SIP सही है

Mutual Fund Investing: हर बात यहां जानिए

म्यूचुअल फ़ंड्स, निवेश के सबसे अच्छे तरीक़ों में से हैं जिनके बारे में आप यहां सब कुछ जान सकते हैं.

Mutual Funds में निवेश से जुड़ी अहम बातें

म्यूचुअल फ़ंड क्या होता है?

म्यूचुअल फ़ंड निवेश का ऐसा तरीक़ा है जिसमें बहुत से निवेशकों का पैसा एक ही जगह पर जमा कर के, इस पैसे से बने फ़ंड को निवेश किया जाता है. इसका काम और शाब्दिक परिभाषा यही है कि ये बहुत से लोगों के इकट्ठा किए पैसे का निवेश फ़ंड होता है. म्यूचुअल फ़ंड्स को एसेट मैनेजमेंट कंपनियां (AMC) चलाती हैं. भारत में बहुत सी AMC हैं, और आमतौर पर हर AMC कई म्यूचुअल फ़ंड स्कीमें चलाती है.

कुछ दूसरे विकल्पों से फ़ंड निवेश बेहतर क्यों है

हर रोज़ हम पैसे बचाने की कोशिश में महसूस करते हैं कि इस पैसे पर हमें अच्छा रिटर्न भी मिले और हमारी ये पूंजी सुरक्षित भी रहे. अलग-अलग सेक्टरों में निवेश से अपने पैसे को बढ़ाने के कई तरीक़े आपके पास हैं. जिनमें बैंक फ़िक्स्ड डिपॉज़िट में सबसे कम रिस्क होता है, मगर इसमें आपको सिर्फ़ 4-6% का मामूली ब्याज़ मिलता है जो महंगाई दर से कम ही होता है. इसके अलावा, रियल एस्टेट में अगर आप पैसा लगाते हैं, तो ज़रूरत पड़ने पर उस पैसे को जल्दी निकालना मुश्किल होता है. साथ ही, रियल एस्टेट में ज़्यादा पैसा लगाना पड़ता है. तो, म्यूचुअल फ़ंड निवेश का ऐसा तरीक़ा है जिसमें बहुत ही कम पैसे में भी आप निवेश शुरू कर सकते हैं. ये निवेश एक हद तक सुरक्षित भी है और सबसे बड़ी बात कि इसमें महंगाई दर से ज़्यादा रिटर्न की उम्मीद की जा सकती है. गोल्ड में किया जाने वाला निवेश भी इसके सामने नहीं ठहरता है.

म्यूचअल फ़ंड आपका पैसा कहां निवेश करते हैं

म्यूचुअल फ़ंड अलग-अलग इन्वेस्टर से पैसे लेकर उन्हें स्टॉक और होल्डिंग कहलाने वाले दूसरे मार्केट इंस्ट्रुमेंट में इन्वेस्ट करते हैं. इन्हीं अलग-अलग होल्डिंग का कलेक्शन म्यूचुअल फ़ंड का पोर्टफ़ोलियो कहलाता है. कई तरह के फ़ंड्स होते हैं जिनका अलग-अलग मैंडेट होता है. इसी मैंडेट के मुताबिक़, हर फ़ंड अपना निवेश इक्विटी या डेट इंस्ट्रुमेंट्स में करता है.

म्यूचुअल फ़ंड में क्यों निवेश करें?

फ़ंड निवेश को मैनेज करना आसान है

आप कभी भी म्यूचुअल फ़ंड ख़रीद और बेच सकते हैं और जितने चाहे उतने फ़ंड ख़रीद सकते हैं. अब सबकुछ आसानी से ऑनलाइन हो जाता है. इसके लिए आप AMC की वेबसाइट पर जा कर सीधे फ़ंड ख़रीद सकते हैं या फिर कई ब्रोकर हैं जिनके ज़रिए आप फ़ंड में निवेश शुरू कर सकते हैं.

बहुत से ऑप्शन मिलते हैं

म्यूचुअल फ़ंड, कम पैसे के निवेश में डाइवर्सिफ़िकेशन (कई जगह किया जाने वाला निवेश) का ऑप्शन देता है. यानी किसी भी एक फ़ंड में लगा आपका पैसा, कई शेयरों या बॉन्ड्स में लगा होता है. दरअसल, जिस म्यूचुअल फ़ंड में आप निवेश करते हैं, वो फ़ंड आपका पैसा किसी एक जगह नहीं लगाता, बल्कि कई तरह के निवेशों में लगाता है. ऐसे में आपका पैसा चाहे कितना भी कम या ज़्यादा हो, वो कई सेक्टर या कंपनियों लगता है और इससे किसी एक जगह (कंपनी या सेक्टर) की मंदी से बहुत ज़्यादा प्रभावित नहीं होता.

