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क्वालिटी स्टॉक्स की खोज

जाने माने इन्वेस्टमेंट मैनेजर भरत शाह की तरह कैसे क्वालिटी स्टॉक्स की पहचान करें

क्वालिटी स्टॉक्स की खोज

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अगर आप डिक्शनरी देखेंगे, तो 'क्वालिटी' एक सरल सा शब्द लगेगा. क्वालिटी की सबसे आम परिभाषा कुछ इस तरह से मिलेगी, 'किसी चीज़ की गुणवत्ता कितनी अच्छी या ख़राब है' या 'किसी व्यक्ति या वस्तु का गुण परिभाषित करना'. ये उन शब्दों में से है जिसका मतलब जितना आसान है, उसे समझाना उतना ही मुश्किल है. हर कोई जानता है कि इसका क्या मतलब है, और डिक्शनरी की परिभाषा इस शब्द को लेकर हमें कुछ भी नया नहीं बता सकती.

जब कपड़ों या खाने या किसी मोबाइल फ़ोन या फिर रोज़मर्रा की किसी चीज़ की बात होती है, तब क्वालिटी तय करना बहुत मुश्किल नहीं होता. पर स्टॉक इन्वेस्टमेंट ऐसा नहीं है. अगर आप किसी किसी शख़्स से या क्वालिटी स्टॉक में इन्वेस्ट करने वाले से ही पूछेंगे, तो आपको कुछ इस तरह की परिभाषा मिलेगी कि 'क्वालिटी स्टॉक वो होते हैं, जो लंबे समय के लिहाज़ से वाजिब क़ीमत पर उपलब्ध हों'. निवेश की दुनिया में हर कोई यही कहता है या ऐसी ही बात कहता है. मेरा मतलब है, इसका उलटा कौन कहेगा कि मैं कम क्वालिटी के स्टॉक पर ध्यान देता हूं क्योंकि ऐसे स्टॉक ऊंचे वैलुएशन पर उपलब्ध हैं, और क्योंकि ये शॉर्ट-टर्म के लिहाज़ से ही ठीक हैं? ऐसा कतई नहीं होता.

इन सबसे, क्वालिटी स्टॉक्स की पहचान करना काफ़ी मुश्किल हो जाता है. किसी ठोस चीज़ के बजाए, क्वालिटी स्टॉक्स का आकलन भविष्य में झांकने जैसा है. क्योंकि आप सीधे भविष्य में नहीं देख सकते, इसलिए आपके पास संकेत होते हैं. ज़ाहिर है, इन संकेतों को समझना एक बड़ा काम है. पहली नज़र में, इसके लिए बहुत से नंबरों वाला फ़ाइनेंशियल स्टेटमेंट समझने की ज़रूरत होती है, बहुत सारे बिज़नस वाली किसी इंडस्ट्री और सेक्टर के कामकाज को समझना होता है, कंपनियों के लिए मैनेजमेंट के पिछले फ़ैसलों और इसी तरह की तमाम बातों को शामिल करना होता है. और फिर बारी आती है बाहरी फ़ैक्टर्स की जैसे - फ़ाइनेंशियल फ़ैक्टर, रेग्युलेटरी फ़्रेमवर्क, ग्लोबल इवेंट, और दूसरी बातें जो कंपनी के बिज़नस पर असर डाल सकती हैं, और इस सब के बाद आख़िर में, सबसे ऊपर होता है ख़ुद मार्केट का मिज़ाज. ज़ाहिर है, महज़, किसी एक वक़्त का स्नैपशॉट लेने भर से बात नहीं बनती. कई चीज़ें ऐसी होती हैं जो लगातार बदलती हैं, और कुछ स्थायी होती हैं या एक जैसी बनी रहती हैं, जिससे क्वालिटी स्टॉक की पहचान एक बार का आकलन न होकर लगातार की जाने वाली प्रक्रिया बन जाती है.

वैल्थ इनसाइट के मई 2023 के इशू की कवर स्टोरी में, हमारी टीम ने एक तरीक़ा अपनाया है, जिसका फ़्रेमवर्क बहुत सारे स्टॉक्स की क्वालिटी तय करके, एक भरोसे की लिस्ट तैयार कर सकता है. ये फ़्रेमवर्क जाने-माने निवेश मैनेजर भरत शाह की बनाई स्ट्रैटजी पर आधारित है. हमारी टीम ने शाह की एक क़िताब, 'ऑफ़ लॉन्ग-टर्म वैल्यू एंड वैल्थ क्रिएशन फ़्रॉम इक्विटी इन्वेस्टिंग' को एक गाइड के तौर पर इस्तेमाल किया है. शाह के इस तरीक़े में ये भरोसा होता है कि टॉप-टियर वाली कंपनियां—जिन्हें ROCE के ज़रिए और कुछ दूसरे पैमानों पर परखा जाता है—वो लंबे अर्से में वैल्थ बनाने का सबसे ज़्यादा मौक़ा पैदा करती हैं. दरअसल, इस क़वायद में हमारा गोल ऊंचे-दर्जे के एंटरप्राइस में निवेश के नतीजों को जांचना था. हमारी टीम की रिसर्च ने पाया कि 10 साल जैसे लंबे अर्से में कैपिटल रिटर्न्स और स्टॉक प्राइस बढ़ने के बीच एक साफ़ और सीधा रिश्ता है.

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और हां, मैं पहले भी कई बार कही गई एक बात दोहराना चाहूंगा कि इस पूरी क़वायद का मक़सद एजुकेशन है. ये कोई स्टॉक रेकमेंडेशन नहीं है, वो काम तो वैल्यू रिसर्च स्टॉक एडवाइज़र सर्विस करती है. नंबरों के इस गुणा-भाग से ज़्यादा, निवेशकों को अपनी सब्जेक्टिव समझ की एक और तह को बनाए रखनी चाहिए. सब्जेक्टिव जजमेंट की अहमियत को कम नहीं आंका जा सकता, जो ये अनुभव और मुश्किल सवाल पूछने की हिम्मत के साथ बढ़ती रहती है. स्टॉक्स को सिर्फ़ आंकड़ों के आधार पर ही समझने, और उसमें निवेश के तर्क की सब्जेक्टिव समझ को शामिल न करने से निवेशकों को कोई मायने रखने वाले नतीजे नहीं मिल सकते. मगर हां, आजकल, इसका उलटा भी सच है. ऐसी कंपनियों की कमी नहीं है जो ख़ासी सुर्खियों में हैं, अफ़सोस तो ये है कि इनमें से कई ज़ोर-शोर से प्रचारित की जा रही यूनिकॉर्न भी शामिल हैं, और ये केवल सब्जेक्टिव वाला हिस्सा है—सिर्फ़ कहानियां हैं—जिसका उनके फ़ाइनांशियल परफ़ॉर्मेंस से कोई लेना-देना नहीं है. क्वालिटी को लेकर आख़िरी फ़ैसला नंबरों, इंसानी समझ, और कहानियों पर आधारित होना चाहिए.

असल में, ये भी आख़िरी फ़ैसले का प्वाइंट नहीं है. आख़िरी फ़ैसला तो तब होता है जब निवेशक अपने फ़ाइनैंशियल गोल और हालातों को देखते हैं और उसकी रोशनी में अपने हर निवेश को परखने के बाद फ़ैसला लेते हैं, मगर ये बात फिर किसी दिन.

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