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Chemical Stocks: केमिकल सेक्टर का मुश्किल दौर कब तक रहेगा?

हाल के दौर में ज़्यादातर बड़ी कंपनियों के रेवेन्यू और प्रॉफ़िट में गिरावट देखने को मिली है.

Chemical Stocks: केमिकल सेक्टर का मुश्किल दौर कब तक रहेगा?

Chemical Stocks: भारत की केमिकल कंपनियां इन दिनों मुश्किल दौर से गुज़र रही हैं. पिछली तिमाही में ज़्यादातर बड़ी कंपनियों के रेवेन्यू और प्रॉफ़िट में गिरावट देखने को मिली है.

BSE 500 Index पर लिस्टिड 10 सबसे बड़ी केमिकल कंपनियों के बारे में हमने स्टडी की. हालांकि, हमने इस डेटा में पेंट और एक्सप्लोसिव्स में क़ारोबार करने वाली कंपनियों को शामिल नहीं किया. इन आंकड़ों से गिरावट का ट्रेंड ज़ाहिर होता है.

पहली तिमाही के निराशाजनक नतीजे

अपवादों को छोड़ दें तो लगभग सभी बड़ी कंपनियों की अर्निंग ग्रोथ निगेटिव रही है

कंपनी मार्केट कैप (₹) YoY रेवेन्यू ग्रोथ (%) YoY PAT ग्रोथ (%) ऑपरेटिंग प्रॉफ़िट मार्जिन में YOY बदलाव (%)
SRF 68216 -14.3 -40.9 -6
PI इंडस्ट्रीज़ 56596 23.8 45.9 2.1
UPL 43952 -17.2 -81.1 -7.3
कोरोमंडल इंटरनेशनल 31539 -0.6 -1 0.4
गुजरात फ्लोरोकेमिकल्स 31066 -9.3 -34.3 -6.8
दीपक नाइट्राइट 27361 -14.1 -36.1 -5.6
टाटा केमिकल्स 25505 5.6 -9.7 -0.8
नवीन फ्लोरीन 22119 23.6 -17.4 -2.9
बेयर क्रॉपसाइंस 21464 4.3 8.6 0.3
सुमितोमो केमिकल इंडिया 20223 -26.5 -55.3 -8.6
21 अगस्त, 2023 तक मार्केट कैप

ज़्यादातर कंपनियां भारत और विदेश में कम कमाई से जूझ रही हैं. नतीजतन, उनके स्टॉक्स की क़ीमतों में भी गिरावट आई है.

क्यों हैं गिरावट?

मानसून
पहला कारण है अनियमित मानसून. इस टेबल में लिस्टिड ज़्यादातर कंपनियां एग्रोकेमिकल्स से रेवेन्यू पाती हैं. हालांकि, इस साल, भारत का मानसून अप्रत्याशित रहा है. इससे फसल उगने की रफ़्तार धीमी हो गई है, और इसके चलते सेल पर असर हुआ है.

मिसाल के तौर पर, फ़ाइनेंशियल ईयर 23 की पहली तिमाही के दौरान पीआई इंडस्ट्रीज़ (PI Industries) के क्रॉप प्रोटेक्शन केमिकल्स की घरेलू सेल में, सालाना आधार पर 13.4 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज की गई है. UPL के क्रॉप प्रोटेक्शन बिज़नस में भी सालाना आधार पर 20 फ़ीसदी की गिरावट देखने को मिली है.

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चीन का असर
चीन में सुस्त होती इकोनॉमी, भारत के केमिकल सेक्टर सहित दुनिया भर की कंपनियों को नुक़सान पहुंचा रही है. दरअसल, चीनी कंपनियां सस्ते में केमिकल बेच रही हैं, जिससे उनके प्रतिस्पर्धियों पर भी क़ीमतें कम करने का दबाव है. इसका नतीजा है कि हालिया तिमाही में टॉपलाइन और ऑपरेटिंग मार्जिन पर काफ़ी असर पड़ा है. हालांकि, PI इंडस्ट्रीज और नवीन फ़्लोरीन (Navin Fluorine) अभी भी अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं, जिसकी वजह मुख्य रूप से उनकी कमाई कॉन्ट्रैक्ट बेस (कस्टम सिंथेसिस और कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफ़ैक्चरिंग) होना है.

कोविड और ज़्यादा स्टॉक होना
महामारी के चलते, एक समय पूरी सप्लाई चेन लड़खड़ा गई थी. इसलिए, कंपनियों ने सप्लाई चेन की समस्या से बचने के लिए स्टॉक बढ़ा लिया था. इससे, उस दौरान कुछ समय के लिए केमिकल कंपनियों की सेल बढ़ गई और ग्रोथ को अस्थायी तौर पर रफ़्तार मिली.

हालांकि, अर्थव्यवस्था के पटरी पर आने और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कॉम्पीटिशन बढ़ने के साथ ऑर्डर्स में सुस्ती आनी शुरू हो गई. इससे इंडस्ट्री की ग्रोथ में धीमापन देखने को मिला.

आगे क्या होगा?
सेक्टर की वापसी के लिए, ग्लोबल इकोनॉमी में स्थायित्व और मौसम की स्थितियों में सुधार की ज़रूरत है. चीन की सस्ती क़ीमतों पर केमिकल्स की डम्पिंग करना टिकाऊ नहीं है, और आख़िरकार क़ीमतें ऊपर ही जाएंगी. इसके बाद इन कंपनियों के रेवेन्यू में ग्रोथ के साथ प्रॉफ़िटेबिलिटी में बढ़ोतरी आएगी. हालांकि, ये देखने की बात होगी कि क़ीमतें बढ़ने में कितना समय लगेगा.

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