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छोटा है पर कम खोटा नहीं

छोटा यानी SME IPO इंडेक्स, जो अपने शानदार प्रदर्शन से सोशल मीडिया की आंखों का तारा बना हुआ है, मगर पैसे दांव पर लगाने से पहले आप इस विषय को ज़रा गहराई से देखें

छोटा है पर कम खोटा नहीं

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भारतीय स्टॉक मार्केट में एक ख़ुमार छाया हुआ है. इस ख़ुमार का नाम है SME IPO. और इसकी वजह है इनका गज़ब का प्रदर्शन. पिछले कुछ महीनों में तमाम लोगों ने SME IPOs का ज़बर्दस्त प्रदर्शन नोटिस किया है, और BSE SME IPO इंडेक्स के ज़बर्दस्त गेन, सोशल मीडिया पर तूफ़ान बरपा रहे हैं. ऐसा हो भी क्यों न, पिछले दो साल में ये इंडेक्स क़रीब 14 गुना चढ़ा है. ये बात सुनने में कितनी शानदार लगती है, मगर इससे पहले कि आप कुछ ज़्यादा उत्साहित हों, इसका एक और पहलू भी जान लीजिए.

आप एक SME IPO पर फ़ोकस करने वाले इंडेक्स से क्या अपेक्षा करेंगे कि उसमें बड़े उतार-चढ़ाव हों, तो ये आपकी उम्मीदों पर खरा उतरेगा क्योंकि इसका नीचे जाना उतना ही गज़ब का रहा है जितना इसका ऊपर जाना. मिसाल के तौर पर, पिछले पांच महीनों में, यानी जनवरी 2022 से जून के आखिर तक, इसने क़रीब 50 प्रतिशत का गहरा गोता लगाया है.

इससे हुआ ये है कि मार्केट के एक हिस्से में जान आ गई है. वैसे, निवेश से कुछ देर के लिए हट कर बात करें तो कहना होगा कि ये भारतीय अर्थव्यवस्था, और लाखों छोटे उद्योग-धंधों के लिए एक अच्छी ख़बर है. पहले कभी SMEs के पास कैपिटल मार्केट की पहुंच नहीं रही—पुराने लोगों को OTCEI का बेकार होना याद ही होगा—पर अब ऐसा नहीं है, अब ये पब्लिक शेयर-होल्डिंग जुटा सकते हैं, और उस पैसे का इस्तेमाल अपनी ग्रोथ के लिए कर सकते हैं. हां, इसमें उतार-चढ़ाव तो होंगे ही, और कुछ कंपनियां काफ़ी बुरा प्रदर्शन भी करेंगी ही. मगर ये एक मिसाल है, स्टॉक मार्केट के उस काम को करने की, जो उसे असल में करना चाहिए, यानी बिज़नस के लिए कैपिटल जुटाना. घाटे से ग्रस्त ओवर-वैल्यूड और ओवर-हाइप वाले यूनिकॉर्न (और नकलची यूनीकॉर्न) के मुक़ाबले, ये SME बिज़नस ही भारत के असली स्टार्ट-अप हैं.

हालांकि, इसका ये मतलब कतई नहीं है कि छोटे और मझोले निवेशकों को, छोटे और मझोले धंधों के IPOs में पैसे डालने चाहिए. जितने भी कारण मैंने IPO में निवेश के लिए हमेशा गिनाए हैं, वो SME IPOs पर भी अक्षरशः लागू होते हैं, और सच कहूं तो बड़ी कंपनियों के बड़े IPOs से ज़्यादा लागू होते हैं. और इनका स्टॉक की क्वालिटी से कोई लेना-देना नहीं है. आपको ये एक कड़ियल क़िस्म का रवैया लग सकता है, मगर इसकी जड़ें तर्क और अनुभव में गहरे से गड़ी हैं.

