम-से-कम FY2022 के लिए सच है, जिस दौरान ये स्टडी की गई थी.
कल्पना कीजिए! आप F&O ट्रेडिंग की जो विशाल गतिविधियां देखते हैं, वो बिज़नस टीवी, यूट्यूब, व्हाट्सएप और दूसरे सोशल मीडिया पर मचता बड़ा भारी शोर, और इस सबसे केवल क़रीब 55,000 लोग ही पैसा कमाते हैं. अगर आप सेबी की रिपोर्ट को विस्तार से पढ़ेंगे, तो पाएंगे कि पैसा कमाने वालों में से क़रीब आधे लोगों को साल में कुछ हज़ार रुपये का मामूली मुनाफ़ा होता है. इससे ज़्यादा उनकी कमाई तो बैंक फ़िक्स्ड डिपॉज़िट में हो जाती.
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इस कहानी की सबसे अजीब बात है कि इंडस्ट्री का कोई भी शख़्स इस साधारण तथ्य को नहीं बताएगा कि - जहां असल इक्विटी निवेश में अर्थव्यवस्था की ग्रोथ उसकी ताक़त होती है, वहीं F&O ट्रेडिंग ऐसा खेल है जिसमें कुछ भी बढ़ता नहीं है. जब भी कोई मुनाफ़ा कमाता है, तो वो किसी दूसरे ट्रेडर की जेब से निकल रहा होता है. ये बात काफ़ी चौंकाने वाली है कि भारतीय एक्सचेंज पर 90 प्रतिशत से ज़्यादा डेरिवेटिव ट्रेडिंग एक्टिविटी कलेक्टिव वैल्थ नहीं पैदा करती. अगर एक पार्टी अमीर होती है, तो इसका कारण है कि दूसरी पार्टी नुक़सान झेलती है. तो, अगर सारा घाटा किसी और का मुनाफ़ा है, तब आम निवेशकों का वो सारा पैसा किसकी झोली में जा रहा है? आप ख़ुद अंदाज़ा लगा लें.
आपने हाल ही में पढ़ा होगा कि नेशनल स्टॉक एक्सचेंज, शाम को दूसरा ट्रेडिंग सेशन शुरू करके डेरिवेटिव ट्रेडिंग का समय बढ़ाना चाहता है. रिपोर्ट्स के मुताबिक़, बाज़ार पहले वाले समय (दोपहर 3.30 बजे) पर ही बंद होंगे, लेकिन शाम 6 बजे से रात 9 बजे तक फिर से खुलेंगे. न्यूज़ रिपोर्ट्स में ये भी कहा गया है कि बाद में, एक्सचेंज शाम के सेशन को रात 11.30 बजे तक और बढ़ा सकता है. ये बिल्कुल स्पष्ट है कि ब्रोकर, एक्सचेंज आदि इस गतिविधि से फ़ायदा उठाते हैं, जो ऐसा करने का पहला उद्देश्य लगता है. अगर निवेशक चौबीसों घंटे बिज़नस करते हैं, तो वो चौबीसों घंटे पैसा गंवा सकते हैं, जो बाक़ी के सभी लोगों के लिए अच्छा है.
आपको, यानी एक इंडिविजुअल इन्वेस्टर को, जो निवेश से पैसा बनाने में दिलचस्पी रखता है. उसे ये समझना चाहिए कि ये गतिविधि आपके पैसे कमाने के लिए नहीं बनाई गई है. इसके बजाय, ये आपके पैसे छीनने के लिए डिज़ाइन और मैनेज की जाती है, और चलाई जाती है - और ये समझना आसान है. किसी न किसी कारण से डेरिवेटिव के फ़ायदेमंद होने की सारी बातें सिर्फ़ प्रोपेगंडा है. डेरेवेटिव इंडस्ट्री के ऑपरेशन और कहानी गढ़ने की इसकी क्षमता देख कर नहीं लगता है कि ये सब बदलने वाला है. डेरिवेटिव ट्रेडिंग की ग्रोथ और इसकी वजह से आम ट्रेडर की आर्थिक चुनौतियां जारी रहने वाली लग रही हैं. इस संभावित नुक़सानदायक गतिविधि से बचना ही लोगों के लिए सबसे अच्छी बात होगी, क्योंकि इससे शायद ही कोई फ़ायदा हो.
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तथ्य ख़ुद सच बयान करते हैं: ज़्यादातर आम ट्रेडर्स को F&O ट्रेडिंग से अगर कोई छोटा-मोटा फ़ायदा होता है, तो किसी को पूछना चाहिए, "क्या ये जुआ खेलने लायक़ है?" संभावित मुनाफ़े की चकाचौंध का आकर्षण या इंडस्ट्री की बयानबाज़ी से प्रभावित होना काफ़ी नहीं है. समझदारी इसी में है कि क़दम पीछे खींच लिए जाएं, तथ्यों का अनालेसिस करने और अपने आर्थिक भविष्य की सुरक्षा के लिए सोच-समझकर फ़ैसले लिए जाएं. जैसा कि कहा जाता है, "बात ये नहीं कि आप कितने पैसे कमाते हैं, बल्कि ये है कि आप कितना अपने पास रख पाते हैं."