"माइक्रो स्तर पर बकवास करने के बजाए मैक्रो स्तर पर बकवास करना कहीं आसान है." बात कहने का ये अनोखा अंदाज़ है, नसीम निकोलस तालेब का. हालांकि अंग्रेज़ी में कही गई बात में उन्होंने बक़वास के बजाए 'BS' का इस्तेमाल किया था (It's much easier to BS at the macro level than to BS at the micro level). मैं समझता हूं BS का मतलब आपको पता ही होगा. ख़ैर, तालेब जिस बात को समझा रहे हैं, वो ये है कि क्यों बॉटम-अप अप्रोच (नीचे से ऊपर की ओर), टॉप-डाउन (ऊपर से नीचे) की अप्रोच से कहीं बेहतर है. दरअसल, उनके मुताबिक़ बॉटम-अप एक सत्य है जबकि टॉप-डाउन कोरी-कल्पना. अगर आप अपने निवेश को लेकर पिछले एक साल से चिंतित रहे हैं, तो हो सकता है 40,000 फ़ुट की ऊंचाई से (टॉप-डाउन का दृष्य-बिंब) से की जा रही दुनिया भर की अटकलों पर माथापच्ची से आप थक गए हों. पर ये भी हो सकता है कि थकान उतनी नहीं हो कि धरती पर उतर कर (बॉटम-अप तरीक़े से) इसके कारणों को विस्तार से समझने का वक़्त आ ही गया हो.
अगर आप निवेश पर बोलने में माहिर हैं और टीवी का कोई वक्ता आपसे निवेश के बारे में पूछता है तो आप किसी भी हद तक बोलते रह सकते हैं. और आपके बोलने के विषय - ब्याज दर, तेल के दाम, ग्लोबल लिक्विडिटी, युद्ध आधारित अर्थव्यवस्था, व्यापार के स्तर और इसी तरह का कुछ भी हो सकता है. क्वांटिटेटिव (परिमाण) तौर पर, इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि किसी चीज़ के होने या न होने के बीच कोई नाता हो या न हो. सोचने वाली बात ये है कि थोड़े समय के लिए वैश्विक अर्थव्यवस्था के धीमेपन या तेज़ी पर किसी मुखर और मंझे हुए वक्ता का कोई भी कयास, शत-प्रतिशत सही निकल भी आए तो भी इसका हमारी बचत और हमारे निवेश की दुनिया पर क्या फ़र्क़ पड़ेगा?
माइक्रो स्तर पर चीज़ों को लेकर सनक पालने से कुछ हासिल होने वाला नहीं. इसमें एक और ग़लती वहां होती है जहां इक्विटी निवेशक ये मान बैठते हैं कि निवेशकों को बड़े-बड़े कारणों और छोटे-छोटे मसलों, दोनों पर ध्यान देना चाहिए और उनके मुताबिक़ ही अपना निवेश करना चाहिए. मुश्किल तो ये है कि सही तरह से निवेश करने और अच्छा मुनाफ़ा पाने के लिए, दो अलग तरह की कला चाहिए होती है. मोटे तौर पर, इसे आप दो हिस्सों में बांट सकते हैं, पहला, जिसमें ऐसे स्टॉक होंगे जो अच्छा प्रदर्शन करेंगे, और दूसरा, ये पता करना कि समूची मार्केट अर्थव्यवस्था या पूरी अर्थव्यवस्था का झुकाव किस तरफ़ है, यानी ट्रेंड क्या चल रहा है. मार्केट और निवेशकों को बरसों ध्यान से देखने के बाद मैं दृढ़ता से कह सकता हूं कि बहुत से निवेशक अच्छे स्टॉक का पता लगाने में सक्षम हैं, और दूसरी बात, कि लंबे समय तक सही अंदाज़ा लगा पाना मुश्किल है.
