एक वित्तीय सलाहकार के रूप में, हमने हमेशा एक बात कही है. SIP से पैसा बढ़ता है. लेकिन उससे भी पहले जिस चीज़ की हमें ज़रूरत है वो मानसिक शांति है. आप अचानक आने वाली परेशानियों से बचने का इंतज़ाम कर चुके हैं या नहीं, ये आपका ख़ुद से पहला सवाल होना चाहिए. बहुत से लोग इमरजेंसी फ़ंड तो बना लेते हैं, लेकिन अक्सर लाइफ़ और हेल्थ इंश्योरेंस की अहमियत को नहीं समझ पाते. वो ये नहीं समझ पाते कि मुश्किलें कभी बताकर नहीं आतीं.
जयपुर के अग्रवाल परिवार के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. साधारण मध्यवर्गीय परिवार के अग्रवाल साहब सरकारी कर्मचारी थे, उनकी पत्नी घर संभालती थीं, और बच्चों ने पढाई ख़त्म कर के बस काम करना शुरू ही किया था. बचत से उन्होंने एक ठीक-ठाक मकान भी खड़ा कर लिया था. एक आम मध्य-वर्ग की तरह RD, FD में कुछ बचत भी थी. घर में कोई फ़िज़ूलखर्च भी नहीं था. लेकिन बीमे की ज़रूरत, अग्रवाल साहब के गले से नहीं उतरती थी, ख़ास तौर पर हेल्थ इंश्योरेंस. उन्हें कभी लगा ही नहीं कि ऐसी कोई स्थिति भी बन सकती है, जिसमें उनकी बचत, या उनके परिवार, रिश्तेदारों की मदद की ज़रूरत पड़ जाएगी.
लेकिन नवंबर की एक सर्द रात अग्रवाल साहब के बेटे ने उन्हें फ़ोन किया. "पापा, शादी से लौटते हुए रास्ते में मेरा एक्सीडेंट हो गया है. आप भीलवाड़ा आ जाइये." आनन-फ़ानन में अग्रवाल परिवार भीलवाड़ा पहुंचा, तो पता चला, चोट ज़्यादा आई है, और बेटे को अगर जल्दी अच्छा इलाज नहीं मिला, तो जान का जोख़िम भी है.
ये भी पढ़िए- डाइवर्सिफ़िकेशन के ख़तरे
अग्रवाल साहब अपने बेटे को लेकर मुंबई गए, और फिर शुरू हुआ इलाज का लंबा सिलसिला. उनके बेटे को ठीक होते-होते दो साल लग गए. अग्रवाल परिवार की सारी बचत, अस्पताल, औऱ दूसरे शहर के ख़र्च में स्वाहा हो गई. ग़नीमत थी कि दोस्तों, रिश्तेदारों की मदद के कारण बैंक से क़र्ज़ नहीं लेना पड़ा. और अगर बेटे का हेल्थ इंश्योरेंस होता, तो शायद किसी के क़र्ज़ की भी उन्हें ज़रूरत नहीं पड़ती.
शुक्र की बात ये है कि उनका बेटा अब ठीक है. उस परिवार के सभी लोग अब नियम से हेल्थ इंश्योरेंस करवाते हैं. लेकिन समय से हेल्थ इंश्योरेंस न करवाना बहुत ही घाटे का सौदा रहा. ख़ुद वो मानते हैं कि परिवार की माली हालत फिर से अच्छी होने में क़रीब 10 साल लग जाएंगे.
यहां सीखने की सबसे बड़ी बात है, कि मुसीबत बताकर नहीं आती, और मुसीबत कितनी बड़ी होगी या कितने समय तक चलेगी, ये कभी किसी को पता नहीं होता. मुसीबत लंबी हो जाए तो सबसे बड़ी तकलीफ़ सिर्फ़ पैसे के नुकसान की नहीं होती. कई बार क़र्ज़ भी चढ़ जाता है. पैसे के चलते रिश्ते ख़राब होने की नौबत आ जाती है. लेकिन इस सब से कहीं ज़्यादा बड़ा नुक़सान मानसिक शांति का होता है.
ये भी पढ़िए- रिटायरमेंट के लिए चाहिए कितनी रक़म?
अग्रवाल परिवार की कहानी पर्सनलन फ़ाइनांस की प्लानिंग में हेल्थ इंश्योरेंस की अहमियत बयान करती है. पैसों की प्लानिंग में अचानक होने वाले ख़र्चों के लिए तैयार रहना बेहद अहम है. हेल्थ इंशंयोरेंस इस तैयारी का एक हिस्सा है. हममें से किसी को भी अग्रवाल परिवार की तरह किसी अनहोनी के घटने का इंतज़ार नहीं करना चाहिए. ये काम जितना जल्दी हो जाए उतना बेहतर होता है.
हमारे देश में अक्सर बुज़ुर्गों को कहते सुना जाता है, "पास में पैसा रहता है, तो दम रहता है." समझने की बात ये है कि पैसा सिर्फ़ नक़द या संपत्ति के रूप में रहे, ये ज़रूरी नहीं. कभी-कभी ये पैसा इंश्योरेंस के तौर पर भी दम क़ायम रखता है.
ये भी पढ़िए- निवेश की चार सामान्य गलतियां