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पहले आसमान में फिर ज़मीन पर, अब कैसी होगी ग्रोथ फ़ंड्स की कहानी?

किसी ग्रोथ फ़ंड में पैसे लगाने से पहले ये नहीं जानना चाहेंगे कि इनकी मौजूदा स्थिति क्या संकेत दे रही है

पहले आसमान में फिर ज़मीन पर, अब कैसी होगी ग्रोथ फ़ंड्स की कहानी?

Growth Funds: अलग-अलग क़िस्म के म्यूचुअल फंड्स होते हैं, और इनके निवेश का फ़लसफ़ा भी अलग होता है. कुछ निवेश में 'ग्रोथ' स्टाइल को अपनाते हैं, तो कुछ का ज़ोर 'वैल्यू इन्वेस्टिंग' पर रहता है.

ग्रोथ स्टाइल में, कंपनी के स्टॉक के प्राइस को ज़्यादा तवज्जो नहीं दी जाती. इसकी दलील ये है कि अगर एक कंपनी ने हाल के वर्षों में बेहतर प्रदर्शन किया है और उसका भविष्य अच्छा नजर आ रहा है, तो स्टॉक की ऊंची क़ीमतों के बावजूद इसमें निवेश करना वाजिब लगता है. एक्सिस म्यूचुअल फ़ंड (Axis Mutual Fund) के सीनियर फ़ंड मैनेजर श्रेयश देवलकर ने वेल्थ इनसाइट (मई 2023 अंक) के एडिशन के लिए दिए एक इंटरव्यू में इस बारे में कहा कि "अच्छी क्वालिटी वाली कंपनियां अपनी ख़ूबियों (तेज़ विस्तार और कमाई में ग्रोथ) और मार्जिन को सुरक्षा के कारण आमतौर पर एक प्रीमियम पर क़ारोबार करती हैं."

दूसरी तरफ, वैल्यू स्टाइल फॉलो करने वाले म्यूचुअल फ़ंड्स के लिए कंपनी के स्टॉक की क़ीमत सबसे अहम हैं. वो ऐसी कंपनियों पर गौर करते हैं, जिनकी वैल्यू तो कम हो लेकिन भविष्य में बढ़ने की संभावनाएं हों.

किसी भी मामले में कोई बेहतर या बदतर स्थिति नहीं है. दोनों ही स्टाइल की अपनी ख़ूबियां और ख़ामियां हैं.

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ग्रोथ का दर्द
ग्रोथ स्टाइल फॉलो करने वाले म्यूचुअल फंड्स को बीते साल या अभी तक ख़ासी मुश्किलों का सामना करना पड़ा है. आप टेबिल में देख सकते हैं कि कुछ प्रमुख 'ग्रोथ' म्यूचुअल फंड्स की 2021 के अंत के बाद से तगड़ी पिटाई हुई है.

ऑल-टाइम हाई के दौरान, इन फंड्स में पैसा लगाने वाले इन्वेस्टर्स अभी तक अपने इन्वेस्टमेंट रिकवर करने का इंतज़ार कर रहे हैं.

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कमज़ोर प्रदर्शन की वजह
2021 के अंत तक, 'ग्रोथ' फंड्स में दमदार रैली दिख रही थी. उन्होंने स्टॉक्स की क़ीमतें ऊंचे स्तर पर होने के बावजूद क्वालिटी कंपनियों में निवेश किया था. अर्थव्यवस्था में कमज़ोरी के संकेत दिखने से पहले सब कुछ अच्छा चल रहा था.

महंगाई और क़र्ज़ दरों के बढ़ने के साथ, कमज़ोर होती अर्थव्यवस्था ग्रोथ कंपनियों के अनुकूल नहीं रही.

यही वजह है कि ग्रोथ कंपनियों को लगातार मार्केट शेयर बढ़ाने की ज़रूरत होती है. लेकिन क़र्ज़ की दरों में बढ़ोतरी से उनकी रफ़्तार थम गई.

भारत में अभी तक ऐसे ही हालात बने हुए हैं. हाल के महीनों में भारत में क़र्ज़ की दरों और महंगाई में भारी बढ़ोतरी से ग्रोथ कंपनियों और उनमें निवेश करने वाले फंड्स को तगड़ा झटका लगा.

अब आगे क्या?
क्या ग्रोथ फंड्स की बदहाली ख़त्म होगी? खुशक़िस्मती से ऐसा होना है.

एक्सिस फ़ंड के सीनियर मैनेजर देवलकर कहते हैं, "स्लो-डाउन के दौरान मार्केट शेयर को बनाए रखना या सुधार करना आमतौर पर एक मज़बूत मोट (सुरक्षा खाई) का प्रमाण होता है. आमतौर पर, ऐसी कंपनियों को तेज़ी के दौरान तुलनात्मक रूप से ज़्यादा फ़ायदा होता है."

दूसरे शब्दों में, अगर ग्रोथ फंड्स ग्रोथ के साथ या अपने मार्केट शेयर को बढ़ाकर, ऊंची महंगाई और क़र्ज़-ख़र्च के साइकिल से उबरते हैं, तो समृद्धि का एक नया दौर शुरू हो सकता है.

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