Anand Kumar
आपने समझा होगा कि 'Wealth Insight' के अगस्त 2023 की हमारी कवर स्टोरी स्टॉक मार्केट के बारे में होगी, पर ऐसा नहीं है. इसके बजाए, ये निवेशकों के मनोविज्ञान पर है. मार्केट इस वक़्त उछाल पर हैं और लगता है कि ये तेज़ी कुछ और समय तक जारी रहेगी. मगर क्या ये असल में तेज़ी ही है? इस सवाल का जवाब तो वक़्त देगा. मुझे 2006 का दिन याद है जब BSE सेंसेक्स ने पहली बार 10,000 का आंकड़ा लांघा था. चार अंकों का सेंसेक्स जब पांच अंकों का हुआ, तो वो लम्हा ऐतिहासिक लगा था. मनोवैज्ञानिक तौर पर निवेशकों ने अपने निवेश के भविष्य को लेकर जो महसूस किया, वो एक बड़ी बात थी.
इसी जैसा एक और ऐतिहासिक दिन जुलाई 1990 का था जब सेंसेक्स पहली बार 1,000 के पार हुआ था. हालांकि, तब का भारत भी अलग था और स्टॉक मार्केट भी. ख़ैर, चार अंकों पर पहुंचना तो हर्षद मेहता स्कैम की दर्द भरी यादों से लथपथ है. कुछ साल बाद, एक दिन ऐसा भी आएगा जब सेंसेक्स 1,00,000 का आकंड़ा पार कर जाएगा.
ये बड़े-बड़े पड़ाव हैं, मगर ऑल-टाइम हाई हर बार बड़ी बात नहीं होती. एक मार्केट जो आमतौर पर ऊपर ही जा रहा हो, उसमें ऑल-टाइम हाई काफ़ी हद तक एक आम बात होती है और इसे इसी नज़रिए से देखा जाना चाहिए. अभी हाल ही में अपना एक कॉलम लिखने के दौरान मैंने कैलकुलेट किया था कि BSE सेंसेक्स के सभी दिनों में से, क़रीब-क़रीब 6 प्रतिशत दिन ऑल-टाइम हाई वाले रहे. 6 प्रतिशत का गणित पूरे साल के दौरान 22 दिनों के बराबर बैठता है— अब इस तरीक़े से तो ये कोई दुर्लभ घटना नहीं कहलाएगी.
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जो बात इसे गंभीर मुद्दा बनाती है, वो निवेशकों में इसे लेकर होने वाली प्रतिक्रिया है. अपने-अपने नज़रिए के मुताबिक़, कुछ निवेशक समझते हैं कि मार्केट इतना ऊंचा हो गया है कि ये अब थमेगा ज़रूर, और शायद क्रैश भी कर जाए. कुछ दूसरे महसूस करते हैं कि जैसे अभी मार्केट ऊपर जा रहा है, इसी तरह से काफ़ी दिनों तक ये ऊपर ही जाता रहेगा. इसी बात को हमारी कवर स्टोरी एक जाने पहचाने इन्वेस्टमेंट मैनेजर और लेखक (जो एक दुर्लभ संयोग है!) हावर्ड मार्क्स की कही बात से साबित करती है, कि "...इकोनॉमिक डेटा या फ़ाइनेंशियल स्टेटमेंट अनालेसिस ज़रूरी नहीं है. ज़रूरी है, मौजूदा निवेशकों के मनोविज्ञान को समझना."
हालांकि, हम इसका ये निष्कर्ष नहीं निकाल सकते कि हमें पूरे मार्केट का मनोविज्ञान समझना ही होगा, वरना हम अपने लिए पैसे ही नहीं बना पाएंगे. ऐसा करना तो वक़्त की बरबादी होगी. इसके बजाए, हम इस मसले को छोड़ देंगे कि दूसरे क्या सोच रहे हैं, और एक निवेशक और एक विश्लेषक के तौर पर सिर्फ़ अपने ख़ुद के मनोविज्ञान पर ही ध्यान देंगे. दूसरे शब्दों में कहूं, तो क्या हम, तर्कसंगत तरीक़े और शांति से, मार्केट वैल्यू (market value) पता कर सकते हैं और जिन स्टॉक्स में हम निवेश कर रहे हैं उनकी इंट्रिंसिक वैल्यू (intrinsic value) का पता लगा सकते हैं? या फिर हम इसी फेर में पड़े रहेंगे कि हमारे चुने स्टॉक्स के बारे में दूसरे क्या सोचते हैं?
ये तो ज़ाहिर है कि मार्केट हाई के बारे में बात कर-कर के सोशल मीडिया और पारंपरिक मीडिया की सांसें फूली हुई हैं. एक आम बात जो कहने से बचा जा रहा है, वो ये कि सब कुछ चढ़ता ही जाएगा, इसलिए स्टॉक ख़त्म होने से पहले ख़रीद लो. ट्रेन कभी भी प्लेटफ़ॉर्म छोड़ सकती है. एक छोटा तबक़ा ये भी सोचता है कि सब कुछ बहुत ऊपर चला गया है, और जब तक दाम ऊंचे हैं बेचने में फ़ायदा है. ये ट्रेन कभी भी छूट सकती है. आमतौर पर लोगों को लगता है कि इतनी हलचल है इसलिए उन्हें भी कुछ-न-कुछ करना ही चाहिए है.
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मैं मानता हूं कि ये दोनों नज़रिए एक दूसरे से उलट नहीं, बल्कि एक जैसे हैं. ये दोनों ही बाहरी परिस्थितियों के चलते लगातार कुछ करते रहने का दुराग्रह करते हैं. लगातार कुछ करते रहने का ख़याल ही ग़लत है. जब मैं उस काम के बारे में सोचता हूं जो निवेशकों को ज़्यादातर समय करना चाहिए, तो वो होता है - कुछ नहीं! अपने निवेश के ज़्यादातर— क़रीब-क़रीब पूरे— अर्से में, आपको कुछ नहीं करना चाहिए, चाहे मार्केट की परिस्थितियां कुछ भी हों. निवेश का सबसे बड़ा काम ही इंतज़ार करने का है.
कुल मिला कर ये मौक़ा है, अपने निवेश में दिखने वाली परेशानियों को दूर करने का, मगर ये वो वक़्त नहीं है जब आप सिर्फ़ इसीलिए कुछ करें क्योंकि आंकड़े तेज़ी से बढ़ रहे हैं.