फ़र्टिलाइज़र इंडस्ट्री को समझना एक मुश्किल काम है। इस सेग्मेट के नियम कड़े हैं और सरकार इस पर पैनी नज़र रखती है। फ़र्टिलाइज़र पर कई तरह की सब्सिडी हैं और ये बात भी इसे समझने में मुश्किल खड़ी करती है।
इंडस्ट्री की हर छोटी-बड़ी बात का ब्यौरा देना तक़रीबन नामुमकिन सा है, पर इस स्टोरी में हम फ़र्टिलाइज़र सेक्टर की कई ख़ास बातों पर ग़ौर करेंगे।
दाम
देश की खाद्य सुरक्षा के लिए फ़र्टिलाइज़र या खाद अहम है। यानि, फ़र्टिलाइज़र कंपनियां हमेशा कड़े नियमों के दायरे में रहती है। क़ीमतों से लेकर कच्चे माल तक और हर चीज़ में सरकार का हस्तक्षेप रहता है। ऐसे में ज़्यादातर फ़र्टिलाइज़र कंपनियां जैसे कोरोमंडल इंटरनेशनल के पास एग्रोकेमिकल्स डिवीज़न भी है। एग्रोकेमिकल्स डिवीज़न फ़र्टिलाइज़र की तरह कड़े नियम-क़ानून से नहीं बंधी। इसीलिए उसमें बेहतर मार्जिन ऑफ़र किए जा सकते हैं।
सब्सिडी
किसानों को फ़र्टिलाइज़र ख़रीदने में आसानी हो, इसके लिए सरकार फ़र्टिलाइज़र की क़ीमतें तय करती है, और कंपनियों को सब्सिडी का भुगतान करती है। आपको लग सकता है कि इन कंपनियों को तगड़ा राजस्व आता होगा, लेकिन ये असलियत नहीं है। इन कंपनियों को शायद ही कभी समय से सब्सिडी का भुगतान होता है। मिसाल के तौर पर चंबल फ़र्टिलाइज़र्स का सितंबर 2022 तक का ट्रेड रिसीवेबल ₹8,152 करोड़ था, जो इस कंपनी के कुल एसेट्स का 44 प्रतिशत होता है। कंपनी का पिछले 5 साल के मीडियन रिसीवेबल डेजड 132 दिन रहे।
इसके अलावा सब्सिडी की रक़म फ़र्टिलाइज़र के हिसाब से अलग-अलग होती है, इसलिए इसमें अंतर होता है।
यूरिया
सबसे ज्यादा यूरिया फ़र्टिलाइज़र इस्तेमाल किया जाता है। इसे आप इस तरह समझें कि दिसंबर 2021 तक हुए कुल फ़र्टिलाइज़र उत्पादन में यूरिया का हिस्सा 55 प्रतिशत था। इसीका नतीजा है कि यूरिया सबसे ज़्यादा कड़े नियम-कानूनों के दायरे में है।
सरकार किसानों को रियायत देने के लिए यूरिया की क़ीमतें तय करती है। हालांकि इसकी भरपाई के लिए कंपनियों को जो सब्सिडी मिलती है, वो उत्पादन की लागत के हिसाब से नहीं तय की जाती। इसके बजाए सरकार ऊर्जा दक्षता स्तर (energy efficiency level) के आधार पर कंपनियों की कैटैगरी तय करती है और फिर इनके लिए सब्सिडी तय करती है।
दूसरी तरफ, P&K यानी फ़ॉस्फ़ोरस-और-पोटैशियम फ़र्टिलाइज़र बनाने वाली कंपनियों के लिए सब्सिडी का खेल अलग है। यहां पर सरकार क़ीमतें तय करने के बजाए सब्सिडी तय करती है। इसका मतलब हुआ कि P&K फ़र्टिलाइज़र कंपनियां सब्सिडी की एक सी रक़म हासिल करती हैं, फिर उनकी उत्पादन लागत चाहे कुछ भी हो। नतीजा ये होता है कि इन कंपनियों को मुनाफ़े में बने रहने के लिए ऊर्जा के इस्तेमाल में कम-से-कम ख़र्च करने पर ध्यान देना पड़ता है।
पूंजी
यूरिया बनाने वाली कंपनियों की सब्सिडी इसी ऊर्जा की दक्षता के आधार पर तय होती है, इसलिए इन कंपनियों को अपने प्लांट लगातार अपग्रेड करने होते हैं। इस पर ख़र्च करने के लिए बड़ी पूंजी की ज़रूरत भी होती है।
यही नहीं, सब्सिडी मिलने में अक्सर देर होती है, इसलिए फ़र्टिलाइज़र कंपनियों को बिक्री क़ीमत पर दी जाने वाली रियायत को उठाने के लिए काफी पूंजी हाथ में रखनी पड़ती है। कम-से-कम तब तक, जब तक सब्सिडी न मिल जाए। तो, ये कहना सही होगा कि इन कंपनियों को बड़े पैमाने पर कार्यशील पूंजी (working capital) की ज़रूरत होती है।
कुशलता
सब्सिडी मिलने में अक्सर देर होने से कंपनियों को बड़े पैमाने पर पूंजी की ज़रूरत होती है, ऐसे में फ़र्टिलाइज़र कंपनी की कुशलता काफ़ी ज़रूरी है, ख़ास कर P&K फ़र्टिलाइज़र कंपनियों के लिए। इसका मतलब है कि मैनेजमेंट उपलब्ध संसाधानों का कितना बेहतर इस्तेमाल करता है ये काफ़ी अहमियत रखता है।
मौसम
फ़र्टिलाइज़र सीधे-सीधे खेती से जुड़ा है। अच्छे मानसून का मतलब है फ़र्टिलाइज़र कंपनियों के लिए ज़्यादा राजस्व। इस तरह से फ़र्टिलाइज़र इंडस्ट्री का स्वभाव मौसमी है, यानि मौसम के मुताबिक़ बदलने वाला। उदाहरण के लिए, यहां दिया ग्राफ़ दिखाता है कि चंबल फ़र्टिलाइज़र और कोरोमंडल इंटरनेशनल का पिछली 18 तिमाही का राजस्व क्या रहा। ग्राफ़ में आप मानसून में कंपनियों के राजस्व में उछाल साफ़ देख सकते हैं।
इस्तेमाल
भारत फ़र्टिलाइज़र की कमी वाला देश है। इसका मतलब है कि कंपनियों द्वारा ज़रूरत से ज़्यादा उत्पादन होने पर भी ये बेकार नहीं जाता। ऐसे में उत्पादन बढ़ाने से कंपनियों को ज़्यादा राजस्व मिलता है और उनकी मोल-भाव की ताकत बढ़ जाती है।
संक्षेप में कहें, तो अगर आप फ़र्टिलाइज़र सेगमेंट में निवेश प्लान कर रहे हैं, तो कंपनियों की कुशलता और पूंजी का प्रबंधन करने की उनकी क्षमता ऐसी बातें है, जिन पर आपको ध्यान देना चाहिए।