कम फ़ीस या निवेश का कम ख़र्च

म्यूचुअल फ़ंड का ख़र्च (जिसे एक्सपेंस रेशियो कहते हैं), आमतौर पर आपके निवेश का 1.5-2.5% होता है. ये एक्सपेंस रेशियो एक फ़ीस है जिसे आप AMC को अपना फ़ंड (निवेश) मैनेज करने के लिए अदा करते हैं. ये फ़ीस इसलिए कम होती है क्योंकि एक म्यूचुअल फ़ंड में बहुत से लोग निवेश करते हैं इसलिए ये ख़र्च सबके बीच बंट जाता है.

ये एक रेग्युलेटेड निवेश है

भारत में म्यूचुअल फ़ंड चलाने वाली सभी एसेट मैनेजमेंट कंपनियों (AMCs) को सिक्योरिटीज़ एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ़ इंडिया (SEBI) रेग्युलेट करता है. सेबी का कड़ा रेग्युलेशन म्यूचुअल फ़ंड निवेश को भारत में काफ़ी सुरक्षित निवेशों में से एक बना देता है. यानी, म्यूचुअल फ़ंड निवेश में AMCs के लिए नियम-क़ायदे हैं और इनका पालन भी काफ़ी कड़ाई से होता है. हालांकि इसका ये मतलब नहीं कि म्यूचुअल फ़ंड अपने-आप में सुरक्षित निवेश हैं. इसके अपने जोख़िम भी होते हैं जो बाज़ार के उतार-चढ़ाव के कारण होते हैं.

सारी जानकारी निवेशकों से साझा की जाती है

म्यूचुअल फ़ंड को सेबी रेगुलेट करता है और फ़ंड की यूनिट वैल्यू (NAV यानी नेट एसेट वैल्यू) या क़ीमत हर रोज़ घोषित की जाती है. हरेक फ़ंड के पोर्टफोलियो को भी हर महीने अपनी सारी ज़रूरी जानकारियां सार्वजनिक करनी होती हैं.

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म्यूचुअल फ़ंड कैसे चुनें

आपको पहले ये तय करना होगा की आप किस तरह के फ़ंड में निवेश करना चाहते हैं. इक्विटी फ़ंड (equity funds) तभी चुने जाने चाहिए जब आप ज़्यादा रिस्क उठा सकते हों और आप 5 साल या उससे ज़्यादा समय के लिए निवेश करने का प्लान कर रहे हों. अगर आप अपने निवेश के साथ कुछ रिस्क उठा सकते हैं, तो आपको हाइब्रिड फ़ंड (hybrid funds) का चुनाव करना चाहिए. ये इक्विटी और डेट दोनों में मिला-जुला निवेश करते हैं. और अगर आप कम रिस्क ही ले सकते हैं, तो आपको डेट फ़ंड (debt funds) का चुनाव करना चाहिए. और जहां तक रिस्क का सवाल है, तो सभी म्यूचुअल फ़ंड्स में अलग-अलग स्तर का रिस्क होता है.

यहां हम कुछ मुख्य फ़ंड्स के प्रकार के बारे में बता रहे हैं:

म्यूचुअल फ़ंड कितनी तरह के हैं

इन्वेस्टमेंट के आधार पर, म्यूचुअल फ़ंड्स को बड़े तौर पर तीन तरह से बांटा जाता है - इक्विटी फ़ंड, डेट फ़ंड और हाइब्रिड फ़ंड.

इक्विटी फ़ंड

इक्विटी फ़ंड सबसे लोकप्रिय म्यूचुअल फ़ंड हैं क्योंकि ये अपने ऊंचे रिटर्न के चलते ज़्यादातर निवेशकों को पसंद आते हैं और उनके पोर्टफ़ोलियो में प्रमुख स्थान पाते हैं. इक्विटी फ़ंड प्रमुख रूप से स्टॉक मार्केट की इक्विटी में इन्वेस्ट करते हैं. इक्विटी फ़ंड कहलाने के लिए फ़ंड का इन्वेस्टमेंट, इक्विटी और इक्विटी जैसे निवेशों में कम से कम 65% तक होना चाहिए. अलग-अलग तरह के इक्विटी फ़ंड मौजूद हैं और ये स्टॉक के अलग-अलग प्रकारों के आधार पर बांटे जाते हैं. मिसाल के तौर पर, अगर कोई फ़ंड IT कंपनियों में निवेश करता है, तो ये टेक्नोलॉजी फ़ंड कहलाता है, और अगर कोई फ़ंड लार्ज- कैप कंपनियों में निवेश करता है, तो उसे ब्लूचिप फ़ंड कहते हैं.

