इंटरव्यू

कैसे दिनेश बालाचंद्रन ने SBI कॉन्ट्रा को बेहतर बनाया

एक फ़िक्स्ड इनकम एनेलिस्ट की इक्विटी फ़ंड मैनेजर के तौर पर सफलता की कहानी

कैसे दिनेश बालाचंद्रन ने SBI कॉन्ट्रा को बेहतर बनाया

SBI म्यूचुअल फ़ंड में, फ़ंड मैनेजर- इक्विटी दिनेश बालाचंद्रन का अभी तक का सफ़र, उनके जैसे दूसरे एनेलिस्ट के मुक़ाबले असाधारण रहा है. हाल ही में, उन्होंने SBI कॉन्ट्रा फ़ंड के शानदार प्रदर्शन के कारण लोगों का ध्यान खींचा है. इस फ़ंड को उन्होंने कुछ साल पहले ही संभालना शुरू किया था. इस ख़ास इंटरव्यू में, उन्होंने अपनी सफलता की वजह, अपनी स्टॉक चुनने की स्ट्रैटजी और निवेश के विकल्प के तौर पर न्यू एज स्टॉक्स और गोल्ड पर अपने विचारों का खुलासा किया.

यहां उनके इंटरव्यू के कुछ अंश दिए जा रहे हैं.

इक्विटी फ़ंड मैनेजर के रूप में आपका अभी तक का करियर काफ़ी अलग रहा है. आपने फ़िक्स्ड इनकम में शुरुआत की और उसमें एक दशक से ज़्यादा समय बिताया. कृपया पेशेवर के रूप में अपने सफ़र के बारे में कुछ और बताइए.

मैंने अमेरिका में अपना करियर शुरू किया.

मैं इंजीनियरिंग में अपनी पोस्ट-ग्रेजुएट की पढ़ाई कर रहा था, शुरुआत में PhD करने की योजना थी और इंजीनियरिंग से जुड़ा कुछ करने की दिशा में आगे बढ़ रहा था. फिर, किसी कारण से, मैं निवेश की दुनिया में दिलचस्पी लेने लगा और MIT स्लोअन में कुछ इससे संबंधित क्लास लीं. मुझे ये विषय काफ़ी आकर्षक लगा, जिससे निवेश में मेरी दिलचस्पी और बढ़ गई. उस समय, मेरा फ़ाइनेंस में कोई ख़ास बैकग्राउंड नहीं था. हालांकि, उस समय सबसे बड़ी म्यूचुअल फ़ंड कंपनियों में से एक फ़िडेलिटी इन्वेस्टमेंट्स भर्ती के लिए हमारे कैम्पस में आई थी. उन्होंने मुझे मौक़ा दिया और इस तरह मैं एक पेशेवर के रूप में निवेश के क्षेत्र में प्रवेश कर गया. मैंने अपने करियर की शुरुआत में फ़िक्स्ड-इनकम एनालिसिस के लिए क्वांट से जुड़े पहलू पर काम किया. अमेरिका में एक दशक से ज़्यादा समय तक, मैंने फ़िक्स्ड इनकम मार्केट के अलग-अलग पहलुओं को कवर किया, जिसमें म्यूनिसिपल बॉन्ड, कॉर्पोरेट बॉन्ड, स्ट्रक्चर फ़ाइनांस, कॉर्पोरेट क्रेडिट और बहुत कुछ शामिल है.