मार्केट रेग्युलेटर SEBI ने IPOs में छोटे निवेशकों के हितों को हमेशा ही आगे रखा है. यहां तक कि IPO के प्रोसेस को अपनाने में भी यही बात झलकती है. मगर, एक रिटेल निवेशक को, IPOs को लेकर ख़ुद ही सावधान रहना चाहिए. दरअसल, एक आम रिटेल निवेशक के लिए IPOs में फ़ायदे की रत्ती भर बात नहीं होती. सेकेंडरी मार्केट में निवेश के उलट, IPOs की मुख्य समस्या, बेचने वाले और ख़रीदने वाले के बीच जानकारी की असमानता है. असल में, लंबे वक़्त से लिस्टिड स्टॉक्स के मुक़ाबले, IPOs इंडिविजुअल निवेशकों के लिए सूटेबल ही नहीं हैं. इसका कारण है, और सीधा-सादा है: IPO कंपनियां उनके लिए गुमनाम कंपनियां होती हैं जिनके बारे में वो ठीक से जानते नहीं हैं. जानने का सारा फ़ायदा बेचने वाले के पास होता है, और ऐसा इसलिए क्योंकि सार्वजनिक तौर पर कंपनी की कोई जांच-परख नहीं की गई होती. अक्सर, एक प्रमोटर—या यूं कहें, वो लोग जो IPO का प्रोसेस मैनेज करते हैं—पब्लिक में जाने से पहले महीनों अपनी छवि चमकाने में जुटे रहते हैं. इन लोगों का पूरी विशेषज्ञता ही आपको मूर्ख बनाने के आसपास मंडराती है. यक़ीन मानिए, आप चाह कर भी उनकी इस क़ाबिलियत का मुक़ाबला नहीं कर पाएंगे.

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लिस्टिड स्टॉक्स के उलट, IPO कंपनियों के फ़ाइनेंशियल अच्छी तरह से, और लंबे समय तक खंगाले नहीं गए होते हैं. और तो और, बजाए मार्केट के प्राइस डिस्कवरी मैकेनिज़्म से तय होने के, इन IPO के दाम प्रमोटर ख़ुद तय करते हैं. SME IPO का प्रोसेस कुछ मामलों में अलग ज़रूर है, मगर मोटे तौर पर ये भी बड़ी कंपनियों के IPO जैसा ही है.

तो बुनियादी तौर पर, IPOs छोटे निवेशकों द्वारा सुलझाई जाने वाली समस्या नहीं है. इसमें मौजूदा मालिकों और इन्वेस्टमेंट बैंकरों में हितों का टकराव एक तरफ़ होता है, और निवेश करने वाली जनता का हित एक तरफ़. ये फ़ासला बहुत बड़ा होता है, क्योंकि वेरिफ़ाई करने लायक़ जानकारी बहुत कम होती है. इस तरह का निवेश प्रोफ़ेशनल लोगों के हवाले होना चाहिए जो इस धंधे में हैं, और टेबल पर आमने-सामने बैठ कर, कड़ा भाव-तोल कर सकते हैं. आम रिटेल निवेशक जिन्हें ख़रीदो-या-आगे-बढ़ो की तर्ज़ पर IPO ऑफ़र किया जाता है, उन्हें इसे छोड़ ही देना चाहिए. बिना किसी अपवाद के.

बड़े IPO से कहीं ज़्यादा उतार-चढ़ाव होने की वजह से, SME IPOs और भी बुरे हैं. असल में, SME IPO इंडेक्स के डिटेल और कुछ दूसरा डेटा देख कर, मैं तो कहूंगा कि यहां समस्या कुछ अलग तरह की है, मगर है तो ये समस्या ही. SME IPOs में ओवर-प्राइसिंग कुछ कम लगती है, मगर ये कहीं ज़्यादा उतार-चढ़ाव वाले होते हैं. इस इंडेक्स में बढ़-चढ़ कर जो गेन दिखाई दे रहा है, वो मुठ्ठी भर इशू के बंपर गेन की वजह से हुआ है. वैसे, अगर आपको उतार-चढ़ाव से परहेज़ नहीं तो इन्हें आज़मा लीजिए, मगर फिर मत कहिएगा कि आपको बताया नहीं.

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