डेट फ़ंड

डेट फ़ंड, फ़िक्स्ड-इंटरेस्ट से अपनी कमाई करते हैं और ये डेट इंस्ट्रूमेंट में इन्वेस्ट करते हैं. इनके कुल निवेश का कम से कम 65% सरकारी और कॉर्पोरेट बॉन्ड जैसे डेट इंस्ट्रूमेंट में निवेश किया जाता है. बाक़ी रक़म ये कहीं भी निवेश कर सकते हैं.

हाइब्रिड फ़ंड

हाइब्रिड फ़ंड में इक्विटी और डेट दोनों का कॉम्बिनेशन होता है. ये फ़ंड इक्विटी, डेट और दूसरी तरह की सिक्योरिटीज़ के बीच रिस्क और रिटर्न का बैलेंस बनाने की कोशिश करते हैं.

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अपने लिए फ़ंड कैसे चुनें

ये तय करने के बाद कि आप किस तरह के फ़ंड में निवेश करना चाहते हैं, आप अपने निवेश के लिए किसी एक अच्छे फ़ंड को चुन सकते हैं. ( धनक पर हमारे एनेलिस्ट के चुने बेहतरीन फ़ंड्स की लिस्ट मौजूद है ) इस फ़ंड को चुनने का आधार उसका पिछला प्रदर्शन हो सकता है, उसी जैसे दूसरे फ़ंड से तुलना कर के आप देख सकते हैं कि आपके चुने हुए फ़ंड का पिछला प्रदर्शन कैसा रहा है. इसके अलावा भी कई तरीक़े होते हैं जिनके बारे में किसी फ़ंड को चुनने से पहले आपको सोचना चाहिए:

फ़ंड मैनेजर कितना अनुभवी है

फ़ंड को मैनेज करने वाला फ़ंड मैनेजर आपके चुने फ़ंड को कितने समय मैनेज कर रहा है और उसका पिछला ट्रैक रिकॉर्ड क्या रहा है.

फ़ंड का पोर्टफ़ोलियो

क्या आपका चुना हुआ म्यूचुअल फ़ंड ज़्यादा रिस्क के साथ छोटी कंपनियों में निवेश कर करके ज़्यादा फ़ायदा कमाता रहा है या उसके निवेश की स्ट्रैटजी बैलेंस्ड रही है. आपको देखना चाहिए कि वो म्यूचुअल फ़ंड किसी एक सेक्टर में अपना ज़्यादा पैसा लगा रहा है या अपने पोर्टफ़ोलियो में उसने अलग-अलग सेक्टर की कंपनियों को शामिल किया है? आप ये भी ज़रूर देखें कि फ़ंड का कितना पैसा इक्विटी में लगा है और कितना डेट इन्स्ट्रुमेंट्स में निवेश किया गया है?

फ़ंड का एक्सपेंस रेशियो

अगर एक्सपेंस रेशियो ज़्यादा है, तो आपके मुनाफ़े का एक बड़ा हिस्सा फ़ंड कंपनी को चला जाएगा. इसलिए ऐसा फ़ंड चुनना ही बेहतर होता है जिसका एक्सपेंस रेशियो कम हो ताकि आपके निवेश का ख़र्च कम-से-कम रहे.

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म्यूचुअल फ़ंड में कैसे निवेश करें

म्यूचुअल फ़ंड निवेश के लिए आपको अपना KYC (Know your customer या अपने ग्राहक को जानिए) कराना होगा. पहचान और पते के लिए आधार और पैन कार्ड देना होता है. आपका KYC पूरा होने पर म्यूचुअल फ़ंड चुनने और पेमेंट के लिए आवेदन किया जाता है. निवेश आप दो तरीक़ों से कर सकते हैं:

एकमुश्त निवेश (Lump Sum Investment)

Lump Sum या एकमुश्त निवेश तब होता है जब कोई निवेशक म्यूचुअल फ़ंड स्कीम में अपनी पूरी रक़म एक ही बार में निवेश करता है.

