Anand Kumar
कुछ पांच साल पहले, मैंने एक अमेरिकी स्टार्टअप 'लॉन्ग-टर्म स्टॉक एक्सचेंज' पर एक कॉलम लिखा था. मगर इस पर कुछ और कहने से पहले, ये बता देना चाहता हूं कि ये वेंचर फ़ेल हो चुका है. हालांकि, इसका आइडिया सच में दिलचस्प था. एरिक रीस नाम के एक बिज़नसमैन ने इक्विटी निवेशकों के बीच शॉर्ट-टर्म इन्वेस्टमेंट करने वालों (short-termism) को ठीक करने का एक तरीक़ा तलाशने का फ़ैसला किया, और इसके लिए उन्होंने सोचा कि अगर समय के साथ-साथ इन लोगों की स्टॉक होल्डिंग अपने आप बढ़ती है, तो ये लोग लॉन्ग-टर्म इन्वेस्टमेंट करना पसंद करेंगे.
बेशक़, होल्डिंग ऐसे नहीं बढ़ सकती इसलिए उन्होंने इस कॉन्सेप्ट को कुछ बदल दिया और फ़ैसला किया कि हर शेयर के लिए वोटिंग का अधिकार बढ़ा देना चाहिए. उन्होंने एक स्टॉक एक्सचेंज स्थापित करने का निर्णय लिया, जिसकी लिस्टिड कंपनियों का ऑटोमैटिक एडजस्टमेंट होना था. ये सोच कुछ अजीब लगती है - और ये अजीब है भी - मगर फिर अमेरिका भी एक अजीब देश है, इसलिए न केवल उन्हें इस एक्सचेंज के लिए वेंचर फ़ंडिंग मिली (मार्क एंड्रीसन से कम नहीं) बल्कि रेग्युलेटर, SEC से एक्सचेंज सेटअप करने की इजाज़त भी मिल गई. कहने की ज़रूरत नहीं कि इस स्टार्टअप एक्सचेंज से कुछ भी ख़ास हासिल नहीं हुआ. फिर भी, बहुत से लोगों की तरह, नकल में बनाए गए एक और स्टार्टअप की कोशिश में फ़ेल होने के बजाय, कहीं बेहतर है कि कुछ मौलिक किया जाए, एक मुश्किल समस्या से निपटने की कोशिश की जाए और फिर असफल हुआ जाए.
ये समस्या शायद इक्विटी इन्वेस्टिंग में कहीं ज़्यादा सीरियस है. कई निवेशक, या शायद ज़्यादातर निवेशक आश्चर्य में डालने वाला शॉर्ट-टर्म का नज़रिया रखते हैं. उनके पास लॉन्ग-टर्म की एक परिभाषा है जो हास्यास्पद है. अगर आप इस मुद्दे पर सोशल मीडिया की चर्चाएं सुनते हैं, तो आपको पता चलेगा कि राय बंटी हुई है, ये परिभाषा, सात महीने के सबसे ऊंचे स्तर से एक साल के सबसे निचले स्तर से लेकर, वहां तक आती है जहां कोई भी चीज़ जो डे-ट्रेडिंग नहीं है वो लॉन्ग-टर्म इन्वेस्टमेंट कहलाने के क़ाबिल हो जाती है. यहां तक कि लॉन्ग-टर्म निवेश को लेकर आधिकारिक सरकारी परिभाषा भी एक साल के निवेश की ही है!
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कुछ साल पहले, फ़िडेलिटी इन्वेस्टमेंट्स ने ये पता लगाने के लिए अमेरिका में एक स्टडी की थी कि किस तरह के निवेशकों के अकाउंट में सबसे अच्छे रिटर्न मिले. स्टडी में पाया गया कि सबसे बड़े रिटर्न उन निवेशकों को मिले जिन्होंने कई साल या दशकों तक अपने निवेश पर ध्यान नहीं दिया. दिलचस्प बात ये है कि जो लॉन्ग-टर्म इन्वेस्टमेंट में कुछ न करने वाले लोग थे - उनमें से कई निवेशकों का काफ़ी समय पहले देहांत हो गया था. हालांकि इसे एक इन्वेस्टमेंट स्ट्रैटजी के तौर पर रेकमेंड तो नहीं किया जा सकता, मगर फिर भी ये एक दिलचस्प खोज है.
हाल के दिनों में, मैंने महसूस किया है कि निवेशकों के लॉन्ग-टर्म इन्वेस्टमेंट में नहीं उतरने का एक बुनियादी कारण ये है कि वो किसी बिज़नस को समझने में मेहनत नहीं करना चाहते. जब आप आमतौर पर कुछ दिनों या कुछ हफ्तों के लिए निवेश करते हैं, तो आपको केवल स्टॉक की चाल पर नज़र रखने की ज़रूरत होती है, सिर्फ़ स्टॉक की क़ीमत पर नज़र रखना ही काफ़ी होता है—कंपनी के बारे में कुछ भी जानने की ज़रूरत नहीं होती. वहीं, अगर आप एक साल या कई साल के लिए निवेश करते हैं तो आपको कंपनी, सेक्टर, बिज़नस, मैनेजमेंट - असल में तो उस बिज़नस की हर बात को समझना होता है.
इसमें दो मुश्किलें हैं. एक तो ये कि निवेशकों के पास समय नहीं होता. और दूसरी ये कि कुछ सेकेंड की 'बाइट' में बातें करने वाले मीडिया और सोशल मीडिया के इस युग में, लोगों के पास गहराई से लंबी बातें सुनने की क्षमता ही नहीं रह गई है. और किसी बिज़नस की बुनियादी बातें समझने में कई दिन लग सकते हैं. मैं समझता हूं कि किसी कंपनी को समझने के लिए ज़रूरी धीरज लोगों में नहीं है. वैसे भी निवेश की ज़्यादातर दुनिया जटिल है और अगर किसी को ट्विटर या इंस्टाग्राम से जानकारी पाने की आदत पड़ जाए, तो उनके लिए जटिल चीज़ों को समझना क़रीब-क़रीब असंभव हो जाता है.
उनके लिए जो लंबे समय का निवेश, बुनियादी बातों के आधार पर करना चाहते हैं पर वक़्त नहीं निकाल सकते हैं, उनके लिए म्यूचुअल फ़ंड की रिसर्च करना या वैल्यू रिसर्च स्टॉक एडवाइज़र जैसे प्लेटफॉर्म से रिसर्च को आउटसोर्स करना सबसे अच्छा विकल्प है. अगर आप बस इतना ही चाहते हैं, तो ये सही है. पर अगर आप निवेश को ख़ुद सीखना और समझना चाहते हैं और इन प्लेटफ़ॉर्म को एक ज़रिए के तौर पर इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो ये और भी बेहतर होगा.
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