Anand Kumar
जब मैं वैल्थ इनसाइट के गुज़रे 17 साल पर नज़र डालता हूं, तो शुरुआती 7 साल सबसे ज़्यादा याद आते हैं जो ख़ासे दुखी करने वाले थे. यहां मेरा मतलब किसी निजी दुख से नहीं, बल्कि इक्विटी मार्केट के दुखदायी दिनों से है.
हमने वेल्थ इनसाइट, जुलाई 2006 में लॉन्च की थी. तब BSE सेंसेक्स क़रीब 10,000 पर था. अगले 18 महीनों की ज़बरदस्त तेज़ी ने इसे 20,000 पर पहुंचा दिया. फिर आया ग्लोबल फ़ाइनैंशियल क्राइसिस, और मार्केट अपने सबसे ऊंचे प्वाइंट से तब तक नीचे ही रहा, जब तक मैगज़ीन सात बरस की नहीं हो गई.
वैसे जो हुआ, बड़े काम का हुआ. इस दौरान हमने सबस्क्राइबर्स के ऐसे कोर ग्रुप का ध्यान अपनी तरफ़ खींचा जिन्होंने हमारे यूनीक तरीक़े का अनुभव किया. हमारे काम करने के तरीक़े ने इस तूफ़ानी दौर का सामना बड़े सहज तरीक़े से किया और इस दौरान हमारे साथ रहने वालों पाठकों को ऐसी गहरी समझ मिली, जिसने आने वाले वक़्त में उनके मुनाफ़े को काफ़ी बढ़ाया.
चलिए इक्विटी इन्वेस्टिंग की इस बरसों पुरानी समझदारी से भरी बात को याद रखते हैं: नुक़सान के बीज संपन्नता के दौर में रोपे जाते हैं, वहीं मुनाफ़ा विपरीत परिस्थितियों में बोया जाता है.
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इस 17वीं वर्षगांठ के विशेषांक के लिए, हम उस विषय पर वापस लौट रहे हैं जो निवेश का शायद सबसे भ्रामक विषय कहा जाएगा. ये विषय है स्मॉल-कैप में निवेश, और अब इस विषय को लेकर आपको कुछ उकसाने की इजाज़त दीजिए:
मान लीजिए आप स्टॉक इन्वेस्टिंग जैसे ख़तरनाक मोर्चे के शुरुआती लोगों में से हैं. ये रोमांच इंफ़ोसिस या इंटरग्लोब के ऊंचे-ऊंचे शेयरों में नहीं, बल्कि गुमनाम से स्मॉल-कैप स्टॉक इन्वेस्टमेंट में पाया जाता है. इसका मतलब ये नहीं कि ये बड़े नाम इस इक्विटी इन्वेस्टिंग का हिस्सा नहीं है - वो हैं. मगर, आप किसी बिज़नस का हिस्सा होने और उसके साथ बढ़ने का सच्चा सुख पाना चाहते हैं, तो आपका सफ़र स्मॉल-स्टॉक से शुरू होगा और अपने निवेश को पहले मिड-कैप में, और फिर एक बड़ी एंटरप्राइस में बदलते देखेगा.
आखिर वो क्या है जो स्मॉल-कैप स्टॉक में निवेश को एक रोमांचक सफ़र बना देता है? संक्षेप में कहें तो: उतार-चढ़ाव. पर यही उतार-चढ़ाव इनके एक ज़बरदस्त निवेश बनने की दिशा में एक चिंगारी बन सकता है. क्या ये विरोधाभास नहीं है? मगर यही तो इक्विटी निवेश का शानदार निचोड़ है. ये सहज ही समझ आने वाली बात है कि स्टॉक्स की अस्थिरता ही उन्हें एक लुभावना निवेश बनाती है. कुछ स्टॉक ऊपर जाते हैं, कुछ दूसरे नीचे. कुछ अपने मौजूदा स्तर से बेहतर करते हैं, वहीं कुछ दूसरे लड़खड़ा जाते हैं. ये रिस्क ही है जो उनके मुनाफ़े की संभावना को गर्मी देता है. सच्चा पुरस्कार इनमें समझदारी से निवेश करने का है - ऐसे स्टॉक की पहचान करने का जो भविष्य में शानदार ग्रोथ दे सकते हैं.
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आप इसे समझ लीजिए कि रिस्क और रिटर्न साथ-साथ रहते हैं. बिना किसी जोख़िम वाले एसेट को चुनने में कोई बड़ा फ़ायदा नहीं. क्या आप समझते हैं कि किसी बेस्ट फ़िक्स्ड डिपॉज़िट को चुनकर आप बहुत सारी दौलत बना सकते हैं? ये एक मज़ाक लगेगा, क्योंकि ये मज़ाक ही है. अगर ये मैगज़ीन बेस्ट फ़िक्स्ड डिपॉज़िट के चुनाव के बारे में होती, तो महीने भर भी नहीं चली होती. 17 साल तक इतनी अच्छी तरह चलने की बात तो छोड़ ही दीजिए.
ये आसान नहीं है, इसमें धीरज और एक ख़ास मनःस्थिति की ज़रूरत है, मगर इसका फ़ायदा भी उतना ही बड़ा है. जो बात मैं कहना चाह रहा हूं उसे समझने के लिए, निवेशकों को ख़ुद से पूछना चाहिए कि वो अपने इक्विटी निवेश से क्या चाहते हैं और वो रिस्क लेना चाहते हैं या नहीं, और जो उतार-चढ़ाव हैं वो इसका हिस्सा हैं, और उसी में बढ़िया रिटर्न भी तो हैं. हमेशा से, वैल्थ इनसाइट के काम का एक हिस्सा रहा है कि पाठकों का ऐसा ही टेंपरामेंट और रवैया बनाने में मदद की जाए.
असल में, इस मोर्चे पर, हम जल्द ही कुछ नया लॉन्च करने जा रहे हैं जो आपकी और ज़्यादा मदद करेगा - ये एक स्टॉक-रेटिंग सिस्टम है. हालांकि, मैं इस बारे में अभी और ज़्यादा कुछ नहीं कहूंगा - जब तक आप ख़ुद इसका इस्तेमाल नहीं करते इस पर सस्पेंस बनाए रखना बेहतर है!
हमारे एनीवर्सरी कवर पैकेज का दूसरा हिस्सा उतना ही आम है जितना ऊपर वाला ख़ास. इक्विटी इन्वेस्टिंग - और, असल में, हमारी ज़िंदगी आमतौर पर - सिर्फ़ तभी बेहतर हो सकती है जब देश भी प्रगति कर रहा हो. कभी-कभी हम भूल जाते हैं कि भारत में किस तरह का ऐतिहासिक बदलाव हो रहा है और एक अरब से ज़्यादा लोगों पर इसका क्या असर हो रहा है. मुझे उम्मीद है कि 'वेल्थ इनसाइट' के पेज 83 की 'इंडिया स्टोरी' एक नज़रिया विकसित करने में आपकी मदद करेगी.
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