मान लीजिए आपने किसी म्यूचुअल फ़ंड में ₹10 लाख का एकमुश्त निवेश किया. अपने इस निवेश से आप 15% सालाना रिटर्न पाने की उम्मीद रखते हैं, और आप अगले 10 साल तक निवेश को बनाए रखने के बारे में सोच रहे हैं. 10 साल बाद आपका पैसा ₹40,45,557 तक हो सकता है. कितना पैसा लगाने पर आपका संभावित रिर्टन क्या हो सकता है इसके लिए आप हमारे गोल कैलकुलेटर का इस्तेमाल कर सकते हैं.

हालांकि, पूरा निवेश एक ही बार में करने में रिस्क ज़्यादा होता है. दरअसल, हो सकता है जब आप निवेश कर रहे हों, तो बाज़ार ऊंचा हो या ये भी हो सकता है कि आपके निवेश करते ही किन्हीं कारणों से बाज़ार में बड़ी गिरावट आ जाए. निवेश के ख़र्च को औसत पर लाने का अच्छा तरीक़ा है SIP के ज़रिए निवेश करना .

सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP)

SIP में आप अपना निवेश किश्तों में करते हैं. जैसे कि हर महीने की एक तय रक़म आप अपने चुने हुए फ़ंड में डाल दें. इसके कई फ़ायदे हैं. SIP निवेशक को चुने गई म्यूचुअल फ़ंड में हर महीने एक तय रक़म (न्यूनतम ₹100 महीना) निवेश करने की अनुमति रहती है. बैंक ई-मैंडेट के साथ ये ऑटोमैटिक की जा सकती है, जिसमें आपकी SIP की रक़म आपके बैंक अकाउंट से अपने-आप हर महीने एक तय दिन पर काट ली जाती है. SIP से निवेशक में निवेश को लेकर नियम और अनुशासन आता है. लंबे समय के निवेश में ही बड़ी पूंजी बनती है और अनुशासन से लगातार निवेश ही इसका सबसे अच्छा तरीक़ा है जो SIP के ज़रिए अच्छे से अमल में आता है. आप जितना पैसा SIP के ज़रिए निवेश करने के बारे में सोच रहे हैं उसे कैलकुलेट करने के लिए आप हमारा SIP कैलकुलेट इस्तेमाल कर सकते हैं .

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फ़ंड निवेश के ज़रूरी डॉक्यूमेंट

म्यूचुअल फ़ंड्स में निवेश के लिए, आपको KYC-Compliant होना चाहिए. इसके लिए ये दस्तावेज़ ज़रूरी हैं

आपकी पहचान के लिए:

  • आपका फ़ोटो के साथ पैन कार्ड.
  • आधार, पासपोर्ट, वोटर-ID, ड्राइविंग लाइसेंस (कोई भी)

पते की पहचान के लिए:

  • पासपोर्ट
  • राशन कार्ड
  • यूटिलिटी बिल
  • आधार
  • ड्राइविंग लाइसेंस
  • वोटर ID
  • बैंक अकाउंट स्टेटमेंट

अनिवासी भारतीयों को अपने पैन कार्ड की कॉपी, पासपोर्ट, और विदेशी तथा स्थायी पते की कॉपी भी जमा करनी होती है.

म्यूचुअल फ़ंड में कौन निवेश कर सकता है

म्यूचुअल फ़ंड में कोई भी निवेश कर सकता है. ₹100 की न्यूनतम रक़म के साथ फ़ंड निवेश किया जा सकता है. भारतीय और NRI, दोनों म्यूचुअल फ़ंड में निवेश कर सकते हैं. आप अपने जीवनसाथी और बच्चों के नाम पर भी निवेश कर सकते हैं. अगर बच्चा नाबालिग है (18 वर्ष से कम), तो उसके नाम पर निवेश करते वक़्त आपको अपनी जानकारी देनी होगी. जब तक 18 साल की उम्र नहीं हो जाती, तब तक माता-पिता या अभिभावक को ही अकाउंट मैनेज करना होता है. व्यक्तियों के अलावा कंपनियां, पार्टनरशिप फ़र्म, LLP और ट्रस्ट भी म्यूचुअल फ़ंड में निवेश कर सकते हैं.

म्यूचुअल फ़ंड का रिटर्न कैसे कैलकुलेट किया जाता है?

