Anand Kumar
1990 में कॉलेज ख़त्म करने के ठीक बाद, मेरे साथ कुछ ऐसा हुआ जिसने मुझे उत्साह से भर दिया. अगर ये 2023 होता, तो आप सोच सकते थे कि ये उत्साह किसी नए बिज़नस के लिए वेंचर कैपिटलिस्ट मिलने का होता.
दरअसल, 1990 काफ़ी सुस्त दौर हुआ करता था - और मेरे उत्साह की वजह सिर्फ़ इतनी थी कि मैंने पीटर लिंच की क़िताब 'वन अप ऑन वॉल स्ट्रीट' की एक कॉपी हासिल कर ली थी. मैं जानता हूं कि आज ये बात अजीब लगेगी, मगर तब ये काफ़ी बड़ी बात लगी थी. इंटरनेट से पहले के उस दौर में, जानकारियों का मिलना काफ़ी धीमा और मुश्किल हुआ करता था, ऐसे में सिर्फ़ एक साल पहले छपी इस ग़ज़ब की क़िताब का मिल जाना बड़ी बात तो थी ही. लिंच की क़िताब, एक निवेशक के तौर पर मेरे लिए किसी प्राइमरी एजुकेशन जैसी थी. इस क़िताब के मुख्य विषय पर हमने सितंबर 2023 की 'वैल्थ इनसाइट' की कवर स्टोरी की है. ये स्टोरी बताती है कि कैसे एक आम निवेशक अच्छा निवेश कर सकता है - और वॉल स्ट्रीट से बेहतर कर सकता है - अगर वो, अपनी रोज़मर्रा की समझ का इस्तेमाल करे.
उस दौर में, ये आइडिया क्रांतिकारी सा था कि एक आम इंसान, इक्विटी मार्केट से अपने लिए पूंजी बना सकता है. माना जाता था कि ऐसा तभी हो सकता है जब आप बहुत अमीर हों - अगर आप एक 'मिडिल-क्लास जैसी रक़म' लगाने की बात करते, तो किसी स्टॉक ब्रोकर को बात करने के लिए राज़ी करना भी मुश्किल होता. ज़्यादातर निवेशक तो सिर्फ़ IPO में ही निवेश कर पाते थे, तब उसे नया इशू कहा जाता था. ये सिर्फ़ 'बेचने वाले' निवेशक हुआ करते थे, यानी वो लोग, जो ब्रोकर से सिर्फ़ तभी बात करते थे जब उन्हें इशू में मिली लॉटरी का अलॉटमेंट हो जाता था और उसे बेचना होता था.
और हां, तब ब्रोकर भी ठग ही हुआ करते थे, और स्टॉक एक्सचेंजों के ऑपरेट करने का तरीक़ा ऐसा हुआ करता था कि उससे इन्हीं ठगों की मदद होती थी. लेन-देन का कोई प्रूफ़ नहीं होता था. ब्रोकर आसानी से दावा कर सकते थे कि उन्होंने आपका स्टॉक, स्टॉक एक्सचेंज (तब 8-9 हुआ करते थे) पर उस दिन के सबसे कम दाम यानी जब दाम सबसे कम थे, पर बेचा है. आपके पास इसे स्वीकार करने के अलावा और कोई चारा नहीं होता था.
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मेरे दिमाग में 'वन अप ऑन दलाल स्ट्रीट' के बीज बोने के अलावा, लिंच की इस क़िताब ने मुझे इन्वेस्टमेंट रिसर्च की अच्छी एजुकेशन दी. असल में, यही इस क़िताब की असल वैल्यू है. जैसा कि वो क़िताब की शुरुआत में कहा गया है, "पीटर लिंच आपके फ़ेवरेट स्टोर में स्टॉक ख़रीदने के लिए सिर्फ़ इसलिए नहीं कह रहे हैं क्योंकि उनको वो शॉपिंग स्टोर पसंद है, न ही किसी निर्माता का स्टॉक इसलिए ख़रीदने के लिए कह रहे हैं क्योंकि वो उनका फ़ेवरेट प्रोडक्ट या रेस्टोरेंट है और उनको वहां का खाना पसंद है. स्टोर, प्रोडक्ट, या किसी रेस्टोरेंट को पसंद करना किसी कंपनी में दिलचस्पी का अच्छा कारण है, और आपको इन बातों को अपनी रिसर्च लिस्ट में शामिल करना चाहिए, मगर ये कारण किस स्टॉक को ख़रीदने के लिए काफ़ी नहीं हैं!"
क़िताब के केंद्र में यही शिक्षा है कि इस रिसर्च को कैसे करना है - जो मुझे साफ़-साफ़ समझ आ गया कि बिज़नस का फ़ाइनांस क्या होता है, फ़ाइनेंशियल स्टेटमेंट को कैसे समझा जाए, क्या देखा जाए और किसे नज़रअंदाज़ कर दिया जाए. उसी समझ का इस्तेमाल मैं आज भी अपने काम में कर रहा हूं. ये इन्वेस्टमेंट रिसर्च की A-B-C है, और जब तक एक निवेशक इसे नहीं समझता, वो दूसरों के आइडिया की नकल करने और टिप्स की तलाश करने के अलावा और कोई प्रगति नहीं कर सकता.
जब पीटर लिंच ने क़िताब लिखी थी, तो उनकी पहचान एक शानदार ट्रैक रिकॉर्ड वाले फ़ंड मैनेजर की थी. 1977 से 1990 के बीच, जब वो अमेरिका में फ़िडेलिटी मैगेलन फ़ंड मैनेज कर रहे थे, तब उन्होंने सालाना 29.4 प्रतिशत रिटर्न दिए, जिसने इस फ़ंड को दुनिया का सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाला फ़ंड बना दिया. जहां इस प्रदर्शन ने लिंच को निवेश की दुनिया का लेजेंड बना दिया, वहीं इक्विटी इन्वेस्टिंग पर लिखे गए उनके लेखों ने उनकी विरासत को मज़बूत कर दिया.
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आपको हमारी सितंबर 2023 की वैल्थ इनसाइट कवर स्टोरी पढ़नी चाहिए, और मैं समझता हूं आप इसे ज़रूर पढ़ेंगे. हालांकि, आपको उनकी दूसरी क़िताबें भी पढ़नी चाहिए. वन अप ऑन वॉल स्ट्रीट जैसी क्लासिक के अलावा, उनकी दूसरी क़िताबें भी पढ़ने लायक़ हैं. इनमें 'बीटिंग द स्ट्रीट' और 'लर्न टू अर्न' हैं, और इसके अलावा कई आर्टिकल और इंटरव्यू हैं, जो आपको इंटरनेट पर मिल जाएंगे. जैसा कि आप शीर्षक से ही समझ सकते हैं, उनकी दूसरी क़िताबें भी उनके इस विश्वास पर आधारित हैं कि आम निवेशक, प्रोफ़ेशनल निवेशकों और फ़ंड मैनेजरों से बेहतर कर सकते हैं.