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पैसा बनाना आसान है

स्टॉक मार्केट में पैसा बनाना आसान है, कहना है एक महान इन्वेस्टर का. आप भी इस बात से सहमत होंगे जब हॉवर्ड मार्क्स की ये बात समझ आ जाएगी.

पैसा बनाना आसान है

एक दिन मैं यू-ट्यूब पर हावर्ड मार्क्स के साथ हुई बातचीत सुन रहा था. जितने साफ़ और सुलझे तरीक़े से उन्होंने निवेश की अपनी अप्रोच को बयान किया उससे मैं काफ़ी प्रभावित हुआ. मुझे लगा कि उनकी स्ट्रैटजी हर इक्विटी निवेशक के लिए सही है.

जो लोग उन्हें नहीं जानते हैं, उनके लिए बता दूं कि मार्क्स एक सफल फ़ंड मैनेजर रहे हैं जो निवेश पर अपने शानदार लेखन और अपनी बोलने की प्रभावशाली कला के लिए जाने जाते हैं. निवेश पर लिखे उनके लेख काफ़ी प्रसिद्ध हैं और मेमो के तौर पर पढ़े जाते हैं. वॉरेन बफ़े (warren buffett) ने ख़ुद कहा है कि जब मार्क्स के मेमो आते हैं, तो वो सब कुछ छोड़ कर पहले उन्हें पढ़ते हैं, तो आइए बफ़े की मिसाल ही फ़ॉलो करते हैं.

मार्क्स का कहना है कि रिस्क कंट्रोल और निरंतरता उनके निवेश के फ़लसफ़े के दो अहम पहलू हैं. दिलचस्प है कि उन्होंने स्टॉक का चुनाव इसमें शामिल नहीं किया है. पर ऐसा क्यों है? वो एक बात कहते हैं जो किसी फ़ंड मैनेजर के लिए चौंकाने वाली हो सकती है, "हालांकि इस समय विश्वास करना आसान नहीं होगा, पर मैं मानता हूं कि मार्केट में पैसा बनाना आसान है." इसमें वो आगे जोड़ते हैं, "ये ख़ासतौर पर आसान है जब मार्केट ऊपर जा रहे हों, और 10 में से सात या आठ साल में, मार्केट ऊपर जाते ही हैं, और ये कोई समस्या नहीं... आप रिस्क को नकारते हुए और रिस्क कंट्रोल को नज़रअंदाज़ करते हुए, 10 में से सात या आठ साल पैसा बना सकते हैं और ये बहुत अच्छे नतीजे देगा. बाक़ी के दो या तीन साल में, रिस्क कंट्रोल का न होना गंभीर नुक़सान करेगा."

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हालांकि, अच्छे वक़्त में ज़्यादा रिस्क लेने का मोह ज़्यादातर निवेशकों के लिए काफ़ी बड़ा होता है, "सच तो ये है कि अच्छे सालों के दौरान, सबसे ज़्यादा रिटर्न उसी इंसान के हिस्से में जाते हैं, जो सबसे ज़्यादा रिस्क लेता है. हम अच्छे सालों में औसत या औसत से कुछ बेहतर प्रदर्शन पाने की कोशिश करते हैं. और हां, मैं नहीं समझता कि अच्छे सालों के दौरान मार्केट को हरा देना इतना अहम है क्योंकि हर कोई वैसे भी अच्छे पैसे बना ही लेता है. औसत ही काफ़ी है, मगर बुरे सालों के दौरान आपको औसत से काफ़ी ऊपर होना चाहिए... इन दोनों का कॉन्बिनेशन आपको लंबे समय औसत से बेहतर नतीजे देगा जिसमें औसत से कम उतार-चढ़ाव और रिस्क होगा." यही वो निरंतरता है जो मार्क्स को एक महान फ़ंड मैनेजर बनाती है. जो काम वो नहीं करते हैं उस पर कहने के लिए उनके पास कुछ और भी है: मार्केट टाइमिंग और मैक्रो नंबरों के आधार पर निवेश. वो कहते हैं कि ये काम सटीक तरीक़े से किया जाना संभव ही नहीं है.

मैं हावर्ड मार्क्स से सहमत हूं और वैल्यू रिसर्च इस इन्वेस्टमेंट फ़िलॉसफ़ी का अनुमोदन करता है. हम बेस्ट इन्वेस्टमेंट से पूरी तरह प्रभावित हैं, जिसमें बेस्ट का मतलब हुआ वो निवेश जिसमें सबसे ऊंचा रिटर्न मिलता हो. न सिर्फ़ सबसे ऊंचा रिटर्न, बल्कि जब से हम निवेश कर रहे हैं तब से आज तक का सबसे अच्छा रिटर्न भी हो. ज़ाहिर है ये सबसे रिस्की इन्वेस्टमेंट होंगे. जैसा कि पहले कहा गया, जब मार्केट ऊपर जा रहे होते हैं, तब सबसे ज़्यादा रिस्क वाले निवेश ही सबसे ज़्यादा पैसा बनाते हैं. और अगर आप पूछेंगे कि रिस्क कंट्रोल कैसे किया जाए जिसका ज़िक्र मार्क्स कर रहे हैं, तो मेरा जवाब होगा कि ये बात आप पहले से जानते हैं!

रिस्क कंट्रोल में वो सब कुछ शामिल है जिसे हमारे सभी निवेशक दोस्त पहले से ही समझते हैं: बुनियादी मज़बूती यानी फंडामेंटल्स के आधार पर स्टॉक का चुनाव, उचित दाम पर ख़रीदना, अपने ख़र्च को औसत करना, सेक्टर और इंडस्ट्री के बीच डाइवर्सिफ़ाई करना, कंपनी के साइज़ के लिहाज़ से डाइवर्सिफ़ाई करना, और धीरे-धीरे, ज्योग्राफ़ी के मुताबिक़ भी डाइवर्सिफ़ाई करना. मुश्किल ये है कि कम ही इंडिविजुअल इक्विटी इन्वेस्टर इस अप्रोच का इस्तेमाल करते हैं. यही बात इक्विटी म्यूचुअल फ़ंड निवेशकों के लिए भी सच है, मगर वहां कम से कम फ़ंड मैनेजर की पोर्टफ़ोलियो वाली अप्रोच तो होती है. ये महत्वपूर्ण है, क्योंकि जिस रिस्क कंट्रोल की बात मार्क्स करते हैं वो तभी हासिल की जा सकती है जब आप अलग-अलग एसेट और अलग-अलग स्टॉक्स के बीच बैलेंस करें. जब मुनाफ़ा तेज़ी से बढ़ रहा हो, तब निवेशक ये नहीं कहते, "ये ख़रीदने के लिए बहुत अच्छा स्टॉक है, मगर मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए क्योंकि मेरे पास इस इंडस्ट्री का एक्सपोज़र पहले से ही काफ़ी ज़्यादा है." इस तरह की पोर्टफ़ोलियो-स्तर की जागरूकता अक्सर नहीं होती है.

चाहे कोई किसी भी तरह से देखे, इस पूरी बात का निचोड़ साफ़ है: जब मार्केट ऊपर जा रहा हो तो क़रीब-क़रीब हर कोई पैसे बना सकता है. असली कला होती है अपने मुनाफ़े को तब बचाना जब चीज़ें बेहतर हों.

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