म्यूचुअल फ़ंड रिटर्न का कैलकुलेशन आपके शुरुआती निवेश की तुलना में एक अवधि के दौरान आपके निवेश की वैल्यू में होने वाली बढ़ोतरी को कैलकुलेट करके किया जाता है. म्यूचुअल फ़ंड की नेट एसेट वैल्यू इसकी क़ीमत दिखाती है और इसका इस्तेमाल आपके म्यूचुअल फ़ंड निवेश के रिटर्न को कैलकुलेट करने में किया जाता है. किसी एक समय अंतराल में, रिटर्न का कैलकुलेशन बिक्री की तारीख़ के NAV और ख़रीद की तारीख़ के NAV के अंतर के तौर पर किया जाता है. और इसे मिले आंकड़े को 100 से गुणा करके प्रतिशत में देखा जाता है. टोटल रिटर्न कैलकुलेट करते समय होल्डिंग के पीरियड में फ़ंड के किसी भी नेट डिविडेंड या दूसरे इनकम डिस्ट्रीब्यूशन को भी कैपिटल अप्रीसिएशन में जोड़ा जाता है.

म्यूचुअल फ़ंड इन्वेस्टमेंट से रिटर्न कैलकुलेट करने के लिए, एक तय समय के बीच NAV में आया अंतर देखा जाता है. रिटर्न में योगदान देने वाले मुख्य कारकों में डिविडेंड, ब्याज़ की आमदनी और कैपिटल अप्रीसिएशन शामिल हैं. फ़ंड की होल्डिंग के प्रदर्शन के आधार पर निवेशकों को नियमित आधार पर डिविडेंड का भुगतान किया जाता है. ब्याज की आमदनी बॉन्ड से जनरेट की जाती है; ये म्यूचुअल फ़ंड के लिए कैश-फ़्लो का भरोसेमंद ज़रिया देता है. कैपिटल गेन लाभ को दिखाता है, जब म्यूचुअल फ़ंड के ख़रीदे हुए स्टॉक या दूसरे एसेट के शेयर शुरुआती निवेश की तुलना में ज़्यादा क़ीमतों पर बेचे जाते हैं.

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मान लीजिए कि ₹15 के शुरुआती NAV के साथ म्यूचुअल फ़ंड में ₹1,000 की क़ीमत वाले इन्वेस्टर ने ख़रीदा है. अगर उसी म्यूचुअल फ़ंड का NAV ₹20 तक बढ़ जाता है और इन्वेस्टर अपने शेयर बेचता है, तो उसे 33% (₹5/₹15) का कैपिटल प्रॉफ़िट मिलेगा. इसके बाद इस प्रॉफ़िट का इस्तेमाल निवेशक म्यूचुअल फ़ंड निवेश पर कुल रिटर्न कैलकुलेट करने में किया जाता है.

म्यूचुअल फ़ंड में इस्तेमाल होने वाले कुछ आम शब्द (टर्म) और उनका मतलब
एक समझदारी से भरे निवेश के लिए, आपको फ़ंड निवेश में इस्तेमाल किए जाने वाली कुछ शब्दावली (terminology) पता होनी चाहिए. इनमें से कुछ अहम टर्म हमने यहां समझाएं हैं:

NAV नेट एसेट वैल्यू ये स्कीम द्वारा रखी गई सभी सिक्योरिटीज़ की मार्केट वैल्यू है.
AMC एसेट मैनेजमेंट कंपनी ये निवेशक के फ़ंड को संभालने वाली कॉर्पोरेशन है.
SIP सिस्टमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान छोटे और नियमित निवेश करने का तरीक़ा, जिसमें आमतौर पर हर महीने एक तय रक़म निवेश की जाती है.
STP सिस्टमैटिक ट्रांसफ़र प्लान सिस्टमैटिक ट्रांसफ़र प्लान में अपने फ़ंड के इस्तेमाल को नियंत्रित करने का विकल्प होता है.
SWP सिस्टमैटिक विथड्रॉल प्लान एक तय अंतराल में अपने निवेश से पैसा वापस पाने का प्लान, जो अक्सर रिटायरमेंट के बाद पेंशन पाने के काम आता है.
NFO न्यू फ़ंड ऑफ़र AMC का शुरुआती ऑफ़र ही नया फंड ऑर्डर या NFO के तौर पर जाना जाता है.
CAGR कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट ये म्यूचुअल फ़ंड की आनुपातिक वार्षिक वृद्धि दर है.
XIRR एक्सटेंडेड इंटरनल रेट ऑफ़ रिटर्न इसका इस्तेमाल तब किया जाता है जब पैसे निकालने के लिए ब्रेक के साथ कई किश्तों में एक अवधि के दौरान निवेश किया जाता है.
Exit Load एग्ज़िट लोड AMC द्वारा लॉक-इन अवधि के दौरान अपनी म्यूचुअल फ़ंड होल्डिंग को रिडीम करने वाले निवेशकों के लिए एक्ज़िट लोड की फ़ीस पता की जाती है.

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