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महज़ ROE देखकर अपने पैसे दांव पर न लगाएं

इक्विटी पर ऊंचा रिटर्न देने वाली कंपनियों पर आंख मूंद कर दांव लगाने से आप मुश्किल में भी फंस सकते हैं

महज़ ROE देखकर अपने पैसे दांव पर न लगाएं


Return on Equity (ROE): वैसे किसी कंपनी की इक्विटी पर ज़्यादा रिटर्न देने की क्षमता एक निवेशक के लिए अहमियत रखती ही है. आख़िर आपने एक बिज़नस में अपना पैसा लगाया है तो स्वाभाविक है कि आप ज़्यादा-से-ज़्यादा फ़ायदा उठाना चाहेंगे. इसीलिए लंबे समय के इक्विटी इन्वेस्टमेंट का मुख्य नियम है, ऊंचे ROE यानी रिटर्न ऑन इक्विटी वाली कंपनियों का चुनाव करना.

मगर, कई निवेशक इस मामले में चूक कर बैठते हैं. दरअसल, ऊंचा ROE अपने आप में निवेश का फ़ैसले लेने के लिए काफ़ी नहीं है. इसकी वजह है कि अच्छे मुनाफ़े और रेवेन्यू में ग्रोथ के बिना, ऊंचा ROE कोई ख़ास अहमियत नहीं रखता.

ग्रोथ के बिना एक कंपनी सबसे अच्छी स्थिति में महज़ अपना ROE बनाए रख सकती है, लेकिन शायद वो लंबे अर्से में जारी रख सके. इसके अलावा, जो कंपनियां ऊंचा ROE बनाए रखते हुए अपनी अर्निंग्स और रेवेन्यू में बढ़ोतरी करती हैं, वो कम ग्रोथ के साथ ऊंचे ROE वाली कंपनियों से बेहतर प्रदर्शन करती हैं.

क्या कहते हैं तथ्य
मगर रुकिए, आपको हमारी बात ऐसे ही नहीं मान लेनी चाहिए. अपनी बात को साबित करने के लिए, हम आपके सामने कुछ तथ्य रखना चाहेंगे.

हमने ₹500 करोड़ से ज़्यादा मार्केट-कैप वाली उन कंपनियों पर ग़ौर किया, जिन्होंने वित्त-वर्ष 13 और 17 के बीच अपना ROE, सालाना 15 फ़ीसदी या उससे ज़्यादा बरक़रार रखा. फिर हमने इन कंपनियों को दो ग्रुप में बांट दिया. ग्रुप 1 में ऐसी कंपनियां रखीं, जिनका वित्त-वर्ष 13 से वित्त-वर्ष 17 के बीच सालाना रेवेन्यू और अर्निंग्स में ग्रोथ 10 फ़ीसदी रही. और, ग्रुप 2 में इसी दौरान, 10 फ़ीसदी से कम सालाना रेवेन्यू और अर्निंग्स में ग्रोथ वाली कंपनियां रखी गईं.

इसके बाद, अगर किसी ने इन दोनों से किसी भी ग्रुप में 2018 में निवेश किया था, और अभी तक शेयर रखे हुए हैं, तो उनके लिए हमने पिछले पांच साल का औसत रिटर्न या मुनाफ़ा निकाला. अब हम बताते हैं कि इस कैलकुलेशन के नतीजे क्या रहे?

जैसा अनुमान था, ग्रुप 2 की तुलना में ग्रुप 1 का प्रदर्शन बेहतर रहा. 2018 और 2023 के बीच ग्रुप 1 का पांच साल का मीडियन रिटर्न सालाना 5.1 फ़ीसदी रहा, जबकि ग्रुप 2 का सालाना रिटर्न, महज़ 0.8 फ़ीसदी रहा.

साथ ही, हमारे दावे को सही साबित करने वाली एक बात ये है कि ग्रुप 1 में 44 फ़ीसदी कंपनियों ने वित्त-वर्ष 13 की तुलना में वित्त-वर्ष 17 में ऊंचा ROE दर्ज किया. इसका मतलब है कि इन कंपनियों ने अपनी अर्निंग्स के दम पर ROE बढ़ाया. इसके उलट, ग्रुप 2 में केवल 18 फ़ीसदी कंपनियां ही ऐसा कर सकीं, और नतीजतन कम रिटर्न दिया.

...तो आपको क्या करना चाहिए
जैसा कि हमने ऊपर कहा, बिना सोचे-समझे ऊंचे ROE वाली कंपनियों पर दांव लगाना आपके पोर्टफ़ोलियो के लिए ख़ासा नुकसानदेह हो सकता है. इसलिए, ROE को किसी कंपनी की पूरी फाइनेंशियल ग्रोथ के साथ मिलाकर देखा जाना चाहिए.


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