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दुनिया में #1 बनीं भारत की कंपनियां

अमेरिका और चीन दोनों बिज़नस के एक अहम पैमाने पर भारत की कंपनियों से मात खा गए हैं...

दुनिया में #1 बनीं भारत की कंपनियां


पोखरण न्‍यूक्लियर टेस्‍ट हो या मंगल मिशन, भारत ने दुनिया को दिखाया है कि सीमित संसाधनों में बड़े-बड़े काम कैसे अंजाम दिए जाते हैं. फ़ाइनांस की दुनिया में ऐसी ही अहम बात है, पैसों का कुशलता से इस्तेमाल करना. हमने तय किया है कि भारतीय कंपनियां कैपिटल एफ़िशिएंसी (Capital efficiency) के मामले में बाक़ी की दुनिया के मुक़ाबले कहां खड़ी हैं, इस सवाल का जवाब तलाश करके यहां आपके साथ साझा करेंगे.

अब सवाल उठता है कि इसे पता लगाने का आधार क्या हो कि हमारी अर्थव्‍यवस्‍था पूंजी के सही इस्‍तेमाल में कैसी है. उन देशों का क्‍या जिनकी ज़्यादातर कंपनियां पिछले 10 साल से, 15 प्रतिशत से ज़्यादा इक्विटी पर रिटर्न (return on equity or ROE) दे रही हैं? हमें लगता है कि कैपिटल एफ़िशिएंसी पता करने के पैमाने के तौर पर रिटर्न ऑन इक्वटी सही रहेगा.

हमने GDP के लिहाज़ से दुनिया की टॉप-10 अर्थव्‍यवस्‍थाओं को दावेदारों के तौर पर शामिल किया है. शुरुआत में कम-से-कम 10 साल से लिस्‍टिड, शीर्ष 50 कंपनियों (मार्केट कैपिटलाइज़ेशन के लिहाज़ से) पर गौर किया गया है.

और‍ हमने ये पाया है कि


आप देख सकते हैं, भारत, लिस्‍ट में शामिल देशों में अव्‍वल है. भारत की एक तिहाई कंपनियां, कैपिटल एफ़िशिएंसी के मामले में सबसे बेहतर हैं.

हालांकि कोविड-19 जैसी अचानक आई घटना ने कुछ देशों को दूसरों की तुलना में ज़्यादा चोट पहुंचाई है. ऐसे में, पिछले 10 साल में से, हर एक साल में 15% का पैमाना कुछ ज्‍यादा ही कड़ा है।
ऐसी चिंताओं को दूर करने के लिए, हमने ऐसी कंपनियों पर भी ग़ौर किया है, जिन्‍होंने पिछले 10 साल में से कम-से-कम 8 साल 15% या इससे ज़्यादा रिटर्न ऑन इक्विटी (ROE) रिपोर्ट किया है.

भारत, इस पैमाने पर भी अव्‍वल है. किसने सोचा होगा कि भारत दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था अमेरिका को इस पैमाने पर भी पीछे छोड़ देगा?

लेकिन अगर मार्केट-कैप के लिहाज से बात करें, तो अमेरिका में बड़ी कंपनियां हैं. चलिए, सब को बराबरी का मौक़ा देते हैं. आइये कम-से-कम 1 अरब डॉलर (लगभग ₹8,300 करोड़) मार्केट-कैप के साथ ऊपर की गई दोनों एक्‍सरसाइज़ को दोहराते हैं.

कंपनियों की संख्‍या के लिहाज़ से अमेरिका सबसे आगे हैं. इसमें कोई चौंकाने वाली बात नहीं है, क्‍योंकि अमेरिका में $1 अरब और इससे ज़्यादा मार्केट-कैप वाली कंपनियों का नंबर काफ़ी ज़्यादा है. हालांकि प्रतिशत के आधार पर भारत बढत बनाए हुए है.

इस पूरी क़वायद की सबसे चौंकाने वाली बात, चीन है. चीन को अर्थव्‍यवस्‍था के लिहाज़ से एशिया का पावर-हाउस कहा जाता है, लेकिन चीन की कंपनियां कैपिटल एफ़िशिएंसी के मामले में उतनी अच्‍छी नहीं हैं.
फ़ैसला
इस बात में कोई शक़ नहीं है कि भारत दुनिया में एफ़िशिएंसी के मामले में अव्‍वल है, और भारत को अब भी उभरते बाज़ारों में गिना जाता है इसलिए ये उपलब्धि और भी ख़ास बन जाती है.


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