असल में, ये समस्या बड़ी तब बन जाती है, जब वो निवेशक, जो अपने निवेश का बॉटम-अप वाला हिस्सा तो सही-सही कर लेते हैं, पर अक्सर लंबे समय तक इसे निभा नहीं पाते और पैसे गंवा बैठते हैं. हो सकता है ऐसे निवेशकों का निवेश अच्छा कर रहा हो, ऊर्ध्वगामी हो, और वो कंरसी नोटों के गठ्ठरों पर बैठे हों, ताकि आख़िरी समय में निवेश कर सकें और इसके लिए मार्केट की तरफ़ टकटकी लगाए बैठे हुए हों. ये वही स्थिति है जो मौजूदा वक़्त में चल रही है. इसका मतलब हुआ निवेश को बेचना, किसी मार्केट क्रैश का इंतज़ार करना और अंत में, लंबा समय लेकर अच्छी तरह निवेश करना, जब निवेश को लेकर एक क़िस्म की घबराहट फैलनी शुरु हो जाए. पर ये काम नहीं करता. इससे अच्छा होगा कि निवेशक सही स्टॉक के चुनाव में लगें, मगर मैक्रो-ट्रेंड्स को लेकर नहीं, क्योंकि ये तो पक्का है कि—आर्थिक संकेत हमेशा ही द्वंद्व से भरे, और भ्रामक होते हैं. और इनमें कुछ नया नहीं होता—और ये ट्रेंड हमेशा ऐसे ही होते है.
हालांकि, ये मायने नहीं रखता. इसके बजाए, अब इसे बॉटम-अप नज़रिए से देखते हैं. क्या हमारे पास फ़ैसले लेने के लिए ऐसी जानकारियां हैं कि औरों से तगड़ी कंपनियां कौन सी हैं? ऐसी कंपनियां जिनके पास विपरीत परिस्थितियों से निपटने के लिए काफ़ी ताक़त है, और वो अपने प्रतिद्वंदियों से बेहतर स्थिति में हैं? वो कंपनियां, जिनके मैनेजमेंट शानदार तरीक़े से काम-काज करने और साफ़-सुथरे लेनदेन के लिए जाने जाते हैं? जिन्होंने ऐसी ज़िम्मेदारियां नहीं पाली, जो बुरे वक़्त में उनके लिए रुकावट पैदा करें? जिनके मैनेजमेंट की बिज़नस को अच्छी तरह चलाने के खेल में असल हिस्सेदारी हो? इन सभी बातों का जवाब है, एक ज़ोरदार हां!
ये वो बॉटम-अप अप्रोच है जो आज आपके लिए मायने रखती है. हम उसके लिए क्यों बौखलाएं जिसके बारे में हम जानते ही नहीं और न ही कोई दूसरा जानता है? बेहतर तो ये होगा कि उस पर ध्यान दें जिसे हम जानते हैं, और बे-शक़ जानते हैं. तो, स्टॉक निवेश की मुख्य समस्या आर्थिक भविष्यवाणियां नहीं, बल्कि अच्छी कंपनियों की पहचान है. RBI या Federal Bank ब्याज दरों के लेकर क्या करते हैं, या यूक्रेन में क्या होता है, या दूसरी कोई भू-राजनीतिक (geopolitical) घटना हो, ये सब मेरे-आपके बस में नहीं. मेरे और आपके लिए, बेहतर यही होगा कि हम उस पर फ़ोकस करें जो हमारे बस में है. आपका अपना निवेश आपके बस में है, जहां आप निवेश करते हैं और जिस दाम पर आप निवेश करते हैं, वो आपके बस में है. इस पर भी आप क़ाबू रख सकते हैं कि अति-उत्साह में भर कर किसी बबल (bubble) में निवेश न करें और सिलसिलेवार तरीक़े से धीरे-धीरे निवेश करें. और ज़ाहिर है, निवेश किए जाने वाले अपने पैसे पर भी आपका पूरा क़ाबू है. कुल मिला कर, इक्विटी इन्वेस्टिंग टॉप-डाउन नहीं, एक बॉटम-अप एक्टिविटी है. आप कंपनियों और उनके स्टॉक को लेकर सही होते हैं, तो पैसे कमाते हैं. अब सवाल है कि ये आप कैसे करते हैं?
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