2011 में, मैंने भारत वापस आने का फैसला किया, जहां मेरी मुलाकात नवनीत से हुई और उन्होंने मुझे SBI म्यूचुअल फ़ंड में शामिल होने के लिए मना लिया. मेरी फ़िक्स्ड इनकम की बैकग्राउंड के कारण, मैंने यहां भी फ़िक्स्ड इनकम से जुड़ी टीम में काम करना शुरू कर दिया. कुछ समय बाद, मैंने कुछ अलग करने में दिलचस्पी ज़ाहिर की, क्योंकि मैं लंबे समय से फ़िक्स्ड इनकम वाले बाज़ारों से जुड़ा हुआ था. इसलिए, कुछ साल के बाद, मैं रिसर्च हेड की भूमिका में आ गया, जहां मेरे ऊपर फ़िक्स्ड इनकम और इक्विटी रिसर्च दोनों की जिम्मेदारी थी और कुछ वर्षों तक मैंने ऐसा किया. इस दौरान, मैं भारतीय बाज़ारों और भारतीय इक्विटी से ज़्यादा परिचित हुआ. आख़िरकार, फंड मैनेजमेंट के क्षेत्र में एक मौक़ा खुला और तभी मैंने पूरी तरह से इक्विटी फ़ंड मैनेजमेंट में अपना करियर शुरू किया. मैं लगभग सात साल से ये कर रहा हूं और इस क्षेत्र में मेरा सीखना और आगे बढ़ना जारी है.

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रिस्क-रिवार्ड के नज़रिये से, इक्विटी मार्केट बेहतरीन संभावनाओं की पेशकश करता है. अगर आप स्टॉक चुनने के मामले में अपना काम सही से करते हैं, तो आपको आसानी से एक मल्टीबैगर मिल सकता है. इस नज़रिये से, अब मैं पूरी तरह से इक्विटी में सक्रिय हूं और वास्तव में इसे पसंद कर रहा हूं.

क्या आपकी फ़िक्स्ड-इनकम की बैकग्राउंड होने से आपको कॉन्ट्रा स्ट्रैटजी (contra strategy) पर काम करने में मदद मिलती है?

इसकी निश्चित रूप से कुछ भूमिका रहती है. फ़िक्स्ड इनकम का संबंध वैश्विक (मैक्रो) फ़ैक्टर्स से ज़्यादा होता है. आपको इन फ़ैक्टर्स के बारे में बहुत कुछ सोचना होता है. और जब आप कॉन्ट्रेरियन स्ट्रैटजी यानी निवेश की विपरीत स्ट्रैटजी (contrarian investing) के बारे में सोचते हैं, तो कुछ हद तक ऊपर से नीचे तक का अनालिसिस काम में आता है. विशेष रूप से साइक्लिकल सेक्टर्स में, इकोनॉमिक साइकिल के बारे में एक नज़रिया रखना ज़रूरी हो जाता है. भारत में, मुझे लगता है कि बहुत से लोग तय कर लेते हैं कि उन्हें टॉप-डाउन के बारे में नहीं सोचना है और अनिवार्य रूप से कंपनी के बॉटम-अप अनालिसिस पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं, जो ऐसा करने का एक बिल्कुल अच्छा तरीक़ा भी है. लेकिन, फिर मुझे लगता है कि कभी-कभार, आप कुछ साइकल से जुड़े बदलावों को भुनाने से चूक जाते हैं.

मैं साइक्लिकल सेक्टर्स में मैक्रो फ़ैक्टर्स के संबंध में बहुत ज़्यादा सोचता हूं, और फ़िक्स्ड इनकम से जुड़ी बैकग्राउंड के चलते निश्चित रूप से मुझे इसके प्रबंधन में मदद मिली है.

हमने देखा है कि आपने हाल ही में नायका को अपने कॉन्ट्रा फ़ंड सहित कई फंड्स में शामिल किया है. इन न्यू-एज स्टॉक्स में आपकी दिलचस्पी कैसे जगी?

