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ख़बरों की हाइप देख कर निवेश करने के नुक़सान

रोज़ की न्‍यूज हेडलाइन आपके निवेश की सेहत के लिए क्यों ठीक नहीं है, जानिए.

ख़बरों की हाइप देख कर निवेश करने के नुक़सान

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लंबे समय के दौरान मार्केट ख़ुद में सुधार करते हैं. लंबे समय में वेल्थ क्रिएशन के इसी बुनियादी नियम को कई महान निवेशकों ने दोहराया है.

हालांकि, शब्दों की तुलना में आंकड़े एक बड़ी कहानी कहते हैं. इसलिए, एक आसान से अभ्यास के जरिये हम ये पता लगाएंगे कि क्यों शॉर्ट-टर्म हाइप यानी ख़बरों के आधार पर कभी निवेश नहीं करना चाहिए.

अच्छा, औसत और ख़राब
हमने पिछले 10 साल में BSE 200 इंडेक्स के हिस्सों को उनके ROE, यानी उन्होंने अपने शेयरहोल्डर्स की संपत्ति कैसे बढ़ाई, इस आधार पर वर्गीकृत किया है.

इस एक्सरसाइज़ के लिए हमने उन 48 कंपनियों को पहले ही बाहर कर दिया है, जिनका 10 साल का फ़ाइनेंशियल या ट्रेडिंग डेटा उपलब्ध नहीं था.

अलग-अलग कैटेगरी क्या हैं
अच्छी कंपनियां -
बीते 10 साल में से कम-से-कम आठ साल तक जिन कंपनियों का ROE 15 फ़ीसदी या उससे ज़्यादा रहा.
एवरेज कंपनियां - बीते 10 साल में से कम से कम पांच साल और अधिकतम सात साल तक जिन कंपनियों का ROE 15 फ़ीसदी या उससे ज़्यादा रहा.
कमज़ोर कंपनियां - जिन कंपनियों का ROE बीते 10 साल में से पांच साल से कम 15 फ़ीसदी या उससे ज़्यादा रहा.

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इसके बाद, हमने हर कैटेगरी के लिए मई 2013 से मई 2023 तक 1 साल, 3 साल, 5 साल और 10 साल का रोलिंग रिटर्न कैलकुलेट किया.

इसमें हमने क्या पाया?

भले ही कमज़ोर कंपनियों ने एक साल के दौरान बेहतर रिटर्न दिया, लेकिन कई साल के दौरान उनमें भारी गिरावट देखने को मिली.

वहीं, अच्छी कंपनियों ने लंबे समय में अपने शेयरहोल्डर्स को दमदार रिटर्न दिया.

नतीजा
भले ही ऊपर बताए गए नतीजे का पहले ही अंदाज़ा था, लेकिन इससे ये भी पता चलता है कि अस्थायी रूप से कमज़ोर प्रदर्शन के बावजूद अच्छी कंपनी ही अपने शेयरहोल्डर्स को बेहतर रिटर्न देंगी.

साफ़ है कि मुश्किल हालात में ख़तरा महसूस होने लगता है, लेकिन अगर कोई कंपनी बुनियादी तौर से अच्छी है, तो वो भयावह तूफ़ानों से बाहर निकल सकती है और निवेशकों के लिए वेल्थ क्रिएट कर सकती है. इसके विपरीत, एक कमज़ोर कंपनी कम समय के लिए भले ही काफ़ी सुर्खियां बटोरे, लेकिन जल्द ही या कुछ समय बाद नाक़ाम हो जाएगी.

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