Earnings Per Share: आपने किसी बिज़नस में पैसा लगाया है, तो आपके लिए ये जानना स्वाभाविक है कि आपके हिस्से में कितना प्रॉफ़िट आएगा. इसके लिए EPS (Earnings Per Share) एक अच्छा मानदंड है. इससे पता चलता है कि एक कंपनी, हर शेयर पर कितना पैसा कमाती है. एक कंपनी के नेट प्रॉफ़िट को उसके आउटस्टैंडिंग, यानी कुल शेयरों की संख्या से भाग देकर इसे निकाला जाता है.
हालांकि, इसमें एक समस्या है. अगर आउटस्टैंडिंग शेयरों की संख्या बढ़ जाए तो क्या होगा?
Diluted EPS कैसे कैलकुलेट होता है
दरअसल, कंपनियां अक्सर पूंजी जुटाने के लिए कन्वर्टेबल सिक्योरिटीज़ (कन्वर्टेबल बॉन्ड्स, कन्वर्टेबल प्रेफ़र्ड स्टॉक्स, एम्प्लॉई स्टॉक ऑप्शंस, वारंट्स आदि) जारी करती हैं. आसान शब्दों में कहें, तो ये ऐसी सिक्योरिटीज हैं, जिन्हें किसी ख़ास तारीख़ या इवेंट के बाद सामान्य स्टॉक में तब्दील कर दिया जाता है. इसका मतलब है कि आउटस्टैंडिंग शेयरों की संख्या बढ़ने और EPS कम होने का जोख़िम हमेशा बना रहता है.
इस जोख़िम से बचने के लिए, एनेलिस्ट्स Diluted EPS कैलकुलेट करते हैं. Diluted EPS में आउटस्टैंडिंग शेयरों की मौज़ूदा संख्या में कन्वर्टेबल सिक्योरिटीज को जोड़ लिया जाता है. मिसाल के तौर पर, मान लीजिए की कंपनी A के आउटस्टैंडिंग शेयरों की संख्या 10,00,000 है, और उसने ₹80 करोड़ रुपये का नेट प्रॉफ़िट (टैक्स के बाद का मुनाफ़ा) दर्ज किया है. इस तरह से, उसका EPS ₹80 है. लेकिन मान लें कि कंपनी ने 2,00,000 कन्वर्टेबल शेयर जारी किए हैं, तो ये एक निश्चित समय के बाद बढ़कर 12,00,000 हो जाएंगे.
इस तरह से, कंपनी का Diluted EPS लगभग ₹67 (₹80 करोड़/12,00,000) है.
EPS और Diluted EPS
इन्वेस्टर्स को ध्यान रखना चाहिए कि ऊपर बताई गई बातों का मतलब EPS की अनदेखी करने से है. EPS कंपनी के मुनाफ़े के आकलन का अच्छा मानक है. हालांकि, Diluted EPS इन्वेस्टर्स को उस सबसे ख़राब स्थिति के बारे में बताता है कि कंपनी के प्रॉफ़िट में से उसे मिलने वाले हिस्से में कितनी कमी आ सकती है. अगर EPS और Diluted EPS में अंतर ख़ासा ज़्यादा है, तो इसका मतलब है कि मौज़ूदा शेयरहोल्डर्स को भविष्य में कंपनी के प्रॉफ़िट का एक बड़ा हिस्सा नहीं मिलने की आशंका है.
हम यहां कुछ ऐसी कंपनियों के बारे में बता रहे हैं, जिनके EPS और Diluted EPS में ख़ासा अंतर है.