हां, हमारे पास नायका (Nykaa) और डेल्हीवेरी (Delhivery) जैसी कंपनियां हैं. मुझे इस मामले में किसी कंपनी के घाटे की सूचना देने में कोई समस्या नहीं है, क्योंकि, मेरे लिए इसका मतलब ये है कि आप लंबे समय में उनमें कितनी प्रॉफ़िट की क्षमता देखते हैं? अगर कंपनी अभी काफ़ी निवेश कर रही है और इस वजह से घाटा दिखा रही है, तो ये ठीक है. अमेज़न के साथ क्या हुआ इसके बारे में सोचिए. इसकी शुरुआत 1994-95 में हुई थी. लगभग 20 साल तक उसे कोई मुनाफ़ा नहीं हुआ, लेकिन इसलिए नहीं कि वो प्रॉफ़िट जेनरेट नहीं कर सकी. इसकी मुख्य वजह ये थी कि उसने उस सारी कमाई को नई गतिविधियों या बिजऩस के विस्तार में फिर से निवेश करने का फ़ैसला किया. घाटे में चल रही सभी कंपनियों के लिए दिखावा करने की बात कहना या उन पर ऐसा कोई भी ठप्पा लगाने में सावधानी बरतनी होगी. ये कंपनियां सिर्फ़ अपनी पहुंच बढ़ाने की कोशिश कर रही हैं. इसलिए, अगर नायका इस वर्ष प्रॉफ़िट नहीं दिखा रही है या डेल्हीवरी इस वर्ष प्रॉफ़िट नहीं दिखा रही है, तो कोई समस्या नहीं है. मेरा काम उनकी बिक्री और अर्निंग में बढ़ोतरी का एक वास्तविक अनुमान लगाना है.

इनमें से कई मॉडलों में, ऑपरेटिंग लेवरेज काम में आता है. इसलिए हो सकता है कि प्रॉफ़िट अब से तीन साल में आना शुरू हो जाए, जो ठीक है. आपको आश्वस्त होना होगा कि कंपनी की बुनियादी प्रॉफ़िटेबिलिटी बरक़रार है. साथ ही, आपकी ग्रोथ और इस तरह की चीज़ों के लिए अपनी धारणाओं के मामले में सहज होना होगा. ये भी देखना होगा कि क्या मौजूदा बाज़ार मूल्य इसे उचित ठहराता है. IPO के समय नायका और डेल्हीवरी में निवेश का मौका नज़र नहीं आता था. दरअसल, उस समय, न्यू-एज स्टॉक्स का बहुत ज़्यादा क्रेज़ चल रहा था, और लोग किसी भी क़ीमत का भुगतान करने की इच्छा के मामले में हद से ज़्यादा आगे बढ़ गए थे. मेरे लिए, उन स्तरों पर मार्जिन की सुरक्षा की कोई गुंजाइश नहीं थी.

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बाद में क्या हुआ कि ग्रोथ को झटका लगने लगा और लोगों को एहसास हुआ कि अगर वो अगले दशक के लिए 30-35 फ़ीसदी सालाना ग्रोथ की उम्मीद कर रहे थे, तो वास्तव में ऐसा होने की संभावना नहीं है. पिछले साल के अंत में या इस साल की शुरुआत में, लोगों का इतना मोहभंग हो गया कि उन्होंने वैल्युएशन इतना नीचे कर दिया कि इससे मेरे जैसे वैल्युएशन के प्रति बहुत ज़्यादा जागरूक व्यक्ति को इन कंपनियों में एंट्री लेने का मौक़ा मिल गया. लेकिन मैं ये साफ कर दूं कि घाटे में चल रही कंपनियां बिल्कुल भी समस्या नहीं हैं. मायने ये रखता है कि आप कंपनी की मूलभूत लंबे समय की प्रॉफ़िटेबिलिटी में भरोसा करते हैं या बिज़नस मॉडल में.

वैल्यू रिसर्च में, हम मल्टी-एसेट फ़ंड्स को ओवररेटेड मानते हैं, हालांकि उन्होंने इस साल बड़ी संख्या में निवेशकों का ध्यान खींचा है. चूंकि आप एक मल्टी-एसेट फ़ंड भी चलाते हैं, तो उन पर आपकी क्या राय है?

