यूं तो ये एक पुरानी कहानी है. पर इस बार एक नए ट्विस्ट के साथ आई है. बात कुछ ही दिनों पहले की है, जब कुछ लोग अपने फ़ायदे के लिए स्टॉक के दामों के साथ खिलवाड़ कर रहे थे. अब सेबी ने उनके ख़िलाफ़ ऑर्डर जारी कर दिया है. ये ऑर्डर दिखाता है कि ये गोरखधंधा, साधना ब्रॉडकास्ट नाम की एक कंपनी के प्रॉमोटरों की मिलीभगत से खेला गया. और ये खेल, स्टॉक मार्केट के सबसे पुराने खेलों में से है. जिसकी शुरुआत होती है, किसी एक स्टॉक को ख़रीदने के लिए ख़ूब प्रमोट करने से, और ऐसा करने से पहले, प्रमोटरों के साथ मिलीभगत करके उस स्टॉक को बड़े नंबर में ख़रीदने से. पहले स्टॉक का ख़ूब प्रचार करो, उसके दाम चढ़ाओ, उसे बेचो, और मोटा मुनाफ़ा कमा कर रफ़ूचक्कर हो जाओ. ये एक पुराना खेल है.
जो बात नई है, वो ये कि इसके लिए बड़े तौर पर डिजिटल मार्केटिंग का इस्तेमाल किया गया. इस केस में, धोखाधड़ी अंजाम देने वाले गैंग ने दो यू-ट्यूब चैनल चलाए, और कम-से-कम ₹4.72 करोड़ रुपए गूगल एडवरटाइज़िंग सर्विस पर विज्ञापन और प्रमोशन पर ख़र्च किए. न्यूज़ की रिपोर्ट बताती हैं कि जो लोग और संस्थाएं इसमें शामिल थीं उनके मुनाफ़े के क़रीब ₹40 करोड़ रुपए अब उनसे वसूले जाएंगे.
एक स्टैंडर्ड प्रमोटर का स्पॉन्सर की हुई पंप और डंप स्कीम भले ही मार्केट की शुरआत से ही चली आ रही हो, पर इसकी डिजिटल पहुंच डराने वाली है. एक वक़्त था, जब ऐसी स्कीमें सिर्फ़ मुठ्ठी भर हेरा-फेरी करने वाले जाने-पहचाने ताक़तवर लोगों तक ही सीमित थीं. इन लोगों की पहुंच इतनी नहीं हुआ करती थी, और जो लोग उनके कहने में चला करते थे, वो जानते थे कि वो क्या कर रहे हैं. अब इंटरनेट ने जो क़ारनामा किया है, वो ये कि इन स्कैम करने वालों की पहुंच बेतहाशा बढ़ा दी है. और हां, इस केस की जांच दिखाती है कि डिजिटल ट्रेल (trail) को मिटाया नहीं जा सकता. ये नए दौर का स्कैम है. इस स्कैम का पता लगना और उसकी जांच डिजिटल तरीक़े से ही की जा सकती है.
इस जैसे मसले पर हमेशा कि तरह रेग्युलेटरी एक्शन तो जारी रहेगा, सवाल ये है कि लोग ख़ुद को इस तरह की स्कीमों से बचाने के क्या कर सकते हैं. और इस बात का अचरज भी है कि इस सवाल का जवाब पाना बड़ा मुश्किल है. सरसरी तौर पर तो मैं कह सकता हूं कि आपको निवेश की सलाह इंटरनेट पर यूं ही किसी से नहीं लें; किसी अच्छी छवि वाले स्रोत की बात ही अपनी सलाह के लिए चुनें. ये बात समझदारी की है कि आपको आधिकारिक स्रोत से ही ख़बरें लें. ये बिना शक़ आपको इस क़िस्म के आपराधिक झंझट से बचाएगा और यही बात केस में भी दिख रही है.
हालांकि उससे भी बड़ी बात ये है कि संस्थागत सलाह देने वाली संस्थाएं जो रेग्युलेशन के दायरे में हैं, जैसे - बैंक और ब्रोकर, वो भी अपने फ़ायदे को नज़रअंदाज़ करके सिर्फ़ आपके फ़ाइनेंशियल सरोकार को ध्यान में रख कर ही आपको सलाह देंगे ऐसा कतई नहीं है. आंकड़ों के मुताबिक़, इनका अपना ख़ुद का मुनाफ़ा कमाने की सलाहों से जितने लोग पीड़ित हैं, उनका नंबर ऐसे लोगों से कहीं ज़्यादा है, जिन्होंने ऊपर वाली यू-ट्यूब स्टोरी से नुक़सान उठाया है. जो बड़े लोग कहलाते हैं उनको पता होता है कि उन्हें क़ानून की बारीक़ रेखा पर कैसे चलना है. और कैसे वक़्त आने पर फ़ुर्र हो जाना है—मगर यू-ट्यूब स्कैम करने वालों को अभी ऐसा नहीं करना आता.
तो इसका हल क्या है? मुझे डर है कि इसका हल अपनी जानकारी और समझ बढ़ाना ही है. कम-से-कम, ये तो समझना ही चाहिए कि कोई भी आपके लिए पैसे बनाने के धंधे में नहीं है. जब भी कोई निवेश की सलाह देता है तो उस व्यक्ति या संस्था का इसमें क्या स्वार्थ है, इसे लेकर ज़रूर सोचिए. अगर कोई यू-ट्यूब पर आपको ये 'सीक्रेट' बता रहा है कि क्यों ये वाला, या वो स्टॉक चढ़ेगा, तो इतना तो ख़ुद से पूछिए कि ये इंसान ऐसा कर क्यों रहा है. यही बात हर किसी के लिए है, चाहे वो अपनेपन से भरा पड़ोसी हो या आपके बैंक का कोई 'रिलेशनशिप मैनेजर' या फिर मैं, जो इस बात को कह रहा है. आमतौर पर, ऐसी सलाह पर ही कान देने चाहिए जो आपको सीखने और समझने की बात करती है, बजाए उन पर ध्यान देने के जो किसी ख़ास जगह पर निवेश की बात करते हैं.
कई सालों के दौरान मैंने एक अजीब बात देखी है कि कुछ लोग आपको एक ख़राब फ़ानैंशियल प्रोडक्ट बेचने में सफल हो जाते हैं, क्योंकि वो ख़ुद उसमें ईमानदारी से विश्वास करते हैं. इंश्योरेंस एजेंट इसी कैटेगरी में आते हैं, कम-से-कम कुछ तो आते ही हैं. आप एक LIC एजेंट को ये समझाने की कोशिश कीजिए कि क्यों उसके द्वारा बेची जा रही पॉलिसी बेकार है. वो सच में भौंचक्का हो जाएगा और शायद कहेगा, "मगर ये सरकारी कंपनी है". "पूरा देश इसे ख़रीदता है". अब इसका जवाब क्या हो सकता है?
वित्तीय साक्षरता का रास्ता लंबा और मुश्किल है.