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क्या नेगेटिव वर्किंग कैपिटल हमेशा नेगेटिव होता है?

नेगेटिव वर्किंग कैपिटल होने पर भी कुछ कंपनियां दूसरों से बेहतर क्यों हैं

क्या नेगेटिव वर्किंग कैपिटल हमेशा नेगेटिव होता है?

वर्किंग कैपिटल वो पैसा है, जिसकी ज़रूरत एक कंपनी को रोज़मर्रा के ख़र्चों के लिए होती है। इसमें बिज़नस चलाने या कम समय का क़र्ज़ चुकाने/ लेने जैसे काम शामिल हैं। इसे कंपनी के मौजूदा एसेट और मौजूदा देनदारियों का अंतर भी कहा जाता है।

वर्किंग कैपिटल = करंट एसेट्स - करेंट लाएबिलिटी

तो अगर किसी कंपनी की कम समय की देनदारी ज़्यादा है, तो उसके पास अपना बिज़नस चलाने के लिए पैसा या कैपिटल कम होगा।ये काफ़ी आसान लगता है। तो, एक निवेशक अपना पैसा किसी नेगेटिव वर्किंग कैपिटल वाली कंपनी में क्यों लगाएगा।
क्योंकि निवेश में तो ऐसी बातों में उलझना समझदारी नहीं होती। निवेश वहीं करना चाहिए जहां सब कुछ ठीक-ठाक हो। ये सच है कि नेगेटिव वर्किंग कैपिटल के मामले में निवेशक को ज़्यादा सतर्क रहना चाहिए, लेकिन कुछ कंपनियां नेगेटिव वर्किंग कैपिटल के बावजूद काफ़ी अच्‍छा प्रदर्शन करती हैं।
कंज़्यूमर कंपनियां, जैसे देवयानी इंटरनेशनल की मिसाल लें जो भारत में पीज़्ज़ा-हट चलाती है। ये अपने सप्‍लायरों से कच्चा माल उधार पर ख़रीदती है। हालांकि जैसे ही पीज़्ज़ा प्‍लेट में आता है, कंज़्यूमर पैसे दे देता है। इसका मतलब हुआ कि कंपनी अपने सप्‍लायर (negetive cash conversion cycle) को भुगतान से पहले ही अपनी इन्‍वेंटरी और रिसीवेबल को कैश में बदल लेती है।
तो, हो सकता है कि वर्किंग कैपिटल कागज़ पर नेगेटिव हो, लेकिन कंपनी के पास कैश की कमी नहीं होगी।
B-2-B कंपनियों के लिए भी ये बात सही है। उदाहरण के लिए, सुंदरम क्‍लेटॉन का पिछले 5 साल में, 3 साल नेगेटिव वर्किंग कैपिटल रहा। हालांकि, कंपनी ने पूरे 5 साल अपना काम-काज सफलता से किया और हर साल ऐसा इसलिए हो पाया नेगेटिव कैश कन्‍वर्ज़न साइकल की वजह से ऐसा कर सकी।
इस तरह से, अगर एक कंपनी पर न के बराबर क़र्ज़ है, और कंपनी के पास नेगेटिव या शार्ट कैश कन्वर्ज़न साइकल है, तो जरूरी नहीं है नेगेटिव वर्किंग कैपिटल के आंकड़े निराश ही करें।
नीचे दी गई टेबल में नेगेटिव वर्किग कैपिटल वाली कुछ कंपनियां हैं और इन कंपनियों ने नेगेटिव वर्किंग कैपिटल के साल ज़्यादा मुश्किल का सामना किए बिना बिताए हैं।

क्या नेगेटिव वर्किंग कैपिटल हमेशा नेगेटिव होता है?

कम समय के उधार से सतर्क रहें।
ये अहम है कि कंपनी नेगेटिव वर्किंग कैपिटल के समय में भी अपना क़ारोबार अच्‍छी तरह से चला सकती है लेकिन इसके लिए ज़रूरी है कि कंपनी पर कम समय का क़र्ज़ कम हो और उसका कैश कन्वर्ज़न साइकल छोटा हो।
उदाहरण के लिए, टाटा पावर और अडानी पावर को पांच साल के नेगेटिव वर्किंग केपिटल से निपटने के लिए शिफ़्ट में काम करना पड़ा, क्‍योंकि उनका कैश कन्‍वर्ज़न साइकल थोड़ा लंबा, क्रमश: 148 दिन और 74 दिनों का था।
आख़िरी बात
अगर आपके सामने नेगेटिव वर्किंग कैपिटल वाली कोई बैलेंस-शीट है, तो ये पक्का करें कि कंपनी नीचे दिए गए चेक-बॉक्‍स को टिक करती हो:

- अपने सप्‍लायर को भुगतान करने से पहले, कस्‍टमर्स से भुगतान हासिल करती हो।
- छोटा या नेगेटिव कैश कन्‍वर्ज़न साइकल हो।
- व्यापार में वापस मिलने वाले पैसे ज़्यादा हों, लेकिन शॉर्ट-टर्म उधार कम हो।


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