हकीकत में, कोई भी भविष्य नहीं जानता है, लेकिन अगर मुझे हर पहलू को ध्यान में रखकर अनुमान लगाना हो, तो आने वाला दशक मुद्रास्फीति के बारे में बहुत कुछ कहने वाला है. जबकि पिछला दशक मुद्रास्फ़ीति (inflation) के छिटपुट झटकों के साथ अवस्फ़ीति (disinflation) के बारे में था. इसलिए, मेरी राय में आने वाला दशक बिल्कुल विपरीत होने वाला है. जैसे ही केंद्रीय बैंकर अपनी सतर्कता कम करेंगे, मुद्रास्फ़ीति फिर से वापसी करेगी. उस दृष्टिकोण से, मुद्रास्फ़ीति के कारण आई मंदी जैसी किसी स्थिति की संभावना से बिल्कुल भी इंकार नहीं किया जा सकता है. ऐसे ही हालात में सोना बहुत अच्छा प्रदर्शन करता है.

फ़िलहाल, ये बात इतनी स्पष्ट नहीं है क्योंकि केंद्रीय बैंक मुद्रास्फ़ीति से लड़ने के लिहाज़ से बहुत मज़बूत स्थिति में हैं. इसका मतलब ये है कि वे ब्याज दरों को और ज़्यादा बढ़ाने के इच्छुक हैं. लेकिन इसकी एक सीमा है क्योंकि वे ये भी जानते हैं कि यदि वे इसे ज़्यादा ही बढ़ाते हैं, तो एक समय पर, इकोनॉमी पूरी तरह से एक बड़ी मुश्किल में फंस सकती है. इसलिए, किसी प्वाइंट पर, उन्हें ब्याज दरों में बढ़ोतरी में कमी लानी होगी. उस समय, क्या होगा? क्या महंगाई फिर करेगी वापसी? ये अहम सवाल है. मेरी राय में, किसी प्वाइंट पर इस बात की ख़ासी संभावना है कि केंद्रीय बैंक किसी न किसी दिशा में ग़लती करने जा रहे हैं. उस नज़रिए से मुझे फ़ंड में एक विकल्प के रूप में सोना रखना बहुत अच्छा लगता है. मल्टी-एसेट फ़ंड में भी फ़िक्स्ड इनकम होती है. इसलिए, अगर मान लें कि मैं गोल्ड के अच्छे प्रदर्शन करने को लेकर आश्वस्त नहीं हूं, तो हम गोल्ड को फ़ंड में 10 फ़ीसदी तक के निचले स्तर तक रख सकते हैं, जहां ये इतना ज़्यादा नहीं होगा कि वास्तव में समग्र फ़ंड रिटर्न को प्रभावित कर सके. लेकिन जब मुझे लगता है कि गोल्ड की भूमिका कहीं अधिक सार्थक है, तो ये एक बहुत अच्छा विकल्प है. उस नज़रिये से, मैं मानता हूं कि मल्टी-एसेट फ़ंड बहुत मायने रखते हैं. जेनेरिक हाइब्रिड फ़ंड की तुलना में बाक़ी सब समान हैं, तो इसलिए मैं वास्तव में गोल्ड की वजह से एक मल्टी-एसेट फ़ंड रखना चाहूंगा. पिछले दशक में गोल्ड की कोई भूमिका नहीं थी, लेकिन मुझे लगता है कि इस दशक में इसकी बड़ी भूमिका रहने जा रही है.

आपने 2018 के मध्य में SBI कॉन्ट्रा फ़ंड की कमान संभाली, जिससे इसके प्रदर्शन में उल्लेखनीय बदलाव आया. आपने ऐसा कैसे कर दिखाया?

स्पष्ट रूप से कहें तो, इसमें काफ़ी कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि आपको कैसे मौक़े मिले. इसमें आपकी निवेश की फ़िलॉसफ़ी की भी अहमियत होती है…

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